राजनीति के अखाड़े में
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विजय कुमार
आ खिर शर्मा जी ने राजनीति के अखाड़े में उतरने का निश्चय कर ही लिया। कल पार्क में मिले, तो यही बात होने लगी।
– तो शर्मा जी, अब राजनीति कब से शुरू कर रहे हैं ?
– मुझे तो अनशन का काफी लम्बा अनुभव है, पर मेरे साथी इस चक्कर में पहली बार ही फंसे हैं। इसलिए उनकी हालत खस्ता है। उनका स्वास्थ्य कुछ ठीक हो जाए, तब देखेंगे।
कुछ दिन बाद जब मैं उनके घर गया, तो वहां उनके साथियों की बैठक चल रही थी। वातावरण काफी गरम था।
एक – सबसे पहले हमें अपने दल का नाम तय करना होगा।
दूसरा – दल का नाम तो जनता को ही तय करना है।
तीसरा – पर बिना नाम के हम जनता के बीच जाएंगे कैसे ?
चौथा – इसलिए पहले जनता के बीच जाकर नाम तय कर लें।
पहला – जनता तो सड़कों पर रहती है, तो क्या हम भी वहीं बैठ जाएं?
दूसरा मीडिया में अधिक महत्व न मिलने से नाराज था। इसलिए वह गुस्से में बोला – अब तक तो हम जनता के बीच ही बैठे थे। इसलिए फिर बैठने में क्या नुकसान है ?
पहला – पर इस बार जनता ने साथ नहीं दिया। इसलिए तो बिस्तर समेटना पड़ा।
दूसरा – तो चुनाव में जनता साथ देगी, इसकी क्या गारंटी है ?
शर्मा जी ने बात बिगड़ते देखी, तो नाम की बजाय दल के संविधान का विषय छेड़ दिया।
तीसरा – संविधान तो सब दलों का लगभग एक सा ही होता है। किसी एन.जी.ओ को इसका ठेका दे देते हैं। वह फेसबुक पर सर्वेक्षण कर दल का नाम और संविधान बना देगा।
पांचवां – हमें सबसे पहले अगले चुनाव के लिए प्रत्याशी तय कर लेने चाहिए। यदि ऐसा हो गया, तो हमारी बढ़त बन जाएगी।
दूसरा – पर प्रत्याशियों के लिए कुछ नियम और योग्यताएं तो तय करनी ही होंगी। वरना सैकड़ों लोग टिकट मांगने लगेंगे।
चौथा – विधानसभा के लिए दस और लोकसभा के लिए पन्द्रह दिन के अनशन का अनुभव तो होना ही चाहिए।
पहला – हमें अनशन वाले नहीं, जीतने वाले प्रत्याशी चाहिए।
दूसरा – पर चुनाव तो जाति, क्षेत्र, भाषा और पंथ के आधार पर जीते जाते हैं। धनबल और बाहुबल की भी जरूरत पड़ती है। अंतिम समय में कुछ खाने–पीने का भी प्रबंध करना होता है ?
तीसरा – हम यह सब नहीं करेंगे। यदि यही करना है, तो फिर इस आंदोलन की जरूरत ही क्या थी ?
चौथा – तो फिर ?
पहला – यही तय करने के लिए तो बैठक हो रही है।
उनकी बहस और सिर फुटव्वल देखकर मैं बाहर आ गया। कुछ देर में बातों का स्वर काफी ऊंचा हो गया। मुझे लगा है कि बस अब निर्णय होने को ही है, पर तभी शर्मा जी भी बाहर आ गये।
– क्यों शर्मा जी, कुछ निर्णय हुआ ?
– कैसा निर्णय, ये तो आपस में ही लड़ रहे हैं। यदि ऐसे ही चलता रहा, तो भ्रष्टाचार और कांग्रेस से कैसे लड़ेंगे ?
– शर्मा जी, आपको यह गलतफहमी कैसे हो गयी कि यह आंदोलन कांग्रेस के विरुद्ध है ?
– क्यों, भ्रष्टाचार की जननी तो कांग्रेस ही है।
– पर यदि आप राजनीतिक दल बनाकर चुनाव लड़ेंगे, तो कांग्रेस विरोधी वोट बंटने से लाभ तो उसे ही होगा।
– अच्छा, यह तो मैंने सोचा ही नहीं था।
– तो अब सोच लीजिये। असल में जो लोग आपको कंधे पर उठाकर घूम रहे हैं, उनका एजेंडा कांग्रेस को लाभ पहुंचाना ही है। इसलिए जितना जल्दी हो सके, इनका साथ छोड़ दें।
– यानि इनसे अलग हटकर मुझे फिर कुछ करना होगा।
– हां, पर एक बात ध्यान रहे कि अब अनशन मत करना।
शर्मा जी नाराज होकर फिर अंदर चले गये और अपनी टीम को ही भंग कर दिया।
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