तथ्यों से यह स्पष्ट है कि जिन दिनों कोयला खदान आवंटन में यह महाघोटाला हुआ और देश को 1.86 लाख करोड़ की क्षति उठानी पड़ी, तब कोयला मंत्रालय प्रधानमंत्री के अधीन था, तो डा.मनमोहन सिंह सीधी जिम्मेदारी से कैसे बच सकते हैं? उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि जब वे टू जी स्पेक्ट्रम में महाघोटाले के सूत्रधार तत्कालीन संचार मंत्री ए.राजा व एक अन्य केन्द्रीय मंत्री दयानिधि मारन को पद से हटा चुके हैं तो प्रधानमंत्री अब जवाबदेही से क्यों कतरा रहे हैं? विपक्ष की यह मांग उचित है कि इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री को पद से त्यागपत्र देना चाहिए। इस सरकार के कार्यकाल में जिस तरह भ्रष्टाचार के एक के बाद एक मामले सामने आते गए, यह स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक रिकार्ड है। परिणामत: इस सरकार को 'घोटालों की सरकार' कहा जाना अतिशयोक्ति नहीं है। प्रधानमंत्री की 'ईमानदार छवि' अब पूरी तरह दरक गई है क्योंकि अब तक तो कहा जाता था कि प्रधानमंत्री तो ईमानदार हैं लेकिन उनके नीचे भ्रष्टाचार पनप रहा है। कोयला खदान आवंटन घोटाला तो प्रधानमंत्री के पास इस मंत्रालय का प्रभार रहने के दौरान हुआ, तो इस जवाबदेही से बचने का उनके पास कौन सा रास्ता है? प्रधानमंत्री त्यागपत्र देने की नैतिकता दिखाकर शायद इस सरकार के मुंह पर लगी कोयले की कालिख को कम कर सकें।
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