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जवाबदेही से क्यों बच रहे हैं प्रधानमंत्री?

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Aug 25, 2012, 12:00 am IST
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क्यों बच रहे हैं प्रधानमंत्री?

दिंनाक: 25 Aug 2012 15:00:50

मानव को अपने राष्ट्र की सेवा के ऊपर किसी विश्व भावना व आदर्श को पहला स्थान नहीं देना चाहिए।…देशभक्ति तो मानवता के लक्ष्य विश्वबन्धुत्व का ही एक पक्ष है। 

–अरविन्द ('नेशनल वर्चूज' निबंध)

एक बार फिर साबित हो गया है कि केन्द्र की संप्रग सरकार भ्रष्टाचार व घोटालों की सच्चाई सामने आने से डरती है क्योंकि 'कोयले की दलाली में उसके हाथ काले' हैं, जिन्हें वह छुपाए रखना चाहती है। कोयला खदान आवंटन में सामने आए (अब तक के सबसे बड़े टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले को भी मात कर देने वाले) महाघोटाले ने देश को हिलाकर रख दिया है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रपट में यह रकम 1.86 लाख करोड़ आंकी गई है, जबकि टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला 'कैग' ने ही पौने दो लाख करोड़ का बताया था। इस रकम को न केवल सरकारी पक्ष की ओर से फर्जी बताया गया था बल्कि केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने तो 'कैग' पर ही हमला बोल दिया था और स्पेक्ट्रम के आवंटन में सरकार को हुई क्षति को शून्य घोषित कर दिया था। जब मामला संसद में उठा और टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले को संयुक्त संसदीय समिति में ले जाने की बात विपक्ष ने रखी तो सरकार विरोध में डट गई और सरकारी जिद तथा बहस से बचने के कारण पूरा संसद सत्र गतिरोध की भेंट चढ़ गया। इस बार भी वैसा ही कुछ हो रहा है और संसद के गतिरोध को समाप्त करने के बजाय संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने सांसदों को और आक्रामक तेवर अपनाने को कहा है यानी चोरी और सीनाजोरी।

तथ्यों से यह स्पष्ट है कि जिन दिनों कोयला खदान आवंटन में यह महाघोटाला हुआ और देश को 1.86 लाख करोड़ की क्षति उठानी पड़ी, तब कोयला मंत्रालय प्रधानमंत्री के अधीन था, तो डा.मनमोहन सिंह सीधी जिम्मेदारी से कैसे बच सकते हैं? उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि जब वे टू जी स्पेक्ट्रम में महाघोटाले के सूत्रधार तत्कालीन संचार मंत्री ए.राजा व एक अन्य केन्द्रीय मंत्री दयानिधि मारन को पद से हटा चुके हैं तो प्रधानमंत्री अब जवाबदेही से क्यों कतरा रहे हैं? विपक्ष की यह मांग उचित है कि इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री को पद से त्यागपत्र देना चाहिए। इस सरकार के कार्यकाल में जिस तरह भ्रष्टाचार के एक के बाद एक मामले सामने आते गए, यह स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक रिकार्ड है। परिणामत: इस सरकार को 'घोटालों की सरकार' कहा जाना अतिशयोक्ति नहीं है। प्रधानमंत्री की 'ईमानदार छवि' अब पूरी तरह दरक गई है क्योंकि अब तक तो कहा जाता था कि प्रधानमंत्री तो ईमानदार हैं लेकिन उनके नीचे भ्रष्टाचार पनप रहा है। कोयला खदान आवंटन घोटाला तो प्रधानमंत्री के पास इस मंत्रालय का प्रभार रहने के दौरान हुआ, तो इस जवाबदेही से बचने का उनके पास कौन सा रास्ता है? प्रधानमंत्री त्यागपत्र देने की नैतिकता दिखाकर शायद इस सरकार के मुंह पर लगी कोयले की कालिख को कम कर सकें।

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