पाकिस्तान में सेवा बन गई सजा
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मुजफ्फर हुसैन
पिछले दिनों पाकिस्तान के सहाय एटर्नी जनरल खुर्शीद खान भारत आए। यहां उन्होंने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में कारसेवा की। इसके बाद तो पाकिस्तान में कट्टरवादी बौखला गए और सरकार ने उन्हें पद से हटा दिया। खान का मानना है कि सेवा एक ऐसा माध्यम है जो भारत और पाकिस्तान को निकट ला सकता है। उनके मतानुसार सूफी-संतों के कारण ही भारतीय उपखण्ड में प्रेम और विश्वास का वातावरण बना था। यदि उस मार्ग को फिर से अपनाया जाए तो पुराने दिन लौट सकते हैं। खान का कहना है कि कारसेवा की भावना को जाग्रत किया जाए तो लोग निकट आ सकते हैं। वे कहने में कम और करने में अधिक विश्वास रखते हैं। उनका अपना आंदोलन 'एकला चलो रे' की भावना से ओतप्रोत है। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के धर्मस्थल तोड़े जाते हैं। उन पर अवैध कब्जा कर लिया जाता है। पिछले कुछ वर्षों से सिखों, हिन्दुओं, अहमदियों और शियाओं का जीना हराम हो गया है। समय मिलते ही खुर्शीद खान अल्पसंख्यकों के पूजा-स्थलों पर पहुंच जाते हैं। वहां जाकर वे साफ सफाई करते हैं, उनकी जूठी प्लेटों को धोते हैं और वहां आने वाले लोगों के जूतों की पालिश करते हैं। अपनी इस सेवा को वे प्रायश्चित का माध्यम मानते हैं। उनका विश्वास है कि इससे अल्पसंख्यकों में विश्वास पैदा होगा। उनके धर्मस्थलों के प्रति जब सम्मान दर्शाया जाएगा तो निश्चित ही दूरियां कम होंगी। इससे अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक निकट आएंगे। यह विश्वास उन्हें आपस में जोड़ेगा। पंजाब के गुरुद्वारों और सिंध के हिन्दू मंदिरों में पहुंचकर वे उनके साथ भाईचारा बढ़ाकर सेवा के माध्यम से उनको अपनी शुभकामनाओं का संदेश पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
सुखद आश्चर्य
अमृतसर में भी उन्होंने यही करने का प्रयास किया। इसकी चर्चा मीडिया में तो होनी ही थी। उस समय भारत के लोगों को ऐसा लगा कि इस व्यक्ति की भावनाएं पाकिस्तान में रहने वाले मुस्लिम समाज के लिए प्रेरणादायी हैं। पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यकों को यह सुखद आश्चर्य होता है कि बहुसंख्यक समाज का व्यक्ति, जो सरकार के उच्च पद पर विराजमान है, वह हमारी आहत भावनाओं से परिचित है? व्यक्तिगत रूप से वह पाकिस्तान की सरकार और आतंकवादियों को समझाने में तो निष्फल है, लेकिन उनकी सेवा करके वे उनके घावों पर मरहम तो लगा ही सकता है। मेल-मिलाप का यह अनोखा तरीका जो भी देखता है वह प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। अपने कार्यों से वे यह बताने का प्रयत्न करते हैं कि पाकिस्तान में अब भी मानवता जीवित है। खुर्शीद खान उत्तर पश्चिम सूबे में स्थित पेशावर के रहने वाले हैं। खान ने अपने नेपाल और भूटान दौरे के समय वहां के मंदिरों में भी वही किया जो पाकिस्तान के मंदिरों में करते हैं।
ऐसा लगता है कि खान द्वारा भारत में की गई सेवा से पाकिस्तान सरकार अपने आपको लज्जित महसूस कर रही थी। इसलिए एटर्नी जनरल इरफान कदीर ने उन्हें उनके पद से हटा देने की घोषणा कर दी। कदीर का कहना था कि एटर्नी जनरल का पद कोई स्थायी नहीं है। इसका कार्यकाल तीन वर्ष का होता है, लेकिन सरकार जब चाहे उसे हटा सकती है और उसके स्थान पर नए व्यक्ति की नियुक्ति कर सकती है। यह उसका सामान्य नियम है। जिस समय कदीर ने यह घोषणा की उस समय खान नेपाल के दौरे पर थे। खान ने पाकिस्तान लौटकर यह बयान जारी किया, 'कदीर ने मुझ पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए कहा है कि मैं अवामी नेशनल पार्टी का सक्रिय कार्यकर्त्ता हूं। मैंने दीवाने खास नामक रेस्टोरेंट का अवैध निर्माण किया है। यह मुझ पर बेबुनियाद आरोप है। वास्तविकता तो यह है कि मेरा सेवा कार्य उनको नहीं भाया। पाक सरकार इसको अपना अपमान मानती है इसलिए इस प्रकार के झूठे आरोप लगाकर मुझे अपने पद से मुक्त कर दिया गया है।
खान का अपमान
खान उस समय चर्चित हुए जब पेशावर के जोगनशाह गुरुद्वारे पर आतंकवादियों ने हमला करके कुछ सिखों की हत्या कर दी और वहां से कुछ लोगों का अपहरण कर लिया। इस घटना के बाद सिखों के घावों पर मरहम लगाने के लिए उन्होंने कारसेवा प्रारंभ की थी। उस समय भी खान की यह सेवा पाकिस्तान सरकार को पसन्द नहीं आई थी। पाक प्रेस में छपे समाचारों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस देकर उन्हें अपदस्थ कर दिया है। खुर्शीद का कहना है कि जब एटर्नी जनरल अपना काम कर चुके हैं तब सुप्रीम कोर्ट के नोटिस की कहां आवश्यकता रह जाती है? इससे यह लगता है कि केवल उन्हें अपमानित करने की दृष्टि से ही यह काम किया गया है। पाकिस्तानी प्रेस ने खान पर यह आरोप लगाया गयी है कि उन्होंने पाकिस्तान को बदनाम करने की कोशिश की है। इसलिए न्यायालय को यह कदम उठाने की आवश्यकता पड़ी है। पाकिस्तान के पश्तो और सिंधी प्रेस ने लिखा है कि सरकार और सुप्रीम कोर्ट की मिलीभगत के कारण एक शरीफ और नेक इंसान पर हमला किया गया है। वास्तव में तो खान की सेवा से पाकिस्तान का रूतबा बुलंद हुआ है। लेकिन अफसोस यह है कि भारत के विरोध के नाम पर यह साजिश रची गई।
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