नेत्र दान
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डा. हर्ष वर्धन
एम.बी.बी.एस., एम.एस. (ई.एन.टी.)
गत् लेख में हमने अंगदान के संदर्भ में चर्चा की थी। प्रस्तुत लेख में हम विविध अंगों के दान के बारे में चर्चा करेंगे।
नेत्र दान
शरीर के सभी अंग महत्वपूर्ण हैं परन्तु आंख सबसे श्रेष्ठ है क्योंकि आंख नहीं है तो समूची दुनिया व्यक्ति के लिए अंधेरे के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। हमारी आंख का काला गोल हिस्सा 'कॉर्निया' कहलाता है। कॉर्निया की तुलना कैमरे के लैन्स से की जाती है लेकिन इसमें काफी अंतर होता है। एक लेंस अपने पर गिरने वाले प्रकाश को केवल फैलाने तथा सिकोड़ने का कार्य करता है परन्तु कॉर्निया का काम इससे व्यापक है। कॉर्निया प्रकाश को आंख की पुतली में आने देता है। इसका उभरा हुआ भाग इस प्रकाश को आगे अर्थात पुतली और लेंस में भेजता है। इस प्रकार यह दृष्टि (विजन) का कार्य करता है। कॉर्निया खराब हो जाने पर रेटिना पर चित्र नहीं बनता और व्यक्ति को दिखाई देना बंद हो जाता है। कॉर्निया पर झिल्ली पड़ जाये, दुर्घटना में चोट लग जाये या इस पर धब्बे पड़ जायें तो दिखाई देना बंद हो जाता है। यही कॉर्निया जब किसी की आंख में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है तब व्यक्ति को पुन: दिखाई देना प्रारम्भ हो जाता है।
नेत्र दान कौन कर सकता है
0 नेत्रदान जीवित अवस्था में संभव नहीं है।
0 नेत्रदान करने के लिए कोई भी व्यक्ति यह निश्चित कर सकता है कि वह मृत्यु के उपरांत अपने नेत्रों का दान करना चाहता है। इसके लिए उम्र की कोई अधिकतम सीमा नहीं है।
0 यदि किसी व्यक्ति की नजर कमजोर है, ऐनक इस्तेमाल करता है, मोतियाबिन्द या काला मोतिया का आपरेशन हो चुका है अथवा डायबिटीज का रोगी है तो भी वह व्यक्ति नेत्रदान कर सकता है। वह नेत्रहीन व्यक्ति भी अपना नेत्र दान कर सकता है जिसके अंधेपन का कारण 'रेटिनल' या 'आप्टिक नर्व' से संबंधित बीमारी है परन्तु कॉर्निया ठीक है।
0 रेबीज, हिपेटाइटिस, सिफलिस तथा एड्स जैसी बीमारियों के कारण जिनकी मौत होती है, उनकी आंखें उपयुक्त नहीं होती हैं, क्योंकि इनसे दूसरे व्यक्ति को बीमारी फैलने की आशंका होती है। अत: ऐसे लोगों का नेत्र नहीं लिया जाता है।
नेत्र दान संबंधी जानकारी
0 मृत्यु के छह घंटे के अंदर आई बैंक के चिकित्सक मृतक के शरीर से नेत्र को ले लेते हैं। अत: परिवार अथवा सगे-संबंधियों को इस बात पर विशेष ध्यान रखना चाहिए कि नेत्र दान का संकल्प लिये गये व्यक्ति की मृत्यु होने के तुरंत बाद आई बैंक को सूचित कर दें।
0 मृत्यु होने के उपरांत मृतक के नेत्रों को बंद कर देना चाहिए तथा आंखों पर गीली रूई रख देना चाहिए। पंखा आदि चल रहा हो तो बंद कर दें। संभव हो तो कोई एंटीबायोटिक आई ड्राप मृतक की आंख में डाल दें। इससे नेत्र में संक्रमण की संभावना खत्म हो जाती है। मृतक के सिर के हिस्से को छह इंच ऊपर उठाकर रखना चाहिए।
0 डाक्टर मृतक की आंख का आई बाल निकाल लेते हैं। इसके निकालने के उपरांत ऑंख में कोई गङ्ढा या 'डिफार्मिटी' नहीं होती है। देखने में आंख पूर्ववत लगती है।
0 आई बैंक में कार्निया के कई प्रकार के परीक्षण किये जाते हैं। जो कार्निया ठीक होते हैं, उन्हें ही आई बाल से निकाला जाता है और फिर उसे एक खास 'सल्यूशन' में रख दिया जाता है, जिससे वे सुरक्षित रहें।
0 परीक्षण में अच्छी क्वालिटी के पाये गये कॉर्निया को तीन दिनों के अंदर प्रत्यारोपण के लिए प्रयोग कर लिया जाता है।
0 आंख के बाकी हिस्से को चिकित्सकीय शोध में इस्तेमाल कर लिया जाता है।
0 कॉर्निया किसे लगाया जा रहा है, यह नेत्रदानकर्ता के परिजनों को नहीं बताया जाता है और न ही जिसे लगाया जा रहा है उसे यह बताया जाता है कि किसकी ऑंख उसे लगायी गयी है।
यकृत दान (लीवर डोनेशन)
हमारे शरीर के अधिकांश अंग दो-दो हैं लेकिन यकृत एक ही है। यकृत शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है जो पित्त का निर्माण करती है। इसके अलावा यकृत पचे हुए भोजन से प्राप्त वसा और प्रोटीन को संशोधित करने में मदद करता है। विष शमन करता है। रक्त निर्माण का कार्य करता है। ग्लूकोज से बनने वाले ग्लाइकोजन (शरीर की ऊर्जा) का संचय करता है तथा जरूरत होने पर ग्लाइकोजन ग्लूकोज में परिवर्तित होकर रक्तधारा में प्रवाहित हो जाता है।
अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार उस व्यक्ति के यकृत के प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है जो 'लीवर सिरोहसिस' से पीड़ित हैं तथा चिकित्सकों द्वारा उसकी समुचित जांच के बाद यह आंका जा चुका है कि उस व्यक्ति का जीवन एक वर्ष से भी कम है।
यकृत दान दो प्रकार से संभव है–
'कैडवरिक लीवर डोनेशन' : इस प्रकार का यकृत दान 'ब्रेन डेड' व्यक्ति से ही संभव है, जब उसके परिजन संबधित व्यक्ति को 'लाइफ सपोर्ट सिस्टम' से हटाने से पूर्व उसके अंग को दान करना चाहते हैं। ऐसे व्यक्ति का पूरा यकृत निकाल लिया जाता है तथा 12-15 घंटे के लिए सुरक्षित रखने के लिए खास 'प्रिजरवेशन सल्यूशन' में रखा जाता है।
'लिविंग लीवर डोनेशन' : यह जीवित व्यक्ति के शरीर से प्राप्त किया जाता है। इसमें अंगदाता के यकृत का आधा भाग निकाल लिया जाता है। अंगदाता का आपरेशन बिल्कुल सुरक्षित होता है। यकृत दानकर्ता तथा प्रत्यारोपित हुए व्यक्ति के शरीर में यकृत कुछ सप्ताहों में पुन: पूरा बन जाता है। आधा यकृत भी शरीर की कार्यप्रणाली को सुचारू रखने में समर्थ होता है।
0 कोई भी व्यक्ति स्वेच्छा से अपना यकृत दान कर सकता है।
0 अंगदाता की उम्र 18-55 वर्ष होनी चाहिए तथा वजन 50-85 किलोग्राम होना चाहिए।
0 कोई भी व्यक्ति अपने परिजनों, निकट व भावनात्मक संबंधियों को यकृत दान कर सकता है।
0 दानकर्ता तथा प्राप्तकर्ता-दोनों का रक्त ग्रुप मिलना चाहिए।
0 दानकर्ता के यकृत तथा शरीर के अन्य अंगों की कार्यप्रणाली सामान्य होनी चाहिए।
पाठकों की जानकारी के लिए बताना चाहता हूं कि अंगदान से कोई नुकसान नहीं होता है, यदि शरीर के सभी अंग सामान्य रूप से कार्य कर रहे हैं। अंगदान से स्वयं को एक अनूठी संतुष्टि तो होती ही है साथ ही हम अपने इस सात्विक कार्य से एक अस्त होते जीवन को नया जीवन दे देते हैं। सोचिए! यदि कोई ऐसा व्यक्ति जो घर का मुखिया हो और उस पर उसके नौनिहालों, पत्नी व माता-पिता का दायित्व हो और वह असमय काल का ग्रास बनने के कगार पर हो तो ऐसे व्यक्ति को जीवनदान देकर उसे तो बचाया ही जा सकता है, साथ ही उस परिवार के लोगों को बरबाद होने से भी बचाया जा सकता है। बहुत सारे लोग हैं जिनके लिए यह खूबसूरत संसार हमेशा के लिए अंधेरा बन गया है। कॉर्निया का दान उनके जीवन को रोशन कर सकता है। अत: पाठकगण नेत्रदान/अंगदान करने का संकल्प जरूर लें। यह महान कार्य है, मानव के कल्याण का कार्य है। आगामी लेख में हम अन्य अंगों के दान की चर्चा करेंगे।
लेखक से उनकी वेबसाइट www.drharshvardhan.com तथा मेल drhrshvardhan@gmail.com के माध्यम से भी संपर्क किया जा सकता है।
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