कांग्रेसी नेताओं के
July 16, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

कांग्रेसी नेताओं के

by
Aug 20, 2012, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

कांग्रेसी नेताओं केउतावलेपन का परिणाम था?

दिंनाक: 20 Aug 2012 11:53:31

भारत का विभाजन-2

उतावलेपन का परिणाम था?

 डा.सतीश चन्द्र मित्तल

(5 अगस्त, 2012 को प्रकाशित प्रथम भाग से आगे)

कांग्रेसी नेताओं की प्रारंभ से ही सत्ता सुख तथा सरकारी सुविधाएं प्राप्त करने की प्रबल आकांक्षा रही है। अनेक विद्वानों ने कांग्रेसी नेताओं की अदूरदर्शिता तथा उतावलेपन का वर्णन अपने लेखों तथा पुस्तकों में किया है। वास्तव में 1937 के चुनाव में देश के सात प्रांतों में मंत्रिमण्डल बन जाने के पश्चात राजसत्ता की यह लिप्सा कांग्रेसियों में तेजी से बढ़ी। तत्कालीन घटनाक्रम व प्रसंगों से कांग्रेसी नेताओं की इस मानसिकता तथा सोच का स्पष्ट रूप से पता चलता है। यद्यपि यह सत्य है कि स्वतंत्रता से पूर्व ही तीन बार कांग्रेस का विभाजन क्रमश: 1907, 1923 तथा 1933 में हो चुका था, बावजूद इसके दु:खद स्थिति यह रही कि कांग्रेस नकली सदस्यता, मुसलमानों को कांग्रेस में लाने के लिए उन्हें अतिरिक्त सुविधाएं देने तथा भ्रष्टाचार का शिकार रही, जिसकी गांधी जी ने भी कटु आलोचना की। कांग्रेस के अनेक प्रांतों में लगभग दो वर्षों (1937-1939) के मंत्रिमण्डलों के शासनकाल से तो गांधी जी को घोर निराशा हुई। वे कांग्रेस नेताओं के परस्पर द्वेष, कटुता, ऊपर से नीचे तक व्याप्त भ्रष्टाचार, नकली सदस्यता, रिश्वने लेने की प्रवृत्ति, अनुशासनहीनता, पदलोलुपता, स्वार्थी प्रवृत्ति तथा हिंसक भावनाओं से अत्यधिक आहत हुए। इससे उन्हें स्वाधीनता का संघर्ष कमजोर होता हुआ लगा। गांधी जी ने इन मंत्रिमण्डलों के घिनौने एवं भ्रष्ट कार्यों का वर्णन  'गांधी वाङ्मय' के अनेक खण्डों, 'हरिजन' तथा 'यंग इंडिया' के अंकों तथा अपने पत्रों में किया है। इसे पढ़कर किसी को भी कांग्रेसी नेताओं की सत्ता की भूख, स्वाधीनता के प्रति उदासीनता तथा अदूरदर्शिता का पता चलता है। 

सत्ता की भूखी कांग्रेस

क्षणिक सत्ता के आते ही कांग्रेसियों की राजनीतिक चेतना कम होती गई। गांधी जी के स्वाधीनता आन्दोलनों में अब नेताओं की रुचि कम हो गई थी। जिसका परिणाम यह हुआ कि गांधी जी का व्यक्तिगत सत्याग्रह पूर्णत: अप्रभावी तथा असफल रहा तथा 1942 के आन्दोलन के भी अपेक्षित परिणाम नहीं निकले। कांग्रेस कार्यकारिणी के कई सदस्य प्रारम्भ से ही 1942 के आन्दोलन के पक्ष में नहीं थे। राजगोपालाचारी जैसे राष्ट्रभक्त नेता ने भी, जो तमिलनाडु में सत्ता सुख भोग चुके थे, इस आन्दोलन को बेकार का हंगामा या हुल्लड़ कहा। डा. पट्टाभिसीतारमैया के अनुसार, 'जब गांधी जी 1944 में जेल से आए तो उन्हें लगा कि वे अब महत्वहीन हो गए हैं, उनकी अब कोई सुनता ही  नहीं है।

उधर 1945 के ब्रिटेन में हुए चुनावों में लेबर पार्टी को बड़ी सफलता मिली। पहले भारत के लिए जो कूटनीतिक चाल चर्चिल, जिन्ना के साथ मिलकर चल रहा था, अब लेबर पार्टी के प्रधानमंत्री एटली, भारत मंत्री लारेंस, लेबर पार्टी के अध्यक्ष प्रो. लास्की तथा भारत में नव नियुक्त वायसराय माउन्टबेटन ने प्रारम्भ की। इस बार उन्होंने अपना मोहरा पं. जवाहर लाल नेहरू तथा कांग्रेस को बनाया। ये सब पाकिस्तान के निर्माण के अधूरे कार्य को पूरा करने में जुट गए। नई लेबर पार्टी की सरकार ने 22 जनवरी, 1946 को भारतीय नेताओं से बातचीत करने के लिए एक शिष्टमण्डल भेजने का विचार किया। 24 मार्च को यह 'कैबिनेट मिशन' दिल्ली पहुंचा, पर समस्या का कोई हल न निकला। तब अन्तरिम सरकार निर्माण हुआ, पंडित नेहरू ने इस अंतरिम सरकार का नेतृत्व किया। इसी काल में पं. नेहरू के मन में पाकिस्तान निर्माण की कल्पना स्पष्ट हो गई थी। उन्होंने स्वयं माना, 'हम सिरदर्द से छुटकारा पाने के लिए सिर कटवाने को तैयार हो गए।' इसी बीच माउन्टबेटन ने रंगून में पंडित नेहरू का राजकीय स्वागत किया तथा उससे पूर्व कहा कि वह (पं. नेहरू) एक दिन भारत पर शासन कर सकते हैं।' इस प्रकार उसने पंडित नेहरू में एक अन्तरराष्ट्रीय नेता तथा भारत के भावी प्रधानमंत्री की लालसा को बल दिया गया।

माउन्टबेटन की चतुराई

20 फरवरी, 1947 को इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री एटली ने भारत विभाजन की विधिवत् घोषणा की तथा यह कार्य 3 जून, 1948 तक पूरा करने को कहा। विरोधी दल के नेताओं सैम्युअल हीक व चर्चिल ने इसका पूर्ण समर्थन किया। विभाजन की योजना को साकार करने के लिए माउन्टबेटन को भारत भेजा गया, जो 24 मार्च, 1947 से 20 जून, 1948 तक भारत में रहा। आते ही उसने भारत विभाजन को व्यावहारिक रूप देना प्रारम्भ किया। वह भारतीय नेताओं की कमजोरियां तथा परस्पर मतभेदों से परिचित था। उसने एक–एक करके भारत के नेताओं से अलग–अलग वार्ता की। सर्वप्रथम उसने पं. नेहरू को भारत विभाजन के लिए विश्वास में लिया। (देखें– दुर्गादास की पुस्तक 'इंडिया–फ्राम कर्जन टू नेहरू एण्ड आफ्टर, पृ. 254)। हद तो तब हो गई जब कांग्रेस के नेताओं ने भारत विभाजन की योजना से पूर्व कांग्रेस तथा देश के सर्वोच्च नेता गांधी जी तथा कांग्रेस के 6 वर्ष तक अध्यक्ष रहे मौलाना अबुल कलाम आजाद तक को भी विश्वास में नहीं लिया। उत्तर–पश्चिम सीमान्त प्रांत के नेता खान अब्दुल गफ्फार खान को भी पूर्णत: धोखे में रखा। माउन्टबेटन ने जिन्ना को भी मना लिया।

जहां भारत में आगामी पांच महीने (अप्रैल से अगस्त तक) तक माउन्टबेटन  ने चतुराई से कांग्रेस नेताओं से बातचीत की, वहीं ब्रिटेन की लेबर पार्टी भी इन्हीं महीनों में बड़ी बेसब्री से भारत विभाजन की योजना को पूरा करना चाहती थी। तत्कालीन लेबर पार्टी के अध्यक्ष प्रो. लास्की तथा प्रधानमंत्री एटली की परस्पर बातचीत, बैठकों तथा भाषणों से यह स्पष्ट होता है। मई, 1947 में प्रो. लास्की ने कहा, 'आधुनिक इतिहास में अहिंसक रूप से शक्ति का यह हस्तांतरण सबसे बड़ा है, जो किसी साम्राज्यीय शक्ति ने किसी भी देश के लोगों को किया है।  मैं आशा करता हूं कि भारतीय राष्ट्रीय नेता इस प्रकार स्वर्ण थालों में मिली इस भेंट का सम्मान करेंगे।' इसी सुर में अगले मास जुलाई, 1947 में प्रधानमंत्री एटली ने कहा– 'इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब राज्यों को तलवार की शक्ति से अन्य लोगों के हाथों में छोड़ने पर बाध्य होना पड़ता है। बिरले ही ऐसा हुआ होगा कि वे लोग, जो दूसरे पर राज्य कर रहे हों, अपने अधीनस्थ लोगों को स्वेच्छा से शक्ति का हस्तांतरण कर दें।' इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री एटली ने फरवरी, 1947 को अपनी घोषणा के बाद चार बार माउन्टबेटन को संदेश दिया कि वह भारत विभाजन के कार्य को शीघ्रातिशीघ्र पूरा करें। संक्षेप में देश का विभाजन ब्रिटिश सरकार की ओर से भारतीयों के लिए 'एक सुन्दर तोहफा' था, 'स्वर्ण थाली' में रखकर' स्वतंत्रता के रूप में भेंट दी जा रही थी। यह उनकी स्वेच्छा से सत्ता का हस्तांतरण था तथा यह अहिंसक रूप से भेंट किया जा रहा था। एक विद्वान ने इस पर कहा कि हमारे नेता (कांग्रेस के) मामूली प्रलोभन के वशीभूत हो गए और वायसराय के लिए आसान हो गया है कि वह इन व्यक्तियों की साधारण भावनाओं तथा मानवीय दुुर्बलताओं से खेले।

क्या विभाजन रोका जा सकता था?

प्रश्न है पं. नेहरू ने प्रारम्भ में ही माउन्टबेटन के भारत विभाजन की योजना को सहमति क्यों दी ? यह सर्वज्ञात है कि उस समय पं. नेहरू अन्तरिम सरकार के प्रधानमंत्री, माउन्टबेटन के प्रशंसक तथा गांधी जी के चहेते थे। माउन्टबेटन ने उन्हें भारत का 'भावी प्रधानमंत्री' कहकर उनमें सत्ता की आकांक्षा तथा उतावलेपन का भाव पैदा कर दिया था। पं. नेहरू ने भी स्वयं माना कि वे संघर्ष करते– करते थक गए थे। उन्होंने भारत विभाजन को परिस्थितियों की मजबूरी बताया। (देखें–माइकेल ब्रीचर–नेहरू द पालिटिकल बायोग्राफी, पृ. 337) उनका यह अनुमान था कि भारत विभाजन से देश में खून–खराबा नहीं होगा तथा देश गृह युद्ध से बच जाएगा। उनका यह भी कहना था कि विभाजन के बिना आगामी कई वर्षों तक भारत की उन्नति रुक जाएगी। उन्होंने यह कहकर संतोष व्यक्त किया कि कभी–कभी पर्वत शिखरों तक पहुंचने के लिए घाटियों की छाया में चलना पड़ता है। उपरोक्त विचारों से पं. नेहरू की दुर्बल मानसिकता तथा प्रबल महत्वाकांक्षा का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। प्राय: उनके सभी अनुमान गलत साबित हुए। वैसे भी मुस्लिम लीग तथा कांग्रेस का नेतृत्व शारीरिक तथा मानिसक रूप से क्षीण हो रहा था। सभी को पता था कि जिन्ना भयंकर दमे के मरीज थे, जिनकी मृत्यु विभाजन के तुरन्त बाद, 1948 में हुई। लियाकत अली प्राय: बीमार रहते थे, पं. नेहरू स्वयं को थका हुआ मानते थे, मौलाना आजाद संगठन कला में शून्य थे, महात्मा गांधी 1944 से ही प्रभावहीन हो गए थे, सरदार पटेल अंतरिम शासन के तौर–तरीकों तथा मुस्लिम खून–खराबे से क्षुब्ध थे। अत: कांग्रेस नेतृत्व जरा भी प्रतीक्षा करने को तैयार न था।

निष्कर्ष यह है कि भारत विभाजन द्वितीय महायुद्ध से ही ब्रिटिश कूटनीति का एक महत्वपूर्ण अंग बन गया था। जहां अनुदार दल के नेता चर्चिल ने भारत को खण्डित करके पाकिस्तान निर्माण में सहयोग दिया तथा लार्ड लिनलिथगो तथा लार्ड वेवल ने जिन्ना की मानसिकता को मजबूत किया, वहीं लेबर पार्टी के प्रो. लास्की, प्रधानमंत्री एटली तथा भारत के वायसराय माउन्टबेटन ने पं. नेहरू को विभाजन स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया। अत: ब्रिटिश सरकार ने भारतीय राजसत्ता का हस्तांतरण करके देश खण्डित भारत के रूप में कांग्रेस को सौंपा। अनेक विद्वानों का कथन है यदि कांग्रेस नेतृत्व ने देश की स्वतंत्रता के लिए अगले 6 महीनों की प्रतीक्षा की होती तो भारत का वह विनाशकारी मानचित्र न होता, जो 'इंडिया दैट इज भारत' के रूप में आज दृष्टिगोचर होता है।

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

ए जयशंकर, भारत के विदेश मंत्री

पाकिस्तान ने भारत के 3 राफेल विमान मार गिराए, जानें क्या है एस जयशंकर के वायरल वीडियो की सच्चाई

Uttarakhand court sentenced 20 years of imprisonment to Love jihad criminal

जालंधर : मिशनरी स्कूल में बच्ची का यौन शोषण, तोबियस मसीह को 20 साल की कैद

पिथौरागढ़ में सड़क हादसा : 8 की मौत 5 घायल, सीएम धामी ने जताया दुःख

अमृतसर : स्वर्ण मंदिर को लगातार दूसरे दिन RDX से उड़ाने की धमकी, SGPC ने की कार्रवाई मांगी

राहुल गांधी ने किया आत्मसमर्पण, जमानत पर हुए रिहा

लखनऊ : अंतरिक्ष से लौटा लखनऊ का लाल, सीएम योगी ने जताया हर्ष

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

ए जयशंकर, भारत के विदेश मंत्री

पाकिस्तान ने भारत के 3 राफेल विमान मार गिराए, जानें क्या है एस जयशंकर के वायरल वीडियो की सच्चाई

Uttarakhand court sentenced 20 years of imprisonment to Love jihad criminal

जालंधर : मिशनरी स्कूल में बच्ची का यौन शोषण, तोबियस मसीह को 20 साल की कैद

पिथौरागढ़ में सड़क हादसा : 8 की मौत 5 घायल, सीएम धामी ने जताया दुःख

अमृतसर : स्वर्ण मंदिर को लगातार दूसरे दिन RDX से उड़ाने की धमकी, SGPC ने की कार्रवाई मांगी

राहुल गांधी ने किया आत्मसमर्पण, जमानत पर हुए रिहा

लखनऊ : अंतरिक्ष से लौटा लखनऊ का लाल, सीएम योगी ने जताया हर्ष

छत्रपति शिवाजी महाराज

रायगढ़ का किला, छत्रपति शिवाजी महाराज और हिंदवी स्वराज्य

शुभांशु की ऐतिहासिक यात्रा और भारत की अंतरिक्ष रणनीति का नया युग : ‘स्पेस लीडर’ बनने की दिशा में अग्रसर भारत

सीएम धामी का पर्यटन से रोजगार पर फोकस, कहा- ‘मुझे पर्यटन में रोजगार की बढ़ती संख्या चाहिए’

बांग्लादेश से घुसपैठ : धुबरी रहा घुसपैठियों की पसंद, कांग्रेस ने दिया राजनीतिक संरक्षण

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies