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जम्मू और लद्दाख की बर्बादी का बिगुल

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Aug 6, 2012, 12:00 am IST
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जम्मू और लद्दाख की बर्बादी का बिगुल

दिंनाक: 06 Aug 2012 13:38:17

स्वदेश चिन्तन

 

तुष्टीकरण आधारित अलगाववादी रपट-6

'कश्मीर केन्द्रित' रपट तैयार करके प्रगतिशील वार्ताकारों ने बजा दिया

 नरेन्द्र सहगल

भारत सरकार, प्राय: सभी राजनीतिक दल और अधिकांश बुद्धिजीवी-पत्रकार, लेखक आज तक  केवल कश्मीर को ही समूचा जम्मू-कश्मीर मान लेने की खतरनाक भूल करते चले आ रहे हैं। कश्मीर घाटी में भी मात्र पांच प्रतिशत अलगाववादियों और उनके समर्थकों के एजेंडे को सारे जम्मू-कश्मीर की जनता पर थोपने के प्रयास करके इन लोगों और दलों ने प्रदेश के 95 प्रतिशत भारत समर्थकों की आवाज को खामोश कर दिया है। वोट बैंक की राष्ट्रघातक राजनीति के परिणामस्वरूप हिन्दू बहुल जम्मू क्षेत्र और बौद्ध बहुल लद्दाख क्षेत्र पर मुस्लिम बहुल कश्मीर का एकतरफा कट्टरवादी वर्चस्व स्थापित हो गया है। इन तीनों वार्ताकारों ने भी अपनी रपट को कश्मीर केन्द्रित बनाकर जम्मू और लद्दाख के साथ घोर अन्याय किया है। हिन्दुओं/बौद्धों के साथ विश्वासघात है यह।

भेदभाव का दुष्परिणाम

जम्मू और लद्दाख के प्रतिनिधि मंडलों के नेताओं और सदस्यों ने वार्ताकारों को अपने साथ हो रहे जातिगत भेदभाव की ठोस/विस्तृत जानकारी दी थी। प्रदेश की जनसंख्या (तीनों संभागों की) के हिसाब से न्याय नहीं हो रहा है। श्रीनगर के मेडिकल कालेज में 75प्रतिशत से ज्यादा स्थान कश्मीरी मुस्लिम युवकों से भरे जाते हैं। कश्मीर का शेरे कश्मीर चिकित्सा संस्थान आतंकियों का केन्द्र बन चुका है। श्रीनगर विश्वविद्यालय भी मुस्लिम युवकों के योजनाबद्ध बाहुल्य के कारण पाकिस्तान समर्थकों का अड्डा बन गया है। सभी बड़े-बड़े उद्योग कश्मीर घाटी में ही प्रारंभ किए गए और किए जा रहे हैं।

भारत सरकार द्वारा खुले हाथों दिए जाने वाले अनुदान, अरब देशों के बेहिसाब पेट्रो डालरों, पाकिस्तान के खुले समर्थन और इस तरह के वार्ताकारों के पक्षपात से पूर्ण विश्लेषणों से कश्मीर के लोग शेष देशवासियों से कहीं ज्यादा समृद्ध हो गए हैं। यही जम्मू और लद्दाख की बदनसीबी है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार कश्मीर घाटी की प्रतिव्यक्ति आय न केवल जम्मू/लद्दाख अपितु सारे देश से ज्यादा है। केवल दिल्ली और मुम्बई ही अपवाद हैं। वार्ताकारों ने इस प्रकार के क्षेत्रीय अन्याय का संज्ञान क्यों नहीं लिया?

राष्ट्रविरोधी साजिश

700 से ज्यादा प्रतिनिधिमंडलों की बात सुनने का दावा करने वाले वार्ताकारों ने गहराई में जाकर ये जानने की रत्ती भर भी कोशिश नहीं की कि राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक इत्यादि प्रत्येक क्षेत्र में जम्मू और लद्दाख की जनता के साथ पक्षपात, अन्याय और सौतेले व्यवहार किसी गहरी साजिश के अंतर्गत बकायदा योजनाबद्ध तरीके से किया जा रहा है। यह गहरी साजिश है हिन्दुओं को बलहीन करके राष्ट्रवादी शक्तियों को जम्मू-कश्मीर में अस्तित्व विहीन करने की।

जम्मू-कश्मीर की राजनीति, सरकार और प्रशासन पर कश्मीर का वर्चस्व सदैव बना रहे इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए सभी सरकारी गतिविधियों और विकास की योजनाओं को कश्मीर केन्द्रित बनाकर रखा जाता है। जनसंख्या के अनुपात को ताक पर रखकर प्रदेश की विधानसभा में कश्मीर की सीटें ज्यादा रखी गई हैं। सरकारी नौकरियों में भी कश्मीर के लोगों को वरीयता दी जाती है। जम्मू-कश्मीर सरकार के मंत्रिमंडल में कश्मीरी विधायकों का ही हमेशा बहुमत रहता है। आज तक जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री पद पर कश्मीरी मुसलमान ही काबिज होते आए हैं।

बस एक अपवाद डोडा जिले के रहने वाले गुलाम नबी आजाद का है। वह भी पुराने कश्मीरी ही हैं और अपने आपको कश्मीर की उस वर्तमान तहजीब का हिस्सा मानते हैं जो विदेशी हमलावर अपने साथ लाए थे। उल्लेखनीय है कि जब मुजफ्फराबाद और श्रीनगर के बीच में बस सेवा शुरू हुई थी तो इन्हीं आजाद ने उद्घाटन समारोह में कहा था यह वही मार्ग है जहां से हमारी तहजीब आई थी। वार्ताकारों ने इसी हमलावर तहजीब का सम्मान करते हुए अपनी रपट को कश्मीर केन्द्रित बना दिया है।

पक्षपात की पराकाष्ठा

क्षेत्रफल की दृष्टि से कश्मीर घाटी पूरे जम्मू-कश्मीर प्रांत का 8वां भाग है। परंतु प्रदेश की सारी आमदनी और केन्द्रीय सहायता का अधिकांश भाग कश्मीर पर व्यय होता है। पर्यटन विभाग के बजट का 95 प्रतिशत भाग कश्मीर के विकास के लिए ही खर्च होता है। प्रांत के प्राय: सभी सरकारी निगमों के कार्यालय श्रीनगर में ही हैं। प्रदेश स्तर पर सरकारी अधिकारियों और सचिवों इत्यादि की नियुक्ति में भी क्षेत्रीय और जातिगत भेदभाव का बोलबाला बना रहता है। वार्ताकारों ने कहीं नहीं बताया कि यह पक्षपात कैसे दूर होगा? कहीं इस अन्याय को जायज तो नहीं मान लिया गया?

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद तुष्टीकरण के नशे में मदहोश होकर हमारे सत्ताधारियों ने जम्मू और लद्दाख के हितों को दरकिनार करके ढेरों राजनीतिक और आर्थिक सुविधाएं कश्मीर में जुटाई हैं। इन सरकारी वार्ताकारों को कौन समझाए कि भारतीय संविधान की धारा 370 की आड़ में प्राप्त राजनीतिक अधिकारों और आर्थिक सुविधाओं से बढ़ी सम्पन्नता ने कश्मीरी- युवकों के साम्प्रदायिक कट्टरपन को और गहरा कर दिया है। ये भी समझने की जरूरत है कि कश्मीर की अपेक्षा जम्मू और लद्दाख में आर्थिक पिछड़ापन कहीं अधिक ज्यादा है।

देशभक्त होने की सजा

संभवत: जम्मू और लद्दाख के लोगों को उनके भारत भक्त होने की सजा दी जा रही है। जम्मू संभाग के लोगों में हमेशा ही भारत के राष्ट्रध्वज, संविधान और सेना के प्रति स्वाभाविक जज्बा विद्यमान रहा है। इसके विपरीत कश्मीर में पृथकतावाद पनपा है। भारतीय सैनिकों को गालियां दी जाती हैं। कश्मीर में भारत को पराया मुल्क करार दिया जाता है। पाकिस्तान से मिल रही प्रत्येक प्रकार की सहायता के बल पर 'आजादी की जंग' लड़ी जा रही है। ये सारा भारत विरोधी उन्माद भारत की सरकारों की गलत नीतियों का परिणाम है। वार्ताकारों ने इन तथ्यों को आंखों से ओझल कर दिया है।

वार्ताकारों ने जम्मू और लद्दाख के साथ हो रहे घोर पक्षपात को साधारण पक्षपात समझने की भारी भूल कर डाली है। ये पक्षपात उस मजहबी मतांधता का परिणाम है, जिसके तहत अपने मजहब के बाहर के लोगों को बर्दाश्त न करने की मानसिकता काम करती है। तुर्कों, मुगलों और अफगानों द्वारा गैर मुस्लिम समाज पर लगाए जाने वाले जजिया कर का आधुनिक संस्कारण है ये पक्षपात। हिन्दुओं और बौद्धों के साथ किया जा रहा ये पक्षपात भारत राष्ट्र का अपमान है। यही भारतीय होने की सजा है। वार्ताकारों ने भी लगभग यही सजा इन लोगों को दी है।

कश्मीर का उपनिवेश लद्दाख?

बौद्ध मतावलम्बियों के बहुमत वाला लद्दाख क्षेत्र भी मुस्लिम बहुमत वाले कश्मीर के निरंकुश वर्चस्व के नीचे दबा पड़ा है। जम्मू-कश्मीर प्रदेश का एक भाग होने के बावजूद लद्दाख के धर्म परायण और अहिंसक मनोवृत्ति के लोग लंबे समय से अपने बुनियादी अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर की कश्मीर केन्द्रित सरकारों ने जम्मू के साथ लद्दाखियों को भी उनके अनेक मौलिक हकों से वंचित किया हुआ है। वास्तविकता तो यह है कि लद्दाख को कश्मीर का एक उपनिवेश समझकर उसके साथ घोर पक्षपात किया जा रहा है।

भारत की सुरक्षा की दृष्टि से लद्दाख क्षेत्र का बहुत महत्व है। लद्दाख के 37,555 वर्ग कि.मी.इलाके पर चीन ने बलात् कब्जा जमा रखा है। चीन की गिद्ध दृष्टि पूरे लद्दाख पर है। पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर के 78,114 वर्ग किमी क्षेत्र में से 5,180 वर्ग किमी. का इलाका चीन को भेंट कर दिया है। चीन ने इस क्षेत्र और अपने कब्जे वाले लद्दाख में सड़कों का जाल बिछाकर कई प्रकार के प्रकल्प खड़े करने के साथ-साथ अपनी सैनिकर छावनियां भी बना ली हैं। उधर पाकिस्तान चीन की मदद से अपने हथियारबंद मुजाहिद्दीनों (स्वतंत्रता सेनानियों) को घुसपैठ कराकर कश्मीर को भारत से अलग करने की जी तोड़ कोशिश कर रहा है। वार्ताकारों ने इन परिस्थितियों का कतई अध्ययन नहीं किया।

लद्दाखियों पर गिद्ध दृष्टि

मात्र कश्मीर के बहुमत वाले  मुस्लिम समुदाय को खुश करने की धुन में मस्त वार्ताकारों ने इस पर भी ध्यान नहीं दिया कि कश्मीर घाटी में व्याप्त पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद अब लद्दाख क्षेत्र में फैल रहा है। लद्दाख के मुस्लिम बहुमत वाले लेह जिले में आतंकी ठिकाने बढ़ते जा रहे हैं। लद्दाख के बौद्ध विहारों और अन्य धार्मिक स्थानों पर आतंकी हमले यदा-कदा होते रहते हैं। भोले-भाले लद्दाखियों की गरीबी का फायदा उठाकर कट्टरवादी कश्मीरी मुल्ला- मौलवी मतान्तरण की मुहिम चला रहे हैं। लद्दाखी लड़कियों को बरगलाकर उन्हें धन इत्यादि का लालच देकर मुस्लिम युवकों से उनकी शादियां करवाने की घटनाएं बढ़ रही हैं। इस तरह जनसंख्या का न केवल संतुलन बिगाड़ने, बल्कि लद्दाख में पाकिस्तान परस्त तत्वों का बोलबाला बढ़ाने का भी प्रयास किया जा रहा है।

लद्दाख क्षेत्र पर चीन, पाकिस्तान और कश्मीर के आतंकवादी अपनी नापाक नजर गढ़ाए बैठे हैं। भारत  सरकार इन सारी खतरनाक परिस्थितियों से मुंह मोड़कर और मुस्लिम वोट बैंक के नशे में धुत होकर कश्मीरी अलगाववादियों के साथ वार्ताओं के दौर चलाकर पूरे जम्मू- कश्मीर को 'स्वायत्तता और स्वशासन' जैसी देशघातक राजनीतिक व्यवस्था में धकेलने की तैयारी कर रही है। वार्ताकारों ने भी सरकार की हां में हां मिलाने के सिवाय कुछ नहीं किया।

वर्तमान सरकारी वार्ताकारों ने लद्दाख के दूर दराज के इलाकों में जाकर प्रत्यक्ष वहां की परिस्थितियों को जानने का कष्ट नहीं उठाया। लद्दाखियों को केवल मात्र एक दंत विहीन रीजनल काउंसिल का पुराना घिसा पिटा झांसा दिखाया गया है। इस संदर्भ में भी अगर भारत सरकार ने वार्ताकारों की रपट को मान्यता दे दी तो लद्दाख को चीन और पाकिस्तान के पंजे में जाने के सभी रास्ते खुल जाएंगे।

एकतरफा षड्यंत्र

लद्दाख स्थित अधिकांश सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाओं के मतानुसार लद्दाख को पाकिस्तान और चीन से बचाने का सबसे उत्तम रास्ता यही है कि लद्दाख की सीमाओं की रक्षा के लिए भारतीय सेना की पर्याप्त तैनाती की जाए। लद्दाख के समाज, संस्कृति और भूगोल को बचाना देश की सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

जम्मू और लद्दाख की प्राय: सभी सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने वार्ताकारों को न केवल उपरोक्त भेदभाव की जानकारी ही दी थी बल्कि समानता और न्याय के लिए कुछ सुझाव भी दिए थे। इस पक्षपात और सुझावों का 178 पृष्ठों की रपट में कहीं उल्लेख नहीं हुआ। कश्मीर घाटी के प्रतिनिधियों विशेषतया अलगाववादियों के एजेंडे के अनुसार ही यह रपट तैयार की गई है।

हिन्दू बहुमत वाले जम्मू संभाग और बौद्ध बहुमत वाले लद्दाख संभाग की सुरक्षा को भी खतरे में डालकर वार्ताकारों ने जिस कश्मीर केन्द्रित रपट को तैयार किया है वह इन दोनों क्षेत्रों की बर्बादी का बिगुल है। वार्ताकारों की हिन्दुत्व अर्थात भारत विरोधी मानसिकता का जीता जागता दस्तावेज है यह रपट।

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