शराबमुक्त हुआ गांवविजयलक्ष्मी सिंह
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शराब की लत दीमक की तरह सारणिया के लोगों की खुशियों को चाट रही थी। राजस्थान के अजमेर जिले के करीब 1365 परिवारों के इस गांव में घर-घर में कच्ची शराब बनती थी। शाम होते ही सारा गांव नशे में डूब जाता था। ब्यावर क्षेत्र के बाकी गांवांे की तरह सारणिया में भी पीने के पानी तक का टोटा था। दिनभर हाड़-तोड़ मेहनत कर दो कोस दूर से महिलाएं पानी ढोकर लाती थीं, फिर भी हर रोज शराबी पति उन्हें पीटते थे। बच्चे या तो जानवरों को चराने जंगल निकल जाते थे या फिर आपस में गाली-गलौज व मारपीट करते रहते थे। उन्हें पढ़ाने व आगे बढ़ाने की न तो वहां किसी की सोच थी और न ही किसी को होश। गांव का सरकारी स्कूल महज खानापूर्ति के लिए लगता था। लेकिन आज हालात बदल चुके हैं। सारणिया में शराब बनना बंद हो गई है, पीना भी 30 परिवारों तक ही सीमित रह गया है। अब बच्चे जानवर नहीं चराते, बल्कि पढ़ते हैं। न सिर्फ सरकारी विद्यालय में अपितु शाम को 4 से 6 तक चलने वाले एकल विद्यालय में भी। इस गांव की दशा व दिशा बदलने का काम किया है एकल विद्यालय की संस्कारयुक्त शिक्षा, सशक्त ग्राम समिति व ग्राम विकास की व्यावहारिक योजनाओं ने।
एकल विद्यालय अभियान के तहत राजस्थान में कुल 1680 गावों में एकल विद्यालय चल रहे हैं। केवल अजमेर जिले में 270 एकल विद्यालय चल रहे हैं। इस योजना के तहत गांव के ही किसी पढ़े-लिखे व्यक्ति को प्रशिक्षित कर प्रतिदिन शाम के समय दो घंटे एकल विद्यालय चलाया जाता है। विद्यालय में चौथी कक्षा तक बुनियादी शिक्षा के साथ-साथ संस्कार, देशप्रेम व स्वाभिमान का पाठ पढ़ाया जाता है। बच्चों को आचार्य मनोरंजक तरीके से जोड़-घटा, खेलकूद के माध्यम से गीत व कविताएं, स्वस्थ शरीर के लिए प्राणायाम व व्यक्तित्व निर्माण के लिए महापुरुषों की जीवनियां व प्रेरक किस्से इत्यादि के माध्यम से बच्चे के संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास करते हैं।
एकल विद्यालय की संस्कारयुक्त शिक्षा प्रणाली बच्चों में राष्ट्रप्रेम भी जागृत करती है। विद्यालय के बेहतर क्रियान्वयन के लिए जो ग्राम समिति गठित होती है, वह धीरे-धीरे ग्राम विकास की एक सामूहिक सोच का विकास करती है। समिति के माध्यम से गांव वालों में संस्कार, .अपने अधिकारों व कर्तव्यों के प्रति जागृति, स्वास्थ्य के बुनियादी नियमों का पालन व ग्राम की समस्यायों के लिए सामूहिक स्तर पर प्रयास जैसे कदम उठाए जाते हैं। समय-समय पर अभियान के वरिष्ठ कार्यकर्ता ग्राम समिति की बैठक में संविधान प्रदत्त मूलभूत अधिकारों के साथ-साथ सूचना के अधिकार जैसे उपयोगी अधिकारों की जानकारी देते हैं।
सारणिया में आचार्य श्री सांवर सिंह व ग्राम प्रमुख श्री मोहन सिंह ने एकल अभियान के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के सहयोग से गांव में शराब के खिलाफ अभियान छेड़ा। सत्संग के माध्यम से लोगों का मन बदलने के प्रयास आरंभ हुए। एकल अभियान के लिए देशभर के दूरस्थ गांवों में सत्संग कर लोगों के मनों में राम नाम का शंखनाद फूंक रही उर्मिला दीदी ने सारणिया में रामायण की कथा सुनाई व लोगों को शराब छोड़ने की शपथ दिलाई। इतना ही नहीं, उन्होंने गांव के लोगों को नियमित सत्संग करने के लिए भी प्रेरित किया। गांव में नियमित सत्संग शुरू होते ही सारणिया के लोगों का मन बदलने लगा।
गांव के किसान व वर्तमान ग्राम प्रमुख श्री अंबा के अनुसार गांव में पहले लोग सिर्फ काम करते थे और शराब पीते थे। किसी के पास गांव के विकास की कोई सोच नहीं थी। एकल विद्यालय के शुरू होने के बाद लोगों को लगने लगा कि उनकी नियति सिर्फ नशा नहीं है, उनके बच्चे भी आगे बढ़ सकते हैं। एकल विद्यालय नियमित जाने वाले बच्चे जब घर जाकर गायत्री मंत्र व कल्याण मंत्र सुनाते तो उनके माता-पिता आश्चर्यचकित रह जाते। बच्चों के पिताओं को लगता कि वे बच्चों के सामने कैसे शराब पी सकते हैं? श्री अंबा ने कहा कि धीरे-धीरे सारणिया के अधिकांश परिवारों ने तो स्वेच्छा से घर में शराब बनाना बंद कर दिया। लेकिन फिर भी शराब के कुछ ठेकेदार जिद पर अड़े थे कि वे अपना ठेका बंद नहीं करेंगे।
पूर्व ग्राम प्रमुख श्री मोहन सिंह के अनुसार इसके लिए उन्हें लंबा संघर्ष करना पड़ा। जब ये ठेकेदार समझाने पर नहीं माने तो ग्राम समिति ने आबकारी विभाग के अधिकारियों को इन बिना परमिट के ठेकों के बारे में सूचनाएं दीं व बार-बार छापे पड़वाए, ताकि घबराकर ठेकेदार अपने कदम पीछे हटा लें। हुआ भी यही, लगातार पड़ रहे छापों से हो रहे नुकसान से शराब के ठेकेदारों की कमर टूट गई व मजबूरन उन्हें शराब के ठेके बंद करने पड़े।
सारणिया के लोगों के लिए शराब की लत एक अभिशाप की तरह थी, जिसने उनकी तरक्की के सारे रास्ते बंद कर दिये थे। क्षेत्र के अभियान प्रमुख श्री प्रेमसिंह चौहान कहते हैं 'पहले यहां के लोगों की आधी कमाई शराब पीने में ही उड़ जाती थी। अपनी व बच्चों की तरक्की के बारे में सोचने के लिये वे होश में ही नहीं रहते थे। पर आज गांव की दिनचर्या बदल चुकी है। आज इस गांव में पंद्रह किसानों ने ट्रेक्टर खरीद लिया है। पत्थर की जो खदानें परती पड़ी थीं, वहां क्रेशर खुल गये है'।
सारणिया में कई पीढ़ियों से रह रहे श्री गणेश कहते हैं 'पहले रोजगार की तलाश में आधा गांव 6 माह खाली रहता था। अब पत्थर के काम से काफी लोगों को गांव में ही रोजगार मिल गया है। यह सब ग्राम समिति के कारण हुआ। पहली बार गांव के लोग एकजुट होकर विकास के लिए कार्य करने लगे हैं। ग्राम समिति के प्रयासों से गांव में पानी की टंकी भी बन गयी है'। वर्तमान आचार्य श्री भगवान सिंह को उम्मीद है कि शीघ्र ही पेयजल विभाग से पानी की आपूर्ति भी आरंभ हो जाएगी व बरसों से जल संकट से जूझ रहे गांव को राहत मिल जाएगी।
एकल विद्यालय से पढ़कर अब नजदीकी गांव खरवां में कक्षा 11 में पढ़ रहे अशरफ का सपना है कि वह इंजीनियर बने व अपने गांव की तरक्की के लिए काम करे। यानी सारणिया के उज्ज्वल भविष्य की नींव एकल विद्यालय ने रख दी है।
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