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असम में उल्फा अपना दबदबा एक बार फिर कायम करने में सफल होता दिख रहा है। सेना द्वारा चलाए गये 'आपरेशन रेनो' व 'आल क्लियर' के समय उल्फा लगभग समाप्ति की कगार पर पहुंच गया था, जिसके बाद उल्फा ने एक रणनीति के तहत कई वरिष्ठ उल्फा नेताओं द्वारा युद्ध विराम की पहल कराई। उनके साथ ही असम के कई वरिष्ठ लोगों ने भी एक मंच बनाकर सरकार पर वार्ता के लिए दबाव बनाने की चेष्टा की, जो सफल भी रही। सरकार ने भी 'भटके हुए युवकों' को वापस लाने की पहल की, लेकिन यह उल्फा के सैन्य प्रमुख परेश बरुआ की एक चाल ही थी। एक बार फिर वह युद्ध विराम की आड़ में अपनी शक्तियों को एकत्रित कर आतंकी गतिविधियों के लिए सामने आया है, जिसके बाद असम में फिर पहले जैसी स्थिति पैदा होने की संभावना बढ़ गई है।
आगामी 15 अगस्त को अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए उल्फा ने ऊपरी असम के विभिन्न सरकारी प्रतिष्ठानों में विस्फोट करने की योजना बनाई थी। इसका खुलासा तब हुआ जब सेना व तिनसुकिया पुलिस ने खुफिया जानकारी के आधार पर असम व अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर स्थित दियोंग नुंग तथा शियम नतुन गांव के एक ठिकाने पर छापा मारकर रूमी पंग्काई (28) व टीना दिकाई (20) नामक दो युवतियों को हिरासत में लिया। इनकी निशानदेही पर चीन निर्मित 6 रिमोट कन्ट्रोल से संचालित होने वाले विस्फोटकतंत्र, दस बैटरी, तार व लोहे की छड़ें भी बरामद की गईं। यह सामग्री जिस बक्से में छुपाकर रखी गई थी वह चीन निर्मित बक्सा था। गिरफ्तार युवतियों ने खुलासा किया कि वे पहले भी तीन बार तिनसुकिया जिले में आ-जा चुकी है। उन्होंने ही शंकर ग्लास हाउस में हुए विस्फोट को अंजाम दिया था। उक्त युवतियों का इस्तेमाल उल्फा अपने वाहक (कैरियर) के रूप में करता था। लड़की होने के कारण उन्हें विस्फोटक पदार्थ आदि एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने में आसानी होती थी।
इस खुलासे ने इस तथ्य को उजागर कर दिया है कि एक तरफ उल्फा का एक धड़ा शांति वार्ता कर रहा है दूसरी तरफ परेश बरुआ नए युवकों व युवतियों की भर्ती कर असम में आतंक को फैलाने में लगा है। ऐसी स्थिति ने उल्फा के साथ चल रही शांति वार्ता पर भी सवालिया निशान लग गया है। पाञ्चजन्य ने दो वर्ष पहले ही उल्फा के मंसूबों का खुलासा करते हुए एक विश्लेषण प्रकाशित किया था कि उल्फा अपनी बिखरी ताकत को पुन: बटोरने के लिए युद्ध विराम की आड़ में कार्य कर रहा है। साथ ही उल्फा के जो नेता बीमार व बूढ़े हो गये हैं, उन्हें उनके समाज में वापस भेजने के लिए शांति वार्ता की पहल की गई है, ताकि दबाव में आकर सेना उन पर कोई कार्रवाई न करे।
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