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कांग्रेस की जातीय राजनीति

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Aug 6, 2012, 12:00 am IST
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कांग्रेस की जातीय राजनीति

दिंनाक: 06 Aug 2012 13:24:12

छिन्नो।़पि रोहति तरु: क्षीणो।़पि उपचीयते पुनश्चन्द्र:।

इति विमृशन्त: सन्त: सन्तप्यन्ते न विप्लुता लोके।।

कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है। क्षीण हुआ चन्द्रमा भी पुन: बढ़कर पूरा हो जाता है। इस बात को समझकर सन्त पुरुष अपनी विपत्ति में नहीं घबराते।

–भर्तृहरि (नीतिशतक, 88)

आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस घबराई हुई है, क्योंकि उसके नेतृत्व वाली संप्रग सरकार का दूसरा कार्यकाल चतुर्दिक विफलताओं से घिरा है और जनता के बीच कांग्रेस की छवि बेहद विकृत हो चुकी है। उत्तर प्रदेश व बिहार जैसे बड़े राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को अपना अस्तित्व बचाने के लाले पड़ जाना इसका संकेत है। ऐसी स्थिति में अपनी भावी दुर्गति से कांग्रेस के हाथों के तोते उड़े हुए हैं। उपाय के तौर पर उसने खुलकर मुस्लिम तुष्टीकरण का कार्ड खेलना शुरू कर दिया है, यहां तक कि वह इसके लिए संवैधानिक प्रावधानों की भी धज्जियां उड़ा रही है। अदालत को उस पर अंकुश लगाना पड़ रहा है। सत्ता के लिए वह देश के सामाजिक ताने–बाने को वैमनस्य की आग में झोंकने से भी नहीं चूक रही। अब एक ऐसे व्यक्ति को देश का गृहमंत्री बना दिया गया है, जो पद ग्रहण करने से दो दिन पहले ही अपने ऊर्जा मंत्रालय के दायित्व निर्वहन में बुरी तरह विफल रहा, जिसकी उदासीनता व अक्षमता से आधे से ज्यादा देश घंटों अंधेरे में डूबा रहा, जनता त्राहि–त्राहि कर उठी। यहां तक कि इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की उभरती छवि पर प्रश्नचिन्ह खड़े होने लगे। इसके बावजूद उस व्यक्ति को पुरस्कृत कर देश का गृहमंत्री बना दिया गया। विफलता और अक्षमता का पुरस्कार! यह कांग्रेस के राज में ही संभव है, इसे लेकर राजनीतिक क्षेत्र में कयास लगाए जा रहे हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव में सत्ता समीकरण साधने के लिए मुस्लिमों के अलावा अनुसूचित जातियों के वोट पाने के लिए वंचित वर्ग के चेहरे को आगे लाने के उद्देश्य से सुशील कुमार शिंदे को गृहमंत्री जैसा प्रमुख दायित्व दे दिया गया। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि देश का गृहमंत्री जातिगत आधार पर बनना चाहिए या क्षमताओं व योग्यता के आधार पर?

सत्ता के लिए देश को जाति-मत-पंथ में बांटने की अंग्रेजों की 'बांटो और राज करो' नीति कांग्रेस ने शुरू से ही अपनाई और सत्ता के लिए साम्प्रदायिक राजनीति को प्रश्रय देते हुए '60 के दशक में उस मुस्लिम लीग से भी चुनावी गठबंधन करने में कांग्रेस नहीं चूकी जो भारत के विभाजन जैसे जघन्य कृत्य के लिए जिम्मेदार थी। उस पर तुरर्ा ये कि जिससे कांग्रेस का गठबंधन हुआ है ये मुस्लिम लीग वह मुस्लिम लीग नहीं है जिसने देश का विभाजन कराया था। इस कथन से बड़ा धोखा देश की जनता के साथ और क्या हो सकता है? कांग्रेस से होती हुई यह जाति-मत-पंथ की राजनीतिक बीमारी विश्वनाथ प्रताप सिंह, मुलायम सिंह, लालू यादव और रामविलास पासवान जैसे न जाने कितने नेताओं तक पहुंच गई जिन्होंने भारत के राजनीतिक परिदृश्य को बेहद विषाक्त कर दिया है। शिंदे जैसे कमजोर व अक्षम व्यक्ति को गृहमंत्री बनाने का संदेश क्या गया? उसी शाम पुणे में एक घंटे के अंदर चार स्थानों पर विस्फोट किए गए। सरकार और प्रशासन भले ही उन्हें हल्के स्तर के धमाके बता रहे हों, लेकिन ये किसी बड़ी साजिश का हिस्सा भी हो सकते हैं और देश के लिए जिहादी आतंकवादियों की चेतावनी भी कि ऐसे कमजोर गृहमंत्री के रहते हमारे खतरनाक इरादों पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता। इसी तरह शिवराज पाटिल को मुम्बई हमलों के बाद हटाकर पी.चिदम्बरम को गृहमंत्री बनाया गया था, लेकिन वे न केवल जिहादी आतंकवाद के मोर्चे पर विफल रहे बल्कि माओवादी नक्सलवाद की लगाम कसने में भी उन्होंने देश को निराश किया। अब उन्हें वही वित्त मंत्रालय फिर दे दिया गया, जहां पहले उनके रहते देश में 2 जी स्पेक्ट्रम जैसा महाघोटाला हो गया और उसके छींटे उन पर भी पड़े। इस मामले में उनके विरुद्ध वित्त मंत्रालय के ही नोट ने हड़कम्प मचा दिया था। अब वही चिदम्बरम फिर वहां क्या गुल खिलाएंगे, कौन जाने? लेकिन मंत्रिमंडल सहयोगियों को ताश के पत्तों की तरह फेंटकर इधर- उधर करते रहने से देश के हालात नहीं सुधरने वाले, उसके लिए सही नीयत और क्षमता वाले लोग चाहिए।

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