कुंभ की तैयारी में तेजीशाही स्नान की तिथियां घोषित
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प्रयाग/ हरिमंगल
शाही स्नान की तिथियां घोषित
आगामी माघ माह में आयोजित होने वाले कुंभ मेले के प्रमुख स्नान पर्वो और शाही स्नान की तिथियां निर्धारित होने के बाद विश्व के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन के रूप में विख्यात 'प्रयाग कुंभ' की आहट अब साफ सुनाई देने लगी है। कुंभ आयोजन से जुड़ी योजनाओं और परियोजनाओं को पूरा करने के लिये शासन और प्रशासन ने संबंधित विभागों के लिए समय सीमा तय करना शुरू कर दिया है। दूसरी ओर साधु-संतों, आचार्यों-धर्माचार्यों और नागा संन्यासियों के अखाड़े भी अपनी तैयारियों में जुट गए हैं।
राशियों के गणना चक्र के अनुसार इस बार माघ मास में गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती के पावन संगम तट पर कुंभ मेले का आयोजन होना है। प्रत्येक बारह वर्ष बाद होने वाले इस कुंभ पर्व की प्रतीक्षा देश-विदेश के करोड़ों साधु-संतों, धर्माचार्यों, श्रद्धालुओं और पर्यटकों को रहती है। कुंभ मेले में नागा संन्यासियों का शाही स्नान सदैव से आकर्षण का केन्द्र बिन्दु रहता है। हर कोई शाही स्नान की एक झलक देखने को आतुर रहता है। नागा संन्यासियों एवं अखाड़ों का यह शाही स्नान तीन प्रमुख पर्वों पर होता है। यह प्रमुख पर्व हैं- मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और बसंत पंचमी। प्रमुख स्नान पर्वों और शाही स्नान की तिथियां निर्धारित किये जाने हेतु देश के सभी 13 अखाड़ों के प्रतिनिधियों के साथ मेला प्रशासन की गत दिनों एक बैठक हुई। यद्यपि शाही स्नान के लिये अखाड़ों का क्रम अभी तय नहीं हुआ है, परन्तु जूना अखाड़े के राष्ट्रीय सचिव महंत विद्यानंद सरस्वती कहते हैं कि शाही स्नान से पहले हम सब लोग बैठकर शाही स्नान में अखाड़ों का क्रम तय कर लेंगे। शाही स्नान की तिथियां तय होने के बाद सभी प्रमुख अखाड़ों के स्थानीय आश्रमों में साफ-सफाई और देश के कोने-कोने से आने वाले अपने संन्यासियों के लिए सुविधाओं की तैयारियां शुरू हो गयी हैं।
स्थानीय प्रशासन भी धार्मिक आयोजनों में बढ़ रहे श्रद्धालुओं की संख्या का पूर्वानुमान करते हुए तैयारी कर रहा है। इस बार मेला क्षेत्र का विस्तार किया जा रहा है ताकि प्रमुख स्नान पर्वों पर आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं को कोई समस्या न आए। बीते अर्ध कुंभ (2007) की तुलना में इस बार दो गुना भूमि पर मेला क्षेत्र बसाने की योजना है। कुंभ मेला अधिकारी मणि प्रसाद मिश्र के अनुसार कुंभ मेले का क्षेत्र 10,339 बीघा होगा। स्थानीय प्रशासन के पास अपनी भूमि न होने के कारण लगभग 8,600 बीघा भूमि किसानों से अस्थाई रूप से अधिगृहीत की जानी है। दरअसल प्रयाग में मेला क्षेत्र का निर्धारण गंगा की धारा और उसके विस्तार पर निर्भर करता है। प्रशासन ने संगम पर बनने वाले पीपे के अस्थायी पुलों की संख्या 16 से बढ़ाकर 18 कर दी है। यात्री निवासों की संख्या और क्षेत्र बढ़ाने पर भी प्रशासन सहमत है। गंगा की वर्तमान धारा और विस्तार को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार मेले का विस्तार 5 से 6 कि.मी की लम्बाई का होगा। शिवकुटी से लेकर किला घाट तो दूसरी ओर छतनाग से लेकर झूसी नगर पंचायत तक मेला क्षेत्र के विस्तार की बात कही जा रही है।
प्रयाग में पहली बार पक्के घाट बनाने का प्रयास किया जा रहा है। किला घाट पर बनने वाले घाट पर फिलहाल काम स्थगित है, क्योंकि वह भूमि सेना के अधिकार क्षेत्र में है और वहां जब बिना सेना की अनुमति के कार्य शुरू हुआ तो सेना के अधिकारियों ने निर्माण कार्य पर रोक लगा दी। जब स्थानीय प्रशासन इस संबंध में सक्रिय हुआ तो सेना ने पूरा प्रकरण रक्षा मंत्रालय को भेज दिया है। अब इस घाट का निर्माण कुंभ मेले से पहले शायद ही हो पाये। वर्तमान में तीन पक्के घाट बनाने का कार्य चल रहा है। वर्षा शुरू होने के बाद घाटों के निर्माण कार्य मानक के अनुरूप और नियत समय पर पूरे हो पाएंगे, इसे लेकर संशय बरकरार है। फिलहाल साधु-संत और प्रशासन अपनी-अपनी तैयारियों में व्यस्त हैं। अभी पांच माह से अधिक का समय बाकी है, जिसमें से दो माह तो वर्षा के ही हैं। ऐसे में विश्व के इस सबसे बड़े आयोजन में आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए कितनी सुविधाएं प्रशासन उपलब्ध करा पायेगा, यह आने वाले समय में ही तय होगा।
प्रमुख स्नान पर्व एवं शाही स्नान
14 जनवरी, 2013- मकर संक्रांति – प्रथम शाही स्नान
10 फरवरी, 2013 – मौनी अमावस्या – द्वितीय शाही स्नान
15 फरवरी, 2013 बसंत पंचमी – तृतीय व अंतिम शाही स्नान
मेला क्षेत्र
2001 में कुंभ क्षेत्र – 6073 बीघा
2007 में अर्द्ध कुंभ क्षेत्र – 5034 बीघा
2013 कुंभ के लिए – 10,339 बीघा
स्थानीय प्रशासन की भूमि – 734 बीघा
रेलवे की भूमि-32 बीघा
किसानों से अधिग्रहीत होगी – 8602 बीघा
शेष भूमि सेना तथा स्थानीय मोहल्लों की होगी।
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