अवंतिका देवी मंदिररुक्मिणी हरण-स्थल
|
रुक्मिणी हरण–स्थल
महेश चन्द्र शर्मा
अवंतिका देवी का मंदिर उ.प्र. में बुलंदशहर जनपद की अनूपशहर तहसील के अंतर्गत जहांगीराबाद से 15 किमी. दूर पतित पावनी गंगा नदी के तट पर निर्जन स्थान पर स्थित है। यहां न कोई ग्राम है, न कस्बा है। यहां पर मां अवंतिका देवी के श्रद्धालु भक्तजनों द्वारा यात्रियों के ठहरने हेतु बनवायी गईं धर्मशालाएं, साधु-संतों की कुटिया तथा आश्रम हैं। आधुनिक चकाचौंध से दूर, कोलाहल से रहित, प्रदूषण-मुक्त प्रकृति का सुंदर, सुरम्य वातावरण तथा पतित पावनी गंगा नदी का सान्निध्य होने के कारण यह स्थल साधु-संतों की साधना एवं तपोस्थली बनी हुई है। पश्चिमी उत्तर-प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा एवं राजस्थान आदि प्रदेशों से प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु यहां की यात्रा करते हैं।
अवंतिका देवी के परम पवित्र मंदिर का महत्व एवं प्रसिद्धि बहुत अधिक है। पृथ्वी पर जितनी भी सिद्धपीठ हैं वह सब सतीजी के अंग हैं, लेकिन यह सिद्धपीठ सतीजी का अंग नहीं है। कहा जाता है कि इस सिद्धपीठ पर जगत जननी करुणामयी माता भगवती अवंतिका देवी (अम्बिका देवी) साक्षात् प्रकट हुई थीं। मंदिर में दो संयुक्त मूर्तियां हैं, जिनमें बाईं तरफ मां भगवती जगदम्बा की है और दूसरी दायीं तरफ सतीजी की मूतिर् है। यह दोनों मूर्तियां ‘अवंतिका देवी’ के नाम से प्रतिष्ठित हैं। मां भगवती अवंतिका देवी को पोशाक वस्त्रादि नहीं चढ़ाया जाता है, अपितु सिन्दूर व देशी घी का चोला (आभूषण) चढ़ाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त मां भगवती अवंतिका देवी पर सिन्दूर व देशी घी का चोला चढ़ाता है, माता अवंतिका देवी उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण करती हैं। कुंआरी युवतियां अच्छे पति की कामना से माता अवंतिका देवी का पूजन करती हैं। कहा जाता है कि रुक्मिणी ने भगवान कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए इन्हीं अवंतिका देवी का पूजन किया था। यह भी कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इसी मंदिर से रुक्मिणी की इच्छा पर उनका हरण किया था।
मां भगवती अवंतिका देवी मंदिर के अतिरिक्त यहां अन्य दर्शनीय स्थलों में रुक्मिणी कुण्ड, महानन्द ब्रह्मचारी का विशाल रुक्मिणी बल्लभ धाम आश्रम, यज्ञशाला तथा उनकी साधना स्थली है। इस अवंतिका देवी मंदिर तथा रुक्मिणी कुण्ड से एक पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है। यह कथा द्वापर युग की है तथा रुक्मिणी-कृष्ण विवाह से संबंधित है। किंवदंतियों के अनुसार बुलन्दशहर जनपद की तहसील अनूपशहर के अंतर्गत स्थित वर्तमान कस्बा अहार द्वापर युग में राजा भीष्मक की राजधानी कुण्डिनपुर नगर था। इस कुण्डिनपुर नगर के पूर्व में अवंतिका देवी का मंदिर, पश्चिम के दरवाजे पर शिवजी का मंदिर, उत्तर के दरवाजे पर पतित पावनी गंगाजी बह रही थीं तथा दक्षिण के दरवाजे पर एक बगीचा और हनुमान जी का मंदिर स्थित था। कुण्डिन नरेश महाराज भीष्मक के पांच पुत्र तथा एक सुंदर कन्या थी। सबसे बड़े पुत्र का नाम रुक्मी था और चार छोटे थे जिनके नाम क्रमश: रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेश और रुक्मपाली थे। इनकी बहिन थीं सती रुक्मिणी।
राजकुमारी रुक्मिणी बाल्यावस्था से अपनी सहेलियों के साथ कुण्ड (रुक्मिणी कुण्ड) में स्नान करके माता अवंतिका देवी के मंदिर में जाकर माता अवंतिका देवी का नाना प्रकार से पूजन करती थीं। पूजन करने के पश्चात् प्रतिदिन माता भगवती अवंतिका देवी से प्रार्थना करती थीं, ‘हे जगतजननी! हे करुणामयी मां भगवती!! मुझे श्रीकृष्ण ही वर के रूप में प्राप्त हों।’ राजकुमारी रुक्मिणी जब विवाह योग्य हुईं तो उनके पिता राजा भीष्मक को उनके विवाह की चिंता हुई। राजा भीष्मक को जब यह मालूम हुआ कि रुक्मिणी श्रीकृष्ण को पति के रूप में चाहती हैं तो वह इस विवाह के लिए सहर्ष तैयार हो गये। जब इस विवाह के बारे में राजा भीष्मक के सबसे बड़े पुत्र रुक्मी को मालूम हुआ तो उसने श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह का विरोध किया। राजकुमार रुक्मी ने सती रुक्मिणी का विवाह चेदि नरेश राजा दमघोष के पुत्र शिशुपाल से उनके हाथ में मौहर बांधकर तय कर दिया। शिशुपाल ने अपनी सेना को विवाह से तीन दिन पहले ही कुण्डिनपुर के चारों ओर तैनात कर दिया और हुक्म दिया कि श्रीकृष्ण को देखते ही बंदी बना लिया जाए। राजकुमारी को जब यह मालूम हुआ कि उनका बड़ा भाई रुक्मी उनका विवाह शिशुपाल के साथ करना चाहता है तो वह बहुत दु:खी हुई।
राजकुमारी रुक्मिणी ने एक ब्राह्मण के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण के पास द्वारिका संदेश भेजा कि उसने मन ही मन श्रीकृष्ण को पति के रूप में वरण कर लिया है, परंतु उसका बड़ा भाई रुक्मी उसका विवाह उसकी इच्छा के विरुद्ध, जबरन चेदि के राजा के पुत्र शिशुपाल के साथ करना चाहता है। इसलिए वह वहां आकर उसकी रक्षा करे। रुक्मिणी की रक्षा की गुहार पर भगवान श्रीकृष्ण अहार पहुंचे तथा रुक्मिणी की इच्छानुसार इसी माता अवंतिका देवी मंदिर से रुक्मिणी का हरण उस समय किया जब वह मंदिर में पूजन करने गयी थीं।
जब श्रीकृष्ण रुक्मिणी को रथ में बैठाकर द्वारिका के लिए चले तो उनको राजा शिशुपाल, जरासिन्ध तथा राजकुमार रुक्मी की सेनाओं ने चारों ओर से घेर लिया। उसी समय उनकी मदद के लिए उनके बड़े भाई बलराम भी अपनी सेना लेकर आ गये। घोर-युद्ध हुआ। युद्ध में राजा शिशुपाल आदि की सेनाएं हार गयीं। उसी समय से कुण्डिनपुर का नाम अहार पड़ गया।
अवंतिका देवी मंदिर के पीछे उ.प्र. सरकार के पर्यटन विभाग ने एक धर्मशाला का निर्माण कराया है तथा अनेक धार्मिक भक्तों ने यात्रियों के लिये स्थान बनाये हैं। अब यहां पर स्वामी महानन्द ब्रह्मचारी जी की कृपा से एक संस्कृत पाठशाला, मन्दिर और गऊशाला भी बनी है।
A Delhi based journalist with over 25 years of experience, have traveled length & breadth of the country and been on foreign assignments too. Areas of interest include Foreign Relations, Defense, Socio-Economic issues, Diaspora, Indian Social scenarios, besides reading and watching documentaries on travel, history, geopolitics, wildlife etc.
टिप्पणियाँ