ग्रामोन्मुख आकाशवाणी
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शिवओम अम्बर
आकाशवाणी (लखनऊ) अपनी स्थापना के पचहत्तरवें वर्ष को समारोहपूर्वक मना रहा है। इस सन्दर्भ में पिछले दिनों उसके द्वारा आयोजित एक काव्य समारोह विशेष रूप से उल्लेखनीय है। श्रावण के शुक्ल पक्ष में अमर क्रान्तिवीर चन्द्रशेखर आजाद का जन्म हुआ था। आकाशवाणी ने अपना काव्य समारोह उनकी प्रेरक स्मृति को समर्पित किया और उसे लखनऊ स्थित अपने 'स्टूडियो' में न करके एक छोटे-से गांव में करने का स्वस्तिकर निर्णय लिया। उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के थाना हरपालपुर में पड़ने वाले गांव मिरगांवा में देश के पन्द्रह काव्य-हस्ताक्षर आमन्त्रित किये गये, मानो शुक्ल पक्ष की पन्द्रह तिथियों को कविता के मंचाकाश पर एक साथ प्रस्तुत करने का उपक्रम साधा गया। आश्चर्यजनक रूप से प्रकृति आकाशवाणी की ग्राम्य-निष्ठा और सहृदय ग्रामवासियों के साहित्यानुराग की सहज संरक्षिका बन गई और आकाश के मेघाच्छादित होने पर भी आयोजन की सम्पूर्ण अवधि में एक बूंद भी नहीं गिरी, अन्यथा अव्यवस्था हो सकती थी। गांव में स्थित विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री सुरेश तिवारी सहित सभी गांववासी अपने यहां हो रहे इस अभूतपूर्व सम्मेलन से बेहद उत्साहित थे और भावपूर्ण आतिथेय बनकर हर व्यवस्था को अधिकतम श्रेष्ठ बनाने का प्रयास कर रहे थे। वहां पहुंचकर पता चला कि यह गांव राष्ट्रवाद के वर्चस्वी कवि श्री छैल बिहारी बाजपेयी 'बाण जी' से भी सम्बद्ध है और उनके बच्चों-वेदव्रत तथा व्यंजना की जन्मस्थली भी है, जो आज के मंच के सफल हस्ताक्षर हैं।
सर्वश्री सोम ठाकुर, राजेन्द्र राजन जैसे गीतकारों, फारुक सरल, प्रमोद पंकज जैसे लोक-गीतकारों, भावना और व्यंजना जैसी कवयित्रियों, वेदव्रत तथा राहुल अवस्थी जैसे ओजस्वी तेवरों के साथ सबरस मुरसानी, दिनेश प्रताप सिंह 'दुक्कज' तथा समीर कुमार शुुक्ल जैसे हास्य-व्यंग्य के रचनाकारों की समय-सीमा से अनुशासित अभिव्यक्तियों को भरपूर सराहना प्राप्त हुई। बहुत अच्छा लगा जब सोम जी जैसे वरिष्ठ व्यक्तित्व के द्वारा एक नया गीत सुनाकर बैठने पर उत्साह से भरे श्रोता-समूह ने 'मेरे भारत की माटी है चन्दन और अबीर' को सुनाने का जोरदार आग्रह किया और उसके प्रत्येक छन्द को समग्र सम्बद्धता के साथ सुना। कभी-कभी बड़ा अजीब लगता है जब हमारा मीडिया तुष्टीकरण की प्रवृत्ति के चलते 'सारे जहां से अच्छा' गीत को राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान के बराबर का दर्जा देता है, जिसके रचयिता ने भारत-विभाजन का बीज-मन्त्र दिया। और वहीं समकालीन हिन्दी साहित्य 'मेरे भारत की माटी है चंदन और अबीर' जैसे उस अप्रतिम गीत को अपेक्षित सम्मान नहीं देता जिसने भारतवर्ष की सांस्कृतिक एकता, भौगोलिक भव्यता, दार्शनिक श्रेष्ठता और चारित्रिक दृढ़ता की श्री को शब्दायित कर मां भारती की देहरी पर प्रार्थना का पारिजात रखा! इस काव्य-समारोह में लगभग सभी कवियों ने अपने-अपने ढंग से अमर शहीद चन्द्रशेखर आजाद का श्रद्धान्वित स्मरण किया। यह अत्यन्त शुभ है कि आकाशवाणी लखनऊ ग्रामोन्मुख हुई है। महानगरों में कविता 'लाफ्टर शो' का भोंडा संस्करण तक बनने को तैयार है और तथाकथित प्रबुद्ध नागरिक अब रेडियो सुनता नहीं। किन्तु गांवों में अभी तक रेडियो के प्रति ललक बरकरार है और कविता की वाचिक परम्परा के लिये सहज श्रद्धा का भाव है। आकाशवाणी ने इस भाव को समृद्ध किया, शब्द के साधकों का 'ग्रामवासिनी भारतमाता' से साक्षात्कार कराया-इसके लिये वह निश्चय ही बधाई की पात्र है।
तालिबानीकरण की तरफ
पिछले दिनों उत्तर प्रदेश की एक खाप पंचायत ने कुछ फरमान जारी किये और महिला-वर्ग के प्रति अपनी उपेक्षा-दृष्टि तथा अवहेलना-वृत्ति का परिचय दिया। ऐसा उस पंचायत में हुआ जहां अल्पसंख्यक समाज की प्रधानता थी और सरपंच भी इसी वर्ग का था। जहां केन्द्र की तरफ से पंचायत के फरमान का विनम्र प्रतिवाद किया गया वहीं उ.प्र. शासन के एक महत्वपूर्ण मन्त्री ने पंचायत के निर्णयों को अपना नैतिक समर्थन देकर एक तालिबानी उन्माद को उद्दाम करने में अपनी भूमिका निभाई। मन्त्री महोदय अपने द्वारा प्रस्तावित अरबी-फारसी विश्वविद्यालय की मांग को स्वीकृति न देने वाले पिछले राज्यपाल को फांसी पर चढ़ाने की मांग करके अपने अहंकार और संस्कार का परिचय पहले ही दे चुके हैं। अखिलेश सरकार समदर्शी राजसत्ता के स्थान पर एकाक्ष राजनीतिक स्वार्थवत्ता में बदल रही है। फिलहाल एक अन्य अरबी-फ़ारसी विश्वविद्यालय के लिये पच्चीस करोड़ रुपए की राशि आवंटित की गई है। उधर माध्यमिक विद्यालयों में विषयों के विकल्प कुछ इस तरह व्यवस्थित किये गये हैं कि संस्कृत के विद्यार्थी अतीत की बात होते जा रहे हैं। उ.प्र. के एक मंत्री राष्ट्रीय ध्वज को कार पर उल्टा लगाते हैं, मीडिया में बात आने पर उसे ठीक भी कर दिया जाता है किन्तु आपसी वार्ता में अब वर्ग-विशेष में यह चर्चा भी होने लगी है कि भारतीय झण्डे में रंगों के क्रम का परिवर्तन कर दिया जाना चाहिये। जब केन्द्रीय शासन यह मानता है कि देश के समस्त संसाधनों पर पहला अधिकार एक वर्ग-विशेष का है तो उसे व्यंजित करने वाले रंग को राष्ट्रध्वज में पहला स्थान मिलना चाहिये!
'सकारात्मक चिन्तन की पत्रिका-शिवम् पूर्णा
मध्य प्रदेश से प्रतिमाह प्रकाशित होने वाली 'शिवम् पूर्णा' (सम्पादक – श्री युगांशु मालवीय, मानस-मणि ए. एल.- 315, राजीव नगर, अयोध्या बायपास-भोपाल-462023, वार्षिक शुल्क – 200/-रु.) जल-संरक्षण और पर्यावरण पर केन्द्रित हिन्दी की अपने ढंग की अनूठी पत्रिका है, जो पिछले तीन वर्षों से निरन्तर प्रकाशित हो रही है। हर अंक के मुखपृष्ठ पर प्राय: कोई प्रभावी कविता प्रकाशित होती है, जो जल से जुड़ी होने के कारण पत्रिका के अन्त: व्यक्तित्व की हस्तलिपि-सी प्रतीत होती है। सम्पूर्ण पत्रिका में जल तथा पर्यावरण के विविध आयामों से सम्बद्ध विचारपूर्ण आलेख तथा भावप्रवण गीति-रचनाएं होती हैं जो पत्रिकाओं की भीड़ में सुरुचिपूर्ण ढंग से प्रकाशित इस पत्रिका की एक अलग ही छवि बनाती हैं। इसके विविध अंकों के मुखपृष्ठों पर प्रकाशित रचनाकारों में से कुछ को उद्धृत कर रहा हूं। कविवर चन्द्रसेन विराट के ये उद्गार हम सबके हार्दिक भावों का अभिव्यंजन हैं –
तेरा न किया मोल, दुरुपयोग ही किया,
हम तेरे गुनहगार हैं, स्वीकार है पानी।
ये फूल, हरे खेत, ये पत्तों का हरापन,
धरती की हरी चुनरी का सिंगार है पानी।
इसी तरह श्री मनोज जैन 'मधुर' के गीत का मुखड़ा गहन दार्शनिकता को रूपक में बांधता है-
दृष्टि है इक बाहरी
तो एक अन्दर है
बूंद का मतलब समन्दर है
तो अशोक शर्मा अपने अलग अन्दाज़ में आदमी और पानी के रिश्ते को शब्दायित करते हैं –
हम प्रतीक मीठी नदियों के
खारे सागर के
बीच हमारे रिश्ते–नाते
ढाई आखर के।
पर्यावरण, साहित्य व शिक्षा की त्रिवेणी 'शिवम् पूर्णा' को शत-शत
अभिव्यक्ति मुद्राएं
ढूंढता फिरता रहा मैं कब मुझे ईश्वर मिला,
मात्र मन्दिर, मात्र मस्जिद, मात्र गिरजाघर मिला।
– खयाल खन्ना
हैं मगन हम इसलिये दुख ने हमारा मन चुना,
धन्य हैं ये नैन जिनमें आंसुओं को घर मिला।
– शिवनाथ बिस्मिल
भ्रष्टता ने सैकड़ों कांटे बिछाये राह में,
योग्यता को सामने आने का जब अवसर मिला।
–डा. अनिल कुमार जैन
जीर्ण जीवन–ग्रन्थ के सब लेख धुंधले हैं मगर,
ज्ञान से अनुमान से अनुभव से तू अक्षर मिला।
– भगवानदास जैन
साधना सच्ची है तो निष्फल कभी जाती नहीं,
राम शबरी को मिले मीरा को नट नागर मिला।
– अशोक शंखधर
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