जीवन-आनंद की जीवंत कविताएंएक से भारत और मोलदोवबाल कविताओं का इंद्रधनुष
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पुस्तक समीक्षा
डा. कौशल्या गुप्ता अपने जीवन में अध्ययन और अध्यापन से जुड़ी रही हैं। कहना चाहिए कि साहित्य और संस्कृति की सेवा में ही उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन समर्पित किया है। अपनी इस रचनात्मक यात्रा में उन्होंने अब तक तीन काव्य संग्रह और एक गद्य विधा की पुस्तक से साहित्य को समृद्ध किया है। इसी क्रम में हाल में ही उनका नवीन काव्य-संग्रह 'उत्सव पल-पल' प्रकाशित होकर आया है, जिसमें संकलित कविताएं उनके जीवन में अर्जित अगाध अनुभवों को प्रतिबिंबित करती हैं। ध्यान से अगर देखें तो सिद्ध होता है कि कवयित्री ने इन कविताओं के द्वारा जीवन के शाश्वत मूल्यों और भाव-संवेदनाओं को प्रभावी ढंग से शब्दायित किया है। अपनी सांस्कृतिक भाषा में कवयित्री जब प्रकृति के मनोरम दृश्यों का वर्णन करती हैं तो मानो वह छवि पढ़ने वाले के समक्ष जीवंत हो उठती है-
'पानी में/सूर्य किरणों में लिपटी
सुनहली लहरों को
पग नर्तन–ताल अलग
वही–वही मगन नृत्य
पर ताल/झूमती–सी/लहरती–सी!
(पृष्ठ-16)
इस संग्रह की अनेक कविताएं पढ़ते हुए महसूस होता है जैसे कवयित्री उन्हें रचते समय अपने मन के उन अन्त: कोने में उतर जाती है जहां पर केवल वह और उनकी कविता ही बचती है। तभी किसी क्षण वह स्वयं कविता से ही सवाल पूछ लेती है,
'कविता/तू क्या चाहती है मुझसे?
ऋतुओं का खेल/या जग–मंडल का रहस्य
फूलों का अल्हड़पन/मन का उल्लास?'
तो कुछ कविताओं में कवयित्री जीवन को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए ईश्वर से भयमुक्त होने की प्रार्थना करती है, ताकि जीवन को एक उत्सव के रूप में जिया जा सके-
'अभय मिले मित्र से/अमित्र से
ज्ञात से अभय
अभय हो परोक्ष से
निशा में अभय हो
अभय हो दिन में
सर्व दिशाएं/मित्र हों मेरी
सर्वादिक अभय हो।' (पृष्ठ-66)
लेकिन ऐसा नहीं है कि कवयित्री केवल अपने अन्तर्मन में ही रमी रहती है, या फिर जीवन को उत्सवमय बनाने की ही कामना करती है, उनके भीतर सम्पूर्ण मानवता के लिए करुणा भी विद्यमान है। वह इस बात को लेकर चिंतित है कि शोषण, हिंसा और अत्याचार हमें एक-दूसरे से दूर कर रहे हैं और इस दिशा में सार्थक प्रयास किए जाने की जरूरत है-
'शांति के संदेश पर/बम के हस्ताक्षर से
वैभव–परिग्रहकेअंबार/दूरी बना रहे हैं
मित्र की मित्र से/मानस की मानस से।
मनु–पुत्र, धरा–सुत/पड़ा जा रहा है।
अकेला/अपने ही कवच में।'
संग्रह में संकलित कुल 91 कविताओं का आकाश अत्यंत विस्तृत है और जीवन-जगत के असंख्य आयामों को स्पर्श करता है। प्रख्यात साहित्यकार अशोक वाजपेयी ने कवयित्री की रचनात्मकता के संबंध में ठीक ही लिखा है- 'इन दिनों बहुत सारी कविता बड़बोली हैं। ऐसी आवाजों के तुमुल में डा. कौशल्या गुप्ता द्वारा रचित शांत और विनम्र कविता पढ़ना प्रीतिकर है, जो हमें इतने कुछ के पास ले आती है, बिना कोई शोर-गुल मचाए।'
पुस्तक का नाम – उत्सव पल-पल
(काव्य संग्रह)
रचनाकार – डा. कौशल्या गुप्ता
प्रकाशन – पांखी प्रकाशन
ए-428, प्रथम तल
गली नं. 6, छत्तरपुर एन्क्लेव फेज-1, नई दिल्ली-74
मूल्य – 120 रुपए पृष्ठ – 112
वेबसाइट : paankhipublication@gmail.com
एक से भारत और मोलदोव
उक्रेन के समीप स्थित एक छोटा-सा देश है-मोलदोव। इसे प्राचीन काल में मोल्देविया के नाम से जाना जाता था। इस देश की प्राचीन परम्परा, संस्कृति और जन-मानस की संरचना बहुत कुछ भारतीय परिवेश में मिलती-जुलती है। यहां तक कि भारत की तरह वहां भी लोक कथाओं की समृद्ध परम्परा रही है। वहां के जन-जीवन में रची-बसी ऐसी ही कुछ लोक कथाओं का पुनर्लेखन सुपरिचित साहित्यकार संजीव ठाकुर ने किया है। उनका संकलन हाल में ही 'मोल्देविया की लोककथाएं' शीर्षक से प्रकाशित होकर आया है। इन लोक कथाओं में राजकुमारी, राजा, राजकुमार, जमींदार, गरीब आदमी, परी और दैत्य जैसे परिचित पात्र हैं, जो हम सबके जीवन में विभिन्न मनोभावों के रूप में मौजूद रहते हैं।
वास्तव में किसी भी देश या स्थान विशेष की लोककथाएं वहां के जन-जीवन से जुड़े विविध रंग प्रतिबिंबित करती हैं। अच्छाई, बुराई, लालच, आलस्य, प्रेम, भरोसा, सुख-दु:ख जैसी सहज मानवीय प्रवृत्तियों को इन कथाओं के द्वारा बेहद सहज और रोचक शैली में लिखा गया है। इसके साथ ही हास्य तत्व भी इन कथाओं को रुचिकर बनाता है। ये लोककथाएं बच्चों के साथ ही बड़ों को भी रोचक लगेंगी। संग्रह में संकलित कुल 21 लोककथाएं अप्रत्यक्ष रूप से जीवन को सहज और सादगीपूर्ण ढंग से जीने की प्रेरणा भी देती हैं।
पुस्तक का नाम – मोल्देविया की लोककथाएं
लेखक – संजीव ठाकुर
प्रकाशक – अमर सत्य प्रकाशन
109, ब्लॉक बी,
प्रीत विहार, दिल्ली-92
मूल्य – 175 रु. पृष्ठ – 126
बाल कविताओं का इंद्रधनुष
बच्चों के मन को समझना जितना मुश्किल है उतना ही दुष्कर है उनके लिए रोचक, ज्ञानवर्धक और प्रेरक कहानी व कविता लिखना। आज के दौर में यह करना इसलिए भी मुश्किल होता जा रहा है क्योंकि तेजी से बदलती दुनिया का प्रभाव बच्चों के कोमल मन पर भी पड़ने लगा है। ऐसी तमाम चुनौतियों को स्वीकार करते हुए युवा रचनाकार आशीष शुक्ला लगातार बाल कविताएं और बाल कथाएं लिख रहे हैं। हाल में ही प्रकाशित होकर आया उनकी तीसरा कविता संग्रह 'बाल बगीचा' इस बात का प्रमाण है कि वे न केवल बच्चों के लिए स्तरीय साहित्य रचने के लिए गंभीर हैं बल्कि पूरी तरह सचेत भी हैं। प्रस्तुत संग्रह की कविताओं को पढ़ते हुए यह प्रमाणित होता है कि आशीष अब केवल कविता की लय और तुक का ही ध्यान नहीं रखते बल्कि विषय चयन और उसके लिए सटीक भाषा-शिल्प का निर्धारण भी पूरी सजगता से करते हैं। इन कविताओं की सहजता और सरलता ऐसी है जो किसी भी बच्चे को बहुत आसानी से इनसे जुड़ने के लिए प्रेरित करती है। 'प्यारा गांव' 'तारे नहीं पधारे', 'मिट्ठू तोता', 'बरखा लाए बादल', 'मुनमुन का जन्मदिन', 'गर्मी का दिन' और 'होली में' जैसी कई प्रेरक, रोचक और प्यारी कविताएं इस कविता संग्रह में मौजूद हैं, जो बच्चों की जुबान पर आसानी से चढ़ने की क्षमता रखती हैं। इन गीतों को पढ़कर यह भी प्रमाणित होता है कि कवि आशीष को बाल स्वभाव के साथ ही बाल मनोविज्ञान की भी अच्छी परख है। कह सकते हैं कि कवि की काव्य प्रतिभा की इंद्रधनुषी छटा इस संग्रह में बिखरी हुई है, जिसके रंग इसे पढ़ने वाले हर बच्चे को जरूर पसंद आएंगे।
पुस्तक का नाम – बाल बगीचा (कविता संग्रह)
कवि – आशीष शुक्ला
प्रकाशक – ज्ञान ज्योति प्रकाशन
एच-62 ए
दिलशाद गार्डन, दिल्ली-95
मूल्य – 150 रु. पृष्ठ – 80
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