शर्मनिरपेक्षता
|
व्यंग्य वाण
विजय कुमार
शर्मा जी यों तो सदा राजनीतिक मूड में रहते हैं; पर यदि उनके हाथ में अखबार हो, तो समझिये कि वे बहस पर उतारू हैं।
– वर्मा, देश में पंथनिरपेक्ष प्रधानमंत्री हो, इसमें क्या बुरा है ?
– शर्मा जी, हम साधारण लोग यह तय करने वाले कौन होते हैं ?
– क्यों, भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहां हमें अपना शासक चुनने का पूरा अधिकार है।
– यह आपका भ्रम है शर्मा जी। भारत में लोकतंत्र के आवरण में आज भी राजतंत्र और परिवारवाद जीवित है। कांग्रेस में यह ऊपर के लोगों से होता हुआ नीचे तक पहुंचा। भाजपा में यह नीचे से ऊपर की ओर खिसक रहा है।
– पर राजनीति में ये दो ही दल तो नहीं हैं ?
– हां, पर बाकी दल तो पारिवारिक या जातीय दलदल हैं, जो कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा के साथ सत्ता सुख भोगते रहते हैं।
– तुम बात को घुमा रहे हो। मैं कह रहा था कि प्रधानमंत्री धर्मनिरपेक्ष होना चाहिए।
–और मैं कह रहा हूं कि प्रधानमंत्री हो या मुख्यमंत्री, वह पंथनिरपेक्ष भले ही न हो; पर शर्मनिरपेक्ष अवश्य होना चाहिए।
–शर्मनिरपेक्ष से तुम्हारा क्या मतलब है वर्मा ?
– शर्मा जी, इस समय भारत की राजनीति में सबसे अधिक अकाल शर्म का ही है। अधिकांश नेता और दल शर्मनिरपेक्ष हो गये हैं। राष्ट्रपति चुनाव को ही लो। मुस्लिम वोट खींचने के लिए कांग्रेस किसी मुसलमान को राष्ट्रपति बनाना चाहती थी; पर ममता और मुलायम सिंह के झटके से मजबूर होकर उन्हें प्रणव मुखर्जी को अपना प्रत्याशी घोषित करना पड़ा।
– ये तुम्हारा दृष्टिकोण हो सकता है, सबका नहीं।
– उधर मुलायम सिंह ने ममता के साथ जो खिचड़ी पकाई थी, उसे अगले ही दिन उलट दिया। इससे नाराज ममता ने प्रणव बाबू का समर्थन न करने की घोषणा कर दी। वैसे वे अंतिम समय में कहां खड़ी होंगी, यह उनके अतिरिक्त कोई नहीं जानता।
– हां, ये तो है।
– दूसरी ओर नीतीश कुमार भाजपा के कारण बिहार में सत्ता की खीर खा रहे हैं; पर यहां वे उसके साथ नहीं हैं। उन्हें अगले लोकसभा चुनाव के सपने आ रहे हैं। शिवसेना भी प्रणव बाबू के साथ है। उ.प्र. में मुलायम सिंह और मायावती कांग्रेस को फूटी आंख देखना पसंद नहीं करते; पर राष्ट्रपति चुनाव में दोनों उसके साथ हैं।
– और भारतीय जनता पार्टी … ?
– उसका खेल भी बड़ा निराला है। सबसे बड़ा विपक्षी दल होने के बाद भी उसे कोई प्रत्याशी नहीं मिला। अपनी शर्म छिपाने को वे संगमा के साथ लग गये हैं।
– पर नवीन पटनायक और जयललिता तो उनके साथ हैं।
– किसी भ्रम में न रहो शर्मा जी। उन्हें तो कांग्रेस का विरोध करना है, इसलिए वे संगमा के साथ हैं। वे भाजपा के हितैषी न कभी थे और न कभी होंगे। यह मत भूलो कि नवीन ने विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के साथ क्या किया था और जयललिता ने ही अटल जी की सरकार को तेरह महीने बाद एक वोट से गिराया था।
– पर कांग्रेस तो मजबूत है ?
– उसकी भी सुनो। लालू बहुत दिनों से केन्द्रीय मंत्री बनना चाहते हैं; पर कांग्रेस ने उन्हें घास नहीं डाली। अब कांग्रेस उनसे समर्थन मांग रही है और लालू मंत्रीपद के लालच में समर्थन दे भी रहे हैं।
– तुम कहना क्या चाहते हो। मैं पंथनिरपेक्ष प्रधानमंत्री की बात कर रहा था और तुम राष्ट्रपति चुनाव की गोटियां गिना रहे हो ?
– शर्मा जी, राष्ट्रपति हो या प्रधानमंत्री; सत्ताधारी दल हो या विपक्ष; एक बार पंथनिरपेक्ष न हो तो चलेगा; पर शर्मनिरपेक्षता के बिना गाड़ी बिल्कुल नहीं चल सकती। इसके कारण राजनीति और राजनीतिक नेताओं से लोग घृणा करने लगे हैं। यदि ऐसे ही चलता रहा, तो लोगों का लोकतंत्र से विश्वास उठ जाएगा।
शर्मा जी अचानक बहुत गंभीर हो गये।
टिप्पणियाँ