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जम्मू–कश्मीर के संबंध में वार्ताकारों की रपट के विरुद्ध देशभर में विरोध–प्रदर्शन
पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर के संबंध में वार्ताकारों द्वारा प्रस्तुत की गई रपट को देशवासियों ने सिरे से नकार दिया है। रपट के विरोध में गत दिनों देशभर में विरोध-प्रदर्शन हुए। इन प्रदर्शनों में लोगों ने स्पष्ट रूप से कहा कि ऐसी विभाजनकारी रपट को कूड़ेदान में फेंकना ही हितकर होगा।
वार्ताकारों की रपट के विरोध में गत 6 जुलाई को छत्तीसगढ़ के 25 जिलों के 479 स्थानों पर धरना देते हुए राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा गया। इन धरनों में 14 हजार लोगों ने भाग लिया। रायपुर में कश्मीर बचाओ-देश बचाओ आंदोलन के तहत आयोजित धरने में लोगों ने जम्मू-कश्मीर को बचाने का संकल्प लेते हुए कहा कि कश्मीर महज एक जमीन का टुकड़ा नहीं, बल्कि देश का स्वर्ग और हमारी आन-बान-शान का प्रतीक है। जम्मू-कश्मीर को देश से अलग करने की किसी भी साजिश को हम सफल नहीं होने देंगे तथा भारतवासी इसका मुंहतोड़ जवाब देंगे।
रायपुर में राष्ट्रपति के नाम प्रेषित ज्ञापन महामहिम राज्यपाल को सौंपते हुए मांग की गई कि केन्द्र सरकार के वार्ताकारों ने जम्मू-कश्मीर पर अपनी जो रपट सौंपी है, केन्द्र सरकार उसके भ्रमजाल में फंसकर जम्मू-कश्मीर सहित सारे देश की सुरक्षा व अखंडता को दांव पर लगाना चाहती है। अत: राष्ट्रपति अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए रपट को खारिज करें।
राष्ट्रीय सुरक्षा मंच बैनर से रायपुर में आयोजित धरने को संबोधित करते हुए छत्तीसगढ़ के सह प्रांत संघचालक डा. पूर्णेन्दु सक्सेना ने कहा कि कश्मीर पर वार्ताकारों ने जो रपट सौंपी है, वह रद्दी की टोकरी में फेंकने लायक है क्योंकि इसमें पाकिस्तान के प्रति सहानुभूति और कश्मीर के प्रति पूर्वाग्रह साफ दिखाई देता है। सच यह है कि रपट में जो सिफारिशें की गई हैं, वह कश्मीर के लोगों की आवाज नहीं है। कारगिल के शिया मुस्लिम भी नहीं चाहते कि कश्मीर पाकिस्तान के पास जाए। ऐसे में रपट में 'पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर' शब्द का इस्तेमाल क्यों किया गया?
दुर्ग में धरने को संबोधित करते हुए रा.स्व.संघ, छत्तीसगढ़ के प्रांत संघचालक श्री बिसराराम यादव ने कहा कि भारतीय संविधान की जिस अस्थाई धारा 370 के कारण कश्मीर का पृथक संविधान है और जो वर्तमान समस्या का मूल कारण है, इसी धारा 370 को वार्ताकारों ने विशेष धारा में परिवर्तित कर कश्मीर को पूर्ण स्वायत्तता देने की सिफारिश की है। जोकि पूरी तरह गलत है।
6 जुलाई को देश के अनेक राज्यों में धरने आयोजित किए गए। कर्नाटक के बेंगलूरु में टाउन हाल के सामने धरने का आयोजन किया गया। यहां धरने को कश्मीरी हिन्दू एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री प्रनेश नागरी तथा अन्य वक्ताओं ने संबोधित किया। झारखंड की राजधानी रांची में भी 6 जुलाई को ही विरोध प्रदर्शन हुआ। यहां सैकड़ों लोगों ने इसमें भाग लिया। विरोध प्रदर्शन के बाद एक प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति के नाम जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा।
मध्य प्रदेश के भोपाल में 7 जुलाई को आयोजित धरने को संबोधित करते हुए भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष श्री प्रभात झा ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के बारे में तीन वार्ताकारों द्वारा सरकार को दी की गई रपट सिरे से खारिज करने योग्य है। यह रपट भारत के संविधान, भारत के करोड़ों नागरिकों एवं संसद का भी अपमान है। यह रपट भारत की उस आने वाली पीढ़ी का भी अपमान है, जो भारत का भविष्य निर्माण करने वाली है। यह रपट कांग्रेस की मौत का वारंट है। उन्होंने कहा कि वार्ताकारों का चयन किस आधार पर किया गया समझ से परे है। पता नहीं किसकी पैरवी पर इन वार्ताकारों का चयन किया गया है। उन्होंने कहा कि कश्मीर में अलगाववाद के बीज पूर्व प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने बोये।
धरने को सभी मत-पंथों के प्रतिनिधियों, विभिन्न संस्थाओं के प्रमुखों, राजनीतिक दलों के प्रमुखों, सेना से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारियों, सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, वरिष्ठ पत्रकारों ने संबोधित किया। भोपाल का यह कार्यक्रम राष्ट्र जागरण मंच के तत्वावधान में सम्पन्न हुआ।
8 जुलाई को हरियाणा के फरीदाबाद में हजारों लोगों ने कश्मीर को बचाने की शपथ ली। जम्मू-कश्मीर संघर्ष समिति के बैनर तले आयोजित इस प्रदर्शन में शहर की अनेक सामाजिक व राष्ट्रवादी संस्थाओं ने भाग लिया। समिति के अध्यक्ष डा. अरविन्द सूद ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। विभाजन के पश्चात सरदार बल्लभ भाई पटेल के आग्रह पर रा.स्व.संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर 'श्री गुरुजी' के प्रयासों से वहां के महाराजा हरिसिंह को राजी कर भारत संघ में पूरे जम्मू-कश्मीर राज्य का 26 अक्तूबर, 1947 को विलय कर दिया गया था। वह विलय ही अंतिम विलय है। परन्तु कुछ देश-विरोधी व पाकिस्तानपरस्त ताकतें 1947 से लेकर आज तक कश्मीर को भारत से अलग करने की साजिशें रचती रही हैं। उसी कड़ी में अब एक नई सिफारिश उन तीन वार्ताकारों की ओर से आई है, जो लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व केंद्र सरकार ने कश्मीर की जनता की राय जानने व कश्मीर समस्या के समाधान के लिए कश्मीर भेजे थे।
श्री सूद ने कहा कि इन तीन सलाहकारों ने जो रपट दी है वह न केवल चौंकाने वाली है, बल्कि पूरी तरह से देश विरोधी है और कश्मीर को भारत से अलग करने वाली है। रपट में कश्मीर के अलग निशान, अलग प्रधान व अलग विधान की बात कही गयी है। भारतीय सेना को वहां से हटाने की सिफारिश की गयी है, भारतीय संसद द्वारा पारित कोई भी कानून वहां पर लागू न हो, और कश्मीर समस्या की असली जड़ धारा 370 को स्थायी तौर पर लागू किया जाए, जो अभी तक अस्थायी है। उन्होंने कहा कि हम इस रपट का तब तक विरोध करेंगे, जब तक कि इस रपट को रद्दी की टोकरी में न डाल दिया जाए।
कश्मीरी सेवक समाज के प्रधान श्री रविंदर कुमार भान ने कहा कि केंद्र सरकार की गलत नीतियों के कारण कश्मीर के हालात अब इतने बिगड़ चुके हैं कि उसे संभालने के लिए पूरे हिन्दुस्थान को जागृत होकर लड़ना होगा, अन्यथा भारत का सिरमौर कश्मीर पाकिस्तान के कब्जे में चला जाएगा। प्रदर्शन का समापन केंद्र सरकार का पुतला दहन कर हुआ।
इलाहाबाद में 09 जुलाई को 'जम्मू-कश्मीर बचाओ मंच' के तत्वावधान में सम्पन्न हुई विरोध सभा को संबोधित करते हुए अभाविप की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य प्रो. रजनीश शुक्ल ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के बारे में तीन वार्ताकारों द्वारा सरकार को प्रस्तुत की गई रपट देश विरोधी है। यह रपट देश की एकता, अखण्डता व सम्प्रभुता पर चोट करने वाली है तथा यह रपट भारत के संविधान का, भारत के करोड़ों नागरिकों का एवं संसद का अपमान है। यह रपट भारत की उस आने वाली पीढ़ी का भी अपमान है जो भारत का भविष्य निर्माण करने वाली है। उन्होंने कहा कि यह रपट कांग्रेस की मौत का वारंट साबित होगी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रा.स्व.संघ के काशी प्रान्त के प्रान्त संघचालक डा. विश्वनाथ लाल निगम ने कहा कि वर्तमान में देश के सामने अनेक प्रकार की चुनौतियां खड़ी हैं, जिसका सामना करने के लिए भविष्य में हम सबको तैयार रहना होगा।
वहीं राजस्थान के सिरोही में गत दिनों सीमाजन कल्याण समिति के तत्वावधान में हुए विरोध प्रदर्शन में बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया तथा वार्ताकारों की रपट को सिरे से खारिज कर दिया। प्रतिनिधि
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