खार के समय वार्ता से पहले कश्मीर के अलगाववादियों से हुई उनकी मुलाकात पर यदि भारत सरकार ने यह रुख दिखाया होता तो अब पाकिस्तानी विदेश सचिव यह दुस्साहस नहीं दिखा सकते थे। लेकिन भारत के नरम रवैये और घुटनाटेक नीति के कारण ही पाकिस्तान एक के बाद एक मक्कारी करता जाता है। आखिर ऐसी वार्ताओं से भारत को हासिल क्या होता है? पाकिस्तान तो अंतरराष्ट्रीय मंच पर इन वार्ताओं को अपनी 'संवाद के द्वारा समाधान' की कोशिशों के रूप में निरूपित करता है, लेकिन भारत यह दबाव क्यों नहीं बनाता कि पाकिस्तान की हरकतों के चलते हम वार्ता नहीं करेंगे? अबू जुंदाल का रियासत अली के नाम से पाकिस्तानी पासपोर्ट आईएसआई ने बनवाया, अबू जुंदाल के अनुसार मुम्बई हमलों के बाद पाकिस्तान पर कार्रवाई का दबाव बढ़ने पर वहां की सरकार और सेना ने तय किया कि अब जुंदाल का पाकिस्तान में रहना ठीक नहीं, इसलिए आईएसआई के सहयोग से उसका पासपोर्ट बनवाकर उसे सऊदी अरब भेज दिया गया। इतना ही नहीं, उसका पाकिस्तानी पहचान पत्र भी आईएसआई ने बनवाया। कश्मीर घाटी से लेकर पूरे भारत में जिहादी आतंकवाद को पालने-पोसने और उसके खूंखार तरीके से पैर फैलाने की प्रक्रिया में पाकिस्तान की भूमिका के अनेक प्रमाण हैं, लेकिन कसाब और अबू जुंदाल तो इसके जीते-जागते सबूत बन गए हैं, जिन्हें पाकिस्तान लगातार नकार रहा है और हम हर बार उसके नकार पर मौन रह जाते हैं। भारत की सुरक्षा एजेंसियां लगातार चेता रही हैं कि देश में कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, उ.प्र., तमिलनाडु, प.बंगाल और बिहार में आतंकवादियों ने मजबूत नेटवर्क बना लिया है और भारत में फिर मुम्बई जैसे हमले की आशंका है। जुंदाल ने भी अपनी साजिश का खुलासा करते हुए यह स्वीकार किया है, तब पाकिस्तान के साथ कड़ाई से पेश आने की बजाय वार्ताओं की औपचारिकता निभाते रहना निरर्थक है। पाकिस्तानी विदेश सचिव ने 'संयुक्त जांच' की बात कहकर मुम्बई हमलों जैसे मामलों को उलझाने की ही मंशा जाहिर की है, क्योंकि पाकिस्तान तो कभी सही जांच होने ही नहीं देगा, उसे पता है कि जांच हुई तो वह पकड़ा जाएगा। सोचना भारत को है कि उसे कैसे सख्त कदम उठाने चाहिए।
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