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Jul 7, 2012, 12:00 am IST
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स्वास्थ्य

दिंनाक: 07 Jul 2012 15:21:27

'वायरल हेपेटाइटिस' अथवा पीलिया: जानकारी एवं बचाव 

डा. हर्ष वर्धन

 एम.बी.बी.एस.,एम.एस. (ई.एन.टी.)

वर्षा का मौसम प्रारम्भ होने वाला है। हमें सतर्क हो जाना चाहिए क्योंकि यह मौसम अपने साथ अनेक बीमारियों को लेकर आता है। ऋतु परिवर्तन के साथ हमारे वातावरण में विषाणुओं का संक्रमण तीव्र गति से होने लगता है। इस मौसम में शरीर को संक्रमित होने की आशंका अधिक रहती है। ऐसे में मलेरिया, जुकाम, डेंगू, कॉलरा, फ्लू, टाइफायड व पेट संबंधी रोग होने की प्रबल संभावना होती है।

इन बीमारियों के अलावा एक बीमारी है 'वायरल हेपेटाइटिस' जिसकी चपेट में इस मौसम में ज्यादा लोग आते हैं। इस बीमारी को आम बोलचाल की भाषा में पीलिया या 'जॉन्डिस' कहा जाता है। 'जॉन्डिस' का सबसे बड़ा कारण 'वायरल 'हेपेटाइटिस' है। 'हेपेटाइटिस' का मतलब है-'लीवर'?(यकृत) में??सूजन'। इस बीमारी में यकृत में सूजन आ जाती है। यह रोग अत्यंत सूक्ष्म वायरस से होता है। शुरुआत में जब यह बीमारी मामूली तौर पर रहती है, तब इसके लक्षण दिखाई नहीं देते हैं परन्तु जब बीमारी उग्र रूप धारण कर लेती है, तब इसके लक्षण परिलक्षित होने लगते हैं।

यकृत शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। शरीर में अनेक अंग हैं जिनको ईश्वर ने दो-दो बनाया हुआ है लेकिन यकृत मात्र एक है और इसका कार्य अत्यंत जटिल और अहम है। यह पेट के ऊपरी हिस्से के दाहिनी तरफ स्थित है। एक वयस्क में औसतन यकृत का वजन तीन पाउंड होता है। यकृत हानिकारक रसायनों (शराब अथवा अन्य रासायनिक तत्व) को अलग कर रक्त को शुद्ध करता है। यह हानिकारक रसायनों को मूत्र अथवा मल के माध्यम से शरीर से बाहर निकाल देता है। यकृत अनेक तत्वों खासकर 'प्रोटीन्स' का उत्पादन करता है जो शरीर के लिए अनिवार्य होते हैं। 'शुगर???'फैट्स??और विटामिन्स का संचय भी यकृत करता है तथा शरीर को आवश्यकता पड़ने पर आपूर्ति करता है। शरीर के लिए आवश्यक व जटिल रासायनिक तत्वों का निर्माण भी यकृत करता है जैसे??कौलेस्ट्राल'। जब यकृत संक्रमण से सूज जाता है, तब उक्त कार्यों को ठीक प्रकार से करने में असमर्थ हो जाता है। ऐसे में शरीर में अनेक परेशानियां उत्पन्न हो जाती हैं।

'वायरल हेपेटाइटिस' के प्रकार–

'हेपेटाइटिस ए'-इसे??एक्यूट वायरल हेपेटाइटिस' के रूप में जाना जाता है जो कभी 'क्रोनिक' नहीं होता है। यह दूषित पानी के कारण होता है और अधिकांशत:??0 प्रतिशत मामलों में 14 वर्ष तक के बच्चों में ही होता है।

'हेपेटाइटिस बी'-रक्त के आदान-प्रदान से??गर्भवती मां के द्वारा बच्चे में, एक ही 'नीडल' को साझा करने से खासकर नशे की 'ड्रग्स' आदि लेने वालों में, संक्रमित व्यक्ति/महिला से असुरक्षित यौन संबंध स्थापित करने, संक्रमित रेजर का प्रयोग करने?? टैटू बनवाने, संक्रमित 'टूथब्रश' के साझा  आदि से यह फैलता है। यह जब क्रोनिक हो जाता है तब इसका संक्रमण आजीवन बना रहता है।

'हेपेटाइटिस सी'-यह भी रक्त के ही विविध माध्यमों से फैलता है।

'हेपेटाइटिस ई'-अधिकतर बड़े लोगों में होता है और भारत में?लगभग सभी पीलिया बीमारी के 'इपिडेमिक हेपेटाइटिस ई ' के कारण होते हैं। दूषित जल से होने वाले 'हेपेटाइटिस' ए एवं ई अधिकतर 991प्रतिशत मामलों में स्वत: ठीक हो जाते हैं लेकिन 1 प्रतिशत मामलों में जानलेवा भी हो सकता है। 'हिपेटाइटिस ए, बी और ई एक्यूट' होते हैं और सी अधिकांशत: 'क्रोनिक' होता है।

उक्त सभी प्रकार की बीमारी भारत सहित संसार के लगभग सभी देशों में पायी जाती है। समूचे विश्व में भारी संख्या में लोग इन बीमारियों से ग्रसित हैं।

'वायरल हेपेटाइटिस' का कारण

यह बीमारी किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है। गर्भवती महिलाओं में इस रोग के लक्षण बहुत उग्र होते हैं तथा उन्हें यह रोग ज्यादा समय तक कष्ट देता है। नवजात शिशुओं में भी इसका संक्रमण तेजी से होता है तथा उनके लिए जानलेवा हो सकता है।

इस रोग का संक्रमण ऐसे स्थानों पर ज्यादा होता है जहां लोग साफ-सफाई पर कम ध्यान देते हैं।

अधिक भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर भी यह रोग ज्यादा होता है।

पीलिया से ग्रसित रोगी के मल में इसके वायरस होते हैं। अत: रोगी के माध्यम से प्रदूषित हुए जल, भोजन अथवा अन्य खाद्य पदार्थों के द्वारा रोग का प्रसार होता है।

'हेपेटाइटिस' के दूसरे कारण–

'टॉक्सिन्स'

खास दवाएं

शराब का अधिक सेवन।

 

'वायरल हेपेटाइटिस' के लक्षण

आंख व नाखून का रंग पीला होना।

कभी-कभी शरीर की त्वचा का रंग भी पीला हो जाता है।

हल्के बुखार का रहना।

सिर में दर्द रहना।

मांसपेशियों में दर्द होना।

थकावट होना।

भूख का कम लगना अथवा भूख का लगना बंद होना।

मिचली आना।

उल्टी होना।

डायरिया

पेशाब का पीला आना।

पेट में दर्द रहना।

शौच सफेद, झागयुक्त व पतला हो जाता है।

भोजन के प्रति अरुचि होना।

'वायरल हेपेटाइटिस' से रोकथाम एवं बचाव

भोजन बनाने, परोसने तथा खाने से पूर्व हाथों को साबुन से अच्छी तरह धोना चाहिए।

नाखून काट कर रखें।

भोजन को ढंककर रखना चाहिए।

ताजा और गर्म भोजन का प्रयोग करना चाहिए।

दूध और पानी उबाल कर इस्तेमाल करना चाहिए।

रक्त का आदान-प्रदान करते समय पूरी जांच करवा लेनी चाहिए।

'हेपेटाइटिस बी' से बचाव के लिए-सुरक्षित यौन संबंध, सुरक्षित रक्त तथा सुरक्षित 'डिस्पोजेबल सिरिन्ज??पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

अपने यकृत की रक्षा के लिए शराब पीने की आदत से दूर रहें।

उपचार एवं बचाव

रोगी को तुरन्त उदर रोग विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए।

कभी-कभी 'वायरल हेपेटाइटिस' का संक्रमण भीषण हो जाता है, ऐसी परिस्थिति में यकृत में उत्पन्न खराबी जानलेवा हो सकती है।

बिल्कुल आराम करना चाहिए।

घूमने-फिरने से बचना चाहिए।

चिकित्सक के परामर्शानुसार ही भोजन लेना चाहिए।

इस रोग में दलिया, खिचड़ी, गन्ना, गुड़, पपीता, छाछ, मूली आदि का सेवन लाभकारी होता है।

नीबू, संतरा तथा अन्य फलों का रस भी इस बीमारी में फायदेमंद होता है।

तले व गरिष्ठ भोजन से परहेज करना चाहिए।

'हेपेटाइटिस' ए एवं बी की 'वैक्सीन' बाजार में उपलब्ध है और नवजात शिशुओं को तथा 'हाई रिस्क प्रोफेशन' (डॉक्टर, नर्स एवं स्वास्थ्यकर्मी) इत्यादि को अवश्य यह 'वैक्सीन' लगवानी चाहिए। 'हेपेटाइटिस' सी और ई का अभी तक बाजार में कोई टीका उपलब्ध नहीं है।

 

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