23, 24 एवं 25 जून को लेह में आयोजित हुआ सिन्धु दर्शन उत्सवसिन्धु उत्सव का सन्देशएक रहे यह भारत देश-कमल खत्री
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सिन्धु उत्सव का सन्देश,
एक रहे यह भारत देश।
सिन्धु दर्शन उत्सव के 16वें आयोजन पर यही सन्देश राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अ.भा. कार्यकारी मंडल के सदस्य श्री इन्द्रेश कुमार ने दिया। इस बार के सिन्धु दर्शन उत्सव में पिछले वर्ष के मुकाबले 2 गुना यात्री पहुंचे। खास बात यह रही कि बहुत से यात्री स्वयं की व्यवस्था से पहुंचे।
24 जून को लेह के शे मानला स्थित सिन्धु तट पर कार्यक्रम का प्रारम्भ ध्वजारोहण व जन गण मन से हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री श्री भगत सिंह कोश्यारी ने तिरंगा फहराया और उनका साथ दिया श्री इन्द्रेश कुमार, स्वामी यतीन्द्रानन्द गिरि, आचार्य आर्य नरेश, डा. कुनचुक रिगजिन व श्री मुरलीधर मखीजा ने। सिन्धु के तट पर यत्रियों ने स्नान किया, आचमन किया तथा सिन्धी विधि के अनुसार बहराणा पूजन के साथ भगवान झूलेलाल की अर्चना की गई। सिन्धु की पूजा व जलाभिषेक हुआ इसके साथ-साथ वैदिक मंत्रोच्चारण और हवन सम्पन्न हुआ। सिन्धी शहनाई की गूंज के मध्य लोग खुशी से झूमते-नाचते रहे। स्थानीय व देश के अन्य भागों के कलाकारों ने प्रस्तुतियां देकर कार्यक्रम को रोचक बना दिया।
स्वागत भाषण सिन्धु दर्शन यात्रा समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मुरलीधर माखीजा ने दिया। उन्होंने आए हुए सभी लोगों का स्वागत किया व आशा व्यक्त की कि आने वाले समय में तीर्थयात्रियों की संख्या और अधिक होगी व सिन्धु दर्शन यात्रा देश की एक विशेष व महत्वपूर्ण यात्रा बनेगी। कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए श्री भगत सिंह कोश्यारी ने कहा कि 5000 साल पुरानी सिन्धु घाटी की सभ्यता के सामने कोई अन्य सभ्यता नहीं टिकती। उत्तराखण्ड दो खण्डों में विभाजित है केदार खण्ड व मानस खण्ड। कैलास मानसरोवर मानस खण्ड के अन्तर्गत आता है। हम केवल यहां उत्सव मनाने नहीं आए हैं, बल्कि संकल्प करने आए हैं कि जब तक कैलास मानसरोवर मुक्त नहीं होगा तब तक हम चैन नहीं लेंगे।
इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक श्री रामेश्वर, स्वामी यतीन्द्रानन्द गिरि, आचार्य आर्य नरेश जी, श्री तोकदन रिम्पोछे, गोन्चुक नामग्याल, डा. वांग्चुक दोरजे नेगी, रीजिरिंग नोरफेल शाकुल गोम्पा, पदम गेलस्टेन शाकुल गोम्पा आदि विशेष रूप से उपस्थित थे। इसके अतिरिक्त बहुत बड़ी सख्या में स्थानीय निवासियों ने भाग लिया। स्थानीय लोगों से बातचीत करने पर पता चला कि राष्ट्र की एकता, अखण्डता और खुशहाली के लिये होने वाले इस उत्सव को लगातार सफलता मिल रही है। लद्दाख से पूरे देश के लोगों का परिचय हो रहा है।
कार्यक्रम में आर्य समाज के आर्य नरेश जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि हमारी संस्कृति अनुपम है और जो मनुष्य अपनी संस्कृति का उत्थान नहीं करता उसमें व पशु में क्या अन्तर है। उन्होंने आगे कहा- जीने की तमन्ना है तो मरना सीखो। प्रतिज्ञा करो कि संस्कृति को गुमनाम नहीं होने देंगे और कोई भी बलिदान देकर अपने कैलास को आजाद कराएंगे। उन्होंने चीन को सावधान करते हुए कहा चीनवासियो, तिब्बत छोड़ो और विश्व शान्ति का सन्देश दुनिया में जाने दो, क्योंकि तिब्बत आजाद था आजाद ही रहना चाहिए तथा परम पावन शिवधाम कैलास सारी दुनिया के लिए मुक्त होना चाहिए।
समारोह के मुख्य वक्ता श्री इन्द्रेश कुमार ने कहा कि इतिहास गवाह है कि सारे आक्रमण हिमालय के रास्ते हुए हैं, हिमालय पर हुए हैं। इस देश की रक्षा के लिए अनेक वीरों का बलिदान हुआ है और इन बलिदानों में लद्दाखी वीरों का बलिदान बहुत बड़ा है। केवल एक कारगिल युद्ध को देखें तो सीधे-सीधे 613 बलिदानियों में 24 केवल लद्दाखी थे। देश को गर्व है, देश ऋणी है इन वीरांे का। परन्तु आज भी इज्जत व रोटी खतरे में है, भारत के वीरों ने गुलाम होने के लिये जन्म नहीं लिया। हमारे देश के एक-एक बच्चे ने मां का दूध पिया है और हम भारत माता की रक्षा कर अपना कर्तव्य पूरा करेंगे। उन्होंने आगे लेह-लद्दाख क्षेत्र के बारे में बताया कि यह क्षेत्र पर्वत पीठ है और यहां शैव मत का जोर था। अब यहां बौद्धमत प्रवाह में है। बौद्ध और सनातन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों की मान्यताओं में बड़ा करीबी रिश्ता है। यदि दुनिया भर के बौद्ध व सनातनी मिला दिए जाएं तो लगभग 28 देश बन जाते हैं- जिसका परिणाम सुखद होगा। श्री इन्द्रेश कुमार ने आगे कड़े शब्दों में कहा कि सनातन प्रवाह के विरोध में रहना देश के लिये अहितकर है। ऐसा उन्होंने उन लोगों का नाम लिए बिना कहा जो हिन्दू धर्म का विरोध बेमतलब, अपनी तुष्टीकरण नीति के लिए करते हैं। इस 16वें सिन्धु दर्शन उत्सव के लिए उन्होंने कहा यह उत्सव मिलने के लिये है, अखण्डता, एकता व समरसता के लिए है, खुशी व पर्यटन के लिए है। इसमें शक्ति, भक्ति व मस्ती का साथ लें।
डा. कुनचुक रिगजिन ने कहा कि लद्दाख आर्य भूमि है। यहीं से 50 किलोमीटर खारदूंगला से नुबरा घाटी से गुजर कर 'सिल्क रूट' निकलता है, जो सदियों पहले भारत का व्यापारिक मार्ग हुआ करता था। राजा कनिष्क के समय के स्तम्भ शैव व बौद्ध समन्वय की याद दिलाते हैं। कैलास मानसरोवर श्रद्धा व ज्ञान का केन्द्र है। हिमालय परिवार के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी यतीन्द्रानन्द गिरि ने कहा कि इस सिन्धु उत्सव की पहचान जम्मू-कश्मीर में ही नहीं, अपितु पूरे देश में हुई है। उन्होंने राज्य सरकार को सलाह दी कि वह इस उत्सव को प्रदेश का राजकीय उत्सव घोषित करे। कार्यक्रम के अध्यक्ष पूज्य लामा तोकदन रिम्पोछे ने बौद्ध मंत्रों से अपना भाषण आरम्भ किया व सिन्धु दर्शन के आयोजकों को साधुवाद दिया। उन्होंने कहा कि इस उत्सव के कारण आज पूरे देश का ध्यान लेह की तरफ हुआ है। यहां के गुम्फाओं में रहने वाले शिक्षार्थी व शिक्षक जहां बौद्ध शिक्षा में लगे हैं वहीं देश की सेवा, सुरक्षा पर भी उनका पूरा ध्यान है। सिन्धु दर्शन उत्सव और अधिक फले-फूले इसके लिए उन्होंने अपनी शुभकामनाएं दीं।
केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल, प. बंगाल, असम, बिहार, मणिपुर, पंजाब, छत्तीसगढ़ व झारखण्ड के अलावा देश के कोने-कोने से यात्री उत्सव में भाग लेने आए थे।
हिमालय परिवार द्वारा 23 जून को कैलास मानसरोवर का मार्ग लेह के कारू से खोलने को लेकर प्रदर्शन हुआ। इस प्रदर्शन की बागडोर ताशी तरगश (लेह), जयपुर से श्री सुरेश पाटोदिया, श्री विजय शंकर पाण्डे तथा दिलबाग सिंह जसरोटिया को सौंपी गई थी। इस प्रदर्शन जुलूस को श्री भगत सिंह कोश्यारी और श्री इन्द्रेश कुमार ने हरी झण्डी दिखाई।
चोगलमसर-लेह में बन रहे सिन्धु भवन के पास 23 जून को सैकड़ों कार्यकर्ता एकत्र हुए थे। आज भवन की दूसरी छत बन रही थी। इस कार्य में जहां बड़ी संख्या में मजदूर लगे थे, वहीं सिन्धु यात्री भी पूरे उत्साह के साथ कार सेवा में शामिल हुए।
23 जून की शाम को स्थानीय विद्या भारती विद्यालय, चोगलमसर में यात्रियों के स्वागतार्थ एक कार्यक्रम लेह-लद्दाख वासियों द्वारा किया गया। लद्दाख की परम्परा के अनुसार लद्दाखी युवतियों द्वारा प्रत्येक यात्री का स्वागत 'खतक' पहनाकर किया गया। इस स्वागत सभा की अध्यक्षता डा. कॉनचौक रिंगजोन ने की।
25 जून को 'केन्द्रीय बौद्ध अध्यन केन्द्र' चोगलमसर, लेह में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसका विषय था 'विश्व शांति के परिप्रेक्ष्य में बौद्ध धर्म का योगदान'। ठीक सुबह 10.30 पर कार्यक्रम का शुभारम्भ केन्द्र के निदेशक डा. वांग्चुक दोरजी नेगी द्वारा अतिथियों को 'खतक' पहनाकर किया।
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