सनातन विचार की रक्षा के लिए दिया बलिदान
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पुष्कर रोड स्थित महाराजा दाहरसेन स्मारक
महाराजा दाहरसेन के 1300वें बलिदान दिवस पर श्रद्धाञ्जलि समारोह
–मोहनराव भागवत, सरसंघचालक, रा.स्व.संघ
भारत की पश्चिमी प्राचीर के रक्षक सिंधुपति महाराजा दाहरसेन के राष्ट्ररक्षार्थ 1300वें बलिदान दिवस पर गत दिनों पुष्कर (राजस्थान) रोड स्थित दाहरसेन स्मारक पर विशाल श्रद्धाञ्जलि समारोह का आयोजन किया गया। सिन्धुपति महाराजा दाहरसेन समारोह समिति और भारतीय सिन्धु सभा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, दिल्ली, गुजरात एवं राजस्थान के 26 जिलों से बड़ी संख्या में संतों एवं गण्यमान्य लोगों ने भाग लिया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत थे।
श्री भागवत ने अपने उद्बोधन में महाराजा दाहरसेन के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि राजा दाहरसेन ने किसी भूभाग पर हमले के विरोध में बलिदान नहीं दिया, बल्कि उनका बलिदान एक सनातन विचार की रक्षा के लिए था। महाराजा दाहरसेन को लगा कि अरबों का आक्रमण सनातन धर्म और संस्कृति पर हमला है, इसलिए उन्होंने आक्रमणकारियों के खिलाफ तलवार उठाई।
श्री भागवत ने कहा कि भारत वीरों की भूमि है। इस धरा ने पूरी दुनिया के सुख और समृद्धि की कामना की है। भारत दुनिया का अकेला ऐसा देश है जो विविधताओं से भरा है। उन्होंने कहा कि किसी भी देश की पहचान उसकी संस्कृति और गौरवशाली इतिहास से होती है। समाज उन्हीं लोगों को याद रखता है, जिन्होंने मूल्य आधारित शासन करते हुए मातृभूमि के लिए अपने प्राणों को न्योछावर किया है और महाराजा दाहरसेन उनमें से एक हैं। श्री भागवत ने कहा कि दुनिया के कुछ देश पूरी दुनिया को एक बाजार बनाना चाहते हैं लेकिन भारत ऐसा नहीं सोचता है। भारत शुरू से ही 'वसुधैव कुटुंबकम' के मूल्यों पर आधारित विचार के साथ चल रहा है। भारत दुनिया को बाजार नहीं, एक परिवार मानता है। संतों के सान्निध्य में चलने वाली भारत की व्यवस्था पूरी दुनिया के लिए मार्गदर्शक है। जब सारी दुनिया भटकती है तब भारत उसका मार्ग प्रशस्त करता है।
सरसंघचालक ने कहा कि भारत विविध भाषाओं का देश है। अगर सिंधी समाज के लोग सिंधी भाषा को बचाने का प्रयास कर रहे हैं तो यह भारत को ही बचाने का प्रयास है। भारत एक भाषा, प्रांत या पंथ-संप्रदाय नहीं हैं, बल्कि सबको जोड़कर बना है। श्री भागवत ने कहा कि भारत के पास समृद्ध भाषा है। ऐसी भाषा है, जिसमें भाव शामिल हैं। इसलिए जिस जगह हम रहते हैं उसे मातृभूमि कहते हैं। उन्होंने युवा पीढ़ी का आह्वान करते हुए कहा कि यदि भाव का विकास करना है तो अपनी भाषा को समझें और महत्व दें। अपने पूर्वजों और संस्कृति को नहीं भूलें। अपनी विरासत को आगे बढ़ाएं।
मंच पर श्री मोहनराव भागवत (बाएं से पांचवें)
के साथ कार्यक्रम के अतिथिगण
श्री भागवत ने कहा कि दुनिया हजारों साल से सुखों के लिए दौड़ रही है, लेकिन हार चुकी है। अब उसकी नजर भारत पर है। देश को अपनी सारी शक्ति एकजुट करनी होगी। सारी दुनिया में कट्टरवाद और उदारता के बीच लड़ाई चल रही है। कपट और सरलता के बीच संघर्ष चल रहा है। देश को अपने मूल्यों को स्थापित करने के लिए सेनापति की भूमिका निभानी होगी। उन्होंने कहा कि दाहरसेन स्मारक केवल स्मारक नहीं, बल्कि इतिहास की जीवंतता के साथ प्रस्तुति है। दाहरसेन स्मारक हमें अपने गौरवशाली अतीत को समझने एवं भविष्य में राष्ट्रधर्म के लिए सर्वस्व न्योछावर करने की प्रेरणा देता है।
श्री भागवत ने कहा कि कहा जाता है कि पुरानी बातों को भूल जाओ, मगर कुछ बातें ऐसी होती हैं जिनको जीवनपर्यंत याद रखना पड़ता है। दाहरसेन का प्रसंग भी ऐसा ही है। दाहरसेन का जीवन हिन्दू आचरण का उदाहरण है। हिन्दू जीवन का आदर्श है। हम भारत को अखंड भारत मानते हैं। सिंध में आज भी सिंधी हिन्दू रहते हैं। वहां आज भी भारत जीवंत है। कश्मीरी पंडितों की समस्या पूरे हिन्दू समाज की समस्या है।
श्री भागवत ने आह्वान किया कि सिंधी समाज न तो अपनी भाषा को भूले और न ही अपने पूर्वजों एवं सिंध के इतिहास को। इस अवसर पर सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत तथा मंचासीन संतों ने श्री ओंकार सिंह लखावत द्वारा लिखित पुस्तक 'संसार का सिरमोर सिंध व महाराजा दाहरसेन' तथा पाथेय कण के विशेषांक का लोकार्पण किया। कार्यक्रम का संचालन भारतीय सिन्धु सभा के प्रान्त मंत्री श्री महेंद्र कुमार तीर्थानी ने किया। समारोह में सिंध दर्शन प्रदर्शनी और पुस्तक प्रदर्शनी भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रही थीं। दाहरसेन स्मारक संग्रहालय में सिन्धु घाटी की सभ्यता, सिन्ध के जनजीवन एवं धरोहर स्मृति को भव्य रूप से प्रदर्शित किया गया है। साथ ही सिन्ध के भौगोलिक एवं सांस्कृतिक स्वरूप को भी जमीन पर उकेरा गया है। विसंके, जोधपुर
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