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80 के दशक में नेस्तनाबूद कर दिए गए मणिपुर के देशविरोधी गुट पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पी.एल.ए.) ने अपनी जड़ें गहरे तक जमा ली हैं और उसकी गतिविधियां तेजी से बढ़ रही हैं। यह साफ हो रहा है कि पिछले 30 वर्षों में पी.एल.ए. खत्म नहीं हुआ है, बल्कि भूमिगत रहकर कार्य कर रहा है।
पूर्वोत्तर के सात राज्यों को तोड़कर उसे भारत से अलग कर देने के विदेशी मंसूबों और चर्च के षड्यंत्र के नित नए आयाम सामने आते रहते हैं। खुफिया विभाग को अब यह पुख्ता जानकारी मिल रही है कि 80 के दशक में नेस्तनाबूद कर दिए गए मणिपुर के देशविरोधी गुट पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पी.एल.ए.) ने अपनी जड़ें गहरे तक जमा ली हैं और उसकी गतिविधियां तेजी से बढ़ रही हैं। राष्ट्रीय खुफिया एजेंसी (एन.आई.ए.) को इस बात की स्पष्ट जानकारी मिली है कि पी.एल.ए.के मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) से नजदीकी संबंध हैं। इतना ही नहीं तो पी.एल.ए. अब माओवादियों को प्रशिक्षण, हथियार और अन्य प्रकार की घातक सामग्री भी दे रहा है।
उल्लेखनीय है कि 1978 में एन. विश्वेश्वर सिंह के नेतृत्व में कुछ भ्रमित मणिपुरी युवकों का एक दल गैरकानूनी तरीके से चीन गया था। कम्युनिस्ट चिंतन से प्रभावित होकर जब यह दल भारत लौटा तो चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के नाम से प्रेरित होकर मणिपुर में इसी नाम से एक अलगाववादी गुट बना लिया और हिंसक घटनाओं को अंजाम देने लगा। लेकिन 1980 में सेना द्वारा की गई कार्रवाई से पी.एल.ए. ध्वस्त हो गया और उसके अनेक समर्थक भूमिगत हो गए। अब जाकर यह साफ हो रहा है कि पिछले 30 वर्षों में पी.एल.ए. खत्म नहीं हुआ है बल्कि भूमिगत रहकर कार्य कर रहा है और पहले के मुकाबले अधिक मजबूत होकर उभर रहा है। यह भी पता चला है कि पी.एल.ए. और माओवादियों के बीच एक समझौता 22 अक्तूबर, 2008 को हुआ। इसी समझौते के अन्तर्गत पी.एल.ए. के विशेषज्ञों ने झारखण्ड के जंगलों में जाकर वहां माओवादियों को हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया। राष्ट्रीय जांच एजेंसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पिछले कुछ समय में गुवाहाटी में एक दर्जन से अधिक पी.एल.ए. समर्थकों के पकड़े जाने और उनसे की गई पूछताछ में यह तथ्य उजागर हुए।
गत मई माह में पल्लव बरबरा उर्फ प्रफुल्ल की गिरफ्तारी के बाद स्थिति शीशे की तरह साफ हो गई कि पी.एल.ए. और माओवादियों के बीच साठगांठ है और प्रफुल्ल ही इसमें संयोजक की भूमिका निभा रहा था। प्रफुल्ल के साथ ही एन. दलीप सिंह उर्फ उयांवा एवं इन्द्रनील चन्द्र को भी गिरफ्तार किया गया। एन. दिलीप सिंह उर्फ उयांवा पी.एल.ए. के विदेश विभाग का प्रमुख है जबकि इन्द्रजीत चन्द्र माओवादियों की गतिविधियों को संचालित करता है व उनका प्रशिक्षक है। प्रफुल्ल की सहायता से ही उयांवा की माओवादी नेता कोटेश्वर राव उर्फ किशन जी से मुलाकात हुई थी। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एन.आई.ए.) द्वारा उयांवा के विरुद्ध न्यायालय में दाखिल आरोप पत्र में कहा गया है कि उसने माओवादियों को दो महीने तक गोरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण भी दिया। उयांवा ने ही माआवादियों को 'वायरलैस सैट' व अत्याधुनिक हथियार दिलाए।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने पी.एल.ए. और माओवादियों के बीच संवाद के लिए की गई 500 से अधिक ई-मेल भी पकड़ी हैं, जिससे पता चला है कि जब माओवादी घात लगाकर कुछ सुरक्षा बलों को धोखे से मार देते हैं तब पी.एल.ए. मेल पर उसे बधाई भेजता है और माओवादी भी उसे धन्यवाद देते हैं। इन्हीं ई-मेल से पता चला कि माओवादी पोलित ब्यूरो के सदस्य गणपति ने गोरिल्ला लड़ाई के प्रशिक्षण के लिए पी.एल.ए. का धन्यवाद ज्ञापित किया। इन्हीं ई-मेल से पता चला है कि कोलकाता का रहने वाला प्रशान्त बोस उर्फ किसन दा 4 साल पहले माओवादियों को प्रशिक्षण दिलाने के लिए सीमा पार म्यांमार लेकर गया था। यह भी पता चला है कि पी.एल.ए. का माआवादियों के साथ ही उल्फा, एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) तथा यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ मणिपुर के साथ भी तालमेल है। पी.एल.ए. से प्रभावित होकर ही मणिपुर की कालेइपाक कम्युनिस्ट पार्टी ने अपना नाम बदलकर माओइस्ट कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ मणिपुर रख लिया है।
इधर असम से भी बहुत चौंकाने वाली खबरें यह आ रही है कि पिछले 2-3 वर्षों में लगभग 300 युवक लापता हो चुके हैं। चूंकि उल्फा के शीर्ष नेता समर्पण कर चुके हैं और शांति वार्ता जारी है इसलिए इन युवकों के उल्फा में शामिल होने का प्रश्न ही नहीं पैदा होता। समझा जा रहा है कि ये सब माओवादी बन गए हैं और भूमिगत रहकर काम कर रहे हैं। जिन दिनों ये युवक लापता हुए उन दिनों असम में शीर्ष माओवादी नेताओं द्वारा गुप्त बैठकों का दौर जारी था। इन्हीं सब कारणों से एन.आई.ए. के महानिदेशक एस.सी. सिन्हा ने असम के पुलिस प्रमुख जे.एन. चौधरी से कहा है कि वे असम पुलिस के कुछ योग्य व अनुभवी पुलिस अधिकारियों को प्रशिक्षण हेतु एन.आई.ए. में भेजें ताकि वे राज्य में होने वाली राष्ट्रविरोधी गतिविधियों पर नजर रख सकें।
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