|
भ्रष्टाचार करवट बदले
काला धन लेता अंगड़ाई,
आम आदमी के जीवन में
पीड़ा की गूंजी शहनाई।
राजनीति से नीति नदारद
न्यायालय से न्याय उठा है,
नैतिकता की माला बिखरी
सच्चाई का कोष लुटा है,
पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण
दिशा–दिशा आफत गहराई।
पीड़ा की गूंजी शहनाई।।
चाटुकारिता खुलकर हंसती
मूंछों को पैनाते चमचे,
चोरी, डाका, हत्या, दंगे
गली–गली हों इनके चर्चे,
सपने तक हो गए विखण्डित
और प्रदूषित सी पुरवाई।
पीड़ा की गूंजी शहनाई।।
दोनों गाल बजें ज्यों ढोलक
पेट पीठ से मिल इतराए,
पुत्र–पित्रा को धोखे देता
बंधु–बंधु को मार गिराए,
डर के सायों बीच जिंदगी
डसती अपनी ही परछाई।
पीड़ा की गूंजी शहनाई।।
खुशबू के प्रतिमान बिराने
मन का आंगन सूना–सूना,
आशाओं की बगिया उजड़ी
तन पतझर का एक नमूना,
नयनों से आंसू झरते हैं
सुख की ब्रह्मपुत्र शरमाई।
पीड़ा की गूंजी शहनाई।।
टिप्पणियाँ