समय की सुई को उल्टा घुमाने की कोशिश
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उल्टा घुमाने की कोशिश
मुजफ्फर हुसैन
ट्यूनीशिया से उठने वाली 'जेस्मिन क्रांति' की लहर जब काहिरा पहुंची थी तो 18 दिन के भीतर ही हुसनी मुबारक के होश उड़ गए थे। उन्हें लगा था कि जिस तरह आज तक तानाशाहों का अंत होता आया है उसी प्रकार उनका अंत भी निकट है। यह उनकी खुशकिस्मती है कि अब तक उन्हें फांसी पर नहीं लटकाया गया है, बल्कि आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। जेलर ने उनका कैदी नम्बर भी उनको आबंटित कर दिया है। जेल के नियम अनुसार उन्हें 'मुबारक' के नाम से नहीं बल्कि कैदी नम्बर से आवाज लगाई जाएगी। फांसी न दिये जाने के कारण उनकी जिंदगी फिलहाल बच गई है। बहरहाल, तहरीर चौक पर जिस तरह का आंदोलन चला था उससे सारी दुनिया को यह लगने लगा था कि हुसनी मुबारक के दिन अब पूरे हो गए हैं।
उम्मीद पर फिरा पानी
इजिप्ट के सबसे बड़े राजनीतिक दल इख्वानुल मुसलमीन (इख्वान ब्रहरहुड), जिस पर कर्नल नासिर के समय से ही पाबंदी लगा दी गई थी, की अपील पर हजारों लोग राजधानी काहिरा के प्रसिद्ध मैदान अल तहरीर में आ जुटे थे। आंदोलन के तीन सप्ताह के भीतर ही इजिप्ट की सेना और मुबारक के भाड़े के समर्थकों ने 800 से अधिक क्रांतिकारियों को मौत के घाट उतार दिया था। ज्यों-ज्यों समय बीत रहा था, आंदोलन तीखा होता चला गया था। उसका परिणाम हुआ कि मुबारक और उनके समर्थक सत्ता से दूर होते गए।
चुनाव की घोषणा से सामान्य लोगों को उम्मीद बंधी और सारा इजिप्ट यह सोचने लगा था कि इन भ्रष्ट सत्ताधीशों का पतन निश्चित है। लेकिन ज्यों ज्यों आम चुनाव के बाद आने वाली सरकार की तस्वीर साफ होती जा रही है उससे यह विश्वास भी डगमगाने लगा है कि इजिप्ट के पूर्व राष्ट्रपति और उनके परिवार को सख्त सजा मिलेगी। यह शंका भी आम होती जा रही है, क्योंकि सत्ता परिवर्तन के पश्चात हुसनी मुबारक और उनके साथियों को जिस प्रकार का दंड मिला है उससे इजिप्ट की आम जनता बड़ी दुखी और निराश है। उसे लगता था कि देश को बर्बाद करने वालों को मौत के घाट उतारा जाएगा और जिन्होंने आंदोलन में कत्लेआम किया है, उन्हें चौराहे पर फांसी दी जाएगी। लेकिन इजिप्ट में चुनाव लड़ रहे राजनीतिक दलों और क्रांतिकारियों को अब यह सपना अधूरा रहता दिखाई पड़ रहा है। उन्हें लगता है कि पापियों को येन केन प्रकारेण माफी दिये जाने का षड्यंत्र चल रहा है। पिछले दिनों मुबारक को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। मुबारक ने उक्त दंड स्वीकार नहीं किया। पहले वे जेल भेजे गए, लेकिन बाद में उन्हें एक अस्पताल में इलाज के लिए स्थानांतरित कर दिया गया।
बदलेंगे सिर्फ चेहरे
इस घटना से इजिप्ट की जनता में भारी असंतोष है। उधर मुबारक के दोनों बेटों, जिन्होंने अपने पिता की सत्ता में सामान्य नागरिकों पर अत्याचार किए थे और दोनों हाथों से देश की दौलत लूटी थी, को निर्दोष छोड़ दिया गया है। मुबारक की भ्रष्ट पत्नी अब उनकी सेवा के लिए बुला ली गई है। दूसरी ओर मुबारक के सिपहसालार रहे अत्याचारी अधिकारी चुनाव लड़कर संसद में पहुंचने की तैयारी कर रहे हैं। नौकरशाही से जुड़े हजारों लोग मुबारक के समर्थक बनकर उनकी सेवा में लगे हैं। वहां की सामान्य जनता को ऐसा लग रहा है कि एक षड्यंत्र के तहत अल तहरीर चौक के आंदोलन के मर्म को कुचलने का प्रयास किया जा रहा है। हालात तो यह बता रहे हैं कि कुछ ही दिनों में चुनाव के माध्यम से भ्रष्ट मुबारक का राज वापस लौट आएगा। बीमार हुसनी मुबारक दुनिया से विदा भी हो गए तब भी काहिरा में उनके गुर्गों का राज स्थापित हो जाएगा। इजिप्ट के बाहर बैठी ताकतें इस आंदोलन को कुचलकर देश को एक बार फिर से अधिनायकवादियों के हाथों की कठपुतली बना देंगी। जनता को लगने लगा है कि मुबारक काल के प्रधानमंत्री अहमद शफीक, जो इस समय राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं, चुनाव जीतकर सत्ता हथिया लेंगे। इसलिए उनके विरुद्ध विशाल पैमाने पर प्रदर्शन हो रहे हैं।
अल तहरीर मैदान आज फिर से प्रदर्शनकारियों से पटा हुआ है। आश्चर्यजनक है कि इस आंदोलन में जहां हुसनी मुबारक के विरोधी बड़ी संख्या में एकत्रित होकर यह मांग कर रहे हैं कि मुबारक को फांसी पर लटकाओ, वहीं ऐसे लोग भी मैदान में डटे हुए हैं जो मुबारक के कट्टर समर्थक हैं। इजिप्ट का मीडिया स्पष्ट रूप से लिख रहा है कि अमरीका अब भी अपने इस पिट्ठू को बचाने में लगा है। मुबारक के समर्थक और विरोधी, दोनों ही मुबारक को दिये गए दंड से सहमत नहीं हैं। विरोधी उनके लिए मृत्युदंड की मांग कर रहे हैं जबकि समर्थक उन्हें निर्दोष घोषित कराने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। राष्ट्रपति पद के दो उम्मीदवारों में कांटे की टक्कर है। इनमें एक हैं डाक्टर मोहम्मद मरसी, जो इख्वान ब्रदरहुड के उम्मीदवार हैं तो दूसरे हैं अहमद शफीक, जो मुबारक के प्रधानमंत्री थे। मुबारक-विरोधी दलों ने सवाल उठाए हैं कि काहिरा में सऊदी राजदूत की हत्या करने का प्रयास किसने किया था? स्वेज नहर और सिकंदरया के निकट दंगे किसने करवाए थे? क्या इससे यह आभास नहीं होता है कि इजिप्ट की क्रांति को विफल करने का प्रयास किया जा रहा है? अमरीका के अतिरिक्त इसके पीछे और कौन हो सकता है?
संधियों के पीछे क्या?
दुनिया जानती है कि अनवर सादात पर दबाव डलवाकर इस्रायल के पक्ष में केम्प डेविड समझौता करवाया गया था। इससे अरब राष्ट्रों में फूट पड़ गई और इस्रायल के लिए सिनाई प्रदेश में आने- जाने का मार्ग खुल गया था। क्या इसके पीछे अमरीकी दिमाग काम कर रहा है? 16-17 जून को डाक्टर मरसी और अहमद शफीक में चुनावी टक्कर होगी। अब तक राष्ट्रपति पद के 13 उम्मीदवार थे। उनमें से 11 ने अपने नाम वापस ले लिये हैं। 11 उम्मीदवारों के हट जाने का लाभ किसको होगा, यह कहना अभी कठिन है। लेकिन दोनों ही तहरीर चौक आंदोलन के प्रतिनिधि माने जा रहे हैं। लेकिन इख्वान कट्टरवादियों का कहना है कि शफीक अहमद मुबारक के ही एजेंट हैं। यदि वे चुनाव जीत जाते हैं तो तहरीर चौक के आंदोलन पर पानी फिर जाएगा।
भूमध्य सागर के आसपास की राजनीति हमेशा दुनिया को प्रभावित करती रही है। जब विश्व दो खेमों में बंटा हुआ था उस समय कर्नल नासिर रूस समर्थक थे। स्वेज नहर के लिए जिस प्रकार युद्ध हुआ उसमें अमरीकी सैनिक-संधियों के बड़े देश ब्रिटेन और फ्रांस, दोनों धूल चाट गए थे। अमरीकी मित्र देशों के लिए वह बहुत बड़ा झटका था। लेकिन जब रूस महाशक्ति नहीं रहा, तब अरब-इस्रायल युद्ध में सबसे अधिक घायल अनवर सादात ने केम्प डेविड जाकर इस्रायल से दोस्ती कर ली। उसके बाद अरब जगत ने उनका बहिष्कार कर दिया। लेकिन फिर भी वे अमरीकी समर्थन के कारण डटे रहे। उनको इसका नतीजा भी भोगना पड़ा और अंतत: कट्टरवादियों ने उनकी हत्या कर दी। इसके पश्चात हुसनी मुबारक राष्ट्रपति बने थे। यानी अमरीका 55 वर्ष से लगातार इस क्षेत्र पर हावी है। इजिप्ट की सीमाएं इस्रायल से मिलती हैं, इसलिए अमरीका के लिए वह एक अहम देश है। ऐसे में अमरीका समय की सुई को उल्टी घुमाकर अपने पक्ष में करने का प्रयास करे तो यह उसकी वर्तमान मजबूरी हो सकती है। लेकिन इजिप्ट के हाथ निकल जाने के बाद मुस्लिम ब्लाक का किला ढह जाए और अमरीका इससे हताहत हो तो आश्चर्य की बात नहीं।
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