पाठकीय : बनी रहे संसद की गरिमा
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पाठकीय
संसद के इतिहास और उसके अवमूल्यन को रेखांकित करती डा. सुभाष कश्यप की भेंटवार्ता अच्छी लगी। उनके विचार शत-प्रतिशत सही हैं। सदन की बैठकों में राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा कम, दलगत कटुता एवं पूर्वाग्रहों से भरे विवाद अधिक होते हैं। पहले आजादी के आन्दोलन से जुड़े लोग, देशभक्त तथा नैतिक मूल्यों से भरे लोग सदन में पहुंचते थे। पर अब धन और सत्ता की लालसा प्रमुख हो गई है, राष्ट्रवाद और उससे जुड़ी बातें गौण हो गई हैं।
–मनोहर 'मंजुल'
पिपल्या–बुजुर्ग, प. निमाड़-451225 (म.प्र.)
संसद की साख अवश्य गिरी है। कुछ सांसद ऐसे हुए हैं और अभी भी हैं, जो अपने स्वार्थ के लिए संसद का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे सांसदों को न देशहित से कोई मतलब है और न ही जनता के हित से। अपना हित साधने में ही वे अपने आपको सफल सांसद मानते हैं।
–गणेश कुमार
पाटलिपुत्र कालोनी, पटना (बिहार)
संसद की गरिमा खुद संसद सदस्यों ने ही गिराई है। एक आम आदमी को किसी छोटे-मोटे आरोप में तुरन्त जेल में बन्द कर दिया जाता है। पर ये नेता करोड़ों रुपए डकार कर भी बाहर घूम रहे हैं और अपने को 'माननीय' कहलाना पसन्द कर रहे हैं। आम आदमी महंगाई के इस दौर में मुश्किल से जी रहा है, उसकी आमदनी कोई नहीं बढ़ाता है। पर संसद सदस्य महंगाई की आड़ में अपना वेतन कई गुना बढ़ा लेते हैं। होना तो यह चाहिए कि ये नेता पहले आम आदमी की आय बढ़वाते, फिर अपना।
–सुहासिनी प्रमोद वालसंगकर
द्वारकापुरम, दिलसुखनगर हैदराबाद-60 (आं.प्र.)
60 वर्ष के बाद भी संसद में वह परिपक्वता नहीं आई है, जो होनी चाहिए। आज तो किसी राष्ट्रीय या अन्तरराष्ट्रीय मुद्दे पर संसद में स्वस्थ बहस तक नहीं हो पाती है। जब भी इस तरह के मुद्दे कोई सदस्य उठाता है तो अन्य सदस्य और किसी मुद्दे को उठाने लगते हैं। बड़ा दु:ख होता है कि संसद में किसी भी मुद्दे पर सार्थक बहस नहीं हो पाती है।
–ठाकुर सूर्यप्रताप सिंह सोनगरा
कांडरवासा, रतलाम (म.प्र.)
देश से बड़ी सत्ता
सम्पादकीय 'कब कसेगी माओवादियों की नकेल' ठीक लगा। चाहे माओवादी हों या जिहादी- इन दोनों के मनोबल इसलिए बढ़ रहे हैं कि केन्द्र सरकार उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई ही नहीं करना चाहती है। दरअसल, इस सरकार को लगता है कि यदि जिहादियों और माओवादियों के साथ सख्ती बरती जाएगी तो उसके समर्थक कांग्रेस से नाराज हो जाएंगे। इसलिए वह जानबूझकर कोई कार्रवाई नहीं करती है। इस सरकार के लिए देश से बड़ी सत्ता है।
–धनप्रकाश त्यागी
बी-19,पाथेय भवन, न्यू कालोनी, जयपुर-302001 (राजस्थान)
घुसपैठियों को भगाओ
श्री अरुण कुमार सिंह की रपट 'दिल्ली को असम बनाने का षड्यंत्र' एक राष्ट्रव्यापी खतरे को इंगित करती है। यदि दक्षिणी दिल्ली के गांवों के लोग मुस्लिम घुसपैठियों को निकालने की मांग नहीं करते तो आज वे दिल्ली में बस गए होते। भारत को म्यांमार से सबक लेना होगा कि उसने अपने यहां से अवैध लोगों को खदेड़ दिया है। भारत से भी घुसपैठियों को खदेड़ा जाना चाहिए, नहीं तो ये घुसपैठिए हमारे लिए संकट पैदा करेंगे।
–बी.एल. सचदेवा
263, आई.एन.ए. मार्केट, नई दिल्ली-110023
अम्बेडकरवादी होने का झूठा दावा
श्री देवेन्द्र स्वरूप के आलेख 'अम्बेडकर मित्र या अम्बेडकर शत्रु' से ज्ञात हुआ कि किस प्रकार कुछ लोग अपना नाम, पंथ या पहचान बदल कर अम्बेडकरवादी होने का झूठा दावा करते हैं। ये लोग बाबा साहब जैसे सशक्त स्तम्भ को गिराने का षड्यंत्र कर रहे हैं, बजाय इसके कि ऐसे और मजबूत स्तंभ की नींव रखें। एक सच्चा अम्बेडकरवादी गो-मांस भक्षण का विचार ला ही नहीं सकता है। जिन लोगों के विचारों में दम नहीं होता है वही लोग किसी महापुरुष के विचारों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करते हैं और अपने को बुद्धिजीवी मानने लगते हैं। वास्तव में ऐसे लोगों को मूर्ख कहा जाना चाहिए।
–एडवोकेट एस.के.
जी-301, कड़कड़डूमा न्यायालय, शाहदरा, दिल्ली-110032
फिर टूटेगा पाकिस्तान?
श्री मुजफ्फर हुसैन का लेख 'पाकिस्तान में मुसलमान भी नहीं सुरक्षित' पढ़ा। पाकिस्तान केवल आतंकवादियों और इस्लामिक कट्टरवादियों के हाथों में खेल रहा है। वहां कोई भी सुरक्षित नहीं है, सुन्नियों का आतंक है। ईसाई नाममात्र के रह गये हैं। हिन्दुओं का जबरन मतान्तरण करवाया जा रहा है। लगता है कि ईसाइयों और हिन्दुओं का खात्मा होने के बाद शियाओं के खात्मे का नम्बर है। पाकिस्तान का एक बार और टूटना तय है।
–चन्द्रमोहन चौहान
165-सी, तलवंडी, कोटा-324005 (राजस्थान)
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को कोई संवैधानिक अधिकार ही नहीं है। पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग की रपट से यही लगता है। पाकिस्तान से ज्यादा मुस्लिम तो भारत में हैं। यहां शिया-सुन्नी दंगे न के बराबर होते हैं, पर पाकिस्तान में शियाओं का दिनदहाड़े कत्लेआम हो रहा है।
–प्रदीप सिंह राठौर
36 बी, एम.आई.जी., पनकी, कानपुर (उ.प्र.)
नारी का महत्व
आंगन की तुलसी स्तंभ में डा. आशा पाण्डेय का लेख 'सृष्टि और भविष्य को संवारने वाली ऊर्जा है नारी' पढ़ा। नारी शक्ति स्वरूपा है। तभी तो वह घर-परिवार, पति-बच्चे सबका ख्याल रख पाती है। जिस घर में नारी नहीं होती है उस घर की दशा कैसी होती है, यह सबको पता है। अब तो नारी घरेलू कार्यों के साथ-साथ बाहरी कार्यों में भी कुशलता से हाथ बंटा रही है।
–हरिहर सिंह चौहान
जंबरीबाग नसिया
इन्दौर-452001 (म.प्र.)
'महाघोटालावती'
उत्तर प्रदेश में मायावती की घोटाला सरकार जाने के बाद से उसकी महाघोटालों की कहानियां सामने आने लगी हैं। वैसे तो अनेक घोटाले मायावती की सरकार के समय में ही खुलने लगे थे। एनआरएचएम की 10 हजार करोड़ रु. की बंदरबाट मायावती सरकार की करतूत साबित करने के लिए काफी है। परन्तु वंचित वर्ग के महापुरुषों के नाम पर बनाये पाकर्ों और स्मारकों में 40 हजार करोड़ रु. का घोटाला मायावती की बेशर्मी की पराकाष्ठा है। आखिर ये महापरुष भी मायावती के ही कारण बदनामी का दंश झेल रहे हैं। डा. अम्बेडकर, कांशीराम, ज्योतिबाफुले आदि सभी महापुरुष जीवनभर ईमानदार व हिन्दू समाज के सुधारक, मार्गदर्शक बने रहे। परन्तु मायावती ने इनकी मूर्तियां बेईमानी के दलदल से खड़ी कीं। लखनऊ के स्मारकों की चारदीवारी को बार–बार तोड़कर बनाने में करोड़ों रुपये डकारे गये। स्मारकों के लिए बाहर से मंगाये गये खजूर के पेड़ों को जियामऊ में दफन कर दिया गया। कई पेड़ तालाबों में डाल दिये गये। जबकि वे पेड़ बहुत महंगी दर पर खरीदे गये थे। इसके अतिरिक्त स्मारकों में लाई गयी मिट्टी, पौधे, घास को कई गुना महंगे दामों पर खरीदकर दलाली की गयी। गोमती नगर और जेल रोड के स्मारकों में मिट्टी भरवाने वाले ठेकेदार ने आस–पास के गांवों से अवैध खनन कराया। बाद में इस मुफ्त मिट्टी का भुगतान भी राजकीय निर्माण निगम से करा लिया गया। मिट्टी का भुगतान लगभग 50 करोड़ रुपये किया गया। 68 लाख रु. प्रति हाथी की दर से हाथी खरीदकर इन स्मारकों में लगाये गये हैं। इस प्रकार मुख्यमंत्री रहते हुए मायावती ने एक सनकी 'महारानी' की भांति कार्य किये। यहां तक कि लखनऊ स्थित अपने आवास की सजावट में ही 86 करोड़ रुपये बर्बाद कर दिये। इस पैसे का सही प्रयोग करके मायावती गरीब व वंचित समाज को सुविधायें दे सकती थीं। परन्तु मायावती ने केवल अपने नेताओं–मंत्रियों–विधायकों और रिश्तेदारों की ही झोली भरने का प्रयास जारी रखा। इसीलिए मायावती की कट्टर विरोधी सपा को उत्तर प्रदेश की जनता ने विरोधस्वरूप बहुमत प्रदान कर सरकार बनाने का मौका दे दिया। मायावती के कारनामों का फल सारे उत्तर प्रदेश की जनता को भुगतना पड़ रहा है।
विश्व के इतिहास में एक वर्णन आता है कि काफी समय पूर्व लगभग 18वीं शताब्दी में जब वहां की प्रजा घोर गरीबी व भूख के कारण राजा के महल के पास इकट्ठी होकर चिल्ला रही थी, तो उसकी सनकी रानी ने पूछा कि यह गरीब प्रजा इतना शोर क्यों मचा रही है? तो उसके मंत्री ने कहा कि ये सब गरीबी के कारण रोटी खाने को मांग रहे हैं, जो उनके पास नहीं है। तब रानी ने कहा कि जब इनके पास रोटी नहीं है तो ये लोग ब्रेड खायें। शायद यही स्थिति मायावती की है। जिन्होंने उत्तर प्रदेश की गरीब जनता को रोजगार, सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य–चिकित्सा आदि की सुविधाएं न देकर उन्हें 40 हजार करोड़ रु. के घोटाले वाले पार्क, स्मारक और उद्यान घूमने और मनोरंजन के लिए दिए हैं।
–डा. सुशील गुप्ता
शालीमार गार्डन कालोनी, बेहट बस स्टैण्ड, सहारनपुर (उ.प्र.)
रामचन्द्र गुप्ता नहीं रहे
पाञ्चजन्य के पाठकीय स्तम्भ के वर्षों पुराने लेखक श्री रामचन्द्र गुप्ता का 30 मई को निधन हो गया। पाञ्चजन्य के प्राय: हर अंक में आर.सी.गुप्ता के नाम से उनकी वैचारिक प्रतिक्रिया प्रकाशित होती थीं। श्री गुप्ता के न रहने से पाञ्चजन्य के सुधी पाठक उनके मूल्यवान विचारों से वंचित रह जाएंगे। पाञ्चजन्य परिवार और समस्त पाठकों की ओर से स्व. गुप्ता को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित है। शोक सन्देश इस पते पर भेजा जा सकता है-
द्वितीय–ए 201, नेहरू नगर गाजियाबाद-201001 (उ.प्र.)
पञ्चांग
वि.सं.2069 तिथि वार ई. सन् 2012
आषाढ़ शुक्ल 5 रवि 24 जून, 2012
” ” 6 सोम 25 ” “
” ” 7 मंगल 26 ” “
” ” 8 बुध 27 ” “
” ” 9 गुरु 28 ” “
” ” 10 शुक्र 29 ” “
” ” 11 शनि 30 ” “
प्रथम नागरिक कौन?
घोषित हुए चुनाव पर, सारे दल हैं मौन
होगा भारत देश का, प्रथम नागरिक कौन?
प्रथम नागरिक कौन, नाम हैं कई सामने
कुछ धरती पर, बाकी हैं उड़ रहे हवा में।
कह 'प्रशांत' हो योग्य–स्वस्थ राष्ट्रपति हमारा
उत्सुकता से देख रहा है भारत सारा।।
-प्रशांत
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