भेंट नीति का सहारा
May 10, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

भेंट नीति का सहारा

by
Jun 16, 2012, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

असम के सबसे वीर सैनिक माने जाने वाले लाचित ने कहा था-'गद्दार! मेरे लिए देश से बढ़कर मामा नहीं'

दिंनाक: 16 Jun 2012 15:11:56

शौर्य गाथा

असम के लोग तीन महान व्यक्तियों का बहुत सम्मान करते हैं। प्रथम, श्रीमंत शंकर देव, जो पन्द्रवीं शताब्दी में वैष्णव धर्म के महान प्रवर्त्तक थे। दूसरे, लाचित बरफुकन, जो असम के सबसे वीर सैनिक माने जाते हैं। और तीसरे, लोकप्रिय गोपी नाथ बारदोलोई, जो स्वतन्त्रता संघर्ष के दौरान अग्रणी नेता थे।

औरंगजेब जब दिल्ली का बादशाह बना तो उसने पश्चिम असम पर आक्रमण कर उसे अपने कब्जे में कर लिया, और रसीद खां को वहां के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया। लेकिन अहोम के राजा चक्रध्वज सिंह (1663-1669) को मुगलों के अधीन रहना स्वीकार नहीं था। चक्रध्वज सिंह ने मुगलों से लड़ने के लिए सेना का पुनर्गठन कर नौ शक्ति को बढ़ाया और अपने मंत्री मोमाई तामुली बरबरूवा के पुत्र लाचित को अपना बरफुकन(सेनापति) बनाया। और पूरी तैयारी के साथ मुगलों पर आक्रमण कर अगस्त 1667 में असमी सेना ने गुवाहाटी में पुन: प्रवेश कर मुगलों को मनाह नदी के पार खदेड़ दिया । उधर मराठा वीर शिवाजी के आगरा दुर्ग से पलायन करने से मुगल बादशाह औरंगजेब परेशान था, इधर असम में हुई मुगलों की हार से वह और तिलमिला गया। उसे सन्देह था कि शिवाजी के पलायन में आमेर के मिर्जा राजा जयसिंह के पुत्र रामसिंह ने सहायता की है। परन्तु वह उसे प्रत्यक्षरूप से सजा देता तो राजपूत सेना में विद्रोह का भय था, इसलिए उसने रामसिंह को असम जैसे खतरनाक मोर्चे पर भेज दिया। पटना से रामसिंह बंगाल के नवाब और औरंगजेब के मामा शाहस्ता खां से ढाका जाकर मिला और उसकी भी सैन्य सहायता ली। मुगलों की हार को जीत में बदलने के लिए वह धुबरी के रंगामाटी पर अधिकार कर 1669 ई. में गुवाहाटी के उत्तर पार अठियाठरी पहाड़ तक आ पहुंचा।

लाचित और रामसिंह की सेनाएं ब्रह्मपुत्र के दोनों किनारों पर खड़ी थीं। ब्रह्मपुत्र के दक्षिणी तट पर इटाखुली दुर्ग पर स्वयं लाचित अपने सरदारों और सैनिकों के साथ डटे थे। ब्रह्मपुत्र में नावों का बेड़ा तैयार खड़ा था। लाचित को पता चला कि ब्रह्मपुत्र के उस पार स्थित अमीनगांव के पास एक दुर्ग की प्राचीर कमजोर है। उसकी मरम्मत का काम उन्होंेने अपने मामा को सुपुर्द कर कहा, 'मामा यह काम रात-दिन एक करके किसी भी तरह सुबह तक पूरा हो जाना चाहिए। शत्रु का क्या भरोसा कब अचानक हमला कर दे। यह याद रखना कि दुश्मन की सेना आपसे ज्यादा दूर नहीं है। यह अत्यन्त ही आवश्यक और गुरुतर कार्य है, इसलिए आपके जिम्मे किया है।'

लाचित रात को अचानक काम देखने आये। काम बंद देखकर उनकी आंखों मे लहू उतर आया। सोये हुए मामा को जगाकर लाचित ने पूछा-'मामा! काम कैसे बंद है? शत्रु दहलीज पर खड़ा है, और तुम काम छोड़कर चैन की नींद सो रहे हो?'

'अरे लाचित, तुम! जो काम बाकी रह गया है उसे अभी आरंभ करा देता हूं। मैं बहुत थक गया था, इसलिए आराम करने चला आया। लगता है मेरे पीछे दूसरे लोग भी सो गये। तुम चिंता मत करो, मैं अभी काम शुरू करा देता हूं।'

'तुम जैसे लोगों की वजह से ही देश परतंत्र होता है। मौत और दुश्मन कभी पूछ कर नहीं आते हैं? गद्दार ! मेरे लिए देश से बढ़कर मामा नहीं।' इतना कहकर तलवार के एक आघात से मामा का सिर धड़ से अलग कर दिया। यह दु:साहस देखकर सभी के सभी अवाक्‌ रह गये। सैनिकों के कौतुहल को शांत करते हुए लाचित ने आज्ञा दी-'अपना समय और नष्ट किये बिना काम को पूरा करो और जल्द से जल्द इस गद्दार की लाश को मेरे सामने से हटाओ।' अब तक काम फिर शुरू हो चुका था, और सूर्योदय के पहले दुर्ग की अभेद्य प्राचीर की मरम्मत पूरी हो गयी। वह दुर्ग 'मोमाइकारा गढ़' कहलाने लगा।

लाचित ने मुगल सेना से लड़ने के लिए कूटनीति अपना रखी थी। संकट दिखे तो कछुए की तरह अपने खोल में सिमट जाओ, और अवसर देखकर शत्रु पर आक्रमण कर उसे नुकसान पहुंचाओ। राम सिंह और उसकी सेना इस लुका-छिपी के खेल से तंग आने लगी। सन् 1669-70 दो सालों तक छुटपुट लड़ाइयां चलती रहीं। आखिर में हताश होकर रामसिंह ने भेंट नीति का सहारा लिया। लाचित के नाम एक पत्र लिखकर उनके सहयोगी सरदार मिरि सन्दिकै फूकन के हाथों में चालाकी से उसे पहुंचाया।

पत्र में लिखा था,

'लाचित बरफुकन, कल ही तो तुमने हमसे एक लाख रुपये लेकर मान्य किया था कि युद्ध नहीं करूंगा। विश्वास है कि मुगल सेना से केवल युद्ध का दिखावा मात्र करते हुए अपने वचन का पालन करोगे।'

तुम्हारा शुभचिन्तक

राजा राम सिंह

मिरि ने वह पत्र स्वर्गदेव चक्रध्वज सिंह के पास गढ़गांव भेज दिया। राजा के संदेह को अतन बुढागोहॉई ने समझाकर दूर किया लेकिन फिर भी राजा ने मुगल सेना से तत्काल मैदानी युद्ध करने का फरमान भेज दिया।

प्रजा के प्रति निष्ठा

लाचित शुरू से ही जानते थे कि खुले मैदान में मुगल सेना को मात देना मुश्किल है, लेकिन गढ़गांव से मिले आदेश पर उन्हें आक्रमण करना पड़ा। लड़ाई में दस हजार सैनिक मारे गये, इससे लाचित शोकमग्न हो गये, और उनकी आंखों में आंसू आ गये। अपनी जान बचाने के लिए रामसिंह ने लाचित को फिर एक संदेश भेजा-'मैं सब लोगों को मुंह मांगा धन दूंगा। केवल गुवाहाटी मुझे सौंप दो। मैं संधि कर वापस लौट जाऊंगा।'

इसका लाचित बरफुकन ने उत्तर दिया- 'हमारे स्वर्गदेव उदयगिरि पूर्व के राजा और तुम्हारे बादशाह औरंगजेब अस्त गिरि (पश्चिम) के राजा। तुम और हम तो सेवक हैं। हम सेवकों के बीच संधि नहीं हो सकती।' इस बीच चक्रध्वज की मृत्यु हो गई, और उनका भाई उदय सिंह राजा बना। उदय सिंह में चक्रध्वज जैसी योग्यता नहीं थी। वह चापलूसों से घिरा था, प्रजा के कष्ट बढ़ गये थे। बड़े-बड़े सरदारों और मंत्रियों के परिवार उसके द्वारा लांछित हो रहे थे। इन समाचारों को सुनकर लाचित बड़े व्यथित हुए और उनका मन एक बार गढ़गांव जाने को हुआ, लेकिन उन्होंने गुवाहाटी का मोर्चा नहीं छोड़ा। उन्होंने मन में निर्णय किया-'उनकी निष्ठा किसी व्यक्ति के प्रति नहीं, राज्य व प्रजा के प्रति है। अगर इस समय गुवाहाटी छोड़कर चला जाऊंगा तो सारे बलिदान व्यर्थ चले जायेंगे।'

रामसिंह की समझ में आ गया कि जल युद्ध किए बिना गुवाहाटी को नहीं जीता जा सकता, इसलिए वर्षा काल समाप्त होते ही उसने आक्रमण करने की ठान ली। इसी बीच गुप्तचर ने रामसिंह को बताया-'इस समय लाचित बरफुकन आखोईफूटा ज्वर से पीड़ित होकर मूच्छर्ा की स्थिति में पड़ा है, उस पर आक्रमण करने का यह अच्छा अवसर है।' यह जानकर रामसिंह ने हमला करने का आदेश दे दिया। मुगल नौकाएं, बन्दूक और तोपों से मार करती हुईं शराईघाट की ओर बढ़ने लगीं।   

लाचित की बीमारी की बात सैनिकों में दावानल की तरह फैल गयी। सैनिक हताश होकर अपनी नावों में उल्टे भागने लगे। यह स्थिति देखकर ब्रह्मपुत्र के उत्तर पार अश्वक्लान्त पहाड़ी पर डरी हुई, असमिया सेना में भी खलबली मच गयी। भीषण बुखार में भी लाचित बरफुकन अपने इटाखुली दुर्ग से मुगलों का आक्रमण देख रहे थे। सारी स्थिति को भांपकर वे युद्ध में जाने को तैयार हुए। वैद्य ने लाचित को समझाकर रोकने का प्रयास किया और राज ज्योतिषी ने वैद्य की बात का समर्थन करते हुए कहा कि 'मैं आपको युद्ध मैं जाने की सलाह नहीं दूंगा। मेरी गणना के अनुसार इस समय आपका युद्ध में जाना हानिकारक हो सकता है।'

लाचित ने दृढ़तापूर्वक कहा-'इससे बढ़कर क्या हानि हो सकती है कि शत्रु हमारी भूमि को हड़प ले और हम मुंह देखते रह जाएं। यहां बिस्तर पर मरने से तो अच्छा है कि मैं युद्ध करते हुए मरूं। मुझे युद्ध में जाने से कोई नहीं रोक सकता।' बिस्तर से उठने की भी लाचित बरफुकन की अवस्था न थी फिर भी उन्होंेने एक सैनिक का सहारा लेकर उठते हुए अपने सहयोगियों से कहा-'तुम मेरा पलंग उठाकर नौका में रखो। इस वक्त एक-एक पल हमारे लिए भारी है,जरा सी भी चूक हुई तो सारी सेना का विनाश निश्चित है। सामने देखो, मुगल सेना की नौकएं तेज गति से आगे उमानन्द द्वीप तक पहुंच रही हैं।'

एक ओर ब्रह्मपुत्र में पूर्व की ओर बढ़ती मुगलांे की सैकड़ों नौकाएं, दूर भागती असमिया सेना की नावें और दूसरी ओर जलधारा के साथ बहती हुई, एकमात्र नौका पर क्रोध से उन्मन्त अपना खड्ग हाथ में लिए हुए वीर लाचित बरफुकन। बीमार होते हुए भी वे अकेले दुश्मनों पर टूट पड़े। अपने सेनापति को देखकर अहोम सेना में तीव्र आवेश पैदा हुआ। नौकाओं के मुंह फेर दिए गये। नाव से नाव भिड़ गयी। घमासान युद्ध छिड़ गया। लाचित ने अपने सैनिकों को ललकारा 'वीरोे! मुगलों को इस बार ऐसा सबक सिखाओ कि फिर कभी भविष्य में असम की ओर रुख करने का ये साहस न कर सकें। यह आखरी और निर्णायक युद्ध होना चाहिए। इस अवसर पर चूक गये तो असम की माटी तुम्हें कभी क्षमा नहीं करेगी।' ……….बरफुकन की इस वाणी ने असमिया वीरों मे नई स्फूर्ति भर दी और वे दुगुने जोश के साथ जी-जान की बाजी लगाकर लड़ने लगे। असमिया नौवाहिनी के गोताखोरों ने ब्रह्मपुत्र की अतिप्रवाहमान धारा में गोते लगाकर मुगलों की अनेक नावों में छिद्र कर-कर उन्हें डुबो दिया।

इस प्रबल आक्रमण से मुगल सेना के पैर उखड़ने लगे। अपने सिपहसालार रहीम खां को असमिया सेना द्वारा मारा गया देखकर वे और हताश हो गये। स्वयं रामसिंह भी इस प्रबल आक्रमण के सामने नहीं टिक पाया। वह समझ गया कि असमिया सेना के साथ जल युद्ध में और जूझना आत्मघात के समान होगा। आखिर उसके सामने शराईघाट छोड़कर पीछे हटने के सिवाय कोई चारा नहीं बचा।…..लाचित की सेना ने भागती मुगल सेना की नौकाओं और शस्त्रों को लूटने की लाचित से अनुमति मांगी, परन्तु लाचित ने कहा-इन भगोड़ों को लूटकर मैं स्वर्गदेव और अपने मंत्रियों की प्रतिष्ठा पर दाग नहीं लगाना चाहता। जाओ, शत्रु को असम की सीमा के बाहर मनाह नदी के पार तक खदेड़कर आओ।

मुगल सेना की भारी पराजय हुई। फिर भी वहां से लौटते हुए रामसिंह ने लाचित बरफुकन की भूरि-भूरि प्रशंसा की। लाचित ने युद्ध तो जीत लिया पर अपनी बीमारी को मात नहीं दे सके। आखिर सन् 1672 में उनका देहांत हो गया। भारतीय इतिहास लिखने वालों ने इस वीर की भले ही उपेक्षा की हो, पर असम के इतिहास और लोकगीतों में यह चरित्र मराठा वीर शिवाजी की तरह अमर है।

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

Gujarat Blackout

भारत-पाक के मध्य तनावपूर्ण स्थिति के बीच गुजरात के सीमावर्ती गांवों में ब्लैकआउट

S-400 difence System

पाकिस्तान का एस-400 को नष्ट करने का दावा फर्जी, जानें क्या है पूरा सच

India And Pakistan economic growth

भारत-पाकिस्तान: आर्थिक प्रगति और आतंकवाद के बीच का अंतर

कुसुम

सदैव बनी रहेगी कुसुम की ‘सुगंध’

#पाकिस्तान : अकड़ मांगे इलाज

प्रतीकात्मक तस्वीर

भारतीय वायुसेना की महिला पायलट के पाकिस्तान में पकड़े जाने की बात झूठी, PIB फैक्ट चेक में खुलासा

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Gujarat Blackout

भारत-पाक के मध्य तनावपूर्ण स्थिति के बीच गुजरात के सीमावर्ती गांवों में ब्लैकआउट

S-400 difence System

पाकिस्तान का एस-400 को नष्ट करने का दावा फर्जी, जानें क्या है पूरा सच

India And Pakistan economic growth

भारत-पाकिस्तान: आर्थिक प्रगति और आतंकवाद के बीच का अंतर

कुसुम

सदैव बनी रहेगी कुसुम की ‘सुगंध’

#पाकिस्तान : अकड़ मांगे इलाज

प्रतीकात्मक तस्वीर

भारतीय वायुसेना की महिला पायलट के पाकिस्तान में पकड़े जाने की बात झूठी, PIB फैक्ट चेक में खुलासा

भोपाल में लव जिहाद के विरोध में प्रदर्शन करतीं महिलाएं

लव जिहाद के विरुद्ध उतरीं हिंदू महिलाएं

CG Ghar Wapsi Sanatan Dharama

घर वापसी: छत्तीसगढ़ के कोंडागांव में 10 ईसाइयों ने अपनाया सनातन धर्म

Operation Sindoor Press briefing : ऑपरेशन सिंदूर पर भारत की प्रेस कॉन्फ्रेंस

भारतीय सेना ने पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों को किया नष्ट

भारतीय सेना ने PAK पर किया कड़ा प्रहार: पाकिस्तानी आतंकी लॉन्च पैड और चौकियां तबाह

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies