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मुबारक शेख की गोशाला
मुजफ्फर हुसैन
भारत कृषि प्रधान देश है, इसलिए कृषि में सहायक पशु अनिवार्य रूप से उसकी जीवन रेखा है। समय-समय पर भारत में बाहर के लोग भी आते रहे और जब उन्होंने यहीं बसने और जीवन-यापन करने का संकल्प लिया तो भारतीय परिवेश की सभी वस्तुओं को उन्हें स्वीकार करना ही पड़ा। इसलिए रसखान ने गाय को अपने काव्य में स्थान दिया, तो रहीम ने तुलसी और पीपल के गीत गए। यही वजह है कि भारत में हर मत-पंथ के लोगों ने गाय को यहां की आत्मा के रूप में स्वीकार किया है। गो पालन तो घरेलू व्यवसाय रहा ही, उसके बछड़े बैल बनकर कृषि के क्षेत्र में रीड़ की हड्डी के समान अनिवार्य अंग बन गए। किन्तु औद्योगिक क्रांति के जो परिणाम आए उसके तहत घर के आंगन से गाय विदा होने लगी और बैल खेती से अलग-थलग होता गया। लेकिन दूरदर्शी भारतीयों ने इसके बुरे परिणामों का आकलन कर लिया था। इसलिए भारतीय भूमि का यह वरदान जिसे गाय-बैल कहते हैं वह किस प्रकार से हमारे जीवन से जुड़ा रहे इस पर भी गहराई से विचार करते रहे। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत में इन दिनों फिर से गाय और बैल की पुकार सुनाई पड़ने लगी है। अब गायों की सुध लेने के लिए गोशालाएं स्थापित की जाने लगी हैं। बैल कत्लखाने में न भेजें जाएं इसके लिए आन्दोलन चलाकर जनता को जाग्रत किए जाने के प्रयास जारी हैं। गाय की रक्षा का दायित्व केवल हिन्दू का ही है यह सोच अत्यंत संकुचित है। किसान तो धरती माता का पुत्र है वह किसी मत-पंथ में बंट नहीं सकता है। इसलिए समझदार मुस्लिम अनेक स्थानों पर गो की रक्षा के लिए गोशालाएं चला रहे हैं। वे गो माता की सेवा करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। मजहब से परे रहकर क्या हिन्दू और क्या मुस्लिम इस प्रकार की गोशालाओं में रात-दिन काम करते हुए दिखाई पड़ते हैं।
70 वर्षीय गोसेवक
मुम्बई से पुणे की ओर जाने वाले महामार्ग पर कामशेत नामक पुलिस चौकी है। यहां से जब हम दायीं ओर वाले मोड़ पर पहुंचते हैं तब खेतों के बीच एक पतली सी-सड़क पौवना नदी की ओर जाती हुई दिखाई पड़ती है। इस मार्ग पर आर्डव नामक एक गांव, पोस्ट-शिवणे, तालुका-मावल, पुणे जिले में स्थित है। पिंपरी चिंचवड से भी यह जुड़ा हुआ है। महाराष्ट्र का प्रसिद्ध हिल स्टेशन लोनावाला एवं पौवना बांध सहज ही अपने प्राकृतिक सौंदर्य के कारण सैलानियों को बांध लेते हैं। कलकल बहने वाली पौवना नदी मन ही मन कहती है मैं केवल आकर्षक ही नहीं अपितु पावन भी हूं।
इसी क्षेत्र में मुबारक शेख और उनके पिता हाजी अब्बास कासम अपनी गायों के बीच उनकी सेवा करते हुए दिखाई पड़ जाएं तो आश्चर्य की बात नहीं। सफेद कमीज- पैंट में जब मुबारक भाई को हमने देखा तो ऐसा नहीं लगा कि एक 38 वर्षीय युवक पर गो की सेवा का इतना जूनून सवार है। वे कहते हैं मैं कुछ नहीं करता। यह तो सारी काया और माया मेरे पिता हाजी अब्बास कासम की है। एक देहाती के रूप में बंडी और लुंगी पहने, कड़ी धूप में 70 वर्षीय अब्बास भाई गायों को खिलाया जाने वाला चारा, खल्ली, सरकी और कुट्टी का मिश्रण तैयार कर रहे थे। सामग्री से लथपथ हाथ को जब मैंने चूमा तो वे मेरी ओर देखने लगे। मुबारक शेख के साथ जब मैं उस शेड में पहुंचा, जहां कुल 29 गायें थीं, वे मुबारक शेख को देखकर रंभाने लगीं। मैंने पूछा ये गायें कहां से आईं? तब उनका उत्तर था इनमें से कुछ तो वे हैं जो लोग यहां लाकर दे गए हैं। वे इनका लालन-पालन करने में समर्थ नहीं थे। कुछ गायें वे हैं जो हमने कत्लखाने ले जाने वालों से छुड़ाई हैं। उन्हें जितना पैसा चाहिए था उतना हमने दे दिया। मुबारक भाई का कहना था कि अब आस-पास के देहातों और नगरों से हमें समाचार मिलते हैं कि अमुक स्थान पर गाय है जिसे हम पाल नहीं सकते, यदि आप इसे ले जाएंगे तो बड़ी कृपा होगी। इस प्रकार इस वर्ष हम पांच गायों को लेकर आए हैं। इन गायों को हम बारी-बारी से नदी के किनारे ले जाते हैं। उन्हें स्वतंत्र छोड़ देते हैं और वे मेरे खेत के आस-पास घूमती रहती हैं। हमारे घर के सदस्य एवं कार्यकर्ता उनकी देख-रेख करते हैं। गायों के झुंड में मुबारक भाई बड़े खुश थे। गायें उन्हें चाटती थीं और वे गायों की पीठ पर हाथ फेरते थे। दोनों के बीच कितना प्रेम और अपनापन है, यह सहज ही दिखाई पड़ता था। गोशाला के आर्थिक पहलू पर जब मैंने बातचीत की तो उनका कहना था कि प्रतिमाह 60 हजार रुपए का खर्च आता है। हमारे परिवार से जो हो सकता है वह तो हम करते ही हैं, लेकिन इस सम्बंध में शोलापुर के छगनलाल कंवारा, लोकेश जैन, बेकरी वाले मेहबूब आलम और मुम्बई के राघव पटेल भरपूर सहायता करते हैं। गोशाला की देखरेख, चौकीदारी एवं अन्य सेवाओं के लिए तीन वेतनधारी कर्मचारियों की व्यवस्था की गई है।
प्रशंसनीय प्रयास
मुबारक शेख एवं उनके साथी मात्र गोशाला स्थापित कर देने से संतुष्ट नहीं हैं। उनका कहना है कि प्रतिदिन जिस तरह से हमारा गोधन कत्लखानों की ओर धकेला जा रहा है वह सबसे अधिक कष्टदायी है। हमने इस पर विचार करने के लिए अपना एक संगठन तैयार किया है जिसका नाम है 'मातृभूमि दक्षता तलवल, महाराष्ट्र राज्य'। इस संस्था के अंतर्गत हमने आसपास के क्षेत्र में जन जागृति का काम प्रारम्भ किया है। इस दिशा में हमने सरकार का ध्यान भी आकर्षित किया है, गोशाला तो तभी स्थापित हो सकेगी जब गाय होगी। यदि गाय ही समाप्त हो जाएगी तो फिर इन गोशालाओं को कौन पूछेगा? इसलिए उन्होंने अब आन्दोलन का मार्ग अपनाया है। उनका कहना है कि हमने अनके बार सरकार से इसके लिए आग्रह भी किया है लेकिन अब तक सरकार ने कोई सुनवाई नहीं की है। इसलिए मजबूर होकर हमें तीव्र आन्दोलन का रूप धारण करना पड़ेगा। उन्होंने तय किया है कि यदि सरकार ने दस जुलाई 2012 तक उनकी मांगों पर विचार नहीं किया तो हमारी संस्था अनिश्चित काल के लिए अपना आन्दोलन शुरू कर देगी। इसमें न केवल धरना होगा, बल्कि समय आने पर हम आमरण-अनशन प्रारम्भ कर देंगे। हमने अपना प्रतिवेदन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एवं कृषि मंत्री को 10 मई, 2012 को सौंप दिया है। मातृभूमि दक्षता तलवल के सत्याग्रहियों का कहना है कि सम्पूर्ण महाराष्ट्र में गो हत्या बंदी होने के बावजूद जिस तरह से खुलेआम गोवध हो रहा है, यह हमारे लिए अत्यंत दुख की बात है। मुबारक शेख का मानना है कि जब तक सरकार इस सम्बंध में गंभीर नहीं होती है गोवंश की रक्षा अत्यंत कठिन है। इस आन्दोलन के सम्बंध में जो प्रचार- सामग्री प्रकाशित की गई है उसमें इस क्षेत्र के अनेक जाने-माने लोगों के हस्ताक्षर हैं। उनके मतानुसार महाराष्ट्र सरकार भी इस मामले में अपनी चिंता दर्शा रही है। मुबारक शेख ने गो बचाओ आन्दोलन का जो शंख फूंका है उसकी ध्वनि सम्पूर्ण देश में प्रसारित होने वाली है। क्षेत्र के जाने-माने राजू भाई इनामदार, शांतिलाल लूणावत, बंडातात्या कराडकर एवं रामदास जैद के साथ-साथ अफजल शेख, जलील शेख, मंसूर भाई, रियाज शेख, मुलानी परिवार एवं पीर मोहम्मद तथा सलीम अंसारी जैसे सैकड़ों मुस्लिम कार्यकर्ता इस मुहिम में जुटे हुए हैं।
गायों की रक्षा के लिए गोशाला की स्थापना हमारी प्राचीन परम्परा है। इसमें मुस्लिम गोभक्त प्रारम्भ से ही अग्रणी रहे हैं। जोधपुर के निकट अंजुमन इस्लाम द्वारा चलाई जा रही गोशाला से सारा देश परिचित है। राष्ट्र के कोने-कोने में यह संदेश जा रहा है कि गोशाला की स्थापना के सम्बंध में मुस्लिम बंधुओं के प्रयास निश्चित ही प्रशंसनीय हैं।
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