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'मैं क्या करूं? मुझे कुछ समझ नहीं आता। बीनू विज्ञान विषय लेकर आगे पढ़ना चाहता है, किन्तु उसके पिता (जो सी.ए. हैं) चाहते हैं कि वह वाणिज्य विषय लेकर आगे पढ़े और उन्हीं का व्यवसाय संभाले।' शालिनी फोन पर लगभग रोती हुई आवाज में कह रही थी।
नीरा की बेटी कुंडू ने चार दिन से कुछ खाया-पीया नहीं है। स्थिति इतनी बिगड़ी कि छठे दिन अस्पताल ले जाना पड़ा। कारण पूछने पर नीरा ने बताया 'कुंडू को बारहवीं के पश्चात् आगे नहीं पढ़ना है। वह मॉडलिंग करना चाहती है, जबकि उसके पिताजी ऐसा कतई नहीं चाहते हैं।'
'बेटा तुम दसवीं के बाद कौन सा विषय लोगे?' 'मौसी मैं इन सब बातों को सोचकर अपना समय क्यों बर्बाद करूं? करना तो वहीं पड़ेगा जो पिताजी चाहेंगे।' मेरी सहेली के बेटे ने मुझसे कहा।
ये कुछ ऐसे प्रसंग हैं, जिनका सामना प्राय: हर मां को करना पड़ता है। इसलिए मेरा मानना है कि इन प्रसंगों पर महिलाएं अपनी अहम भूमिका निभा सकती हैं।
हमारे समाज में दैनिक गतिविधियों में महिलाओं की भूमिका अच्छी-खासी है। किन्तु जहां सन्तान के भविष्य की बात आती है, वहां पर दो धुरी बन जाती हैं माता और पिता। पिता अपनी संतान को वही करने को कहता है जो उनकी दृष्टि में उचित है, निरापद है, संघर्षहीन है। पिता को अपने अनुभवों की गठरी इतनी बोझिल लगती है कि उसे वह अपने पुत्र-पुत्री में बांटकर गौरवान्वित हो जाना चाहता है। उसे लगता है भूतकाल में मैंने जो संघर्ष किया है, वह आज मेरी सन्तान न उठाये। पिता अपनी जगह सत्य हैं। लेकिन आज के बच्चे यह जानते हैं कि उन्हें क्या करना है? उन्हें कैसे आगे बढ़ना है। किन्तु जब परिवार में सहयोग की अपेक्षा उन्हें यह कहा जाता है कि तुम्हें सिर्फ यही करना है, यही पढ़ना है, यही बोलना है, तो उनका उत्साह खत्म हो जाता है। परिवार, मित्र, समाज से बच्चा दूरी बना लेता है। अपने माता-पिता के प्रति सम्मान की अपेक्षा तिरस्कार के भाव उसमें जन्म ले लेते हैं।
अब यहां पर सबसे दयनीय स्थिति होती है घर की महिला की, एक मां की, जो घर में दो भूमिकाओं का निर्वाह कर रही है- पत्नी और मां। पत्नी के रूप में पति के अनुभव उसे कुछ सोचने नहीं देते और मां के रूप में संतान के आंसू चैन से सोने नहीं देते हैं।
आज एकल परिवार में महिलाओं की जिम्मेदारी दोहरी हो जाती है। 'प्रथमं गुरु माता:…' यह सत्य कथन है। अब कभी परिवार में यह स्थिति बनती है कि बच्चे अपने भविष्य के प्रति कुछ सोचें तो हमारा कर्तव्य है कि हम उन्हें बतायें कि वह जिस राह पर आगे बढ़ अपना मार्ग चुनना चाहते हैं वह कैसा है उस पर चिंतन, मनन करें। उसका अच्छे से अच्छा व बुरे से बुरा पहलू मां अपने बच्चों को बतायें। जरूरी नहीं कि माता-पिता हर बार सही हो और संतान गलत।
जरूरत है हमें उसे सही दिशा बोध कराने की, उसकी मन:स्थिति जानने की। यह कार्य मां से बेहतर कोई नहीं कर सकता, क्योंकि वह तो उसकी जननी है, निर्मात्री है। मां के रूप में बच्चों से खुलकर बातचीत कर वह अपनी संतान के सुंदर भविष्य की नींव रख सकती है और अपने पति को भी अपनी संतान का सहयोग करने, आगे बढ़ाने, उसे खुला आकाश देकर उसके पंखों को मजबूत करने के लिए उन्मुक्त गगन में छोड़ने के लिए मना सकती है। मां ही उसका आत्मबल, आत्मविश्वास बढ़ा कर उसके सपने को साकार कर योग्य नागरिक बना सकती है।
फैशन या आफत
आजकल बाजार में बच्चों के, विशेषकर बच्चियों के ऐसे-ऐसे कपड़े बिक रहे हैं, जिनको पहनने के बाद भी आधी से अधिक पीठ खुली रहती है। दो डोरियों के सहारे गर्दन से लटके ये कपड़े आगे वक्ष तक ढकते हैं, और पीछे कमर से थोड़ा ऊपर। इन कपड़ों से न हल्की ठण्ड से सुरक्षा होती है, और न ही गर्मी से। फिर भी मां-बाप अपनी बच्चियों को ऐसे कपड़े खूब पहना रहे हैं। 'फैशन' के इस दौर में लोग शायद यह सोच रहे हैं कि प्रगतिशीलता तभी दिखेगी जब घर की बच्चियां कम कपड़ों में दिखें। किन्तु इन कम कपड़ों के कारण उन बच्चियों को किस तरह की कठिनाइयां होती हैं इसका अंदाजा शायद मां-बाप को नहीं है। पिछले दिनों दिल्ली परिवहन निगम की वातानुकूलित बस से कहीं जाना हुआ। गोधूलि बेला थी। इसलिए गर्मी भी न के बराबर थी। मेरे साथ ही दो बच्चियों को साथ लेकर एक मां बस पर चढ़ी। एक बच्ची गोद में थी और दूसरी अंगुली पकड़ कर चलने लायक। दोनों बच्चियों के कपड़े इतने छोटे-छोटे थे कि दोनों की लगभग पूरी पीठ खुली हुई थी। बस के अन्दर प्रवेश करते ही मुझे हल्की-हल्की ठण्ड का अहसास हुआ। अगली सीट पर वे दोनों बच्चियां भी मां के साथ बैठी थीं। लगभग 45 मिनट का रास्ता था। बच्चियों को ठण्ड लग रही थी। गोद वाली बच्ची तो साफ-साफ बोल भी नहीं पा रही थी। ठण्ड से ठिठुरती बच्चियों को देखकर वह महिला बस के चालक के पास गई और तेज-तेज बोलने लगी ए.सी. इतना तेज क्यों चला रहे हो? चालक ने कहा, 'जब ए.सी. नहीं चलाओ तो सवारियां चिल्लाती हैं। ए.सी. क्यों नहीं चला रहे हो? और जब ए.सी. चलाओ तो लोगों को ठण्ड लगने लगती है। बड़ी अजीब स्थिति है।' अन्य लोग खामोश ही बैठे रहे। किन्तु मेरा मानना था कि जब शरीर पर वस्त्र ही नहीं होंगे तो वातानुकूलित कमरे या बस में ठण्ड लगेगी ही। काश, वह महिला इस बात को समझ ले तो वह अपनी बच्चियों को कभी ऐसे कपड़े नहीं पहनाएगी।सुधाकर मिश्रा
खान–पान
कच्चे आम की चटनी
विधि: कच्चे आम, प्याज,अदरक को छील कर कद्दूकस कर लें। कद्दूकस किये हुए गूदे में नमक डालकर गलने तक पकाएं। अब चीनी डाल कर गाढ़ा होने तक पकाएं। सब मसाले डालकर गाढ़ा होने तक पकाएं। ग्लेसियल एसिटिक एसिड डालें और इच्छानुसार सूखे मेवे (खरबूजे की मींग, बादाम) डालें। साफ, सूखी और चौड़े मुंह की बोतलों में भर कर रखें और पूरे वर्ष खाने का मजा लें। सुरेन्द्रा अजय जैन
सामग्री
कच्चे आम का गूदा-1 किलो, चीनी – 1 किलो, नमक – 40 ग्राम, लाल मिर्च चूर्ण – 10-15 ग्राम, प्याज – 100 ग्राम (अनिवार्य नहीं), अदरक – 30 ग्राम, ग्लेसियल एसिटिक एसिड- 1-2 चम्मच, सूख मेवे-100-150 ग्राम (अनिवार्य नहीं)
सूचना
आप भी अपनी कोई विशिष्ट रेसीपी भेज सकती हैं, जिसे पढ़कर लगे कि वाह क्या चीज बनाई है!
पता है–
सम्पादक, पाञ्चजन्य, संस्कृति भवन, देशबंधु गुप्ता मार्ग,
झण्डेवालां, नई दिल्ली-110055
जीवनशाला
जीवन अमूल्य है। दुर्गुण और कुसंस्कार या गलत आदतें जीवन में ऐसी दुर्गंध उत्पन्न कर देती हैं कि हर कोई उस व्यक्ति से बचना चाहता है। जीवन को लगातार गुणों और संस्कारों से संवारना पड़ता है, तभी वह सबका प्रिय और प्रेरक बनता है। यहां हम इस स्तंभ में शिष्टाचार की कुछ छोटी–छोटी बातें बताएंगे जो आपके दैनिक जीवन में सुगंध बिखेर सकती हैं–
कभी भी दूसरों के पत्रों या कागजों में ताकझांक न करें और न ही दूसरों के लैपटॉप या कम्प्यूटर स्क्रीन पर कनखियों से ताकें।
किसी दूसरे की किताब या कागज पर तब तक अपनी राय या विचार जाहिर न करें, जब तक कि खास तौर पर आपसे पूछा न जाए।
किसी भी व्यक्ति से उसके रिश्तों, सेहत, वैवाहिक स्थिति या आय को लेकर व्यक्तिगत सवाल करने से तब तक बचें, जब तक कि यह बेहद जरूरी न हों।
कभी भी मित्रों पर अपने राज बताने का जोर न डालें।
अगर कोई आपसे निजी सवाल पूछता है, जिसका आप जवाब नहीं देना चाहते तो बातचीत का विषय बदल लें। इसके बावजूद अगर वह जोर देता है तो आप उससे स्पष्ट कह दें कि आप इसका जवाब नहीं देना चाहते।
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