चोरी और सीनाजोरी
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चर्चा सत्र
बल्देव भाई शर्मा
मजहबी आरक्षण पर उच्च न्यायालय की चोट के बाद भी संप्रग सरकार दिखा रही है आंखें
आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुस्लिमों को दिया गया 4.5 प्रतिशत आरक्षण कोटा खारिज किए जाने से सोनिया कांग्रेसनीत संप्रग सरकार की वोट राजनीति का षड्यंत्र खुलकर सामने आ गया है। उच्च न्यायालय ने इसे असंवैधानिक बताकर केन्द्र सरकार की लानत-मनालत भी की है। न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि 'अल्पसंख्यक वर्ग से जुड़े' या 'अल्पसंख्यकों के लिए' जैसे शब्दों का प्रयोग बताता है कि कोटा मजहब के आधार पर दिया गया है। इसका कोई और तार्किक आधार नहीं है। इतनी स्पष्ट टिप्पणी के बावजदू संप्रग सरकार अपनी गलती सुधारने के बजाय 'चोरी और सीनाजोरी' की मानसिकता से उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय जाने की तैयारी कर रही है। कांग्रेस का तो पुराना इतिहास है सत्ता-स्वार्थों के लिए कानून और संविधान से खिलवाड़ करना। देशवासियों को याद होगा जब सर्वोच्च न्यायालय ने शाहबानो मामले में भरण-पोषण संबंधी फैसला दिया तो देशभर के मुल्ला-मौलवियों और कट्टरवादी मुस्लिमों ने उसका खुलकर विरोध किया और आंखें लाल-पीली करते हुए उसे शरीयत के खिलाफ बताया। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मुस्लिम दबाव में वोट राजनीति की खातिर संसद से कानून बनवाकर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को निष्प्रभावी करा दिया। इससे ज्यादा न्यायालय की अवमानना और क्या हो सकती है? देश की सर्वोच्च अदालत की प्रतिष्ठा को इससे बड़ा धक्का और क्या होगा कि संविधान के अंतर्गत निर्वाचित एक सरकार उच्चतम न्यायालय के संविधान सम्मत फैसले को खारिज करने के लिए अपने बहुमत का जोर दिखाकर लाखों उत्पीड़ित मुस्लिम महिलाओं की तकलीफ और उनकी बंधक जैसी जिंदगी का तिरस्कार करते हुए संसद में एक नया कानून पारित करा ले!
लोकतंत्र का मखौल
यह कैसा लोकतंत्र है जो न संविधान की मर्यादा का पालन करे और न कानून के राज का? सत्ता-स्वार्थों और वोट राजनीति के लिए कांग्रेस यदि कबीलाई मानसिकता के सामने आत्मसमर्पण कर दे और संविधान व कानून के राज को धता बता दे तो लोकतंत्र का इससे बड़ा मखौल और क्या हो सकता है? गरीबी के नाम पर मुस्लिमों को दिया गया 4.5 प्रतिशत मजहबी आरक्षण न केवल असंवैधानिक है, बल्कि समाज में विघटन व संघर्ष का बीजारोपण करने वाला भी है, क्योंकि यह आरक्षण मुस्लिमों को स्वतंत्र रूप से नहीं दिया गया, बल्कि पिछड़ों के 27 प्रतिशत आरक्षण कोटे से दिया गया है। यह कोटे में कोटा कितना खतरनाक व देश के एक और विभाजन का आधार खड़ा करने वाला होगा, इसकी कल्पना भी कांग्रेस को नहीं है। तभी तो देश के कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने उ.प्र.विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस प्रत्याशी व अपनी पत्नी लुईस खुर्शीद की चुनावी सभा में इस आरक्षण को नौ प्रतिशत तक ले जाने की भी घोषणा कर दी थी। इस पर चुनाव आयोग द्वारा संज्ञान लिए जाने पर उन्होंने कैसी आंखें तरेरी थीं व चुनाव आयोग को धमकाया था, इसकी याद अभी धुंधली नहीं पड़ी है।
उ.प्र.विधानसभा चुनावों में कांग्रेसी 'युवराज' राहुल गांधी के 'मिशन यूपी 2012' को हर कीमत पर सफल बनाने और राज्य में सत्ता हासिल करने के लिए उतावली कांग्रेस ने ऐन चुनाव के पहले संप्रग सरकार से मजहबी आरक्षण की घोषणा कराई ताकि उ.प्र. में करीब 17 प्रतिशत मुस्लिम वोट को प्रभावित कर अपनी झोली में लाया जा सके, लेकिन कांग्रेस की यह चाल विफल रही। न तो मुस्लिमों का थोक वोट उसे मिला और तो और अपना हक छिनने से नाराज पिछड़े वर्ग ने भी उससे किनारा कर लिया और कांग्रेस उ.प्र.चुनाव में औंधे मुंह आ गिरी। 'युवराज' के सीने पर उ.प्र. में जीत का तमगा टांकने की सोनिया गांधी की हसरत भी धरी रह गई।
तुष्टीकरण की होड़
कांग्रेस ने स्वाधीनता के बाद सत्ता-स्वार्थों के लिए राष्ट्रहित की बलि चढ़ाते हुए अल्पसंख्यकवाद को खूब परवान चढ़ाया और अल्पसंख्यक के नाम पर मुस्लिम कट्टरवादियों के सामने घुटने टेक दिए तथा मुस्लिम तुष्टीकरण वोट राजनीति का एक हथियार बन गया। अल्पसंख्यकवाद को सत्ता की सीढ़ी बनते देख मुलायम सिंह, लालू प्रसाद यादव व रामविलास पासवान जैसे अनेक सेकुलर नेता कांग्रेस की तर्ज पर मुस्लिम तुष्टीकरण में एक-दूसरे से आगे निकल जाने की कवायद में बौरा गए। इसी होड़ में से भारत माता को 'डायन' कहने वाले देशद्रोही मानसिकता के लोग नेताओं की कतार में खड़े होते चले गए जो आज उ.प्र. में मुलायम सिंह के बेटे की सरकार में ऊंचे कद के मंत्री बने बैठे हैं। पासवान ने तो बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठियों को भारत की नागरिकता देने तक का सुझाव दे दिया था। मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने तो एक कदम और आगे जाकर देश की संप्रभुता पर चोट करने वाले और भारत को 'दारुल इस्लाम' बनाने का षड्यंत्र रचते हुए देशभर में नृशंस खून-खराबा कर रहे जिहादी आतंकवाद से सख्ती से निपटने में न केवल कोताही बरती, बल्कि राजग सरकार द्वारा बनाए गए कड़े कानून 'पोटा' को खत्म कर दिया। इतना ही नहीं, लीगी गरीबी मजहब का मामला हीं तत्वों को खुश करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के चहेते गृहमंत्री पी.चिदम्बरम ने तो 'हिन्दू आतंकवाद' व 'भगवा आतंकवाद' जैसे जुमले गढ़कर आतंकवाद के आरोप में राष्ट्रभक्त हिन्दू संगठनों और संत-महात्माओं तक का उत्पीड़न शुरू करवा दिया।
यह दोगलापन क्यों?
सत्ता-स्वार्थों की यह पराकाष्ठा है, जिसमें न केवल पाकिस्तान पोषित जिहादी आतंकवाद की अनदेखी की जा रही है, बल्कि मुस्लिमों को खुश करने के लिए 'साम्प्रदायिक व लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक' के प्रारूप की आड़ में बहुसंख्यक हिन्दुओं को स्वभावगत अपराधी व अल्पसंख्यक किंवा मुस्लिमों को पीड़ित माने जाने की अवधारणा स्थापित किए जाने का षड्यंत्र रचा जा रहा है। कितने शर्म की बात है कि यह सरकार छत्रपति शिवाजी व महाराणा प्रताप जैसे राष्ट्रनायकों की गौरव-गाथाओं व उनके प्रेरणास्पद जीवनादर्शों को भी सार्वजनिक रूप से स्वीकारने व देशवासियों के सामने लाने से हिचकती है कि कहीं मुस्लिम वोट बैंक नाराज न हो जाए। एक टीवी चैनल पर बड़ा लोकप्रिय हो रहा धारावाहिक 'वीर शिवाजी' अचानक आधा-अधूरा समाप्त हो गया। लोगों का आरोप है कि मुगल ताकतों का पराभव और शिवाजी की वीरतापूर्ण विजय व हिन्दवी स्वराज्य का संकल्प मुस्लिम कट्टरवादियों व मुल्ला-मौलवियों की आंखों में खटक रहा था, इसलिए 'सरकारी दबाव' में यह धारावाहिक अकाल मौत मर गया। विश्व हिन्दू परिषद ने तो खुलकर सरकार पर यह आरोप लगाया है। यहां तक कि आए दिन जन्मतिथि और पुण्यतिथियों पर करोड़ों रु.के विज्ञापन जारी करने वाली केन्द्र सरकार महाराणा प्रताप की जयंती पर आंखें मूंद लेती है और एक श्रद्धाञ्जलि विज्ञापन तक छपवाने में परहेज करती है। संसद के केन्द्रीय कक्ष में लगे स्वातंत्र्यवीर सावरकर के चित्र पर उनके जन्मदिवस, 28 मई को पुष्प अर्पण कर श्रद्धाञ्जलि देने से भी कांग्रेसी बचते दिखे। इस बार संप्रग सरकार का एक भी मंत्री या सांसद, यहां तक कि लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार भी सावरकर को श्रद्धाञ्जलि देने नहीं पहुंचीं। कारण, वही मुस्लिम तुष्टीकरण, क्योंकि सावरकर जैसे प्रखर राष्ट्रवादी और हिन्दुत्वनिष्ठ नेता से दूरी बनाए रखकर ही मुस्लिमों को खुश रखा जा सकता है। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के एक ही फैसले ने कांग्रेस की इस मानसिकता को चिंदी-चिंदी कर दिया है। यदि उसमें जरा सी भी शर्म है तो वह इसके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में जाने की बजाय अपनी गलती को माने और भविष्य में इस तरह की हरकतों से बाज आए, अन्यथा उत्तर प्रदेश ने तो दिखा ही दिया कि उसके ऐसे शर्मनाक हथकंडे उसे सफलता नहीं दिला सकते, पूरा देश उसे ऐसी ठोकर मारेगा कि वह बिलबिलाती नजर आएगी।
आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के एक ही फैसले ने कांग्रेस की इस मानसिकता को चिंदी-चिंदी कर दिया है। यदि उसमें जरा सी भी शर्म है तो वह इसके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में जाने की बजाय अपनी गलती को माने और भविष्य में इस तरह की हरकतों से बाज आए, अन्यथा पूरा देश उसे ऐसी ठोकर मारेगा कि वह बिलबिलाती नजर आएगी।
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