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नेपाल में राजनीतिक भूचाल

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Jun 2, 2012, 12:00 am IST
in Archive
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नेपाल में राजनीतिक भूचाल

दिंनाक: 02 Jun 2012 15:45:35

दृष्टिपात

आलोक गोस्वामी

संविधान अधर में, भट्टराई भंवर में

27 मई गुजर गई और नेपाल में विशेष रूप से चुनी गई संविधान सभा देश को कोई संविधान नहीं दे पाई। 27 मई संविधान बनाने की अंतिम समय सीमा होने के चलते देश में राजनीतिक बवंडर उठना स्वाभाविक ही था, सो उठा और खूब खींचतान हुई। प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई ने मंत्रिमंडल की आपात बैठक बुलाई और 22 नवम्बर को नए चुनाव कराने की टेलीविजन पर घोषणा कर दी।

नेपाल में अलग-अलग नस्लीय पहचान वाले राजनीतिक दलों और दबाव समूहों की तनातनी के बीच संविधान का मुद्दा इस बात पर जा अटका था कि नए संघीय राज्यों का नामकरण जातीय पहचान पर हो या नहीं। नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी), मधेशी और दूसरे नस्लीय समुदाय पहचान आधारित संघीय तंत्र के पक्ष में थे तो नेपाली कांग्रेस, नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) और दूसरे छोटे दल उसके विरुद्ध थे। भट्टराई के सामने कोई रास्ता न बचा सिवाय संविधान सभा भंग करके नए चुनाव कराने के। राष्ट्रपति रामबरन यादव ने भट्टराई सरकार को कार्यवाहक करार देते हुए राजनीतिक आम सहमति बनाने पर जोर दिया है। राष्ट्रपति भवन ने बयान जारी करके कहा कि अंतिरम संविधान की धारा 38 (7) के तहत चूंकि संसद और संविधान सभा अब हैं ही नहीं तो प्रधानमंत्री की उनमें सदस्यता भी अब नहीं रही, जो उसी के आधार पर पद पर आए थे। लेकिन इसी धारा की 9वीं उपधारा के तहत अगला मंत्रिमंडल बनने तक मौजूदा सरकार दैनिक कामकाज देखती रहेगी। हालांकि राष्ट्रपति के इस बयान पर भट्टराई के प्रेस सलाहकार राम रिझन यादव ने कहा कि राष्ट्रपति का यह कदम अच्छा संकेत नहीं है।

संविधान सभा के विलय से पहले 27 मई को नस्लीय गुटों ने संसद के सामने जमकर प्रदर्शन किए। पुलिस से हिंसक झड़पें हुईं, लाठियां चलीं। भट्टराई के नए चुनाव कराने की घोषणा पर नेपाली कांग्रेस और नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) सहित प्रमुख पांच दलों की भौंहें तन गईं, उन्होंने भट्टराई के इस्तीफे की मांग कर दी, जिसका सबसे बड़े माओवादी नेता प्रचण्ड ने तीखा विरोध किया। बहरहाल, ताजा घटनाक्रम के तहत सत्तारूढ़ गठबंधन से तीन दलों ने अपने को अलग कर लिया है, जिसके चलते भट्टराई पर पद छोड़ने का दबाव बन गया है। लेकिन चुनावों की बाबत किसी रद्दोबदल की गुंजाइश नहीं है।

ओबामा तय करते हैं

किसका, कब हो काम तमाम

अमरीका की अगुआई वाली 'नाटो' फौज ने 29 मई को अफगानिस्तान में अल कायदा के दूसरे सबसे बड़े नेता सख्त-अल तैफी को हवाई हमले में ढेर कर दिया। 'नॉटो' की आक्रमकता के बीच वाशिंगटन से एसोसिएटिड प्रेस ने मीडिया रपट के हवाले से खबर दी है कि अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा एक अति गोपनीय 'किल लिस्ट' के बारे में तमाम फैसले खुद लेते हैं। यह 'किल लिस्ट' अल कायदा और उससे जुड़े पाकिस्तान और यमन में बैठे उन तत्वों की है जिन्हें ड्रोन हमलों में तमाम करना है। ओबामा के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थॉमस डोनिलॉन के अनुसार, ओबामा का इरादा पक्का है कि इन कार्रवाइयों के विस्तार के बारे में वह ही फैसला करेंगे। ओबामा का मानना है कि दुनिया में अमरीका की स्थिति की जिम्मेदारी उन पर ½èþ*l

आई.एस.आई. ने चेताया

अफरीदी को जेल में उड़ा सकता है तालिबान

पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आई.एस.आई. ने उस डाक्टर शकील अफरीदी की जान को तालिबान के हाथों खतरा बताया है जिसे पाकिस्तानी हुकूमत को जानकारी दिए बिना लादेन को पकड़ने के लिए अमरीकी खुफिया एजेंसी सी.आई.ए. की मदद करने का दोषी बताया जा रहा है। सत्र न्यायालय ने उसे 33 साल की कैदे-बा-मशक्कत की सजा सुनाई है। इसके पीछे उसने अफरीदी पर एक इस्लामी आतंकी कमांडर से मिलीभगत का आरोप लगाया है। आई.एस.आई. की मानें तो, तालिबानी उसे जेल में ही ठोक सकते हैं। अफरीदी फिलहाल पेशावर सेंट्रल जेल में है। अफरीदी की सजा पर अमरीका का फुफकारना स्वाभाविक ही था। उस जेल पर आतंकी हमले के अंदेशे के चलते, पाकिस्तानी अधिकारी अफरीदी को हवाई रास्ते से पंजाब सूबे की किसी मजबूत जेल में ले जाने की सोच रहे हैं।

आई. एस.आई. ने अपनी चुस्त-दुरुस्त खुफियागिरी दिखाते हुए चेताया है कि तालिबान या अल कायदा अफरीदी को उड़ा ले जाने के लिए जेल पर धावा बोल सकते हैं या फिर उसे किसी कैदी से अंदर ही ढेर करवा सकते हैं। यहां दिलचस्प बात यह है कि 'खुफियाई में माहिर' जो आई.एस.आई. तालिबान या अल कायदा के 'मंसूबे' को पहले से ही भांप रही है, वह अफरीदी की 'योजना' के बारे में नहीं सूंघ सकी! यानी पाकिस्तानी हुकूमत भांप ही नहीं सकी कि अफरीदी लादेन के घर के पड़ोस में दिखावे का टीका अभियान चला रहा था ताकि अल कायदा सरगना की सी.आई.ए. सुगबुगाहट ले सके! अगर पाकिस्तानी हुकूमत अफरीदी की चाल पहले ही सूंघ लेती तो…?

बहरहाल, ओबामा प्रशासन ने कहा है कि अफरीदी को सजा देने का कोई आधार ही नहीं बनता। विदेश विभाग की प्रवक्ता विक्टोरिया नूलैंड ने कहा कि हम पाकिस्तान से इस मसले पर जिरह करते रहेंगे।

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