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उस्मानिया में

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May 28, 2012, 12:00 am IST
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पाठकीय

दिंनाक: 28 May 2012 15:02:22

पाठकीय

6 मई,2012

जघन्य करतूत

आवरण कथा के अन्तर्गत श्री नागराज राव की रपट हुआ गोमांस  पढ़ी। हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय में वंचित वर्ग के बुद्धिजीवियों की अगुआई में आयोजित ‘की करतूतों से बाबा साहब की आत्मा को अतिशय कष्ट पहुंचा होगा। बाबा साहब के लेखनों से पता चलता है उन्होंने शायद ही कभी सोचा होगा कि वंचित समाज ईसाई मिशनरियों और वामपंथियों के जाल में फंसकर इस तरह का घृणित कार्य करेगा। उन्होंने तो अपने लोगों को इस्लाम से भी दूरी बनाने के लिए सन्देश दिया था।

–क्षत्रिय देवलाल

उज्जैन कुटीर, अड्डी बंगला, झुमरी तलैया कोडरमा-825409 (झारखण्ड)

0 जैसा वीभत्स दृश्य भारत में दिखता है, वैसा शायद ही किसी इस्लामी या ईसाई देश में दिखता हो। भारत में गाय को माता का सम्मान प्राप्त है, पर यहीं उसको खुलेआम काटा जा रहा है, उसका मांस खाया जा रहा है। इसके लिए बहुत हद तक सरकारी नीति जिम्मेदार है। तुष्टीकरण की वजह से गोहत्या पर राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा रहा है। इस कारण गोहत्यारे खुलेआम गाय काटते हैं और मांस बेचते हैं।

–सूर्यप्रताप सिंह सोनगरा

कांडरवासा, रतलाम (म.प्र.)

वास्तव में हमारे देश में गाय को लेकर ही आने वाले समय में भारी कटुता पैदा होने की संभावना है। पाकिस्तान भारत का ही एक अंग हुआ करता था। विभाजन के बाद वहां बचे हिन्दुओं की क्या दुर्दशा हुई, यह सब जानते हैं। अब वहां कितने प्रतिशत हिन्दू बचे हैं, यह भी सब जानते हैं। जब इस मुस्लिम देश में इंसानों की यह दुर्दशा है, तो गाय जिसे हिन्दू मां का दर्जा देते हैं, उसकी क्या हालत होगी कल्पना की जा सकती है। यही स्थिति भारत में भी होने वाली है। यहां भी छद्म पंथनिरपेक्षवादी तत्व देश को दोराहे पर ले जाने को आतुर हैं।

–वीरेन्द्र सिंह जरयाल

28-ए, शिवपुरी विस्तार, कृष्ण नगर

दिल्ली-110051

पाञ्चजन्य के माध्यम से यह जानकर बड़ा दु:ख हुआ कि हैदराबाद में प्रायोजित तरीके से गोमांस भक्षण का आयोजन किया गया। इतनी बड़ी खबर को सेकुलर मीडिया ने कोई महत्व नहीं दिया, यह भी पीड़ादायक है। कहां गए वे तथाकथित सेकुलर, जो नरेन्द्र मोदी के नाम पर बड़ा हो-हल्ला करते हैं? इस देश के तथाकथित बुद्धिजीवियों को बताना चाहूंगा कि हिन्दू की सहिष्णुता की ज्यादा परीक्षा मत लीजिए, नहीं तो हिन्दू भगवान कृष्ण से भी सीख लेते हैं, जिन्होंने विधर्मी कौरवों का कुल सहित संहार करवाया था।

–मनमोहन कृष्ण

कक्ष संख्या-3, प.के.डी. छात्रावास

आगरा कालेज, आगरा (उ.प्र.)

जो लोग गोमांस का भक्षण करने के लिए आयोजित करते हैं, वे सूअर का मांस भक्षण के लिए भी क्या एक विशेष समारोह आयोजित करेंगे? शायद नहीं, क्योंकि इससे एक वर्ग विशेष के लोग नाराज होंगे और कांग्रेस का वोट बैंक भी खतरे में पड़ जाएगा। हैदराबाद का उस्मानिया विश्वविद्यालय तो क्षुद्र राजनीति का केन्द्र बन चुका है। विद्यार्थी परिषद् के जिन कार्यकर्ताओं ने  का विरोध किया, उनका सम्मान होना चाहिए।

–प्रमोद प्रभाकर वालसांगकर

1-10-81, रोड नं. 8बी, द्वारकापुरम दिलसुखनगर, हैदराबाद-500060 (आं.प्र.)

भारत जैसे देश में गोमांस का खुलेआम भक्षण गोभक्तों के लिए बहुत कष्टदायक है। यहां गोमांस का धंधा इसलिए चलता है कि नेता इसके खिलाफ कुछ करना ही नहीं चाहते हैं। उधर, एक गोहत्यारे के लिए एक जीवित गाय से अधिक लाभदायक मृत गाय है। वह उसका मांस, चमड़ा, सींग आदि बेचकर मालामाल जो होता है।

–बी.आर. ठाकुर

सी-115, संगम नगर, इन्दौर-452006 (म.प्र.)

कड़ा सन्देश दो

सेना और अर्द्धसैनिक बलों के जवान अपने प्राणों पर खेलकर किसी आतंकवादी, नक्सली या माओवादी को पकड़ते हैं। इस दौरान कभी कुछ जवान शहीद भी हो जाते हैं, तो कुछ जीवनभर के लिए विकलांग हो जाते हैं। किन्तु दु:ख तब होता है जब हमारे नेता इन बहादुर जवानों के त्याग को भूलकर किसी आतंकवादी या नक्सली को छोड़ने का फरमान जारी करते हैं। चाहे जो हो जाए आतंकवादियों की कोई मांग नहीं मानी जाएगी, ऐसा कड़ा सन्देश देने पर ही आतंकवाद या नक्सलवाद का खात्मा हो सकता है।

–जलानन्द प्रसाद

न्यू सी.जी.रोड, चांदखेड़ा

अमदाबाद-382424 (गुजरात)

नारी शक्ति

इतिहास दृष्टि में डा. सतीश चन्द्र मित्तल का लेख विवेकानन्द तथा नारी बताता है कि स्वामी विवेकानन्द नारी के सम्मान को कितना महत्व देते थे। नारी शक्ति सदैव अपने दम पर निर्भीकता के साथ संघर्ष करती रही है। उस समय भी यही होता था। स्वामी विवेकानन्द, राजा राममोहन राय, ईश्वरचन्द विद्यासागर जैसे महापुरुषों और विद्वानों ने सदैव नारी शक्ति को बढ़ाने का प्रयत्न किया। उन लोगों का मानना था कि नारी के विकास के बिना देश आगे नहीं बढ़ सकता है।

–हरिहर सिंह चौहान

जंवरीबाग नसिया, इन्दौर-452001 (म.प्र.)

पुरस्कृत पत्र

बलिदानी जत्थों की जरूरत

विश्व में भारत ही ऐसा देश है, जिसके बहुसंख्यक लोगों को पग–पग पर अपमानित होना पड़ता है। अपने धर्म–संस्कृति की रक्षा के लिए हिन्दुओं को संघर्ष करना पड़ रहा है। जिस गाय को हम माता कहते हैं, उसके टुकड़े–टुकड़े करके हत्यारे उत्सव मना रहे हैं। बेशर्मी की भी सीमा होती है। भारत माता को स्वतंत्र कराने के लिए जिन्होंने संघर्ष किया, बलिदान दिए, क्या कभी उन्होंने सोचा होगा कि स्वतंत्र भारत में ऐसे दुष्कृत्य भी होंगे। आज फिर तैयार करने की जरूरत है। नामधारी बाबा रामसिंह कूका के चरण–चिन्हों पर हमें चलना होगा।

गुरु रामसिंह जी का जन्म सन् 1816 ई. में हुआ था। लुधियाना (पंजाब) से लगभग 60 कि.मी. दूर भैणी साहिब नामधारी सन्तों का मुख्य केन्द्र है। नामधारी सिखों का मुख्य उद्देश्य गो, गरीब और धर्म की रक्षा करना है। गोवध रोकने के लिए नामधारी सिखों के बलिदान अद्वितीय हैं। हिन्दू–सिखों की भावनाओं की परवाह न करते हुए अंग्रेजी सरकार ने मुसलमानों को गोवध की छूट दे रखी थी। अमृतसर के हिन्दू– सिख बाहुल्य मुहल्लों में मुसलमान खुलेआम गोमांस बेचते थे। अस्थियां गलियों में फेंक देते थे। यदि कोई दोषी पकड़ा जाता, तो उसे मामूली सी सजा होती वह भी माफ कर दी जाती। दु:खी हिन्दू–सिखों ने लहना सिंह नामधारी के घर बैठक की। उन्होंने शहीदी जत्था बनाया। उस जत्थे ने धर्म (हिन्दू), गो और गरीब की रक्षा का प्रण लिया।

13 जनवरी, 1871 ई. को भैणी साहिब में सम्मेलन हुआ। शहीदी जत्था वहां पहुंचा। गुरमुख सिंह ने अपनी व्यथा–गाथा सुनाई। एक मुसलमान बूढ़े बैल के ऊपर बोझा लाद कर ले जा रहा था। बैल धीरे–धीरे चल रहा था। युवक उसे सोटी से पीट रहा था। गुरमुख सिंह ने कहा, बैल बोझा ढोने में असमर्थ है, तो उसे पेड़ से बांध कर उसके सामने बैल के टुकड़े–टुकड़े कर दिए गए।

शहीदी जत्थे ने मलेर कोटला (पंजाब) जाकर बलिदान देने का निर्णय लिया। लहना सिंह व हीरा सिंह के नेतृत्व में 140 युवक बलिदान के लिए चल पड़े। दोनों नेताओं के पास दो कुल्हाड़ियां थीं, शेष निहत्थे थे। उन्हें बैल को काटने वाले शरारतियों को दण्ड देना था। एक आरोपी समुन्द खां को हीरा सिंह ने मार दिया।

इस आरोप में लहना सिंह सहित 50 नामधारी सिखों को तोपों से उड़ा दिया गया। बाकी सिंह जवानों को यातनाएं देकर जेल में डाल दिया। उसी दिन पुलिस ने भैणी साहिब जाकर कहर बरपा दिया। गुरु रामसिंह को प्रयाग जेल फिर वहां से रंगून (बर्मा) भेज दिया। वहीं सन् 1885 ई. में उनका देहान्त हो गया। नामधारियों के बलिदान का प्रभाव था कि सन् 1947 ई. तक गोमाता की रक्षा के लिए युवक सिर पर कफन बांध कर तैयार रहते थे। स्वतंत्र–भारत में आज फिर जरूरत है, अपने धर्म–संस्कृति की रक्षा के लिए बलिदानी जत्थे तैयार करने कीं। यदि गाय माता की हम रक्षा नहीं कर पाएंगे, तो भारत माता की रक्षा करने में भी हम समर्थ न हो सकेंगे।

–लज्जा देवी मोहन

463-एल, माडल टाउन, पानीपत-132103 (हरियाणा)

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