गोसेवा आयोग, गुजरात का उद्घोषचलो गाय, गांव और प्रकृति की ओर
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गोसेवा आयोग, गुजरात का उद्घोष
चलो गाय, गांव और प्रकृति की ओर
डा. वल्लभ भाई कथीरिया
अध्यक्ष, गोसेवा आयोग, गुजरात
मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में गुजरात आज सर्वांगीण विकास की ओर बढ़ रहा है। पूरा देश और विश्व आज सामाजिक, आर्थिक, मानवीय, कृत्रिम और कुदरती आपत्तियों से घिरा हुआ है। पूर्व अमरीकी उपराष्ट्रपति अल गोर ने इसे दु:खदायी सत्य कहा। आज विश्व विकास की ओर जा रहा है या विनाश की ओर? गुजरात के मुख्यमंत्री द्वारा इस दुखदायी सत्य को सुविधाजनक कार्रवाई में कैसे बदला जाए, इसके लिए गुजरात की भूमि पर अनेक प्रयोग शुरू किए गए हैं। ऐसे अनेक प्रयासों में से एक है गोसेवा। उद्देश्य है गोरक्षा, गोपालन, गोसंवर्धन और गो आधारित कृषि, आरोग्य और पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए संपूर्ण आर्थिक, सामाजिक और आध्यात्मिक विकास ।
चलो गाय की ओर, चलो गांव की ओर, चलो प्रकृति की ओर सूत्र देते हुए मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी ने समग्र गुजरात में गो चेतना अभियान और गो संस्कृति की पुन: स्थापना हेतु गोसेवा आयोग को जिम्मेदारी सौंपी।
गोसेवा आयोग अपने अनेक प्रकल्पों के माध्यम से गो संस्कृति आधारित समाज व्यवस्था की स्थापना की ओर तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है। योजनाओं का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
गोरक्षा
गुजरात देश का अकेला ऐसा राज्य है जहां संपूर्ण गोवंश हत्या प्रतिबंधित कानून अस्तित्व में है। गो और गोवंश की हत्या संपूर्ण निषेध है और उसका बड़ी कड़ाई से अमल हो रहा है। गत वर्ष इस कानून में संशोधन कर गोहत्या करने वाले तथा हत्या के लिए परिवहन उपलब्ध कराने वाले लोगों के लिए सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। इस कानून के अंतर्गत ऐसा कृत्य करने वाले व्यक्ति को वाहन जब्ती से लेकर 3 से 7 साल तक की सख्त सजा, बिना जमानत पात्र गुनाह और 50,000 रुपए तक का दंड हो सकता है।
गोपालन और गोसंवर्धन
गुजरात की गीर और कांकरेज गाय विश्व की श्रेष्ठ नस्लों में से हैं। गो का लालन-पालन अच्छी तरह से हो, गायों की संख्या में वृद्धि हो, बीमारी से बचें और ज्यादा दूध दें तथा आर्थिक स्वावलंबन का साधन बनें, इसके लिए अनेक योजनाएं आरंभ की गई हैं । इन योजनाओं का उद्देश्य है कि हर किसान, हर ग्रामवासी गाय को अपने घर में पाले।
अच्छी नस्ल की गाय तथा बछड़े का संवर्धन करके अच्छे सांड बनाकर हर गांव में तथा गोशालाओं में बांटने का भगीरथ कार्य चल रहा है। यह कार्य कृत्रिम वीर्यदान केन्द्रों की स्थापना के अलावा गीर और कांकरेज की शुद्ध और मूल नस्ल को बढ़ावा देने के लिए बड़े पैमाने पर हो रहा है। गुजरात का सद्भाग्य है कि यहां बड़े-बड़े आश्रम, मठ, मंदिर तथा ट्रस्ट संचालित गोशाला, पिंजरापोल में गोपालन के साथ-साथ गो संवर्धन का श्रेष्ठ कार्य हो रहा है। गो सेवा आयोग इस कार्य में पूर्ण सहयोग कर रहा है। गोशाला-पिंजरापोल को शेड, गोडाउन, पानी की व्यवस्था, अच्छे सांड़, बछिया-बछड़े के संवर्धन के लिए अलग-अलग प्रकार से सहायता दी जाती है ।
गो आधारित आर्थिक उत्कर्ष
छोटे किसानों, वनवासी और दलित समाज और ग्रामवासियों के लिए विशेष योजनाओं के अंतर्गत आर्थिक उपार्जन हेतु गोपालन के लिए सहायता उपलब्ध कराई जा रही है। गो दूध, दही, घी की महत्ता आम समाज में प्रस्थापित करने हेतु सेमिनार, वक्तव्य और समाचार पत्रों के माध्यम से समाज में जागृति अभियान चलाया जा रहा है।
गो आधारित कृषि
गोमूत्र और गोबर के समुचित उपयोग से सजीव कृषि को बढ़ावा देने का अभियान शुरू किया गया है। गोशाला पिंजरापोल, सखि मंडल, एनजीओ या तो खुद किसानों को गोमूत्र इकट्ठा करके अन्य वनस्पतिजन्य जड़ी-बूटियां डालकर जंतुनाशक दवा-बायो पेस्टीसाइड बनाने की ट्रेनिंग दी जाती है।
पंचगव्य आधारित आरोग्य
जैसा कि पहले बताया गया, गोदूध, दही, घी के साथ गोमूत्र की औषधीय उपयोगिता को वैज्ञानिक तरीके से आधुनिक तकनीकी और व्यवस्था के अनुकूल दवा के रूप में लोकप्रिय बनाने का भगीरथ प्रयास किया जा रहा है। पंचगव्य आधारित थेरेपी के मेडिकल शिविरों का आयोजन और पंचगव्य क्लिनिक की स्थापना हो रही है। आधुनिक अस्पताल के साथ मिलकर पंचगव्य के एंटीबैक्टिरियल, एंटीवायरल, एंटीकैन्सर, एंटीआक्सीडेंट, बायोएन्हान्सर और रोग प्रतिकारक शक्ति को बढ़ावा, छोटे बच्चे की बुद्धि तीव्रता में वृद्धि जैसे विषय लेकर पंचगव्य की वैज्ञानिक प्रामाणिकता सिद्ध करने का प्रयास चल रहा है।
गोचर निर्माण
आजकल खेती छोटी होती जा रही है। किसान बैल से खेती करना छोड़ रहे हैं। गाय के चारे का खर्च बढ़ता जा रहा है। ऐसे समय में गांव-गांव में स्थित गोचर जमीन को पुन: जीवित करना और गोचर निर्माण के कार्य को अग्रता देकर हर गांव में गोचर को सजीव करने का काम चलाया जा रहा है। गांव में किसानों, पशुपालकों, तथा गोशाला के सभी प्राणी दिन भर गोचर में चारा चरके शाम को फिर अपने मालिक के पास वापस आ जाते हैं। गांव की गो समिति द्वारा इन गोचरों में वृक्षारोपण, गोआश्रय, पीने के पानी के लिए कुंड आदि सुविधाएं उपलब्ध कराके गोचेतना केन्द्र के रूप में विकसित किया जा रहा है।
गोविज्ञान परीक्षा
बच्चों और नई पीढ़ी को गोविज्ञान के बारे में सही जानकारी मिले और इस विषय में उनकी रुचि बनी रहे इसके लिए गोविज्ञान परीक्षा समिति के माध्यम से गोविज्ञान परीक्षा का आयोजन किया जाता है। गत वर्ष इस परीक्षा में 26000 विद्यार्थी बैठे। इस वर्ष पूर्व आयोजन के कारण यह संख्या दो लाख तक पहुंच जाने का अनुमान है। विश्वविद्यालय में गो आधारित विषयों पर शोध के लिए एक लाख रुपए तक की स्कालरशिप दी जाती है। आने वाले वर्षों में हर विश्वविद्यालय में इसकी स्थापना करने का लक्ष्य है।
खेती के लिए बैल उपलब्ध कराना
गोसेवा आयोग की विशिष्ट और अनोखी योजना के अंतर्गत जो किसान बैलों से खेती करना चाहते हैं, ऐसे किसानों को नि:शुल्क बैल उपलब्ध कराए जाते हैं। ये किसान ऐसे बैलों से खेती करने का वचन देते हैं, गारंटी देते हैं कि वह किसी भी परिस्थिति में बैलों को कत्लखाने नहीं भेजेंगे, ऐसा भरोसा वह ग्रामसभा में दिलाते हैं। आज तक 760 बैल और बछड़े बड़ौदा और नर्मदा जिले की तीन तहसीलों कवांट, नसवाड़ी और पावी-जेतपुर में वितरित किए गए हैं। हमें आशा है कि हर गोशाला-पिंजरापोल से खेती लायक बैलों को वनवासी बंधुओं को बांट पाएंगे। इस योजना के कारण बैल कत्लखाने जाने से बच रहे हैं, गोशाला का आर्थिक बोझ कम हो रहा है और सजीव खेती को प्रोत्साहन मिल रहा है।
प्रोत्साहन पुरस्कार
गुजरात की तीन श्रेष्ठ गोशाला पिंजरापोल को यह पुरस्कार दिया जाता है। जिन गोरक्षकों ने अपनी जान को जोखिम में डालकर भी गोरक्षा की है, ऐसे गोरक्षकों को पुरस्कार देकर सम्मानित किया जाता है।
कान्फ्रेन्स का आयोजन
जन-समाज में और पीढ़ी दर पीढ़ी वैज्ञानिक तरीके से गाय की अमूल्यता का प्रचार-प्रसार हो, इसके लिए आणंद एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के परिसर में एक राष्ट्रीय कान्फ्रेन्स का आयोजन किया गया था। राज्य की पहली ऐसी गोविषयक कान्फ्रेन्स थी जिसमें लगभग 1500 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस कान्फ्रेन्स में देश भर से आए गोकृषि वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों, पंचगव्य चिकित्सकों, गोप्रेमी, गोभक्त, गोसेवकों ने भाग लेकर अपने विचारों का आदान-प्रदान किया।
जेल–आश्रम–मठ–मंदिर आदि में गोशाला
जब तक आम आदमी गायों को अपने घरों में नहीं रखेगा तब तक उपरोक्त संस्थाओं में गोशाला स्थापित करके गोसंवर्धन का कार्य चलता रहे और ये संस्थाएं स्वालंबन का द्रष्टांत पेश करें। इस आशय से जहां-जहां संभव है वहां शिक्षा संकुल, मठ, मंदिरों और जेलों में गोशाला की स्थापना करके गोपालन और गोसंवर्धन का काम शुरू किया गया है।
जेलों में गोशाला चालू करने से कैदियों के जीवन में परिवर्तन आया है, मानवीय संवेदनाओं में वृद्धि हुई है तथा जेल सुधार की सद्भावना साकार हुई है । विद्यालयों में गोशाला स्थापित होने से बच्चों को शुद्ध दूध, दही और घी मिलने लगा है तथा गोबर गैस प्लांट से परिसर की रसोई गैस और बिजली की समस्या भी दूर हुई है। सबसे बड़ी बात, बच्चों में गाय के प्रति संवेदना तथा श्रद्धा की भावना बढ़ने के साथ वैज्ञानिक समझ भी विकसित हुई है।
आगामी आयोजन
गोशिक्षा का पाठ्यक्रम में समावेश करना, गोपालन, गोसंवर्धन का आई.टी.आई. अभ्यासक्रम चालू करना, एनीमल होस्टल चालू करना, पंचगव्य उत्पादों को बढ़ावा देना आदि-आदि।
गो आधारित समाज व्यवस्था से पर्यावरण रक्षा के साथ सुखी, संपन्न, समृद्ध, स्वावलंबी, समरस और संस्कारी समाज वाला महान, भव्य और दिव्य भारत के निर्माण हेतु गोसंस्कृति की पुन: स्थापना के लिए गोसेवा आयोग पूर्णत: कार्यरत और अग्रसर है।
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