दृष्टिपात
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दाऊद के साथियों पर पाबंदी
टाइगर मेमन
अमरीका ने नशीले पदार्थों के तस्कर कुख्यात दाऊदइब्राहिम के दो करीबीसहयोगियों, छोटा शकीलऔर टाइगर मेमन परपाबंदी लगा दी है। इसपाबंदी का मकसददुनियाभर के व्यवसाय और आर्थिक संजाल तक उनकी पहुंच के पर कतरनाहै। अमरीका के वित्त विभाग ने कहा है कि छोटा शकीलऔर इब्राहिम “टाइगर' मेमन दाऊद इब्राहिम की उस कुख्यात “डी कम्पनी' के खास सिपहसालार हैं जो दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व और अफ्रीका में नशीले पदार्थों की तस्करी करती है। वित्त विभाग के अनुसार, मुम्बई में जन्मा 57 साल का शकील “डी कंपनी' के “दूसरे सुनियोजित अपराध और आतंकी गुटों' के साथ लेन-देन में मददगार है। 52 साल का मेमन दक्षिण एशिया में “डी कम्पनी' नियंत्रित करता है और 1993 के मुम्बई बम धमाकों के लिए भारतीय अधिकारी भी उसकी गिरफ्तारी चाहते हैं। उन मुम्बई बम धमाकों में 250 से ज्यादा निर्दोष लोग मारे गए थे। “डी कम्पनी' गतिविधियों में अफगानिस्तान और थाइलैण्ड से अमरीका में हीरोइन और हशीश की तस्करी शामिल है। इन दोनों, शकील और मेमन को नशीले पदार्थों के तस्कर ठहराने के चलते, अमरीकियों और अमरीकी व्यवसायों को उनके साथ किसी तरह का कारोबार करने से रोका गया है और अमरीका में अगर उनकी कोई संपत्ति है तो उसे “फ्रीज' करने का प्रावधान है। अमरीका ने 2003 से ही दाऊद को “वैश्विक आतंकवादी' और 2006 से नशीले पदार्थों का एक बड़ा कारोबारी ठहराया हुआ है।
सऊदी-बहरीन लामबंदी?
मध्य एशिया में राजनीतिक उबाल के बवंडरों ने सऊदी अरब की रूढ़िवादी राजशाही को लामबंदी के लिए उकसा दिया है। सऊदी अरब ने फारस की खाड़ी में अपने पांच पड़ोसी देशों की राजशाहियों को एक झण्डे तले लाने की अपनी मुहिम तेज कर दी है।
इसे मध्य एशिया के बवंडर के बीच खुद को कायम रखने की सऊदी अरब की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। रियाद में छह देशों की “गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल' की बैठक के बाद 14 मई को सऊदी विदेशी मंत्री युवराज सऊद अल-फैजल ने उम्मीद जताई कि ये छहों देश अगली बैठक में एकजुट हो जाएंगे। उधर खाड़ी के कइ छोटे देशों ने “एकजुटता' के इस विचार पर खुलेआम नाखुशी जाहिर की। उन्हें लगता है कि समूह पर सऊदी दबदबा रहेगा। कई पड़ोसी देशों में ऐसी शंका है जिसके चलते पहली बैठक में कोई समझौता घोषित नहीं हो पाया।
दरअसल, सऊदी अरब के शासक आशंकित हैं कि कहीं अरब दुनिया में चल रहे जन-विद्रोहों की तपिश उसकी सरहदों तक न पहुंच जाए और उसके अपने असंतुष्ट नागरिकों, विरोधियों, अल्पसंख्यकों और विदेशी कामगारों को भड़का न दे। अलावा इसके, सऊदी राजशाही इलाकाई प्रतिद्वंद्वी ईरान की तरफ से भी सशंकित है। कारण, उसने पीछे कुछेक ऐसे काम किए हैं जिनसे ईरान बौखला सकता है। जैसे पिछले साल बहरीन की राजशाही की उस जन विरोध को कुचलने की कोशिश में मदद के लिए हजारों सऊदी सैनिक बहरीन भेजे गए थे, जिसकी अगुआई उस देश के शिया बहुसंख्यकों के प्रतिनिधि कर रहे थे। लेकिन ईरान ने साफ कहा कि बहरीन में आए उबाल का उससे कोई लेना-देना नहीं है।
16 मई को तेहरान में “कॉआर्डीनेशन काउंसिल ऑफ इस्लामिक प्रोपेगेशन' ने एक बयान जारी करके बहरीन-सऊदी अरब संघ के खिलाफ ईरानियों से एकजुट होने का आह्वान किया। ईरान इस गठजोड़ को अमरीकी चाल मानता है। काउंसिल ने “अल खलीफा' और “अल सऊद' की सत्ता के खिलाफ गुस्सा प्रकट करने का आह्वान किया है। उल्लेखनीय है कि बहरीन सऊदी अरब के “क्षेत्रीय एकजुटता' के कदम का खुलकर समर्थन करने वाला अकेला देश है। 14 मई को बहरीन के राजा हमद बिन ईसा अल खलीफा ने बयान जारी करके कहा कि उन्हें “गल्फ यूनियन' स्थापित होने का बेसब्री से इंतजार है। ऊधर कई दूसरे देशों, जैसे कुवैत, कतर और ओमान ने सऊदी अरब के “एकजुटता' के प्रयासों को लेकर कोई जोश नहीं दिखाया है। इसे आमतौर पर “यूरोपीय संघ' की तर्ज पर कोई गुट माना जा रहा है।
जापान में उइगर मिले, चीन की भौंहें तनीं
पिछले दिनों जापान में उइगर मुस्लिमों की निर्वासित नेता रेबिया कदीर की अगुआई में दुनियाभर के करीब 200 उइगर प्रतिनिधि “वल्र्ड उइगर कांग्रेस' के बैनर तले मिले। उन्होंने वहां पांच दिन का सम्मेलन करके चीन से उइगर प्रांत अलग करने की आवाज उठाई। इस पर चीन ने जापान को खूब सुनाया है। चीन ने इस सम्मेलन की इजाजत देने पर जापान की तीखी आलोचना की है। चीन के विदेश विभाग के प्रवक्ता होंग ली ने कहा “हम जापान द्वारा अलगाववादी “वल्र्ड उइगर कांग्रेस' को सम्मेलन करने और चीन विरोधी गतिविधियों की इजाजत देने पर गहरा असंतोष व्यक्त करते हैं।' चीन कदीर के जापान जाने को “चीन विरोधी अलगाववादियों' और जापान के दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं के बीच साठगांठ मानता है। बीजिंग टाइम्स और दूसरे पत्रों ने उन “अनेक सबूतों' की भी रपट छापी जो जुलाई, 2009 में उरुमकी दंगों में “वल्र्ड उइगर कांग्रेस' की भूमिका साबित करते हैं। दरअसल, चीन का उइगर प्रांत मुस्लिम बहुल है जहां, उइगरों के अनुसार, चीन हान नस्ल के चीनियों को बसा रहा है। उइगर में लंबे समय से अलगाववादी भावनाएं भड़कती रही हैं। वहां कई मौकों पर चीनी सुरक्षाकर्मियों और स्थानीय लोगों के बीच तीखी झड़पें भी हुई हैं।
आलोक गोस्वामी
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