|
उच्च शिक्षित मनीष और शशांक अच्छी नौकरी छोड़कर कृषि और किसान के लिए काम कर रहे हैं।
आशीष कुमार ‘अंशु’
छब्बीस-सताईस साल की उम्र क्या होती है? यदि इस उम्र में कोई युवक अपनी एक अच्छी-भली नौकरी को छोड़कर गांव में किसानों के साथ मिलकर काम करने की योजना बनाए, किसान और खरीददार के बीच की मुश्किलों को आसान करने और इस खरीद-बेच की पूरी प्रकिया को पारदर्शी बनाने की योजना पर कोई युवक काम करे, तो इसे आप क्या कहेंगे? और यदि वह युवक अकेला अपने अभियान में शामिल न हो तो, आप क्या कहेंगे? कुछ कहते नहीं बन रहा, तो कोई बात नहीं।
जिन दो युवकों का जिक्र ऊपर किया गया है, उनका नाम मनीष और शशांक है। इनकी जोड़ी एक और एक ग्यारह के बराबर की जोड़ी पहले से थी। अब इन दिनों इनके साथ एक तीसरे साथी आकर जुड़ गए हैं, अमरेन्द्र। अब यह तिकड़ी हो गई, एक सौ ग्यारह के बराबर। मनीष के लिए यह उल्लेखनीय है कि सामाजिक जीवन में प्रवेश करने की प्रेरणा उन्हें वनवासी कल्याण आश्रम से मिली। झारखंड में वे वनवासी कल्याण आश्रम के संपर्क में आए। बकौल मनीष- “वहां जो सीखा, उसे जीवन में उतारने के लिए प्रयासरत हूं।' अब आगे बात करते हैं, शशांक और मनीष दोनों की। उन्होंने आईआईटी से पढ़ाई की। उसके बाद दोनों बहुत अच्छी नौकरी कर सकते थे, लेकिन दोनों ने अपने जीवन में कुछ और करने का निर्णय किया। वैसे शशांक ने 2008 में अपना बीटेक पूरा करने के बाद और पटना लौटने से पहले ढाई साल तक गुड़गांव में अच्छे पैकेज पर एक नौकरी की। अपनी नौकरी के दौरान वे एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कज्यूमर गुड्स) कंपनियां, मसलन ब्रिाटानिया और पेप्सिको की समस्या सुलझा रहे थे। काम करने के दौरान ही शशांक ने जाना कि इन कंपनियों की वास्तविक परेशानी किसानों से कच्चा माल समय पर मंगाना है।
नौकरी के दौरान ही शशांक ने तय कर लिया था कि उन्हें वापस बिहार आना है और उन्होंने नौकरी छोड़ दी। वैसे शशांक और मनीष दोनों की पारिवारिक पृष्ठभूमि खेती की रही है। इसलिए उन्हें अपने नए काम में काफी मदद मिल जाती है। जब शशांक दिल्ली आईआईटी में पढ़ाई कर रहे थे, उस वक्त कॅरियर के लिए कई सारे विकल्प उनके सामने खुले हुए थे। लेकिन कृषि क्षेत्र में कुछ विशेष करना उनका निर्णय था। यहां मसला सिर्फ अपने कॅरियर से जुड़ा हुआ नहीं था, बल्कि बिहार के किसानों के लिए कुछ करने से भी जुड़ा था। शशांक और मनीष दोनों मानते हैं कि इस देश में कृषि को उपेक्षित क्षेत्र बनाया गया है। जबकि काम करने की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है।
मनीष ने आईआईटी खड़गपुर से पढ़ाई की है। शशांक के साथ आने से पहले उनके पास आईबीएम कम्पनी ने उनके सामने एक बहुत अच्छी नौकरी का प्रस्ताव रखा था, जिसे ठुकरा कर वे शशांक के साथी बने। इन दोनों ने मिलकर एक कंपनी बनाई “फार्म एंड फार्मर्स'।
मनीष और शशांक को सम्मानित करते बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतिश कुमार और उपमुख्यमंत्री श्री सुशील मोदी
मनीष और शशांक का कहना है कि अपनी तरह की सोच रखने वाले और बिहार के किसानों के हित में सोचने वाले युवाओं का वे स्वागत करते हैं। शुरुआत नए जुड़े साथी अमरेन्द्र से हुई है। किसानों के बीच जाकर ये लोग अब उन्हें मिट्टी की गुणवत्ता से लेकर कब कौन सा अनाज बोएं तक का पाठ पढ़ा रहे हैं। साथ ही साथ अनाज को मंडी में कैसे बेचें जिससे उपज की अच्छी कीमत मिल सके, का भी ज्ञान ये लोग किसानों को दे रहे हैं। इस काम में ये समूह बिहार के लगभग दो दर्जन वरिष्ठ कृषि विज्ञानियों से मदद ले रहा है। इन युवाओं का उत्साह देखकर कृषि वैज्ञानिक भी सहर्ष मदद के लिए तैयार हो गए।
इस काम से होने वाली आमदनी पर बात करने पर मनीष कहते हैं, अभी तीन साल तक हम आमदनी की बात सोच भी नहीं रहे हैं। उसके बाद भी कम से कम आमदनी लेकर अधिक से अधिक सेवा का हमारा लक्ष्य है। वैसे बिना किसी आमदनी के काम करते हुए भी किसानों के बीच शुरुआत में इन युवकों को थोड़ी परेशानी का सामना करना पड़ा, क्योंकी भोले-भाले किसान पहले भी कई बार ठगी के शिकार हो चुके हैं। अब धीरे-धीरे किसान इन युवकों पर भरोसा करने लगे हैं, इस उम्मीद के साथ कि इस बार धोखा नहीं होगा।
किसानों के बीच मनीष
टिप्पणियाँ