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उत्पादकता परिषद के वार्षिक अधिवेशन में

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May 5, 2012, 12:00 am IST
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राज्यों से

दिंनाक: 05 May 2012 16:17:11

दिल्ली

उत्पाद की गुणवत्ता पर जोर

दिल्ली उत्पादकता परिषद (डी.पी.सी.) का वार्षिक दिवस समारोह गत 27 अप्रैल को दिल्ली में धूमधाम से मनाया गया। समारोह में दिल्ली के विभिन्न औद्योगिक संगठनों, मजदूर नेताओं, चिंतकों, विचारकों व भारत सरकार तथा दिल्ली सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया। इस अवसर पर दिल्ली उत्पादकता परिषद की एक स्मारिका का भी लोकार्पण किया गया जिसमें परिषद की विभिन्न गतिविधियों का चित्रण व बुद्धिजीवियों के लेख संकलित हैं। उपस्थित लोगों का स्वागत करते हुए दिल्ली उत्पादकता परिषद के अध्यक्ष श्री सुदर्शन सरीन ने अतिथियों का आभार भी व्यक्त किया। श्री के.एस.माहेश्वरी (महानिदेशक, दिल्ली उत्पादकता परिषद) ने परिषद के कार्यों के बारे में जानकारी दी।

भारत सरकार के अतिरिक्त विकास आयुक्त (सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यम) ने उद्योगों में उत्पाद की गुणवत्ता पर जोर देते हुए दिल्ली उत्पादकता परिषद के कार्यों की सराहना की। कर्मचारी भविष्य निधि निगम (ईएसआई) के अतिरिक्त आयुक्त श्री ए.के.वर्मा ने औद्योगिक श्रमिकों के लिए की जा रही विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का भी अपने संबोधन में उल्लेख किया। सिडबी के मुख्य महाप्रबंधक श्री के.जी.अलई ने ऋण योजनाओं व अन्य कार्यों के बारे में बताया। राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम के श्री ए.के.मित्तल व एम.एस.एम.ई. विकास संस्थान के निदेशक श्री सुरेश यादवेन्द्र ने उत्पादकता की आवश्यकता पर जोर देते हुए अपने विचार प्रकट किए। जीएनजी ग्रुप के अध्यक्ष श्री सुरेन्द्र कुमार अग्रवाल भी कार्यक्रम में सम्मिलित थे। अंत में दिल्ली उत्पादकता परिषद के उप प्रधान श्री सी एल बत्रा ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

उ.प्र./शशि सिंह

कांग्रेस नेता ने डाला गरीबों के अन्न पर डाका

कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी का करीबी है घोटालेबाज दलजीत सिंह, सीबीआई ने गिरफ्तार कर जेल भेजा

बिहार में लालू यादव के मुख्यमंत्री रहते करोड़ों रुपये का चारा-घोटाला हुआ था। उस मामले में अभी भी कार्रवाई चल रही है। लालू यादव के साथ ही वहां के एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र भी आरोपी हैं। उत्तर प्रदेश में भी तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में गरीबों के करोड़ों रुपये के राशन पर डाका डाला गया, उसकी परतें भी धीरे-धीरे खुलने लगीं हैं। बडे-बड़े अधिकारियों के साथ ही राजनेताओं के नाम भी अब सामने आने लगे हैं। हाल ही में कांग्रेस के एक बड़े नेता की गर्दन केंद्रीय जांच ब्यूरो ने दबोची है। जांच एजेंसी ने पुख्ता सबूतों को एकत्र करने के बाद नामी ट्रांसपोर्टर सरदार दलजीत सिंह को गिरफ्तार किया तो प्रदेश कांग्रेस, विशेष रूप से उसकी प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी के पैरों तले से जमीन खिसक गई। हालांकि उसकी गिरफ्तारी की खबर के बाद उसे पार्टी से निलंबित कर दिया गया है। उल्लेखनीय है कि जेल में बंद दलजीत सिंह प्रदेश की राजधानी लखनऊ का बड़ा ट्रांसपोर्टर है। वह सालों से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी का काफी करीबी कांग्रेस कार्यकर्ता रहा है। रीता जोशी उसके बारे में बखूबी जानती थीं। दलजीत निलंबित होने से पहले तक न केवल प्रदेश कांग्रेस कार्यसमिति का सदस्य था वरन् रीता जोशी की सिफारिश पर उसे अखिल भारतीय कांग्रेस कार्यसमिति का सदस्य भी बनाया गया। बताते हैं वह कांग्रेस के कई बड़े नेताओं के यहां हाजिरी लगाता रहता था और उनकी आर्थिक जरूरतें भी पूरी करता रहा है। उसकी ख्याति कांग्रेस के बड़े वित्त पोषक (फाइनेंसर) के रूप में होती रही है।

दलजीत सिंह ने 2004-05 और 2005-06 में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) से अनाज की आपूर्ति का ठेका लिया था। लेकिन, गोदाम प्रभारियों और काला बाजारियों की मिलीभगत से उसने अनाज तो उठाया लेकिन वह जिलों के गोदामों और राशन विक्रेताओं तक पहुंचने की बजाय रास्ते में ही बेच दिया गया। बताते हैं वह अनाज बिहार, बंगाल के रास्ते बंगलादेश में भी पहुंचा। इस पूरे मामले में साढ़े तीन सौ करोड़ रुपये के घोटाले की बात सामने आई है। हालांकि अधिकतर कांग्रेसी नेता दलजीत सिंह के इस काले कारनामे को जानते थे, लेकिन भ्रष्टाचार में ऊपर से नीचे तक डूबी पार्टी को इसकी चिंता नहीं थी। विधानसभा चुनाव के समय टिकट के बंटवारे के समय भी दागी लोगों की बात उठी थी, लेकिन किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया। चुनावों में पार्टी को करारी पराजय मिली, तब भी इनकी आंखें नहीं खुलीं। दबी जुबान से कहा गया कि हार का एक बड़ा कारण केंद्रीय स्तर से लेकर प्रदेश स्तर पर कांग्रेस का भ्रष्टाचारी रवैया रहा है। इस मामले में कांग्रेस, विशेष रूप से प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी की बड़ी किरकिरी हुई है। उन्होंने दलजीत सिंह को पार्टी से निलंबित कर प्रतिष्ठा बचाने की विफल कोशिश की है। कहा जा रहा है कि इस मामले में अभी और कई कांग्रेसी नेताओं के नाम सामने आ सकते हैं।

दरअसल उत्तर प्रदेश में यह 'अनाज घोटाला' वैसा ही घोटाला है जैसा बिहार का चारा घोटाला। मुलायम सिंह यादव जब 2004 में तीसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तभी इसकी शुरुआत हुई। तब लखनऊ, गोंडा, बलरामपुर, लखीमपुर, गोरखपुर, बलिया, वाराणसी, इलाहाबाद, शाहजहांपुर, हरदोई, ललितपुर, बस्ती, संत रविदासनगर, महोबा, हमीरपुर, मथुरा समेत तीन दर्जन जिलों में अनाज की आपूर्ति में घोटाला किये जाने की बात सामने आयी थी। सरकार में आने के बाद सुश्री मायावती ने उसकी जांच के आदेश दिए। यह मामला पहले राज्य पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) के पास गया। कुछ मुकदमे दर्ज किए गए फिर हो-हल्ला हुआ तो उसे विशेष जांच दल (एसआईटी) को दिया गया। उसने थोड़ी कार्रवाई की लेकिन काला बाजारियों का जाल चूंकि सिर्फ प्रदेशव्यापी ही नहीं अंतरराज्यीय था, बंगलादेश तक आपूर्ति की बात सामने आयी, तो  विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) के जरिए यह मामला उच्च न्यायालय में ले जाया गया। न्यायालय ने पूरे मामले की जांच केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से कराने की सिफारिश की। इसके बाद करोड़ों रुपए के इस घोटाले से पर्दा उठने लगा। घोटाले की जांच में यह बात भी सामने आयी है कि गोदामों से राशन की दुकान तथा जिला केन्द्रों तक राशन पहुंचाने के लिए जिन ट्रकों के नंबर दर्शाये गए, वे स्कूटर, मोपेड, आटोरिक्शा और तिपहिया वाहनों के निकले।

प. बंगाल /बासुदेव पाल

प. बंगाल में केरल का जिहादी गुट

खुफिया विभाग सकते में,

गृह मंत्रालय गंभीर

प. बंगाल में सक्रिय सभी कट्टर इस्लामी गुट एकजुट हो रहे हैं। दक्षिण भारत का एक प्रमुख जिहादी इस्लामी संगठन प. बंगाल के सभी जिहादी गुटों को एकजुट करने के लिए काफी तेजी से काम कर रहा है। केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा इस विषय में रपट मांगे जाने पर राज्य के खुफिया विभाग ने एक गोपनीय रपट तैयार कर मंत्रालय को भेज दी है। गृह मंत्रालय की ओर से उस दक्षिण भारतीय जिहादी संगठन एवं प. बंगाल के सभी जिलों में सक्रिय विविध इस्लामी संगठनों पर कड़ी निगरानी रखने के लिए कहा गया है। बहुचर्चित इस्लामी संगठन 'सिमी' को गैरकानूनी घोषित कर देने के बाद से यह गुप्त दक्षिण भारतीय जिहादी गुट देश की सभी गुप्तचर एजेंसियों के लिए सिरदर्द बन चुका है। इस गुट की केरल में जड़ें होने के कारण खाड़ी देशों से इसके पास काफी पैसा आ रहा है। इसके साथ ही कई तकनीकी विशेषज्ञों व पढ़े-लिखे उच्च वर्ग के युवकों के भी इस कट्टरवादी गुट से जुड़े होने का खुलासा हुआ है। पश्चिम बंगाल के खुफिया विभाग ने इस कट्टरवादी संगठन की प्रदेश में गतिविधियों की जांच की तो ऐसे तथ्यों का खुलासा हुआ कि खुफिया अधिकारी भी स्तंम्भित रह गये।

राज्य खुफिया विभाग की ओर से केन्द्रीय गृह मंत्रालय को भेजी गयी रपट में कहा गया है केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में जिहादी गुटों ने एकजुट होकर एक नया राजनीतिक दल बना लिया है। आमतौर पर वह पार्टी सामाजिक न्याय की मांग को लेकर सामने रहती है। लेकिन गुप्त तरीके से वह प्रशिक्षण शिविरों से लेकर सिमी के जेलों में बन्द नेताओं को छुड़ाने की मुहिम चला रही है। खबर है कि पिछले साल जून महीने में केरल के मल्लप्पुरम जिले के मंजीरी में स्थित ग्रीन वैली फाउंडेशन में एक शिविर का आयोजन किया गया था। उस शिविर में बंगाल के 14 लोगों ने भाग लिया था। वे लोग पश्चिम बंगाल में कई इस्लामी गुटों के प्रमुख हैं। केरल के कालीकट में उस गुप्त दक्षिण भारतीय गुट के राष्ट्रीय अधिवेशन में भाग लेने के लिए माहौल तैयार करने हेतु प. बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के बहरामपुर में एक आम सभा का आयोजन किया गया था। उस सभा में लगभग 5 हजार लोगों ने भाग लिया था। यद्यपि उस संगठन के नाम से उस आम सभा का आयोजन नहीं किया गया था पर रपट में बताया गया कि उस दक्षिण भारतीय जिहादी गुट की मदद से प. बंगाल के मुस्लिम संगठनों ने मुस्लिमबहुल मुर्शिदाबाद, मालदा, उत्तरी दिनाजपुर, दक्षिणी दिनाजपुर, नादिया एवं दक्षिण 24 परगना जिलों  में अपना जाल फैला लिया है। जो कट्टरवादी तत्व सिमी के गैरकानूनी घोषित होने पर निष्क्रिय हो गए थे, अब फिर से सक्रिय हो गये हैं। धन का अच्छा स्रोत होने के कारण प. बंगाल की इस्लामी संस्थाएं उस दक्षिण भारतीय जिहादी संगठन के झण्डे तले अपना नाम दर्ज करवा रही हैं। यह जिहादी गुट सबको एकत्र करके एक फेडरेशन बनाना चाहता है।

 

केरल /प्रदीप कृष्णन

…तो यह चर्च एक कंपनी है?

मद्रास उच्च न्यायालय ने अपने एक ऐतिहासिक निर्णय में कहा है कि 'चर्च आफ साउथ इंडिया' (सीएसआई) एक कंपनी है और उसे अपना वार्षिक लेखा-जोखा कंपनी पंजीयक (रजिस्ट्रार और कम्पनीज) के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए। उल्लेखनीय है कि चर्च आफ साउथ इंडिया ने 1947-48 में खुद को 'कम्पनीज एक्ट' के अन्तर्गत पंजीकृत कराया था। इस संबंध में सीएसआई के ही एक सदस्य जान एस.दुरई ने यह आरोप लगाते हुए न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था कि स्वयंसेवी संस्था बनकर चंदे के नाम पर सीएसआई विदेशी मुद्रा विनिमय अधिनियम का उल्लंघन व उस धन का दुरुपयोग कर रही है। इस मामले की सुनवाई करते हुए तथ्यों के आलोक में मद्रास उच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस.राजेश्वरन ने कहा कि केन्द्रीय वाणिज्य मंत्रालय से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेकर ही सीएसआई विदेशी मुद्रा का आदान-प्रदान कर सकती है, तभी वह संदेह से परे व कानून के दायरे में होगा। इस परिप्रेक्ष्य में रजिस्ट्रार आफ कम्पनीज (आर.ओ.सी.) को सीएसआई के खातों की जांच करने का अधिकार है और सीएसआई ट्रस्ट का यह दावा खारिज किया जाता है कि उसके खातों की जांच का अधिकार आरओसी को नहीं है।

इससे पूर्व शिकायत मिलने पर आरओसी ने  सीएसआई के लेन-देन की प्राथमिक जांच की और पाया कि शिकायतकर्ता एस.दुरई की शिकायत सही है। केन्द्रीय मंत्रालय से आदेश प्राप्त करने के बाद अब कम्पनीज एक्ट की धारा 209ए के अन्तर्गत मामला दर्ज कर सीएसआई द्वारा किए गए आर्थिक लेन-देन की पूरी पड़ताल शुरू की। 30 अगस्त, 2011 को आरओसी ने एक कारण बताओ नोटिस जारी कर सीएसआई ट्रस्ट को बताया कि वह 12 सितम्बर को खातों की जांच करेगा, लिहाजा वे अपने खाते दुरूस्त रखें। पर सीएसआई ट्रस्ट ने कहा कि उन्हें अधिक समय दिया जाए, वे अपने खाते 19 सितम्बर तक तैयार कर सकते हैं। इसी बीच सीएसआई ने मद्रास उच्च न्यायालय में मामला पहुंचाया और आरओसी के नोटिस और उसकी जांच के अधिकार को चुनौती दी। पर न्यायालय को याचिकाकर्त्ता एस.दुरई ने बताया कि चर्च आफ साउथ इंडिया समय से कर अदायगी नहीं करता है और न ही पंजीयक (रजिस्ट्रार) द्वारा शिकायतों के संदर्भ में मांगी गई जानकारी ही उपलब्ध कराता है, इसलिए इसे अधिक समय न दिया जाए। मामले का निस्तारण करते हुए माननीय न्यायालय ने रजिस्ट्रार आफ कम्पनीज को जांच के आदेश दे दिए हैं। अब 'चर्च कंपनी' की जांच होगी और तब खुलासा होगा कि चर्च ने क्या-क्या आर्थिक अनियमितताएं की हैं।

जम्मू–कश्मीर /विशेष प्रतिनिधि

आतंकवाद का पाठ पढ़ाने वालों को फिर से सरकारी सहायता?

कई प्रकार की आपत्तियों तथा पूर्व काल के दुष्परिणामों की अनदेखी कर वोट बैंक के लालच में केन्द्र में सत्तारूढ़ सोनिया कांग्रेस की सरकार ने जम्मू-कश्मीर के मदरसों व अन्य मुस्लिम शिक्षण संस्थानों को करोड़ों रुपए की सहायता राशि का अनुदान पुन: शुरू कर दिया है। सूत्रों के अनुसार यह सहायता केन्द्र सरकार की उस योजना के अंतर्गत उपलब्ध करवाई जा रही है जिसका उद्देश्य अल्पसंख्यक संस्थानों के माध्यम से अच्छी शिक्षा उपलब्ध करवाना है। विधानसभा में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर में लिखित रूप से यह बताया गया है कि केन्द्र सरकार ने इस योजना के अन्तर्गत राज्य के मदरसों के लिए 9 करोड़ रुपए की सहायता राशि उपलब्ध करवाई है। सहायता पाने वाले ऐसे मदरसों तथा मकतबों की संख्या 362 से अधिक है और इनमें से अधिकांश कश्मीर घाटी में स्थित हैं। पर विचित्र यह भी है कि जिन मदरसों को सहायता राशि उपलब्ध करवाई गई है, उनमें से अनेक पंजीकृत भी नहीं हैं। महालेखाकार ने भी अपनी रपट में इस प्रकार की केन्द्रीय योजनाओं के अंतर्गत दी जाने वाली सहायता पर आपत्ति जताते हुए लिखा है कि उक्त सहायता बजट में न आने के कारण इस राज्य के लेखा-जोखा (आडिट) में यह राशि नहीं आ पा रही है।

इस संबंध में यह भी उल्लेखनीय है कि जम्मू कश्मीर में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं, पर राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक ही माने जाते हैं और उन्हें केन्द्रीय योजना के अंतर्गत यह सहायता उपलब्ध हो रही है। किन्तु राज्य सरकार ने हिन्दू शिक्षा संस्थानों की सहायता पांच वर्ष पूर्व यह कहते हुए बंद कर दी कि धर्म तथा सम्प्रदाय से जुड़े शिक्षण संस्थानों को सरकारी सहायता उपलब्ध नहीं करवाई जा सकती। उनमें से अधिकांश शिक्षा संस्थान आर्य समाज, सनातन धर्म सभा तथा सिखों के गुरुद्वारा संस्थानों से जुड़े थे। ये शिक्षा संस्थान राजशाही के कालखण्ड से ही सहायता प्राप्त करते आ रहे थे पर अब्दुल्ला शाही के चलते उन्हें रोक दिया गया। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 1990 में  कश्मीर घाटी में उग्रवाद के फैलने से पूर्व जमात-ए-इस्लामी तथा कुछ ऐसे ही संगठनों ने बड़े स्तर पर मदरसे तथा मकतब आरम्भ किए थे, जिनमें पढ़ाई से अधिक कट्टरवाद का पाठ-पढ़ाया जाता था। बाद में उग्रवाद पर नियंत्रण पाने के लिए राज्यपाल श्री जगमोहन ने जो कदम उठाए थे उनमें ऐसे मदरसों आदि को सरकारी नियंत्रण में ले लिया गया। इन मदरसों के अध्यापकों को भी सरकारी नौकरी में शमिल किया गया था। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि केन्द्र की नई सहायता योजना के आरम्भ होने से पूर्व ऐसे मदरसों तथा मकतबों की कुल संख्या 15/20 ही रह गई थी, किन्तु अब इनकी संख्या बढ़ते-बढ़ते 400 से भी अधिक हो गई है।

कर्नाटक

मणिपुरी छात्र की मौत की जांच शुरू

कर्नाटक में एक मणिपुरी छात्र की रहस्यमय परिस्थितियों में हुई मौत के मामले में मुख्यमंत्री श्री सदानन्द गौड़ा ने व्यापक जांच के आदेश दे दिए हैं। पुलिस महानिदेशक (खुफिया विभाग) गोपाल होशुर ने स्थानीय पुलिस अधीक्षक को अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर व्यापक जांच करने को कहा है। उल्लेखनीय है कि बेंगलुरू स्थित आचार्य कालेज में स्नातक प्रथम वर्ष में पढ़ने वाले मणिपुरी छात्र रिचर्ड लोइतम का शव उसके छात्रावास के कमरे में गत 18 मार्च को मिला। इसकी प्रतिक्रिया देश के विभिन्न भागों में शिक्षा प्राप्त कर रहे पूर्वोत्तर के छात्रों में हुई और उन्होंने जगह-जगह प्रदर्शन कर अपना रोष जताया। कुछ स्थानीय समाचार पत्रों में संदेह व्यक्त किया गया कि क्षेत्रवाद के चलते उसकी हत्या की गई है जबकि कुछ लोग इसे व्यक्तिगत रंजिश बता रहे थे। इसे लेकर भाजपा की पूर्वोत्तर संपर्क सेल ने मुख्यमंत्री से मुलाकात कर जांच की मांग की। भाजपा ने इस संपर्क सेल का निर्माण इसलिए ही किया है ताकि देशभर में रह रहे  पूर्वोत्तरवासियों को सहायता दी जा सके। इस मामले में मणिपुरी मैत्रेयी एसाशिएसन एवं मणिपुरी स्टूडेन्ट्स एसोशिएसन ने भी राज्य के गृहमंत्री आर.अशोक से मुलाकात की। गृहमंत्री ने बताया कि शव की फोरेंसिक जांच की गई है। उसकी रपट आ जाने के बाद जांच में तेजी आएगी।

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