आवरण कथा
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दिल्ली में
फिर खिला कमल
*अरुण कुमार सिंह
दिल्ली के तीनों नगर निगमों के चुनाव में भाजपा के हाथों कांग्रेस को करारी हार मिली है। उत्तरी निगम और पूर्वी निगम में भाजपा ने स्पष्ट बहुमत प्राप्त कर लिया, तो दक्षिणी निगम में वह सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी है, लेकिन निर्दलीयों द्वारा बिना शर्त समर्थन दिए जाने से यहां भी भाजपा बहुमत में आ गई है। यानी तीनों निगमों में भाजपा के ही महापौर होंगे। भाजपा के लिए यह चुनाव ऐतिहासिक रहा। पहली बार दिल्ली के मतदाताओं ने किसी पार्टी को लगातार दूसरी बार निगम की कमान सौंपी है। हालांकि 2007 की तुलना में 2012 में भाजपा की 26 सीटें कम अवश्य हुई हैं। फिर भी जीत तो जीत है। इस जीत पर भाजपा के नेता और कार्यकर्ता गदगद हैं, उनका मनोबल निश्चित रूप से ऊंचा हुआ है। तभी तो भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी विश्वास व्यक्त करते हैं कि दिल्ली में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव भी हम जीतेंगे।
दूसरी ओर इस चुनाव ने कांग्रेस को एक और गहरा घाव दे दिया है। 2012 में ही कांग्रेस को यह पांचवीं बड़ी हार मिली है। पिछले दिनों जब पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव हो रहे थे, उन्हीं दिनों मुम्बई नगर निगम के चुनाव हुए। कांग्रेस और उसकी सहयोगी एन.सी.पी. को भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने बुरी तरह पराजित कर 16 साल पुरानी अपनी सत्ता बचा ली। जबकि महाराष्ट्र के कांग्रेसियों को पूरा भरोसा था कि इस बार उनकी जीत जरूर होगी। कई कांग्रेसियों ने महापौर पद पर अपनी दावेदारी भी ठोंक दी थी। पर उनके सपने और दावे धरे के धरे रह गए।
'युवराज' के नाटक
मुम्बई नगर निगम के बाद कांग्रेस को जबर्दस्त हार उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में मिली। उत्तर प्रदेश को जीतने के लिए कांग्रेस के 'युवराज' ने न जाने कितने नाटक किए। कभी किसी वंचित के यहां भोजन किया, चारपाई पर सोने का ढोंग किया, मस्जिद और मजारों पर मत्था टेका, भट्टा पारसौल में पुलिस अत्याचार की झूठी कहानी बनाई। इतने पर भी जब बात बनती नहीं दिखी तो अन्त में बहन प्रियंका, उनके पति रावर्ट वढेरा और उनके दोनों बच्चों को भी अमेठी की धूल भरी सड़कों और बजबजाती गलियों में उतार दिया। फिर भी 'युवराज' के सपने पूरे नहीं हुए। इसी तरह गोवा और पंजाब में भी कांग्रेस की दुर्गति हुई। यह तो सिर्फ 2012 की बात है, जिसके अभी 8 महीने बाकी हैं। मई 2009 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद 16 राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए हैं। उनमें से सिर्फ सात राज्यों में कांग्रेस की जीत हुई है। नवम्बर 2010 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान सर्वाधिक जनसभाएं 'युवराज' ने की थीं। ताबड़तोड़ सभाओं के बावजूद सीटें मिलीं सिर्फ चार। जबकि 2005 में बिहार विधानसभा में कांग्रेस के 10 विधायक थे। शायद इन्हीं सबको देखते हुए विपक्ष कहने लगा है कि देश में कांग्रेस के विरुद्ध लहर चल रही है। किन्तु कांग्रेसी यह मानने को तैयार नहीं हैं।
उल्टा पड़ा दांव
अब एक बार फिर दिल्ली लौटते हैं। 2007 में हुए दिल्ली नगर निगम के चुनाव में भाजपा को कुल 272 में से 164 सीटों पर विजय मिली थी। दिल्ली में शीला सरकार और केन्द्र में सोनिया-मनमोहन सरकार के रहते भाजपा को मिली इतनी शानदार जीत को कांग्रेसी हजम नहीं कर पा रहे थे। इसलिए शीला सरकार ने कभी भी नगर निगम को सहयोग नहीं किया, उल्टे कई परियोजनाओं को लटकाने का प्रयास किया। अन्त में शीला सरकार ने कुछ कांग्रेसियों के विरोध के बावजूद नगर निगम को तीन भागों में बांटने का प्रस्ताव केन्द्र सरकार के पास भेजा। केन्द्र सरकार ने भी भाजपा के विरोध को दरकिनार करते हुए दिल्ली नगर निगम को तीन भागों में बांट दिया। माना जाता है कि दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने विशेष रुचि दिखाकर निगम को तीन भागों में बांटा ताकि भाजपा की ताकत को बांटकर कम किया जा सके। क्षेत्रों का परिसीमन भी कांग्रेस के परम्परागत मतदाताओं को ध्यान में रखकर किया गया। दिल्ली सरकार की नजरों में जो क्षेत्र भाजपा के गढ़ थे, उन्हें काटा गया और उनमें किसी झुग्गी बस्ती और किसी अल्पसंख्यक इलाके को रखा गया। किन्तु इसका फायदा कांग्रेस को उतना नहीं मिला, जितना कि वह अपेक्षा कर रही थी। इसलिए निगम बंटवारे का उसका दांव भी उल्टा पड़ गया। हालांकि कांग्रेस यह सोचकर संतोष कर सकती है कि उसे 2007 के मुकाबले 11 सीटें ज्यादा मिली हैं।
बागियों ने बिगाड़ा खेल
इस बार के निगम चुनावों में भाजपा और कांग्रेस दोनों बड़ी पार्टियों को उनके बागियों ने क्षति पहुंचाई है। भाजपा ने अपने 164 पार्षदों में से 102 को टिकट नहीं दिया था। इस कारण अनेक पार्षद बागी हो गए और वे निर्दलीय या किसी अन्य पार्टी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे। उनमें से कई फिर से चुनाव जीत गए। यदि वे लोग भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ते तो शायद अभी भाजपा को दक्षिणी निगम में भी स्पष्ट बहुमत मिल गया होता। कांग्रेस के भी कई बागी चुनाव जीत गए हैं। भाजपा और कांग्रेस के बागियों की वजह से ही अन्य छोटे दलों को दिल्ली में पैर पसारने का मौका मिला है।
हार की वजह
दिल्ली के कांग्रेसी नेता अपनी हार के लिए कई विरोधाभासी बातें कर रहे हैं। कोई कह रहा है कि भाजपा मतदाताओं को बरगलाने में सफल रही, तो कोई कहता है कि पार्टी में टिकट बंटवारा सही तरीके से नहीं हुआ। कांग्रेसी भले ही कुछ कहें पर जनता में यह धारणा पैठ कर चुकी है कि कांग्रेस सरकार भ्रष्टाचारियों को संरक्षण और कालाबाजारियों को प्रोत्साहन देती है। इस कारण भ्रष्टाचारी दोनों हाथों से देश को लूट रहे हैं और कालाबाजारी हर चीज की कृत्रिम कमी दिखाकर जबर्दस्त मुनाफा कमा रहे हैं। इस कारण देश में महंगाई बढ़ रही है। कुल मिलाकर दिल्ली में कांग्रेस की हार का मुख्य कारण रहा भ्रष्टाचार व महंगाई ।
दलगत स्थिति
दल कुल उत्तरी निगम दक्षिणी निगम पूर्वी निगम
भाजपा 138 59 44 35
कांग्रेस 77 29 29 19
बसपा 15 7 5 3
निर्दलीय 24 4 14 6
इनेलो 3 – 3 –
जदयू 1 – 1 –
एलजेपी 1 1 – –
एनसीपी 6 – 6 –
आरएलडी 5 4 1 –
सपा 2 – 1 1
272 104 104 64
कांग्रेस की सेहत बिगड़ गई
–विजेन्द्र गुप्ता, अध्यक्ष, दिल्ली भाजपा
श्री विजेन्द्र गुप्ता की अध्यक्षता में दिल्ली भाजपा ने नगर निगम के चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। उनसे हुई पाञ्चजन्य की बातचीत के मुख्यांश यहां प्रस्तुत हैं। –सं.
* भाजपा की जीत की मुख्य वजह क्या रही?
* जनता का विश्वास और आशीर्वाद। दिल्ली के लोगों ने एक बार फिर भाजपा पर विश्वास जताया है। हम उनके हृदय से आभारी हैं।
* किन्तु कांग्रेस के नेता कह रहे हैं कि भाजपा लोगों को भ्रमित करने में सफल रही।
* कांग्रेसी नेता 'खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे' वाली बात कर रहे हैं। आपस में ही उनमें कोई तालमेल नहीं रह गया है। उनका एक नेता कुछ कहता है, दूसरा कुछ और। मुझे तो आज की तारीख में कांग्रेस 'उजड़े हुए चमन' की तरह दिखाई दे रही है।
* इस बार भाजपा की सीटें कम हुई हैं। क्या कारण रहे?
* यह तकनीकी मामला है। इस पर पार्टी बाद में विचार करेगी। किन्तु जिस तरह कांग्रेस ने भाजपा को घेरने का प्रयास किया था, उसमें वह सफल नहीं रही। पूरी दिल्ली सरकार और केन्द्र सरकार के तीन-तीन मंत्री कांग्रेस के लिए काम कर रहे थे। उनकी पूरी ताकत भी हमें हरा नहीं पाई। यह सब हमारे कार्यकर्ताओं की मेहनत और जनता के विश्वास का परिणाम है।
* भाजपा को बागियों ने कितना नुकसान पहुंचाया?
* स्थानीय चुनावों में प्रत्याशी और मतदाता एक-दूसरे को बहुत अच्छी तरह जानते हैं। इसलिए कभी-कभी बागी अपना प्रभाव दिखा जाते हैं। किन्तु इस चुनाव में भाजपा के बागी ज्यादा प्रभाव नहीं दिखा पाए।
* इस जीत से भाजपा और कांग्रेस की सेहत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
* कांग्रेस की सेहत तो बिगड़ चुकी है। यदि यही स्थिति रही तो केन्द्र से भी उसका सफाया हो जाएगा। दूसरी ओर इस जीत से भाजपा पूरी तरह स्वस्थ हो गई है। अब पार्टी पूरी ताकत के साथ आगामी चुनावों में उतरेगी।
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