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45 लाख पाकिस्तानी हिन्दुओं की मांग

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Apr 21, 2012, 12:00 am IST
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हिन्दू विवाह पंजीकरण कानून बनाओ

दिंनाक: 21 Apr 2012 15:07:50

हिन्दू विवाह पंजीकरण कानून बनाओ

 मुजफ्फर हुसैन

यह एक संयोग की बात है कि जब पाकिस्तान की संसद में हिन्दू विवाह पंजीकरण सम्बंधी कानून बनाने की मांग जोर-शोर से चल रही है, ठीक उसी समय भारत सरकार ने अपने सभी नागरिकों के लिए विवाह पंजीकरण अनिवार्य कर दिया है। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान में विवाह के किसी भी प्रकार के पंजीकरण की कोई व्यवस्था नहीं है। पाकिस्तान सरकार का कहना है कि हमारे यहां निकाह के दस्तावेज लिखित रूप में होते हैं इसलिए इसकी जरूरत नहीं है। लेकिन अल्पसंख्यक हिन्दुओं को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। पाकिस्तान की संसद में इस पर चर्चा हो जाने के उपरान्त भी अब तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

कितने हिन्दू?

1981 के पश्चात् पाकिस्तान में जनगणना नहीं हुई है। जब जनगणना के आंकड़ों का सवाल उठता है तो पहले सवाल यह पूछा जाता है कि पाकिस्तान में हिन्दू कितने हैं? हिन्दुओं की तरह वहां के अहमदिया सम्प्रदाय को भी अपनी गिनती मालूम नहीं है। विभाजन के समय पाकिस्तान में साढ़े चार करोड़ हिन्दुओं के होने की बात कही जाती थी। लेकिन पिछले 64 वर्षों में हिन्दुओं पर जो अत्याचार हुए उनसे उनकी आबादी बेहद कम हुई है। दंगों में मारकाट के साथ-साथ उनका मतान्तरण एक मुख्य समस्या रही है। हिन्दू महिलाओं के साथ जोर-जबरदस्ती से निकाह करना कोई नई बात नहीं है। फिर भी पाकिस्तान में यह स्वीकारा जाता है कि आज भी वहां हिन्दुओं की आबादी 45 लाख से कम नहीं है। उक्त आंकड़ा वहां के एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार 'डेली टाइम्स' ने दिया है। उक्त दैनिक को इसकी आवश्यकता हिन्दू विवाह पंजीकरण विधेयक के सम्बंध में लिखे जाने वाले सम्पादकीय के दौरान पड़ी। पत्र ने इस सम्बंध में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए हैं जिन पर संक्षेप में यहां चर्चा करना अनिवार्य है। 'डेली टाइम्स' लिखता है, 'पाकिस्तान में हिन्दू विवाह पंजीकरण विधेयक पारित करने पर हो रही देरी के लिए केन्द्रीय सरकार जिम्मेदार है।' पत्र का कहना है कि यह विधेयक 2011 में नेशनल असेम्बली में प्रस्तुत किया गया था। लेकिन सरकार ने इसे कभी प्राथमिकता नहीं दी। इस बीच आवश्यक और अनावश्यक अनेक विधेयक पारित हो गए लेकिन लगता है इसे तो सरकार ने ठंडे बस्ते में ही डाल दिया है। पत्र का कहना है कि पाकिस्तान में 45 लाख हिन्दू हैं। इतनी आबादी के साथ वे देश में पहले नम्बर पर आने वाले अल्पसंख्यक हैं। इसके बावजूद पाकिस्तान की किसी भी सरकार ने इस महत्वपूर्ण विधेयक पर ध्यान नहीं दिया है।

बेचारी महिलाएं

इस विधेयक के तहत हिन्दू महिला के क्या अधिकार होंगे इस पर न तो सदन में और न ही मीडिया में चर्चा हुई है। अल्पसंख्यक होने के नाते अब यहां के हिन्दुओं के पास अपनी राय दर्शाने वाला कोई अखबार नहीं है और न ही कोई शक्तिशाली संगठन। कभी-कभी तो उन्हें लगता है कि उनका मुंह खोलना ही देशद्रोह माना जाएगा और फिर उनका जनजीवन खतरे में पड़ जाएगा। इसलिए परिस्थितियां जो भी हैं वे उन पर मन महसोस कर बैठ जाते हैं। उनका कोई शक्तिशाली नेता भी नहीं है। अल्पसंख्यकों के नाम पर संसद में जो दो-तीन लोग आते हैं उन्हें कभी बोलने का अवसर हीं नहीं दिया जाता। अपने देश में अपनी सरकार के सम्मुख वे अपनी मांग प्रस्तुत करने में सक्षम नहीं हैं। सरकार इस बात को महसूस कर सकती है कि विधेयक का लाभ सबसे अधिक विवाहित हिन्दू महिलाओं को होगा। बेचारी महिलाएं गुलामी और बेबसी का जीवन व्यतीत कर रही हैं। उन्हें तसल्ली देने वाला या उनके दुख के प्रति सहानुभूति व्यक्त करने वाला कोई नहीं है। यही सबसे बड़ा कारण है कि हिन्दू महिलाएं समाज कल्याण की जरूरी सुविधाओं से वंचित हैं। इसका मुख्य कारण तो यह है कि हिन्दू शादियों के पंजीकरण की कोई व्यवस्था नहीं है। पाकिस्तान का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक वर्ग इस पीड़ा को वर्षों से झेल रहा है। विवाह पंजीकरण की व्यवस्था न होने के कारण हिन्दुओं के पास अपना विवाह साबित करने वाला कोई सबूत नहीं रह जाता है। पति को छोड़ देने, उसकी मृत्यु होने, तलाक या पुनर्विवाह जैसे मामलों में इनके पास अपने दावों को साबित करने वाला कोई प्रमाण नहीं होता है। गांव और देहात की महिलाएं तो इसका सबसे अधिक शिकार होती ही हैं, लेकिन जो पढ़ी-लिखी अथवा सरकारी या गैर सरकारी क्षेत्र में नौकरी करती हैं, वे भी अपना कोई कानूनी दस्तावेज पेश करके अपनी समस्या को नहीं सुलझा पाती हैं। सेवानिवृत्ति के समय उन्हें अपना 'प्रोविडेंट फंड' अथवा बैंक आदि में जमा धन राशि को प्राप्त करने में भी बड़ी कठिनाई होती है। महिलाओं को देश के भीतर और देश के बाहर यात्रा करने में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। 'डेली टाइम्स' का कहना है कि हिन्दू दम्पति के अधिकारों के लिए यह विधेयक अनेक प्रयासों के पश्चात् बना है। किसी भी सरकार ने इसमें दिलचस्पी नहीं ली है। मुसमलानों का कट्टर वर्ग कभी इसके पक्ष में नहीं रहा है। लेकिन अब समय आ गया है कि हमारे सबसे बड़े अल्पसंख्यक बर्ग की महिलाओं के लिए यह विधयेक पारित हो और कानून बनाकर उन्हें असंख्य कठिनाइयों से मुक्त कराया जाए।

विवाह का कोई सबूत नहीं

हिन्दू विवाह पंजीकरण कानून बनाने के सम्बंध में सिंध की हिन्दू महिलाओं ने लगातार चार साल तक आन्दोलन चलाया था। जब इसे संसद में प्रस्तुत करने का सवाल पैदा हुआ तो नवाज शरीफ और जनरल मुशर्रफ के समय में इसको अनुमति नहीं मिली। बेनजीर की जब पहली सरकार बनी तब इस मामले में कुछ प्रगति हुई। पाकिस्तान की हिन्दू महिलाओं ने इस मामले को लेकर धरना प्रदर्शन भी किया था। हिन्दू समाज के पुरुष और स्त्री मिलकर इस मामले में संघर्ष करते रहे हैं, क्योंकि विवाह हो जाने के पश्चात् भी उनके पास ऐसा कोई सबूत नहीं होता है कि वे यह सिद्ध कर सकें कि अमुक महिला अमुक व्यक्ति की पत्नी है। यह दिक्कत उस समय सबसे पहले आई जब एक हिन्दू कनाडा गया। वहां जाने के कुछ समय बाद उसने अपनी पत्नी को बुलाना चाहा। लेकिन कनाडा सरकार इस प्रकार का दस्तावेज चाहती थी। जिससे वह सिद्ध कर सके कि अमुक महिला उसकी पत्नी है। बिना सरकारी पंजीकरण के न तो उसका पासपोर्ट बन सकता था और न ही उसे वीसा मिल सकता था। मुस्लिम समाज में निकाहनामा लिखित होता है जिस पर लड़के और लड़कियों के हस्ताक्षर होते हैं। यदि वह पंजीकृत नहीं है तब भी उससे काम चलाया जा सकता है। किन्तु हिन्दू पद्धति के विवाह में ऐसा कोई लिखित दस्तावेज नहीं होता है। इसलिए हिन्दुओं का यह प्रयास है कि हिन्दू विवाह पंजीकरण विधेयक पारित हो जाए तो उनके कष्टों का निवारण हो सकता है। लेकिन पाक सरकार इसमें उदासीन है। वह हिन्दू महिलाओं की यह पीड़ा नहीं समझ रही है। इसलिए अब यह मांग तेज होती जा रही है। अनेक महिलाएं देश से बाहर नहीं जाने के कारण मतान्तरण का शिकार हो जाती हैं। इसलिए यह विधेयक प्रस्तुत हो कर कानून बने यह पाकिस्तान के जागरूक नागरिकों का प्रयास है। पिछले 64 वर्षों में वहां हिन्दू अल्पसंख्यकों के भिन्न-भिन्न मामलों को लेकर केवल आठ कानून बनाए गए हैं। सिंध, पंजाब और0 व बलूचिस्तान की स्थानीय विधानसभाओं ने कुल मिलाकर 18 कानून बनाए हैं। अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर प्रस्तुत की गई याचिकाओं की कुल संख्या 9 है, जिनमें अब तक दो का निपटारा हुआ है। पाकिस्तान के मंदिर, विभिन्न प्रकार की धर्मादा सम्पत्ति एवं उनकी नागरिकता के सम्बंध में पाकिस्तान की कोई भी सरकार सक्रिय नहीं रही है। इस प्रकार के 118 मामले सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में लम्बित है।

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