जंगल से ही होगा मंगल
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जंगल से ही होगा मंगल

by
Apr 21, 2012, 12:00 am IST
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पाठकीय

दिंनाक: 21 Apr 2012 14:29:13

पाठकीय

*अप्रैल,2012

छल का नया तरीका, सतर्क रहें

काफी  समय से एक टीवी चैनल पर एक कार्यक्रम आता है। इसमें किन्हीं दो प्रसिद्ध लोगों के आधे–आधे चेहरे को मिलाकर दिखाया जाता है। उसके नीचे कई फोन नम्बर भी दिए जाते हैं। एक तरफ वह चित्र दिखता है, तो दूसरी तरफ तंग वस्त्रों में खड़ी एक लड़की दर्शकों से पूछती है कि इस चित्र में कौन–कौन हैं? फिर वह कहती है सबसे पहले सही जवाब देने वाले को 30 हजार रु. का इनाम मिलेगा। वह लड़की मिनटों तक एक ही बात दुहराती रहती है 'सही जवाब दीजिए, 30 हजार रु. का इनाम पाइए।' बीच–बीच में कुछ लोग फोन भी करते हैं और वे गलत उत्तर देते हैं। मुझे लगता है कि फोन करने वाले प्रायोजित होते हैं। चूंकि चेहरे इतने परिचित होते हैं कि उन्हें देखकर 8-10 साल का एक बच्चा भी सही जवाब दे सकता है। फोन करने वाले गलत उत्तर शायद इसलिए देते हैं ताकि दर्शकों को लगे कि कौन बुद्धू है, जो इतने प्रसिद्ध चेहरों को नहीं पहचानता है, और वह सही जवाब देने के लिए तुरन्त फोन करें। लोग फोन करते भी हैं। किन्तु फोन करने वाले के साथ क्या होता है, यह आम आदमी को पता नहीं चल पाता है। इसकी असलियत पिछले दिनों पता चली। मेरे एक मित्र की तबीयत खराब हो गई थी। सुबह ही बच्चे स्कूल चले जाते थे और उनकी पत्नी नौकरी करने। पूरा दिन कैसे कटे? एक दिन बैठ गए टीवी के सामने। चैनल बदलते–बदलते पहुंच गए उसी चैनल पर। दिखाए जा रहे चित्र को वे पहचानते थे। इनाम के लालच में लगा दिया फोन। एक लड़की ने फोन उठाया और कहा, 'आप होल्ड करें। बीच–बीच में कुछ सेकेण्ड बाद वह यह भी कहती थी कि कुछ गड़बड़ी है, ऑपरेटर ठीक कर रहे हैं। आप लाइन पर रहें, फोन न काटें।' इस तरह दो मिनट बीत गए, पर काम की बात नहीं हुई। उस दो मिनट के लिए उनके मोबाइल से 24 रु. कट गए। यानी 12 रु. मिनट। क्या वास्तव में कोई गड़बड़ी थी या जानबूझकर होल्ड कराया गया? यह जानने के लिए मैंने भी एक दिन फोन किया। मेरे साथ भी वैसा ही किया गया। मुझे भी लाइन पर बने रहने को कहा गया। मेरी बात वह सुन ही नहीं रही थी। इस तरह की बातें और भी कुछ लोगों ने बताईं। सबकी एक ही शिकायत थी। यदि उस लड़की से मेरी बात होती मैं जरूर कहता कि इनाम के नाम पर लोगों के साथ छल मत करो।

इस घटना ने मुझे टीवी चैनलों पर दिखाए जाने वाले उन कार्यक्रमों पर भी सोचने के लिए मजबूर किया, जिनमें दर्शकों को एसएमएस के जरिए उनकी राय अथवा उनका वोट मांगा जाता है। चाहे कोई न्यूज चैनल किसी मुद्दे पर चार लोगों को बैठाकर बहस करता हो, तो एसएमएस। किसी चैनल पर नाचने की प्रतियोगिता होती है, तो एसएमएस। कोई चैनल वाला दर्शकों से कोई सवाल पूछता है और कहता है कि एसएमएस से जवाब भेजो। सबसे पहले सही जवाब भेजने वाले को इतनी… राशि मिलेगी। कई कार्यक्रमों में भाग लेने वाले लोग बड़े भावुक होकर अपील करते हैं कि आप हमें एसएमएस से वोट जरूर करें। आपके समर्थन से ही हम आगे बढ़ पाएंगे। कुछ लोग इन कार्यक्रमों के लिए फटाफट एसएमएस करते हैं, जबकि यह एक एसएमएस एक कॉल से ज्यादा महंगा होता है। एसएमएस जिनके लिए भेजा जाता है इससे उन्हें कितना लाभ होता है, यह तो वही लोग बताएंगे। किन्तु मैं मानता हूं कि फटाफट एसएमएस भेजने से मोबाइल कम्पनियां करोड़ों रुपए कमा रही हैं और जनसाधारण के साथ छल किया जा रहा है। इससे हमें स्वयं सतर्क रहने की तो आवश्यकता है ही, सरकार भी कुछ नियम–कायदे बनाकर इस लूट को रोके।

–चन्द्रप्रकाश गोसाईं

21/23, ओल्ड राजेन्द्र नगर, नई दिल्ली-110060

पर्यावरण को समर्पित वर्ष प्रतिपदा विशेषांक बहुत ही सुन्दर और प्रेरक रहा। यह विशेषांक बिल्कुल अलग लगा। आज पर्यावरण प्रदूषण वैश्विक समस्या का रूप धारण कर चुका है। मनुष्य प्राकृतिक संसाधनों का दोहन तो खूब कर रहा है, पर प्रकृति के संरक्षण के लिए सजग नहीं है। इस विशेषांक में पर्यावरण को बचाने में लगे लोगों और संस्थाओं के बारे में पढ़कर मन को बड़ा सन्तोष हुआ।

–विजय कोहली

जनकपुरी, नई दिल्ली-110058

* विशेषांक संग्रहणीय है और पाञ्चजन्य ने इस गंभीर समस्या के व्यापक समाधान का मार्ग दिखाया है। पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने में मीडिया के साथ-साथ गैर-सरकारी संगठन अहम भूमिका निभा सकते हैं। इस अंक को प्रकाशित कर पाञ्चजन्य परिवार ने अपनी भूमिका बहुत अच्छी तरह निभाई है। इस अंक की जितनी प्रशंसा की जाए कम है।

–सत्यनारायण कंठ

ई-4, सेक्टर-1, एच.ई.सी. कालोनी, रांची-834004 (झारखण्ड)

* मुझे पर्यावरण विशेषांक पढ़ने को मिला। बहुत सुन्दर बन पड़ा है। इसकी विशेषता यह रही कि इसमें व्यावहारिक बातें ज्यादा और सैद्धान्तिक बातें कम थीं। पर्यावरण संरक्षण में लगे लोगों का अभिनंदन होना चाहिए।

–नीलम सहगल

वी-108,डिस्पेंसरी गली, महर्षि दयानंद मार्ग, घोंडा, दिल्ली

n विशेषांक पाठकों को यह प्रेरणा देने में सफल रहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए अपने-अपने स्तर पर कुछ जरूर करें। भागलपुर के धरहरा गांव के लोग बेटी के जन्म पर पेड़ लगाते हैं। जबलपुर के समीप नर्मदा नदी के तट पर रंगा नामक व्यक्ति ने सैकड़ों एकड़ जमीन पर पेड़ लगाने का बहुत ही प्रशंसनीय कार्य किया है। इन सबके बारे में पढ़कर और लोग भी निश्चित रूप से पर्यावरण के हित में कुछ कार्य करेंगे।

–मनीष कुमार

तिलकामांझी, भागलपुर (बिहार)

* हमेशा की तरह ज्ञानवर्धक रहा। आवरण पृष्ठ भी आकर्षक है। संवाद 'स्वच्छ पर्यावरण और स्वस्थ जीवन' गंभीर लगा। पर्यावरण में असन्तुलन पैदा होने से अनेक तरह की समस्याएं पैदा हो रही हैं। लोगों को पीने का शुद्ध पानी तक नहीं मिल रहा है। मौसम में भी बड़ा अस्वाभाविक बदलाव दिखता है। बेवक्त वर्षा, गर्मी और ठण्ड हो रही है। इन सबके लिए हम और आप जिम्मेदार हैं। इसलिए हम सुधर गए, तो पर्यावरण भी सुधर जाएगा।

–प्रदीप सिंह राठौर

36 बी, एम.आई.जी., पनकी, कानपुर (उ.प्र.)

* का मुख पृष्ठ बहुत ही मनमोहक है। पर्यावरण की रक्षा में यह अंक निश्चित रूप से अपना योगदान देगा। रपटें भी बड़ी प्रेरक और रोचक लगीं। सुन्दर अंक के लिए बधाई!

–उदय कमल मिश्र

गांधी विद्यालय के समीप, सीधी-486661 (म.प्र.)

* कथाएं बड़ी रोचक लगीं। उड़ीसा के जगतसिंहपुर जिले में श्री अविनाश दास उर्फ कटहल बाबा ने 'जंगल में मंगल' को चरितार्थ कर दिखाया है। कटहल बाबा के प्रयासों की तारीफ करनी होगी। पथरीली जमीन पर कटहल के पेड़ लगाकर उन्होंने यह सन्देश दिया है कि संकल्प-शुभ हो तो सफलता मिलती ही है।

–बी.एल.सचदेवा

263, आई.एन.ए. मार्केट, नई दिल्ली-110023

* संरक्षण को गंभीरता से लेना हम सभी का परम कर्तव्य है, क्योंकि पर्यावरण है तो जीवन है। इसी संदर्भ में पतित पावनी गंगा को प्रदूषण-मुक्त करने के जो भगीरथ प्रयास प्रबुद्धजनों द्वारा किए जा रहे हैं वह अत्यंत सराहनीय है। यदि गंगा जाएगी तो सृष्टि का विनाश हो जाएगा और फिर कोई नहीं बचेगा। गंगा को लेकर महाकवि तुलसीदास जी का यह कथन कि 'धन्य देस सो जहं सुरसरि' दुनिया के देशों में भारत के मस्तक को ऊंचा कर देता है। वास्तव में गंगा भारत की पहचान है।

–आर.सी.गुप्ता

द्वितीय ए-201, नेहरू नगर, गाजियाबाद-201001 (उ.प्र.)

कथाओं ने प्रकृति के प्रति मन में और आदर जगा दिया। पर्यावरण को लेकर हर व्यक्ति को जागृत होना होगा। प्राकृतिक सन्तुलन के बिगड़ने की वजह से पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। जल, जंगल और जमीन का उचित उपयोग ही पर्यावरण को ठीक रख सकता है। किन्तु जल का दुरुपयोग, जंगल की अंधाधुंध कटाई और जमीन का जबर्दस्त दोहन बढ़ता ही जा रहा है। बड़ी समस्या यही है। पाञ्चजन्य ने इसके प्रति चेताया है, साधुवाद।

–हरिहर सिंह चौहान

जंवरीबाग नसिया, इन्दौर-452001 (म.प्र.)

* में पर्यावरण संरक्षण के लिए हो रहे कार्यों पर आधारित डा. गणेश दत्त वत्स की रपट पढ़ी। पर्यावरण की शुद्धि के लिए प्राकृतिक संसाधनों को बचाकर रखना आवश्यक है। यदि अभी से जल का संरक्षण नहीं किया तो भविष्य में अगला युद्ध जल के लिए ही होगा। जो पानी बर्बाद हो रहा है वह निश्चित ही प्रदूषित हो रहा है। यह प्रदूषित जल आंतरिक व बाह्य रूप से समस्त जीवों के लिए हानिकारक है। अपने घरों में व उसके आस-पास तुलसी, नीम, रुद्राक्ष इत्यादि के पौधे अवश्य लगाएं।

–निमित जायसवाल

ग 39 ई. डब्लू.एस., रामगंगा विहार फेस प्रथम,

मुरादाबाद-244001 (उ.प्र.)

*  विशेषांक बहुत अच्छा लगा। आवरण पर प्रकाशित चित्र आकर्षक है। आगे भी ऐसे ही ज्वलन्त विषयों पर विशेषांक प्रकाशित करेंगे, यही कामना है।

–शरद कुमार शर्मा

जीनगर भवन, रेलवे स्टेशन के पास, सरदार शहर, चुरू (राज.)

* प्रतिपदा विशेषांक अपनी साज-सज्जा और अच्छी सामग्री के कारण पाठकों के दिलों पर छा गया। आज इंसान के सामने वातावरण प्रदूषण एक गंभीर खतरा है। इस खतरे पर काबू पाने के लिए प्रभावी कदम उठाये जाने चाहिए। सार्वजनिक संचार माध्यमों के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि मानवता के सामने मौजूदा प्रदूषण के खतरों को बताया जाए। पूरी दुनिया में नाभिकीय विस्फोटों पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए। प्रदूषण दूर करने के लिए वन बेहद प्रभावी होते हैं। हरे-भरे पौधे और वृक्ष हवा को शुद्ध करते हैं। केन्द्र में अलग से पर्यावरण मंत्रालय होते हुए भी हम अपनी पृथ्वी को भरपूर हरा-भरा नहीं रख पा रहे हैं। यदि मानव जाति को जीवित रखना है तो पर्यावरण पर चारों ओर से हो रहे प्रहारों को रोकना होगा।

–पारूल शर्मा

36, तीरथ कालोनी, हरर्ावाला, देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)

* के ऋषि-मुनियों ने सैकड़ों वर्ष पूर्व पर्यावरण के प्रति अपने दायित्व का अनुभव करते हुए कहा था कि हम प्रकृति की रक्षा करें। पेड़-पौधों की रक्षा करें। वन-जंगलात की रक्षा करें। पशु-पक्षियों की रक्षा करें। पानी की एक-एक बूंद की रक्षा करें। इसीलिए अतीत काल में मानव सुखी था। चारों ओर का पर्यावरण आनन्द की अनुभूति कराने वाला था। आजादी के बाद विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों का अन्धाधुन्ध दोहन किया गया। इनका जहरीला धुआं पर्यावरण को प्रदूषित करने लगा। ऐसे में ऋषियों की वाणी ही हमें मार्ग दिखाएगी।

–कृष्ण वोहरा

641, जेल परिसर, सिरसा (हरियाणा)

कहानी थी सब फर्जी

मोदी–मोदी कर रहे, बीते साल अनेक

ढूंढे बहुत प्रमाण पर, मिला न उनको एक।

मिला न उनको एक, कहानी थी सब फर्जी

तीस्ता और जाकरी, वह अन्सारी दर्जी।

कह 'प्रशांत' झूठे का मुंह होता है काला

सत्य प्रकट होता है तोड़ अलीगढ़ ताला।।

–प्रशांत

पञ्चांग

वि.सं.2069   तिथि   वार    ई.  सन्  2012

वैशाख शुक्ल      8     रवि  29   अप्रैल, 2012

”     ”        9   सोम      30   ”    “

”     ”        10  मंगल   1     मई, 2012

”     ”        11 बुध      2     ”     “

”     ”        12  गुरु   3    ”     “

”     ”        13  शुक्र 4     ”     “

”     ”        14  शनि      5     ”     “

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