बाल कहानी आशा रानी व्होरा ब्याह की खुशी
July 13, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

बाल कहानी आशा रानी व्होरा ब्याह की खुशी

by
Apr 16, 2012, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

बाल मन

दिंनाक: 16 Apr 2012 13:13:23

बाल मन
चिन्तित बिल्ली
चिन्ता में डूबी है बिल्ली,
धर माथे पर हाथ।
क्यों आदमी दे रहा है,
मिथ्या-शकुन का साथ!
सृष्टि के प्राणी सब ही तो,
एक प्रभु की रचना।
अपने अपने बूते पर,
काम सभी को करना।
पथ मैं पहले पार करूं,
या आदमी पहले।
कटा रस्ता इक दूजे का,
दिल क्यों उसका दहले?
द ईश्वर दयाल माथुर

 

सुबह उठते ही नीरू मचलने लगी, “मां तुम ने रात कहा था न, सुबह गुड़िया बना दूंगी, अब जल्दी से बना कर दो।”
“अब इतनी बड़ी होकर गुड़िया से खेलेगी?”
“कहां बड़ी हो गई हूं मां, अभी तो इत्ती सी हूं”- नीरू ने दोनों हाथों से साइज बता कर कहा।
“इत्ती सी है तो भी स्कूल तो जाती है न! गुड़िया बना दूंगी तो किताब कौन पढ़ेगा?”
“किताब भी पढूंगी मां, अब तुम जल्दी से एक गुड़िया बना भी दो। नहीं बनाओगी तो किताब भी नहीं पढूंगी, स्कूल भी नहीं जाऊंगी, कुछ भी नहीं करूंगी।” और नीरू फिर मचलने लगी।
“क्यों भला?” मां ने पूछा।
“अब तुम समझती तो हो नहीं मां। अभी डेजी आएगी तो फिर मुझे चिढ़ाएगी कि अभी तक तुम्हारी गुड़िया तैयार ही नहीं हुई। मैंने उससे वायदा किया है, इतवार को शादी कर देने का। अब आज मेरी गुड़िया तैयार नहीं होगी तो वह अपने गुड्डे का ब्याह वेणु की गुड़िया से कर देगी कि नहीं?”
नीरू की मां खिलखिला कर हंस पड़ीं, “अच्छा बाबा अच्छा। अभी नाश्ते से निबट कर पहले तेरी गुड़िया बना देती हूं। अब तो खुश है न?”
नीरू ने उठकर मुंह-हाथ धोया, सबके साथ बैठकर दूध, नाश्ता लिया, फिर जल्दी-जल्दी काम समेटने में मां की मदद करने लगी।
मां समझ गईं, नीरू यह सब क्यों कर रही है। नाश्ते से निपट कर उसने कतरनों की पिटारी निकाली। एक गुड़िया बना कर उसे सुंदर-सुंदर कपड़े पहनाए। मोतियों के गहने पहनाए। तार में मोती पिरो कर नथ पहनाई। पुरानी साड़ी का गोटा उतार कर गुड़िया की साड़ी में लगाया। दो-चार सितारे ढूंढ कर उसके ब्लाउज में जड़ दिए। माथे पर टीका पहनाया। लाल रंग लेकर हथेलियों में मेंहदी सजा दी। फिर थोड़ा-सा घूंघट खींच कर उसे एक सजी-धजी शर्माती दुल्हन बना कर खड़ा कर दिया।
अब नीरू अपनी इस गुड़िया को देखकर फूली न समा रही थी। किलक कर मां से बोली, “मां, इसका नाम अलका रख दूं तो कैसा रहे?”
“जो तुम्हें अच्छा लगे, पर यह बताओ, जो गुड्डा ढूंढा है, वह इसके लायक है भी कि नहीं?”
“अभी डेजी लेकर आएगी तो देख लेना मां। उसका गुड्डा भी कम नहीं है। यह अलका रानी है तो वह भी एंड्रयूज राजा है?”
“एंड्रयूज राजा? इन्द्र राजा क्यों नहीं?” मां ने पूछा।
“पता नहीं मां, डेजी ने मुझे यही नाम बताया था।”
“तभी डेजी आ गई। साथ में नीना, टोनी, डाली, नीलू, लिली, रजिया, मंटू, सभी दोस्तों की टोली भी खूब हंसते हुए, मटकते हुए। पर यह सब क्या? नीलू के हाथ में माउथ आरगन है। टोनी के हाथ में छोटा पियानो है। और लिली, डाली, रजिया के हाथों में फूलों का एक-एक गुलदस्ता है।
मंटू और गोपाल ने कहा, “रजिया जज बनेगी। हम दोनों गवाही देंगे। ब्याह अदालत में होगा। बाद में लिली, नीना, डाली गुलदस्ते भेंट करेंगी। नीलू माउथ आरगन बजाएगा और टोनी पियानो। इसके बाद नीरू सबको पार्टी देगी और गुड़िया-गुड्डे का नाच करवाया जाएगा।”
“पर मैं अपनी पार्टी में ढोलक भी बजाऊंगी, गीत भी गाऊंगी, हां”, नीरू ने शर्त रखी।
“जरूर-जरूर” इस बार डेजी भी बोल पड़ी। पार्टी का मजा तो तभी आएगा, जब सभी लोग अपनी-अपनी मर्जी की चीज सुनाएं।”
इस पर सभी ने हां में हां मिलाई। जोरों से ताली बज उठी और कार्यक्रम तय हो जाने पर ब्याह का खेल शुरू हो गया। फिर तो वह मजा आया उन्हें कि सभी एक साथ मस्ती में झूमने लगे। खूब गाना-बजाना, नाचना हुआ। इसके बाद अपने-अपने पैसे मिला कर रसगुल्ले मंगाए गए। सब ने छक कर खाए। फिर दूल्हा-दुल्हन के साथ ही सारे बच्चे खुशी-खुशी अपने-अपने घरों को लौट गए। यह पार्टी बहुत दिन तक सभी को याद रही।द
वीर बालक
जब शिवाजी के सामने नवाब ने सिर झुकाया
कठिनाइयां जीवन का निर्माण करती हैं और शिवाजी का बाल्यकाल बहुत बड़ी कठिनाइयों में बीता। शिवनेर के किले में सन् 1630 ई. में उनका जन्म हुआ था। उनके पिता शाह जी बीजापुर दरबार की सेवा में थे। बीजापुर के नवाब की ओर से जब शाहजी अहमद नगर की लड़ाई में फंसे थे, तब मालदार खान ने दिल्ली के बादशाह को प्रसन्न करने के लिए बालक शिवाजी तथा उनकी माता जीजाबाई को सिंहगढ़ के किले में बंदी करने का प्रयत्न किया। लेकिन उसका यह दुष्ट प्रयत्न सफल नहीं हो सका। शिवाजी के बचपन के तीन वर्ष अपने जन्म स्थान शिवनेरी के किले में ही बीते। इसके बाद जीजाबाई को शत्रुओं के भय से अपने बालक के साथ एक किले से दूसरे किले में बराबर भागते रहना पड़ा, किन्तु इस कठिन परिस्थिति में भी उन वीर माता ने अपने पुत्र की सैनिक शिक्षा में त्रुटि नहीं आने दी।
माता जीजाबई शिवाजी को रामायण, महाभारत तथा पुराणों की वीर-गाथाएं सुनाया करती थीं। नारो, श्रीमल, हनुमन्त तथा गोमाजी नामक शिवाजी के शिक्षक थे और शिवाजी के संरक्षक थे प्रचण्ड वीर दादाजी कोंडदेव। इस शिक्षा का परिणाम यह हुआ कि बालक शिवाजी बहुत छोटी अवस्था में ही निर्भीक एवं साहसी हो गये। जन्मजात शूर मावली बालकों की टोली बनाकर वे उनका नेतृत्व करते थे और युद्ध के खेल खेला करते थे। उन्होंने बचपन में ही हिन्दू धर्म, देवमन्दिर तथा गौओं की विधर्मियों से रक्षा करने का दृढ़ संकल्प कर लिया।
शिवाजी जब आठ वर्ष के थे तभी उनके पिता एक दिन उन्हें शाही दरबार में ले गये। नवाब के सामने पहुंचकर पिता ने शिवाजी की पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा, “बेटा! बादशाह को सलाम करो।”
बालक ने मुड़कर पिता की ओर देखा और बोला- “बादशाह मेरे राजा नहीं हैं। मैं इनके आगे सिर नहीं झुका सकता।”
दरबार में सनसनी फैल गयी। नवाब बालक की ओर घूरकर देखने लगा, किन्तु शिवाजी ने नेत्र नहीं झुकाये। शाहजी ने सहमते हुए प्रार्थना की- “शहंशाह! क्षमा करें। यह अभी बहुत नादान है।” पुत्र को उन्होंने घर जाने की आज्ञा दे दी। बालक ने पीठ फेरी और निर्भीकतापूर्वक दरबार से चला आया।
घर लौटकर शाहजी ने जब पुत्र को उसकी धृष्टता के लिए डांटा तब पुत्र ने उत्तर दिया- “पिताजी आप मुझे वहां क्यों ले गये थे। आप तो जानते ही हैं कि मेरा मस्तक तुलजा भवानी और आपको छोड़कर और किसी के सामने झुक नहीं सकता।” शाहजी चुप रहे।
इस घटना के चार वर्ष बाद की एक घटना है। उस समय शिवाजी की अवस्था बारह वर्ष की थी। एक दिन बालक शिवाजी बीजापुर के मुख्य मार्ग पर घूम रहे थे। उन्होंने देखा कि एक कसाई एक गाय को रस्सी से बांधे लिये जा रहा है। गाय आगे जाना नहीं चाहती थी और इधर-उधर कातर नेत्रों से देख रही थी। कसाई उसे डंडे से बार-बार पीट रहा था। इधर-उधर दुकानों पर जो हिन्दू थे, वे मस्तक झुकाये यह सब देख रहे थे। उनमें इतना साहस नहीं कि कुछ कह सकें। मुसलमानी राज्य में रहकर वे कुछ बोलें तो पता नहीं क्या हो। लेकिन लोगों की दृष्टि आश्चर्य से खुली की खुली रह गयी जब बालक शिवा की तलवार म्यान से निकलकर चमकी, वे कूदकर कसाई के पास पहुंचे और गाय की रस्सी उन्होंने काट दी। गाय भाग गयी एक ओर। कसाई कुछ बोले- इससे पहले उसका सिर धड़ से कटकर भूमि पर लुढ़कने लगा था।
समाचार दरबार में पहुंचा। नवाब ने क्रोध से लाल होकर कहा- “शाह जी तुम्हारा पुत्र बड़ा उपद्रवी जान पड़ता है। तुम उसे बीजापुर से बाहर कहीं भेज दो।”
शाहजी ने आज्ञा स्वीकार कर ली। शिवाजी अपनी माता के पास भेज दिये गये, लेकिन अन्त में एक दिन वह भी आया कि बीजापुर-नवाब ने स्वतंत्र हिन्दू सम्राट के नाते शिवाजी को अपने राज्य में निमंत्रित किया, उनका स्वागत किया और उनके सामने मस्तक झुकाया। द
बूझो तो जानें
1.  कागज का घोड़ा, धागे की लगाम
 छोड़ दो धागा, तो करे सलाम।
2.  जो होते हैं खुश, उनके मुख पर आती हूं,
 जो होते हैं दुखी, उनके मुख से जाती हूं।

3.  दो अक्षर का मेरा नाम, आता हूं मैं सबके काम,
 चोरों से मैं रक्षा करता, अब तो बताओ मेरा नाम।

4.  टेढ़ी-मेढ़ी गलियां, बीच में कुआं।
उत्तर : 1. पतंग 2. हंसी 3. ताला 4. कान

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

fenugreek water benefits

सुबह खाली पेट मेथी का पानी पीने से दूर रहती हैं ये बीमारियां

Pakistan UNSC Open debate

पाकिस्तान की UNSC में खुली बहस: कश्मीर से दूरी, भारत की कूटनीतिक जीत

Karnataka Sanatan Dharma Russian women

सनातन धर्म की खोज: रूसी महिला की कर्नाटक की गुफा में भगवान रूद्र के साथ जिंदगी

Iran Issues image of nuclear attack on Israel

इजरायल पर परमाणु हमला! ईरानी सलाहकार ने शेयर की तस्वीर, मच गया हड़कंप

RSS का शताब्दी वर्ष : संघ विकास यात्रा में 5 जनसंपर्क अभियानों की गाथा

Donald Trump

Tariff war: अमेरिका पर ही भारी पड़ सकता है टैरिफ युद्ध

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

fenugreek water benefits

सुबह खाली पेट मेथी का पानी पीने से दूर रहती हैं ये बीमारियां

Pakistan UNSC Open debate

पाकिस्तान की UNSC में खुली बहस: कश्मीर से दूरी, भारत की कूटनीतिक जीत

Karnataka Sanatan Dharma Russian women

सनातन धर्म की खोज: रूसी महिला की कर्नाटक की गुफा में भगवान रूद्र के साथ जिंदगी

Iran Issues image of nuclear attack on Israel

इजरायल पर परमाणु हमला! ईरानी सलाहकार ने शेयर की तस्वीर, मच गया हड़कंप

RSS का शताब्दी वर्ष : संघ विकास यात्रा में 5 जनसंपर्क अभियानों की गाथा

Donald Trump

Tariff war: अमेरिका पर ही भारी पड़ सकता है टैरिफ युद्ध

कपिल शर्मा को आतंकी पन्नू की धमकी, कहा- ‘अपना पैसा वापस ले जाओ’

देश और समाज के खिलाफ गहरी साजिश है कन्वर्जन : सीएम योगी

जिन्होंने बसाया उन्हीं के लिए नासूर बने अप्रवासी मुस्लिम : अमेरिका में समलैंगिक काउंसिल वुमन का छलका दर्द

कार्यक्रम में अतिथियों के साथ कहानीकार

‘पारिवारिक संगठन एवं विघटन के परिणाम का दर्शन करवाने वाला ग्रंथ है महाभारत’

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies