पाठकीय
|
पाठकीय
अंक-सन्दर्भ
25 मार्च,2012
पिछले दिनों दिल्ली के रोहिणी इलाके में एक छोटी-सी बात पर राजेश भारद्वाज नामक ऑटो चालक की हत्या हो गई। बात मध्य रात्रि के आसपास की है। राजेश भारद्वाज सवारी छोड़कर लौट रहा था तभी उसका ऑटो सड़क पर खड़ी एक कार से हल्का टकरा गया। इसके बाद कार सवार दोनों युवक राजेश पर ऐसे टूट पड़े कि वहीं उसकी मौत हो गई। कहा जा रहा है कि दोनों युवकों ने शराब पी रखी थी। अधिक शराब पीने से एक युवक उल्टी कर रहा था और दूसरा उसे संभाल रहा था। कुछ समय से ऐसी घटनाओं में काफी तेजी आई है। महीने-पन्द्रह दिन में किसी न किसी अखबार में इस तरह की घटनाएं पढ़ने को मिल जाती हैं। ऐसी घटनाओं के लिए राजधानी दिल्ली कुछ ज्यादा ही बदनाम होने लगी है। राह चलते सड़क पर लड़ाई-झगड़ा और हत्या आम बात हो चुकी है। आखिर क्या कारण हैं कि लोग छोटी-छोटी बातों पर किसी की हत्या तक करने लगे हैं? क्या अमीर, क्या गरीब, क्या उच्च वर्ग, क्या निम्न वर्ग कोई भी तुरन्त तैश में आ रहा है, और फिर कुछ ऐसा कर बैठता है कि जीवन भर पछताता रहता है। पूरी जिन्दगी जेल में काटने को मजबूर हो जाता है। ऐसा लगता है कि दैनिक तनाव लोगों की सहनशक्ति खत्म कर रहा है। दिल्ली जैसे महानगरों में आदमी के पास अपनों के लिए भी समय नहीं है। सुबह से देर रात तक आदमी काम और सिर्फ काम के पीछे भागता है। मानो हाड़-मांस का शरीर नहीं, बल्कि लोहे के कल-पुर्जों से बनी मशीन हो। फिर भी गरीब आदमी के पास एक अदद छत नहीं है। वह झुग्गी-झोपड़ियों में पशुवत् रहने को मजबूर है। निम्न और मध्य वर्ग के लोगों के पास दूसरी तरह की समस्याएं हैं। किसी को अपनी नौकरी की चिन्ता है, किसी को बेटी ब्याहने की चिन्ता, तो किसी को मकान की, तो किसी को व्यापार की, किसी को बच्चे की पढ़ाई की चिन्ता है, और किसी को अपने बच्चे के बिगड़ने की चिन्ता है। यानी हर कोई चिन्ता से ग्रस्त है। इसी हालत में वह कहीं आता-जाता है। और जब किसी बात पर किसी से बहस होती है, तो वह आपा खो बैठता है। लोगों के गुस्से को बढ़ाने में शराब की भूमिका भी बहुत बढ़ गई है। शराब पीने के बाद तो आदमी अपने आपको दुनिया का “थानेदार” मानने लगता है। किन्तु दुर्भाग्य की बात तो यह है कि शराब की दुकानें दिनों-दिन बढ़ती जा रही हैं। सरकारें राशन की दुकान से ज्यादा शराब की दुकानें खोल रही हैं। हालत यह है कि कोई कॉलोनी ठीक से बसती भी नहीं है कि वहां शराब की दुकान खुल जाती है। किसी कॉलोनी में पीने के पानी की व्यवस्था भले ही न हो, बच्चों के लिए स्कूल न हों, चलने के लिए अच्छी सड़कें न हों, पर वहां शराब की दुकान अवश्य मिल जाएगी। चूंकि सरकार की आमदनी का मुख्य जरिया शराब है। इसलिए वह थोक मात्रा में शराब की दुकानों के लिए लाइसेंस बांटती है। जिस सरकार को लोककल्याणकारी नीति पर चलना चाहिए, वह पैसे के लिए समाज-विध्वंसक नीतियों पर चलती है। जिस घर का मुखिया शराब का आदी हो जाता है उस घर का सब कुछ बिगड़ जाता है। आर्थिक तंगी बढ़ने लगती है, घर में पति-पत्नी के बीच दिन-रात लड़ाई होने लगती है, बच्चों पर बड़ा बुरा प्रभाव पड़ता है। उस घर की सामाजिक प्रतिष्ठा खत्म हो जाती है। यदि घर में विवाह योग्य लड़कियां होती हैं तो उनके विवाह में दिक्कतें आती हैं। फिर भी सरकार शराब पर प्रतिबंध लगाने की जगह उसको सुगमता से उपलब्ध कराने में लगी है। क्या सरकार के लिए नागरिकों के स्वास्थ्य व संस्कारी जीवन से ज्यादा मूल्यवान पैसा हो गया है?
-विजय कोहली
सी-3ए/39बी, एम.आई.जी.फ्लैट, जनकपुरी, नई दिल्ली-110058
गर्व करो नवसंवत्सर पर
आवरण कथा के अन्तर्गत श्री साकेन्द्र प्रताप वर्मा का तथ्यपरक आलेख “अंग्रेजों की नकल नहीं अपने पर गर्व करें” प्रत्येक भारतीय को गर्व से सिर ऊंचा करके चलने की प्रेरणा देता है। हिन्दू संस्कृति अजेय है, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का आधार है, इसका कोई विकल्प नहीं है। दुनिया में सभी प्रभावी संस्कृतियों का इतिहास लगभग तीन हजार वर्ष पुराना है। जबकि भारतीय संस्कृति अनादि है, अनंत है। पंजाब केसरी लाला लाजपत राय, महामना मदनमोहन मालवीय, श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार, स्वामी विवेकानंद जैसी विभूतियां हिन्दुत्व के ऐसे सुदृढ़ स्तंभ हुए हैं, जिन्होंने हिन्दू संस्कृति और सभ्यता को नई ऊंचाइयां प्रदान की थीं।
-आर.सी. गुप्ता
द्वितीय ए-201, नेहरू नगर, गाजियाबाद-201001 (उ.प्र.)
द भारतीय कालगणना का चलन अधिक से अधिक हो, यह प्रयास होना चाहिए। लगभग 1000 वर्ष की पराधीनता के कारण भारतीय कालगणना केवल पोथियों तक सिमट कर रह गई थी। हालांकि पूजा-पाठ या अन्य शुभ कार्यों के अवसर पर तो भारतीय कालगणना का ही सहारा लिया जाता है। किन्तु दैनिक व्यवहार में इस कालगणना का चलन न के बराबर है। इसलिए आम जनता को इसके बारे में बहुत कम जानकारी है। स्वतंत्र भारत में इसकी महत्ता फिर से स्थापित किए जाने की आवश्यकता है।
-उदय कमल मिश्र
गांधी विद्यालय के समीप, सीधी-486661 (म.प्र.)
द चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से विक्रमी संवत् (वर्ष) शुरू होता है। यह संवत् पूरी तरह प्राकृतिक और वैज्ञानिक है। जब यह वर्ष शुरू होता है तो प्रकृति में भी नयापन दिखता है। पतझड़ के पश्चात् पेड़-पौधे नए पत्तों से इस तरह सज-धज जाते हैं, मानो वे नव वर्ष के स्वागत के लिए आतुर हों। मौसम भी बड़ा मनभावन होता है। मन्द-मन्द हवा बहती है। यानी चारों ओर उल्लास और उमंग का वातावरण होता है। जबकि ई.सन् का प्रारंभ कोहरों के बीच काली रात में होता है।
-मनीष कुमार
तिलकामांझी, भागलपुर (बिहार)
ऐसे हों हमारे युवा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबले का लेख “कैसा हो युवा हिन्दुस्थान का नेतृत्व” बहुत ही सुन्दर और सशक्त लगा। आज के राजनीतिक दल युवा नेतृत्व को पनपने नहीं देते हैं। किसी खानदान से जुड़े युवाओं को ही जबर्दस्ती आगे बढ़ाया जाता है। जबर्दस्ती नेता बनाए गए युवाओं में वह क्षमता कभी नहीं आ सकती, जो स्वाभाविक रूप से बने एक नेता में होती है।
-ईश्वर चन्द्र
239, धर्मकुंज अपार्टमेंट, सेक्टर-9, रोहिणी, दिल्ली-110085
द देश की तरुणाई को सही दिशा देना हर विचारवान व्यक्ति का कर्तव्य है। युवा वर्ग को यह बताना बहुत जरूरी है कि सुखदेव, राजगुरु, भगत सिंह जैसे युवाओं ने अपनी जान इस राष्ट्र के लिए क्यों दी। नौजवानों को अपनी माटी से जोड़े रखने के लिए यह भी बताना होगा कि मूल्याधारित शिक्षा प्राप्त करो, साथ ही बेसहारा और कमजोर वर्ग के लोगों के लिए यथासंभव काम करो। बेसहारों को सहारा देने से बड़ा और कोई काम नहीं हो सकता है। यह भावना हर युवा के दिल में धड़के।
-हरिहर सिंह चौहान
जेवरी बाग, नसिया, इन्दौर-452001 (म.प्र.)
द स्वामी विवेकानंद, जयप्रकाश नारायण, डा. राम मनोहर लोहिया जैसे महान लोगों ने अपनी तरुणाई में ही समाज को दिशा और ऊर्जा दी, किन्तु सत्ता का मोह कभी नहीं किया। आज देश के नवयुवकों के सामने बुजुर्ग पीढ़ी का कोई ऐसा नेता नहीं है, जो युवकों के लिए प्रेरणा का केन्द्र बने। आज के युवा सत्ता, पद और धन की लालसा के दलदल में फंसते जा रहे हैं और अपनी संगठन क्षमताओं का अपने हित में उपयोग कर रहे हैं।
-मनोहर “मंजुल”
पिपल्या-बुजुर्ग, प. निमाड़-451225(म.प्र.)
बंगलादेश में मजहबी आतंक
पिछले दिनों पाञ्चजन्य में बंगलादेश में हिन्दुओं के साथ हो रहे हृदय-विदारक अत्याचारों पर आधारित एक लेख पढ़ा। लगता है कि पाकिस्तानी कट्टरवादियों की तरह बंगलादेशी कट्टरवादी भी अपनी मजहबी मान्यताओं को मूत्र्त रूप देते हुए अपने लिए “जन्नत” में स्थान सुरक्षित कराने में लगे हैं। इसी अंक के आवरण पर बलात्कार पीड़ित महिलाओं का एक चित्र छपा है। महिलाएं अपना मुंह हाथों से छिपा रही हैं। मुंह तो भारत के हिन्दुओं को छिपाना चाहिए, जो अपने हिन्दू भाइयों पर हो रहे अत्याचारों के बावजूद शान्त बैठे हैं।
-क्षत्रिय देवलाल
उज्जैन कुटीर, अड्डी बंगला, झुमरी तलैया
कोडरमा-825409 (झारखण्ड)
कुर्सी की ऐसी चाहत
रालोद नेता और केन्द्रीय उड्डयन मंत्री अजीत सिंह के पुत्र जयन्त चौयारी मथुरा से सांसद हैं। पिछले चुनाव में वे विधायक भी बन गए। उन्हें यह भरोसा था कि कहीं कांग्रेस-रालोद गठबंधन की सरकार बन गई तो उप मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल जाएगी। किन्तु ऐसा हुआ नहीं। इस घटना से मुझे वे माता-पिता याद आ रहे हैं, जो पोशाक और मध्याह्न भोजन के लोभ में अपने बच्चों का कई विद्यालयों में नामांकन कराते हैं। अब जयन्त चौधरी ने विधायकी छोड़ दी है। वहां फिर से चुनाव होगा और करोड़ों रु. खर्च होंगे। ऐसे चुनाव का पूरा खर्च उनसे ही वसूला जाना चाहिए जिनकी वजह से दुबारा चुनाव होता है।
-कुन्ती रानी
नया टोला, कटिहार (बिहार)
स्वामी विवेकानन्द और माक्र्स
पिछले दिनों इतिहास दृष्टि स्तम्भ में डा. सतीश चन्द्र मित्तल ने माक्र्स और स्वामी विवेकानन्द के बीच बड़ी अच्छी तुलना की थी। माक्र्स का अनुकरण करने वाले पूरी मानवता के लिए अभिशाप बने, जबकि स्वामी विवेकानन्द के अनुयायी सर्वत्र प्रेम की गंगा बहा रहे हैं। माक्र्स का चिन्तन खण्डित था, तो विवेकानन्द में चिन्तन की पूर्णता थी। यही कारण है कि माक्र्स के विचार आज कालबाह्य हो गए हैं, जबकि स्वामी विवेकानन्द के विचार लोगों को प्रेरित कर रहे हैं।
-कालीमोहन सिंह
गायत्री मंदिर, मंगलबाग, आरा, भोजपुर-802301 (बिहार)
पञ्चांग
वि.सं.2069 तिथि वार ई. सन् 2012
वैशाख शुक्ल 1 रवि 22 अप्रैल, 2012
“” “” 2 सोम 23 “” “”
“” “” 3 मंगल 24 “” “”
(अक्षय तृतीया)
“” “” 4 बुध 25 “” “”
“” “” 5 गुरु 26 “” “”
(श्री शंकराचार्य जयन्ती)
“” “” 6 शुक्र 27 “” “”
“” “” 7 शनि 28 “” “”
मन में नफरत
जा करके अजमेर में, क्या बोले श्रीमान
ऊपर चाहे जो कहा, अंदर की लो जान।
अंदर की लो जान, भरी है नफरत मन में कैसे टूटे भारत, आग लगी है तन में।
कह “प्रशांत” हम कर लें कितनी भी अगवानी
नहीं सुधर सकता जरदारी पाकिस्तानी।।
-प्रशांत
टिप्पणियाँ