किष्किंधा कीकुछ कहानियां
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कुछ कहानियां
भारत कुमार
ऐतिहासक और पौराणिक किष्किंधा को भारत के राजनीतिक नक्शे में खोजने की कोशिश करें तो सुबह से रात हो जायेगी लेकिन इस खोज में सफलता नहीं मिलेगी। हां, वहां कर्नाटक राज्य जरूर दिखेगा। इसी कर्नाटक के दो जिले हैं कोप्पल और बेल्लारी। बस इन्हीं दो जिलों को किष्किंधा समझिये। किष्किंधा अब इन स्थानों का औपचारिक नाम नहीं रह गया है। यह नाम नक्शे से गायब है, केवल लोगों की जुबान पर जिंदा है। किष्किंधा क्षेत्र कुल मिलाकर 60 किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है। इसका 70 प्रतिशत हिस्सा कोप्पल जिले और 30 प्रतिशत हिस्सा बेल्लारी जिले में आता है। आज किष्किंधा क्षेत्र में अनेक सुविधाएं हो गई हैं। इसका बहुत बड़ा श्रेय प्रसिद्ध समाजसेवी और राज्यसभा सदस्य श्री बसवराज पाटिल को जाता है। किष्किंधा के कुछ प्रमुख स्थलों का ब्योरा इस प्रकार है-
आंजनाद्रि पर्वत
आंजनाद्रि पर्वत हनुमान जी की जन्म स्थली है। यह पर्वत किष्किंधा के मध्य भाग में स्थित है। इसकी ऊंचाई लगभग अस्सी मीटर है। 550 सीढ़ियां चढ़ने के उपरांत ही पर्वत की ऊंचाई पर स्थित हनुमान जी के मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। मंदिर में तीन कक्ष हैं। एक में हनुमान जी विराजमान हैं। दूसरे कक्ष में राम-लक्ष्मण और सीता जी की प्रतिमाएं हैं। इस कक्ष में चौबीस घंटे रामचरितमानस का पाठ, सुंदरकाण्ड का पाठ या हरि नाम संकीर्तन चलता रहता है। इन दोनों कक्षों के सामने माता अंजना जी का भवन है। इस भवन में माता अंजना जी की गोद में बैठे बालक रूप में हनुमान बड़े प्यारे लगते हैं। हनुमान जी की माता अंजना जी का यह भारत में इकलौता मंदिर है। मंदिर के बाहर एक वृक्ष है जिसकी डालियों पर लोग कपड़ा बांधकर हनुमान जी से अपनी मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करते हैं। मंदिर के महंत हैं स्वामी विद्यादास जी।
पंपा सरोवर
ब्रह्मा जी ने सृष्टि के आरंभ में जिन चार सरोवरों की स्थापना की थी पंपा सरोवर उन्हीं में से एक है। रामायण में ऐसा उल्लेख आता है कि सुग्रीव को खोजते हुए भगवान राम और लक्ष्मण यहां आये थे। इस सरोवर में उन्होंने स्नान भी किया था। यह क्षेत्र वर्षों पहले विजय नगर साम्राज्य का एक अंग हुआ करता था। विजय नगर राजपरिवार की यह कुल देवी थीं। ऐसा कहा जाता है कि राजपरिवार की प्रार्थना पर इन्हीं लक्ष्मी देवी की कृपा से राज्य के प्रमुख हिस्सों में सोने की बरसात हुई थी। मंदिर के महंत स्वामी रामदास जी रात को एक बजे उठकर लक्ष्मी जी की दो घंटे तक पूजा करते हैं। उसके बाद वे पहाड़ियों पर घूमने के लिए निकल पड़ते हैं। उनके बारे में ऐसा कहा जाता है कि उन्हें पक्षियों की भाषा समझने की विद्या का ज्ञान है। लक्ष्मी देवी के मंदिर के पीछे शबरी जी का आश्रम है।
पंपा सरोवर के पास रहने वाले साधु संत बताते हैं कि यहां आस-पास की चट्टानों में कोई ऋषि सूक्ष्म शरीर में तपस्या कर रहे हैं जो लोगों को नजर नहीं आते। यहां एक ऐसी जगह भी है जहां रोज सुबह भभूत और ताजे फूल आदि दिखाई देते हैं जिससे इस बात का अंदाजा मिलता है कि उस स्थान पर कोई अदृश्य ऋषि तपस्यारत हैं।
ऋष्यमूक पर्वत
ऋष्यमूक पर्वत वही पर्वत है जहां बाली से भयभीत होकर सुग्रीव अपने चार मंत्रियों के साथ रहते थे। इस पर्वत का नाम ऋष्यमूक क्यों पड़ा, यह जानना भी कम रुचिकर नहीं है। कहा जाता है कि यहां रहने वाले अधिकतर ऋषि मूक रहकर यानी मौन धारण करके साधना करते थे। इसलिए इसका नाम ऋष्यमूक पड़ गया। पर्वत में एक गुफा है जिसे मंदिर का रूप दे दिया गया है। इस मंदिर में सुग्रीव और हनुमान जी दोनों विराजमान हैं। मंदिर के साधु बताते हैं कि भारत में कहीं भी हनुमान जी और सुग्रीव जी का मंदिर एक साथ नहीं है। केवल यहीं पर है।
बाली पर्वत
जिस पर्वत पर बाली निवास करता था उसे आज बाली पर्वत या बाली गुफा के नाम से जाना जाता है। यह पर्वत काफी विस्तृत है। भीमकाय चट्टानों को देख यही विचार मन में उठता है कि इनके बीच रहने वाला बाली भी इन्हीं की तरह भीमकाय होगा। बाली गुफा के पास स्थित दुर्गा जी का मंदिर वही मंदिर है जहां कभी बाली पूजा करने सूर्योदय के पहले ही आ जाता था। मंदिर एक लम्बे-चौड़े चबूतरे पर स्थित है। इस चबूतरे और माता के मंदिर को एक विशाल पीपल के वृक्ष ने ढंक रखा है।
चिंतामणि मंदिर
चिंतामणि मन्दिर के निर्माण में संत सच्चिदानंद चिंतामणि का विशेष योगदान रहा है। इस कारण मंदिर का नाम चिंतामणि मंदिर पड़ा। मंदिर में एक शिवलिंग स्थापित है। इसके अलावा नरसी मेहता की प्रतिमा की स्थापना भी यहां की गई है। सफेद रंग से रंगा हुआ यह मंदिर तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर में एक ऐसा स्थान है जिसके बारे में यह कहा जाता है कि यहीं से राम जी ने बाली पर तीर चलाया था। उस स्थान पर हनुमान जी के चरण चिह्नों के प्रतीक के रूप में उनके पत्थर के चरण स्थापित किये गये हैं। उसके ठीक सामने छेनी और हथौड़ी की मदद से पत्थर पर तीर धनुष का चित्र भी बना हुआ है। इस स्थल के बिल्कुल नजदीक ही एक गुफा है जिसके बारे में कहा जाता है कि राम, लक्ष्मण, हनुमान, बाली और सुग्रीव युद्ध होने से पहले यहां बैठे थे। अभी वर्तमान में इतिहास का वह दृश्य प्रकट करने के लिए पत्थर पर राम लक्ष्मण का चित्र बनाकर उस गुफा में रख दिया गया है।
माल्यवंत रघुनाथ मंदिर
माल्यवंत पर्वत पर भगवान राम ने बरसात के चार महीने बिताये थे। इस पर्वत पर माल्यवंत रघुनाथ मन्दिर स्थित है। दक्षिण भारत के मंदिर अपनी नक्काशियों के लिए जाने जाते हैं। यह मंदिर भी इस बात का अपवाद नहीं है। मंदिर तो मंदिर, मंदिर के द्वार पर भी इतनी बारीक नक्काशियां की गई हैं कि कारीगरों की तारीफ किये बिना दिल नहीं मानता। मंदिर बहुत विशाल और भव्य है। मंदिर के मुख्य कक्ष में राम, लक्ष्मण और सीता जी की मूर्तियां विराजमान हैं। तीनों ही मूर्तियों का रंग काला है।
मधुवन
सीता जी का पता लगाकर लौटते समय वानरों ने जिस वन में फल खाये थे उसे मधुवन कहा जाता है। आज वन तो नहीं रह गया है लेकिन वहां दो मंदिर हैं। एक तो हनुमान मंदिर और दूसरा बाबा रामदेव का मंदिर। पहले मंदिर में हनुमान जी की जो मूर्ति है उसमें हनुमान जी का चेहरा मुड़ा हुआ है। यानी वह सामने नहीं देख रहे, बल्कि अपनी बायीं तरफ देख रहे हैं। उत्तर भारत और दक्षिण भारत के हनुमान मंदिरों में यह एक बड़ा अंतर है। जहां उत्तर भारत के मंदिरों में हनुमान जी सामने देखते हैं, वहां दक्षिण भारत के मंदिरों में चेहरा बायीं तरफ मुड़ा हुआ होता है। मधुवन में दूसरा मंदिर 13वीं शताब्दी में राजस्थान में जन्मे बाबा रामदेव का है। इस पूरी पर्वत श्रृंखला को देखना रोमांचक पर्यटक के अलावा मन को रामभक्ति से भर देता है। nÉvªÉ¨É से भी सम्पर्क किया जा सकता है।द
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