अब गायों का भी अपहरण और हत्या
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सनसनीखेज खुलासा
द अरुण कुमार सिंह
आज तक आपने ऐसी घटनाएं जरूर पढ़ी या सुनी होंगी कि अमुक व्यक्ति को कुछ लोगों ने उसके घर से ही जबरन उठा लिया और उसकी हत्या कर दी। पर अब गायों को भी बंदूक की नोक के बल पर जबरन उठाया जा रहा है और बड़ी बेरहमी से उनकी हत्या की जा रही है। ऐसी एक नहीं, अनेक घटनाएं हो चुकी हैं। हैरानी की बात तो यह है कि ये घटनाएं भारत के किसी सुदूर गांव की नहीं हैं, बल्कि उस दिल्ली की हैं, जहां से पूरा देश चलता है। हालिया घटना 25 मार्च, 2012 की है। तड़के लगभग 4.15 बजे जे.जे.कालोनी, बादली में रहने वाले किशन सिंह यादव और मनोज की दो गायें जबरदस्ती उठा ली गईं। थोड़ी ही दूरी पर एक नहर के किनारे उन गायों को काटा गया और मांस लेकर हत्यारे फरार हो गए। जनवरी 2012 से लेकर मार्च तक केवल 3 महीनों में ही इस कालोनी में इस तरह की लगभग 35 घटनाएं हो चुकी हैं, और 70 गायें मारी जा चुकी हैं। गोपालक मनोज ने बताया कि गो-हत्यारे दिन में मोटर साइकिल से घूम-घूम कर पता लगाते हैं कि गायें कहां-कहां रहती हैं और शाम ढलते ही ये कभी भी आ धमकते हैं। एक साथ 15-20 गो-हत्यारे होते हैं। हत्यारे एक या दो छोटे ट्रक (टाटा 407) लाते हैं। कालोनी के बाहर ट्रक खड़ा किया जाता है और ड्राइवर पूरी तरह मुस्तैद रहता है। खड़े ट्रक के अंदर कुछ हत्यारे ईंट, पत्थर और हथियार लेकर बैठे रहते हैं। बाकी हत्यारे एक हाथ में रस्सी और दूसरे हाथ में पिस्तौल लेकर कालोनी के अंदर प्रवेश करते हैं। गाय मिलते ही वे सबसे पहले बेहोशी का “इंजेक्शन” देते हैं। फिर 4-5 मिनट बाद बेहोश गायों की टांगें रस्सी से बांधकर ट्रक पर चढ़ा देते हैं। जब कालोनी वाले उनका विरोध करते हैं तो उन पर ईंट, पत्थर और गोलियां बरसाईं जाती हैं। इस कारण लोग अपने-अपने घरों में ही दुबके रहते हैं और गो-हत्यारे गाय लेकर भाग जाते हैं।
कहां हैं मेरी मां?
मनोज ने 25 मार्च की घटना के संबंध में बताया, “जब गो-हत्यारे आए उस समय हम सभी जगे हुए थे। हमारी एक गाय, जिसने 10 दिन पहले ही एक बछड़े को जन्म दिया था, बाहर बैठी हुई थी। हम लोगों के सामने हवा में गोली दागते हुए हत्यारे आए और उसके गले पर बेहोशी का “इंजेक्शन” लगा दिया। इसके बाद उन हत्यारों ने हमें ललकारा कि यदि ताकत है, तो अपनी गाय बचा लो। हम लोग उन हत्यारों का कुछ बिगाड़ नहीं पाए और वे हमारी मां (गाय) को ले गए। उसे तड़पा-तड़पाकर काटा। उसका दस दिन का बेटा (बछड़ा) अभी भी मां को ढूंढता है। उसकी हालत देखकर हमारी आंखों से आंसू टपकते हैं। अगर उस बछड़े के मुंह में आवाज होती तो वह जरूर रोता और हमसे पूछता कि मेरी मां कहां हैं?”
मनोज का पूरा परिवार गो-पालन में ही लगा है। जनवरी के प्रथम सप्ताह तक उनके पास 24 गायें थीं। अब 15 बची हैं। गो-हत्यारे 9 गायें जबरन ले गए। किशन सिंह यादव के साथ भी यही हुआ है। इसी अवधि में उनकी भी 9 गायों का अपहरण हुआ है। उन्होंने बताया कि 24 घंटे यह डर बना रहता है कि गो-हत्यारे आ जाएंगे और वे जबरदस्ती गाय उठा ले जाएंगे। बहुत अफसोस होता है कि हम अपनी गो माता की रक्षा भी नहीं कर पा रहे हैं। पिछले दिनों नरेला के बी पाकेट में रहने वाले मजीद के यहां गो-हत्यारों ने धावा बोला और कुछ ही घंटों में वहां से 40 गायें ले गए। विरोध करने पर गो-हत्यारों ने मजीद की टांगों पर गोली मार दी थी। इलाज के लिए मजीद महीनों अस्पताल में भर्ती रहे।
गो-हत्यारे इतना दुस्साहस कैसे कर पा रहे हैं? इसका उत्तर इन्द्रप्रस्थ विश्व हिन्दू परिषद् के प्रांत संगठन मंत्री श्री करुणा प्रकाश यूं देते हैं, “गो-हत्यारों के खिलाफ उचित कार्रवाई न होने से उनका दुस्साहस बढ़ा है। जब कोई घटना होती है, तो पुलिस प्रथम सूचना रपट (एफआईआर) दर्ज करने के लिए तैयार नहीं होती है। इसलिए गो-भक्तों को पहले एफआईआर दर्ज कराने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। जन दबाव पर एफआईआर दर्ज तो होती है, पर दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती है। यदि पुलिस-प्रशासन ने गो-हत्यारों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की तो विश्व हिन्दू परिषद् के कार्यकत्र्ता जगह-जगह प्रदर्शन करेंगे।”
गो-हत्यारे सगे भाई
पुलिस 25 मार्च की घटना की भी एफआईआर दर्ज नहीं कर रही थी। विश्व हिन्दू परिषद् के स्थानीय कार्यकत्र्ताओं और कालोनी वासियों ने जब हंगामा किया तब समयपुर बादली थाने में एफआईआर दर्ज हुई। किशन सिंह की पत्नी गीता द्वारा दर्ज एफआईआर का नम्बर है-100, तारीख 25 मार्च 2012। यह एफआईआर भारतीय दंड संहिता की धारा 379 और 429, दिल्ली कृषि पशु संरक्षण अधिनियम की धारा 4, 7 और 11 तथा पशु क्रूरता अधिनियम 1960 की धारा 11 (1)(एल) के तहत दर्ज हुई है। विश्व हिन्दू परिषद्, रोहिणी जिला के अध्यक्ष अशोक गुप्ता, मंत्री पवन गर्ग, वरिष्ठ कार्यकत्र्ता रवि मित्तल आदि बराबर कालोनी वासियों से सम्पर्क बनाए हुए हैं।
26 फरवरी को बादली गांव के मुकेश यादव की भी दो गायें हत्यारों के हत्थे चढ़ गई थीं। रात के करीब 9.15 बजे उनकी दो गायों को चैम्पियन टैम्पो (डी.एल.1 एल क्यू 1205) पर चढ़ाया जा रहा था। मुकेश ने शोर मचाया तो गांव के लोग इकट्ठे हो गए। उन्होंने मौके पर ही संजय खान और रमजान (निवासी घर नं.28, गली नं. 3, गांव कदीपुर, दिल्ली) को पकड़ लिया। दोनों सगे भाई हैं। गांव वालों ने दोनों की पिटाई करके पुलिस को सौंप दिया। अभी वे दोनों जेल में हैं और वह टैम्पो बादली थाने के बाहर खड़ा है।
गोपालक और कानून
ग्रामीणों ने बताया कि इस इलाके में जनवरी, 2012 से गाय चोरी की घटनाओं में काफी वृद्धि हुई है। गो-हत्यारे आसपास से गाय लाते हैं और रोहिणी सेक्टर-18 के पास नहर के किनारे काटते हैं। गायों के पैर, सींग आदि नहर में फेंक देते हैं। जबकि इसी नहर से हैदरपुर जल संयंत्र तक हरियाणा से पानी आता है और वही पानी निथारने के बाद दिल्ली वालों को पीने के लिए उपलब्ध कराया जाता है। नहर के किनारे जिस जगह गायें काटी जाती हैं, वह थोड़ी सुनसान है। लोगों का कहना है कि इस जगह नहर के अंदर बड़ी संख्या में गाय के पैर और सींग मौजूद हैं।
कुछ ग्रामीणों ने यह भी बताया कि शायद ही कोई ऐसी रात गुजरती होगी जब गो-हत्यारे नहीं आते हैं। गो-हत्यारे गोपालकों की उस कमजोरी का लाभ उठा रहे हैं, जो उन्हें अपनी गायों के अपहरण पर पुलिस को सूचना देने से रोकती है। जब गोपालक बहुत परेशान होने लगते हैं तभी वे किसी घटना की सूचना पुलिस को देते हैं। दरअसल, गोपालक किसी हादसे की सूचना पुलिस को देने से डरते हैं। उनका डर भी उचित ही है। पुलिस वालों को जब किसी गाय के अपहरण की खबर दी जाती है तो वे लोग रिहायशी इलाकों में गो पालन को ही अवैध ठहरा देते हैं। और नगर निगम के कर्मचारियों को बुलाकर उनकी गाय ही जब्त कर लेते हैं। पुलिस का कहना है कि गो-पालक वहीं गाय रख सकते हैं जहां उन्हें सरकार ने जगह दी है। किंतु गोपालकों का कहना है कि सरकार द्वारा आवंटित जगह पर भूलभूत आवश्यकताओं की घोर कमी है। बादली एवं उसके आसपास के गोपालकों को घोघा डेरी में जगह दी गई है। घोघा डेरी क्यों नहीं जा रहे हैं? यह पूछने पर गोपालकों ने पाञ्चजन्य को बताया कि आवंटित जगह पर कब्जा देने के लिए सरकार 96 मीटर जगह के लिए 7.50 लाख रु. और 60 मीटर जगह के लिए 4.50 लाख रु. मांगती है। गो-पालक इतने पैसे कहां से लाएं? जो गोपालक सक्षम हैं उन्होंने पैसा जमा तो करा दिया है, किंतु वे लोग सुविधाओं के अभाव में वहां नहीं जा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि घोघा डेरी में अभी मीठा पानी नहीं पहुंचा है। इस तरह की अनेक समस्याएं हैं। गोपालकों का कहना है कि पानी के अभाव में वहां डेरी चलाना बहुत मुश्किल है।द
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