व्यंग्य वाण
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व्यंग्य वाण
n विजय कुमार
यों तो शर्मा जी से हर दिन भेंट होती ही है, पर दो दिन से मेरा स्वास्थ्य खराब था। अत: वे घर ही आ गये। कुछ देर तो बीमारी की बात चली, फिर इधर–उधर की चर्चा होने लगी।
– वर्मा जी, कहते हैं कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं?
– हां, कोई उसे शेर–बकरी कहता है, कोई चित–पट, हेड–टेल, आगे–पीछे, ऊपर–नीचे या ऐसा ही कोई नाम।
– ये तो बच्चों वाली बात हुई। थोड़ा विस्तार से बताओ।
– सांसारिक रूप में इसका अर्थ यह है कि हर दुख के पीछे कोई सुख, और सुख के पीछे दुख छिपा है। ईश्वर जब एक द्वार बंद करता है, तो दूसरा खोलता भी है। अब यह व्यक्ति के मनोबल पर निर्भर है कि वह उसे पहचान कर अपने मार्ग पर बढ़ चले।
– इसका कोई उदाहरण दो वर्मा जी।
– जैसे बालक ध्रुव को उसके पिता ने अपने सिंहासन पर नहीं बैठने दिया, तो प्रभु की भक्ति कर उसने आकाश में तारों के बीच वह अटल स्थान पा लिया, जो अन्य किसी को नहीं मिला।
– क्या इसका राजनीति में भी कोई उदाहरण हो सकता है ?
– शर्मा जी, इस बारे में तो आप ही ज्ञानवृद्धि कर सकते हैं।
– तो सुनो, राजनीति में भी हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। वो अपने नेताजी हैं न, जो हमारे साथ पहले खूब कबड्डी खेलते थे।
– हां–हां, उन्हें कैसे भूल जाएंगे। बचपन में हम लोग साथ–साथ साइकिल पर और जवानी में स्कूटर पर घूमते थे, पर अब तो वे कार से नीचे पैर ही नहीं रखते।
– कैसे रखेंगे, वे नेताजी जो हो गये ?
– हां, पिछली बार उन्होंने विधानसभा का चुनाव लड़ा था। साथियों के परिश्रम और भगवान की कृपा से वे विधायक बन गये थे।
– विधायक ही नहीं, बाद में मंत्री भी बने।
– हां, मुझे सब मालूम है।
– पर तुम्हें यह मालूम नहीं है कि उसके बाद नेताजी ईद के चांद हो गये। जिसे दिन में एक बार मिले बिना चैन नहीं पड़ता था, उससे मिलने के लिए पहले से समय लेना जरूरी हो गया।
– शर्मा जी, मंत्री पद की कुछ मजबूरियां होती हैं। उन पर काम का बहुत बोझ होता है। आपको इसे भी समझना चाहिए।
– मैं तो बहुत कुछ समझता हूं, पर जब नेता जी फोन उठाना बंद कर दें, जब वे दिन में आठ–दस बार बाथरूम जाने लगें, जब उनके सचिव यह पूछने लगें कि मंत्री जी से आपको क्या और कितनी देर का काम है, तो समझ लेना चाहिए कि मामला कुछ गड़बड़ है।
– लेकिन आप इस उदाहरण से क्या बताना चाहते हैं ?
– मैं यह बताना चाहता हूं कि इस बार वे हार गये हैं। विधायकी तो गयी ही, उनके दल की सरकार न बनने से रुतबा भी जाता रहा।
– अरे ! यह तो बहुत बुरा हुआ।
– हां, बुरा तो हुआ, पर इस सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि चुनाव के बाद जब मैंने फोन किया, तो पहली घंटी बजते ही उन्होंने खुद फोन उठा लिया।
– अच्छा.. ?
– जी हां, और जब मैंने अपनी एक समस्या बताई, तो वे शाम को मेरे घर ही आ गये। जिसने सुख–दुख में झांकना तक बंद कर दिया था, वह बिना बुलाये घर आ जाए, तो आश्चर्य नहीं होगा ?
– तो आपके कहने का अर्थ यह है कि अब नेताजी फिर से अपने मित्रों और आम जनता के लिए उपलब्ध होने लगे हैं।
– जी हां, यह सिक्के का दूसरा पहलू है, जो उनके लिए दुखद, पर हमारे लिए सुखद है।
– पर शर्मा जी, यदि वे मंत्री बनने के बाद भी आम जनता से ऐसे ही प्रेम से मिलते रहते, तो यह हाल न होता ?
– यह तुम मुझसे नहीं, नेता जी से ही कहो।
शर्मा जी की बात सुनकर मुझे जोर का झटका धीरे से लगा। शर्मा जी तो घर चले गये, पर मैं तब से अपना सीना दबाये, इस झटके से उत्पन्न दर्द को झेल रहा हूं। इससे उबरने का कोई उपाय आपके पास हो, तो मुझे जरूर बताएं।
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