जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तानी दुष्प्रचार को विफल करे भारत
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n नरेन्द्र सहगल
जम्मू कश्मीर में अब तक सक्रिय और पाकिस्तान की मदद कर रहे कश्मीरी उग्रवादियों व पाकिस्तान समर्थित उग्रवादी संगठनों के ढीले पड़ जाने से चिंतित आईएसआई ने अब विदेशी आतंकवादियों के साथ पाकिस्तानी फौज के नियमित सैनिकों को कश्मीर में भेजना शुरू किया है। खेद की बात है कि उनके पकड़े जाने और पूरे षड्यंत्र का रहस्योद्घाटन हो जाने पर भी भारत सरकार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की पोलपट्टी खोलने में नाकाम सिद्ध हो रही है।
कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देने के पाकिस्तानी प्रयासों और अनेक देशों द्वारा (सूडान, सीरिया, तजाकिस्तान, ईरान इत्यादि) बाकायदा प्रशिक्षित घुसपैठिए भेजने के योजनाबद्ध षड्यंत्र को विश्व स्तर पर नंगा नहीं किया जा रहा। अपने पास इस विदेशी घुसपैठ के पुख्ता सबूत होने के बावजूद प्रचार तंत्र के मामले में भारत अभी भी चूक रहा है। यह चूक अथवा ढिलाई कश्मीर पर भारत के मजबूत पक्ष को ढीला कर रही है। यही कारण है कि संसार के कई देश कश्मीर समस्या के वास्तविक कारणों की जानकारी से वंचित हैं। अलबत्ता कश्मीर की वस्तुस्थिति से अनभिज्ञ ये देश कई बार भारत को ही कसूरवार ठहरा देते हैं।
मुस्लिम देशों की मदद
कश्मीर के संबंध में प्रचार के मोर्चे पर पाकिस्तान भारी पड़ रहा है। भारत का प्रचार तंत्र इतना ढीला है कि मौके पर पकड़े जा रहे विदेशी घुसपैठियों और उनसे बरामद हो रहे आधुनिक शस्त्रों और रासायनिक सामग्री को भी संसार के सामने नहीं ला पा रहा। ताज्जुब तो तब होता है जब कश्मीर में सफलतापूर्वक चल रहे पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद की जानकारी विदेशी समाचार एजेंसियां ज्यादा देती हैं। यहां तक कि छिपकर पाकिस्तान की मदद करने वाले अमरीका के विदेश विभाग की वार्षिक रपटों में भी स्पष्ट किया जाता है कि पाकिस्तान कश्मीर में हो रही हिंसक गतिविधियों के लिए जिम्मेदार है।
पाकिस्तान ने कश्मीर पर अपने पक्ष को रखने तथा भारत और भारतीय फौज को बदनाम करने के लिए कई मोर्चे खोले हुए हैं। वर्ष में एक-दो बार होने वाले मुस्लिम देशों के सम्मेलनों में पाकिस्तान कश्मीर के सवाल को मजहब के साथ जोड़कर मुस्लिम देशों, विशेषकर अरब देशों का समर्थन जुटाने का प्रयास करता है। इन सम्मेलनों में कश्मीर में भटकाव के शिकार कश्मीरी युवकों को जिहाद के लिए लड़ रहे 'गाजी' बताकर पाकिस्तान कश्मीर को मुस्लिम देश घोषित करता है।
वैश्विक मंचों पर सक्रियता
इस प्रकार मजहब की दुहाई देकर अरब देशों की मुस्लिम मानसिकता को उकसा कर वह एक तीर से दो शिकार करने में सफल हो रहा है, कश्मीरी युवकों को मजहब की रक्षा के लिए प्रेरित करना और संसार में यह प्रचारित करना कि भारत में मुसलमान जुल्मों का शिकार हो रहे हैं।
पाकिस्तान के प्रचारतंत्र का दूसरा मोर्चा वे अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं हैं जिन पर बड़े राष्ट्रों का जबरदस्त और जबरदस्ती कब्जा बरकरार है। संयुक्त राष्ट्र संघ, सार्क, जी-8 और जी-5 इत्यादि ऐसे गुट हैं, जिनके मंचों पर पाकिस्तान पूरी तैयारी के साथ कश्मीर में भारत द्वारा किए जा रहे तथाकथित अत्याचारों को उजागर करता है।
इन संस्थाओं की बैठकों, सम्मेलनों और वार्ताओं में पाकिस्तान के प्रतिनिधि छपा हुआ साहित्य लेकर जाते हैं जिसमें कश्मीर के मुसलमानों पर हो रहे जुल्मों की मनगढ़ंत और गैरकानूनी कहानियां और चित्र होते हैं। यह सारा प्रचार इतना व्यवस्थित और नपा तुला होता है कि अधिकांश देश इससे न केवल प्रभावित ही होते हैं, अपितु भारत के खिलाफ अपनी एकतरफा राय भी कायम करते हैं।
भारत विरोधी पाक मीडिया
पाकिस्तान के प्रचारतंत्र का तीसरा और सशक्त मोर्चा है वहां का दूरदर्शन, रेडियो और समाचार पत्र। इस माध्यम से तो पाकिस्तान अपनी जनता को बरगलाने, जुनूनी बनाने और भारत के विरोध में खड़ा करने में बहुत हद तक कामयाब रहा है। पाकिस्तान के इस प्रचार तंत्र से तो जम्मू-कश्मीर और पंजाब के निकटवर्ती भारतीय क्षेत्रों के एक विशेष समुदाय के लोग भी प्रभावित होते हैं।
गौरतलब है कि पंजाब में 13 वर्ष तक चलते रहे आतंकवाद का ज्यादा असर अमृतसर, फिरोजपुर एवं गुरदासपुर जिलों के सीमावर्ती गांवों में था। क्योंकि इस क्षेत्र में पाकिस्तान का लाहौर दूरदर्शन केन्द्र भारत विरोधी प्रचार में अत्यधिक सक्रिय था।
वर्षों से लाहौर दूरदर्शन केन्द्र जम्मू, साम्बा, कठुआ, अखनूर, डोडा, भद्रवाह एवं किश्तवाड़ के इलाकों में अपना जहर घोल रहा है। यह सारा क्षेत्र जम्मू- कश्मीर की पाकिस्तान के साथ लगती सीमा पर है और यहां पर पाकिस्तान के दूरदर्शन को बहुत ही स्पष्ट देखा जाता है। इस सारे सीमांत क्षेत्र के अधिकांश गांवों में आतंकवादियों के अड्डे हैं और ये लोग भोले-भाले लोगों को लाहौर दूरदर्शन द्वारा प्रसारित कार्यक्रमों को देखने के लिए प्रेरित व मजबूर करते हैं। इस ओर केन्द्र और राज्य की सरकारें आंखें मूंदें रहती हैं और वहां भारतीय दूरदर्शन व आकाशवाणी की पहुंच बढ़ाने का कोई प्रयास नहीं होता ताकि क्षेत्र-वासी सच्चाई को जान सकें। राज्य में अब्दुल्ला खानदान की सरकारें तो जान बूझकर भारतीय प्रयासों को प्रभावी नहीं होने देतीं।
गला फाड़ शोर
इन कार्यक्रमों में पंजाबी, डोगरी और कश्मीरी भाषा में तैयार किए गए ड्रामे, किस्से-कहानियां, नकलें और गजलें इत्यादि होती हैं जिनमें जम्मू-कश्मीर के लोगों को आजादी की जंग के लिए उकसाया जाता है।
पाकिस्तान के प्रचार तंत्र का चौथा हिस्सा भी बड़ा खतरनाक है। भारत और पाकिस्तान की सीमा पर लाउडस्पीकरों एवं कई बार ढोल-नगाड़ों के साथ शोर मचाकर भारतीय गांव के लोगों का ध्यान खींचा जाता है। इस शोर में भी भारतीय फौज के तथाकथित जुल्म, सरकार की चुप्पी, जिहादी युवकों की बहादुरी के कारनामे और मुल्ला मौलवियों के मजहबी आदेश शामिल होते हैं।
भारत सरकार, सेना और जम्मू- कश्मीर की पुलिस को गंदी गालियां दी जाती हैं और 'आजादी' के लिए लड़ रही जनता से 'इन कुत्तों' को मार डालने के आदेश होते हैं। यह सारा दुष्प्रचार 'जंगे आजादी, निजामे मुस्तफा की हुकूमत के लिए जिहाद और इस्लाम खतरे में है' जैसे भावनास्पद शब्दों और नारों के जरिए ही किया जा रहा है।
भारत की खतरनाक कोताही
उपरोक्त चारों मोर्चों पर चल रहे भारत विरोधी प्रचार तंत्र को पाकिस्तान सरकार, फौजी अधिकारी और वहां की गुप्तचर संस्था के रहनुमा पूरे जोश, जोर और एक सुचारू व्यवस्था के अंतर्गत चला रहे हैं। भारत की गुप्तचर संस्थाओं, जम्मू-कश्मीर की पुलिस, वहां तैनात फौजी अफसरों ने कई बार इस प्रचार तंत्र की चिंता सरकार के साथ जताई है। इतना सब कुछ होते हुए भी भारत की ओर से इस प्रचार का कोई उत्तर देना तो दूर रहा, इस प्रचार का हवाला भी कहीं नहीं दिया जा रहा।
हालांकि कई ऐसे मंच भारत के पास भी उपलब्ध हैं जिन पर पाकिस्तान के भारत विरोधी प्रचार का भांडा फोड़ा जा सकता है। परंतु भारत की इस ओर बरती जा रही कोताही की कोई वजह नजर नहीं आ रही।
अब तो पाकिस्तान का यह सिलसिला पहले से कहीं ज्यादा बड़े पैमाने पर चल रहा है। पाकिस्तान ने विश्व मंचों पर अपना प्रचार तंत्र तेज करने के साथ-साथ कश्मीर में पाकिस्तानी फौज के सैनिकों को भेजना शुरू कर दिया है। परमाणु परीक्षणों के बाद तेजी से बदली परिस्थितियों का फायदा उठाकर अपना उल्लू सीधा करने के लिए लालायित पाकिस्तान के शासक भारत विरोधी प्रचार के साथ ही जम्मू-कश्मीर में दम तोड़ रहे आतंकवाद को बढ़ाने की साजिशें रच रहे हैं। पाकिस्तान के इस सारे षड्यंत्र का भांडाफोड़ करने के लिए भारत सरकार को विस्तृत योजना तैयार करनी चाहिए।
प्रचार तंत्र की जरूरत
जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को समाप्त करने के उद्देश्य से भारत सरकार करोड़ों रुपये का वार्षिक खर्च वहन कर रही है। बर्फ से ढके पहाड़ों से लेकर दूरदराज के छोटे-छोटे गांव तक में लोगों के जान माल की रक्षा के लिए जम्मू-कश्मीर की पुलिस और भारतीय सेना के जवान देशद्रोह को समाप्त करने के लिए अपनी जान तक की बाजी लगा रहे हैं। अभी तक तो हमारी केन्द्रीय सरकार ने इस विदेश प्रेरित आतंकवाद को समाप्त करने के लिए जम्मू-कश्मीर सरकार के साथ मिलकर एक कार्य योजना बनाने पर मात्र विचार ही किया है।
अत: पाकिस्तान के प्रचार तंत्र का मुकाबला यदि भारत ने पूरी ताकत और तीव्र गति से न किया तो दुनिया के सामने हम ही कसूरवार ठहराए जाएंगे। अब तक यही होता आया है। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। 27 अक्तूबर 1947 को इसका विधिवत विलय भारत में हो चुका है। तभी से ही पाकिस्तान ने कश्मीर को हथियाने के जो हथकंडे अपनाए हैं उनमें तीन युद्धों के अतिरिक्त पंजाब एवं कश्मीर में सशस्त्र घुसपैठियों द्वारा हिंसा फैलाना भी है। दुनिया के समक्ष इस सच्चाई को लाने के लिए भारतीय प्रचार तंत्र को अब सक्रिय, पुख्ता, गतिशील और आधुनिक अनुशासित बनाने की जरूरत है। इस ओर की गई पर लारवाही देश की अखंडता के लिए खतरनाक हो सकती है। n
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