पाठकीय (अंक-सन्दर्भ 4 & 11 मार्च,2012)
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पाठकीय
अंक-सन्दर्भ
4 & 11 मार्च,2012
आवरण कथा में श्री आलोक गोस्वामी की रपट “जी का जंजाल” में बड़ी संवेदनशीलता के साथ एक प्रासंगिक मुद्दे को उठाया गया है। पारिवारिक मनोरंजन के नाम पर टी.वी. चैनलों के जरिए भारतीय समाज को भ्रष्ट दिशा की ओर धकेला जा रहा है। श्रीमती स्मृति ईरानी ने सही कहा है कि जो आपत्तिजनक लगे, उसकी कम से कम हम शिकायत भी तो करें।
-प्रो. राजाराम
एच-8, सूर्याआवासीय परिसर, राजा भोज मार्ग, भोपाल (म.प्र.)
द अधिकांश धारावाहिक मनोरंजन के नाम पर फूहड़ता परोस रहे हैं। साथ ही घर-समाज में तरह-तरह की विकृति फैला रहे हैं। पति-पत्नी, देवरानी- जेठानी, भाभी-ननद, सास-बहू जैसे रिश्तों में दरार इस तरह दिखाई जाती है, मानो ये रिश्ते ही बेमानी हैं। इन धारावाहिकों के बीच में इतने घटिया विज्ञापन दिखाए जाते हैं, जिन्हें घर के बड़े-बुजुर्गों के साथ देख भी नहीं सकते।
-शीबा भटनागर
1सी/बी-5, धवलगिरि अपार्टमेंट, सेक्टर-34, नोएडा (उ.प्र.)
पुलिस पर राजनीतिक दबाव न हो
श्री मनमोहन शर्मा की रपट “हालात विस्फोटक” एक गंभीर मुद्दे को पाठकों तक पहुंचाती है। दिल्ली पुलिस पर इतना राजनीतिक दबाव है कि वह किसी संदिग्ध से पूछताछ भी ठीक ढंग से नहीं कर पा रही है। यह जानकर बड़ा दु:ख हुआ कि संदिग्ध से पूछताछ करने पर कुछ पुलिसकर्मियों को निलंबित किया जा चुका है। हैदराबाद में भी यही स्थिति है। यहां के मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में पाक प्रशिक्षित आतंकवादी और बंगलादेशी घुसपैठिए बड़ी संख्या में रहते हैं। किन्तु राजनीतिक दबाव के कारण पुलिस उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पाती है।
-प्रमोद प्रभाकर वालसंगकर
म.सं. 1-10-81, रोड नं.-8बी, द्वारकापुरम, दिलसुखनगर हैदराबाद-500060 (आं.प्र.)
होली का उल्लास
चर्चा सत्र में श्री हृदयनारायण दीक्षित के सारगर्भित आलेख “होली के उल्लास पर न हो हालात का तुषारापात” में यह आकलन बिल्कुल सही है कि होली भारत की उमंग और भारत के मन की रंग-तरंग है जिसे हालात के तुषारापात से बचाना आवश्यक है। होली हमारा एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है जिसे जाति, पंथ, उम्र से परे हटकर उल्लास-उमंग और आपसी भाईचारे के रूप में मनाया जाता है। दु:ख तो इस बात का है कि अब जैसे-जैसे समाज के सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों में गिरावट आ रही है इस खूबसूरत और मनभावन त्योहार का रंग रूप भी बदल गया है। जिसका प्रमाण है कि होली अपने पवित्र उद्देश्य से भटककर अराजकता और अशान्ति का पर्याय बन चुकी है जिस पर अंकुश लगाना आवश्यक है।
-आर.सी. गुप्ता
द्वितीय ए-201, नेहरू नगर, गाजियाबाद-201001 (उ.प्र.)
सांस्कृतिक सौन्दर्य का प्रतिबिंब
मैं पाञ्चजन्य का पिछले कई सालों से नियमित पाठक हूं। सरोकार स्तम्भ में श्रीमती मृदुला सिन्हा के विचार बड़े अच्छे लगते हैं। उनके लेखों में मानव जीवन के सांस्कृतिक सौन्दर्य का प्रतिबिंब दिखता है।
-आनंद हरि ओक
706, नारायण पेठ, अन्नपूर्णा, लक्ष्मी रास्ता
पुणे-411030 (महाराष्ट्र)
उन्हें प्रताड़ित हिन्दू नहीं दिखते
श्री अरुण कुमार सिंह की रपट “बंगलादेश में हिन्दू होना गुनाह है?” पढ़कर रूह कांप उठी। यह कैसी विडम्बना है कि जिस सनातनी हिन्दू संस्कृति ने दुनिया को विश्व कल्याण का पावन मंत्र दिया, वसुधैव कुटुम्बकम् जैसा परिवार भाव और शांति का संदेश दिया, आज उसी हिन्दू समाज पर पैशाचिक वृत्ति के अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं। कथित मानवाधिकारियों को किसी मुसलमान के साथ हुआ अन्याय तो दिखता है और वे गला फाड़-फाड़कर ऐसा हौवा खड़ा कर देते हैं जैसे पूरी धरती ही खतरे में पड़ गई हो। लेकिन जगह-जगह हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार उन्हें नहीं दिखते हैं।
-परमेश्वर प्रसाद कुमावत सांगरिया
शाहपुरा, भीलवाड़ा (राजस्थान)
द बंगलादेश और पाकिस्तान में हिन्दुओं का जीना दूभर हो गया है। हिन्दू महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार और फिर हत्या आम बात हो गई है। ये घटनाएं मध्ययुग की याद दिलाती हैं। हिन्दुओं को जबर्दस्ती मुसलमान भी बनाया जा रहा है। किन्तु कोई उनके पक्ष में बोलने को भी तैयार नहीं है।
-दयाशंकर मिश्र
मण्डोली (दिल्ली)
किसे है देश की चिन्ता?
स्वार्थ की राजनीति ने देश में समस्याओं को खत्म करने के बजाय बढ़ाया है। संविधान में अब तक 109 संशोधन हो चुके हैं। इनमें से अधिकांश संशोधन वोट की राजनीति के लिए किए गए हैं। यदि सरकार चलाने वालों को राष्ट्र की चिन्ता होती तो वे अपनी राजनीति चमकाने के लिए नहीं, बल्कि जरूरत पड़ने पर देशहित को मजबूत करने के लिए संविधान में संशोधन करते। किन्तु ऐसा नहीं हो रहा है। “फूट डालो, राज करो” की नीति अब भी चल रही है। देश की दशा देखकर बड़ा दु:ख होता है।
-लक्ष्मी चन्द
गांव-बांध, डाक-भावगढ़ी, कसौली, जिला- सोलन-173233 (हि.प्र.)
अंक-सन्दर्भ थ्4 मार्च,2012
सब कुछ योजनाबद्ध
आवरण कथा के अन्तर्गत श्री अरुण कुमार सिंह की रपट “हिन्दुओं को उजाड़ने की कोशिश” से दिल्ली में कट्टरवादियों की हरकतों की जानकारी मिली। केन्द्र सरकार की नाक के नीचे कट्टरवादी उत्पात मचा रहे हैं, हिन्दुओं का जीना दूभर कर रहे हैं, और केन्द्र सरकार चुपचाप तमाशा देख रही है। यह बहुत ही दुर्भाग्यजनक स्थिति है।
-राममोहन चंद्रवंशी
अभिलाषा निवास विट्ठल नगर, स्टेशन रोड, टिमरनी
जिला-हरदा (म.प्र.)
द बी.के. दत्त कालोनी में सब कुछ एक योजना के तहत हो रहा है। वहां प्राय: रोज ही तनाव रहता है। किन्तु पुलिस हिन्दुओं को ही परेशान करती है। कट्टरवादियों को पूरा सरकारी संरक्षण मिला हुआ है। वहां पहले सब कुछ ठीक था। किन्तु कुछ मजहबी और राजनीतिक नेताओं की शह पर कट्टरवादी वहां के सरकारी भूखण्डों पर जबर्दस्ती कब्जा कर रहे हैं। लोगों को घर से निकलने का भी रास्ता नहीं दे रहे हैं। समस्या की जड़ यही है।
-बी.एल. सचदेवा
263, आई.एन.ए. मार्केट, नई दिल्ली-110023
देशहित गौण
नई दिल्ली में आयोजित अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी में वक्ताओं ने बड़ी अच्छी और समसामयिक बात कही है कि पाकिस्तानी चंगुल से गिलगित, बाल्टिस्तान को मुक्त कराए भारत। किन्तु भारत सरकार में ऐसी इच्छा दिखती ही नहीं है। वह तो भारतीय कश्मीर के बारे में भी कई ऐसे निर्णय लेती है, जिनका फायदा पाकिस्तानी तत्वों को ही होता है। दरअसल भारत सरकार अपने दलगत हित को देखते हुए ही कोई काम करती है। उसके सामने देशहित कोई मायने नहीं रखता है। वर्ग, जाति, प्रान्त, भाषा और मजहब में बंटे देशवासी भारत सरकार की करतूतों को देख ही नहीं पाते हैं।
-विकास कुमार
शिवाजी नगर, वाडा, जिला-थाणे (महाराष्ट्र)
सेकुलरी मानसिकता
इतिहास दृष्टि स्तम्भ में डा. सतीश चन्द्र मित्तल ने अपने लेख “भारत विभाजन का षड्यंत्र और कांग्रेस” में देश-विभाजन में कांग्रेस की भूमिका को बहुत अच्छी तरह रेखांकित किया है। विभाजन का अनेक संगठनों ने विरोध किया था, किन्तु कांग्रेस ने उसे मौन स्वीकृति दी थी। देश-विभाजन के समय हिन्दुओं के साथ हुई मार-काट, अत्याचार को नजरअंदाज किया गया। वर्षों पहले विभाजन की पृष्ठभूमि पर एक धारावाहिक बना था, जिसमें दंगाइयों को “हर-हर महादेव” का घोष करते दिखाया गया था। क्या दंगाई केवल हिन्दू ही थे? सेकुलर मुस्लिमों द्वारा किए गए अत्याचारों को छिपाने का प्रयास करते हैं। यह मानसिकता अभी भी हावी है।
-मनोहर “मंजुल”
पिपल्या-बुजुर्ग, पश्चिम निमाड़-451225(म.प्र.)
सुन्दर काव्य-चयन
गवाक्ष में श्री हरिओम अम्बर ने कहीं से चुनकर सुन्दर काव्य-गुलदस्ता होली पर प्रस्तुत किया। हिन्दी के वामपंथी आलोचक अपने ढंग की कविताओं का चयन करते हैं। वामपंथी आलोचना जहां कूड़े में कीड़े ढूंढती है, वहीं राष्ट्रवादी आलोचना कूड़े को ही खत्म करती है, ताकि समाज में सड़ांध पैदा न हो।
-प्रो. परेश
1251/8सी, चण्डीगढ़
सारगर्भित विचार
श्री देवेन्द्र स्वरूप के लेख “नमक सत्याग्रह से घबराई ब्रिटिश सरकार” में बड़े ही सारगर्भित विचार आए हैं। ब्रिटिश सरकार का मूल उद्देश्य था भारत की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और भौगोलिक विरासत को समाप्त करना। इसी उद्देश्य से अंग्रेजों ने भारत में रह रहे विभिन्न मत-पंथ और जाति के लोगों के बीच विद्वेष पैदा किया। काल के प्रवाह में वह विद्वेष गहराता गया और उसी का दुष्परिणाम हम भुगत रहे हैं। ब्रिटिश सरकार की कुचालों को हमारे नेता समझ नहीं पाए और देश बंट गया।
-उदय कमल मिश्र
गांधी विद्यालय के समीप, सीधी-486661 (म.प्र.)
बेटी और हमारी सोच
आंगन की तुलसी में सोनाली मिश्रा का लेख “बेटी है प्यारी, मां की दुलारी” समाज में व्याप्त एक गंभीर समस्या को सामने लाता है। कन्या भ्रूण हत्या महापाप है। बेटा और बेटी में फर्क रखने के कारण यह पाप लोग कर रहे हैं। आवश्यकता है बेटी के प्रति सोच बदलने की। जो समाज कन्या की पूजा करता है, वह उसे मार कैसे रहा है? बेटी का प्यार बेटे से नहीं मिल सकता है। फिर भी लोग बेटी के बारे में गलत धारणा रख रहे हैं।
-हरिहर सिंह चौहान
अंवरी बाग नसिया, इन्दौर-452001 (म.प्र.)
इटली से कोई वैद्य बुलाएं
नजर किसी को आ रहे, मध्यावधि चुनाव
और किसी को मिल रहे, नहीं कहीं भी भाव।
नहीं कहीं भी भाव, चोट ऐसी है खाई
ढूंढ रहे सब ओर, मिल रही नहीं दवाई।
कह “प्रशांत” इटली से कोई वैद्य बुलाएं
एक साथ पूरे घर का इलाज करवाएं।।
-प्रशांत
पञ्चांग
वि.सं.2069 तिथि वार ई. सन् 2012
वैशाख कृष्ण 2 रवि 8 अप्रैल, 2012
“” “” 3 सोम 9 “” “”
“” “” 4 मंगल 10 “” “”
“” “” 5 बुध 11 “” “”
“” “” 6 गुरु 12 “” “”
“” “” 7 शुक्र 13 “” “”
“” “” 8 शनि 14 “” “”
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