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दृष्टिपात
आलोक गोस्वामी
उ. कोरिया के राकेट से जापान की नींद उड़ी
परमाणु बमों की तकनीक चुराकर या दागी पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल कादिर को पैसा देकर चीनी तकनीक उड़ाकर परमाणु बम बनाने और दुनिया में अपनी तानाशाही से चिंता पैदा करने वाला उ. कोरिया 14 से 16 अप्रैल के बीच “यू.एन.एच.ए.-3” राकेट छोड़ने वाला है। पश्चिमी तट से छोड़े जाने वाले इस राकेट की उड़ान के रास्ते में जापान की धरती आती है सो उ. कोरिया की हरकतों को अच्छी तरह जानने वाले जापान ने किसी अनहोनी से निपटने की पुख्ता तैयारी की है। उसने सेना को सतर्क कर दिया है और अवरोधक मिसाइलें तैनात करने के हुक्म दे दिए हैं। जापानी रक्षामंत्री नाओकी तानाका ने कहा है कि अगर कहीं राकेट रास्ता भटक जाए या रास्ते में टपक पड़े तो उसे हवा में ही नेस्तोनाबूद करने के लिए अवरोधक मिसाइलें तैनात करेंगे। ऐसी तीन मिसाइलें प्रशान्त और पूर्वी चीन सागर पर तैनात की जाएंगी। जबकि सचल पेट्रियाट मिसाइल प्रक्षेपक ओकीनावा में तैनात किए जाएंगे। हालांकि राजधानी तोक्यो संभावित उड़ान रास्ते से बहुत दूर है पर वहां भी एक अवरोधक मिसाइल इकाई लगाई जाएगी। उधर दक्षिण कोरिया ने भी खबरदार किया है कि वह उ. कोरिया के राकेट के किसी भी हिस्से को दाग कर गिरा देगा जो दक्षिण कोरिया के इलाके के ऊपर से गुजरेगा।
बताते हैं कि उत्तर कोरिया अपना उपग्रह कक्षा में छोड़ना चाहता है। लेकिन उसके स्वभाव को देखते हुए जापान, अमरीका सहित दूसरे देशों को लगता है कि उ. कोरिया अपनी दूर मार करने वाली मिसाइलों की खूबियां परखना चाहता है, जो कि अंतरराष्ट्रीय समझौते के खिलाफ है। बहरहाल, जापान ने अवरोधक मिसाइलें परखी तो हैं, पर उनका असल हालात में कभी इस्तेमाल नहीं किया है। अब भी वह यही मना रहा है कि उन्हें इस्तेमाल करने की नौबत न आए तो ही अच्छा। थ्
सईद नहीं तो लुधियानवी ही धरा
27 मार्च को इस्लामाबाद की सड़कों पर फिल्मी स्टाइल में कारों की तेज रफ्तार दौड़, घंटों का यातायात जाम, पुलिस की बख्तरबंद गाड़ियों के काफिले, सायरन बजातीं पुलिस जीपों के फर्राटे और पसीने पोंछते बड़े वाले पुलिस अफसरों के नजारों के बीच “चूहा दौड़ बिल्ली आई”, न न “सईद दौड़ पुलिस आई” का खेल खूब चला। हुआ यूं कि दागी जमात-उत-दावा प्रमुख हाफिज मोहम्मद सईद (मुम्बई पुलिस को भी जिसकी तलाश है) और अहले सुन्नत वल जमात का नेता अहमद लुधियानवी, दोनों पाबंदी के बावजूद इस्लामाबाद में “दफाए पाकिस्तान काउंसिल” के प्रदर्शन में तकरीर करने पहुंचना चाहते थे। यह प्रदर्शन हुकूमत पर दबाव बनाने के लिए था कि “नॉटो” की आपूर्ति के वे रास्ते फिर से न खोले जाएं जो पिछले साल बंद कर दिए गए थे। दोनों जिहादी नेताओं पर इस्लामाबाद में घुसने पर कानूनन पाबंदी है सो उनके आने की खबर सूंघकर पुलिस मुस्तैद हो गई। चप्पे-चप्पे पर संगीन थामे पहरुए खड़े हो गए। पर न जाने कैसे सईद और लुधियानवी प्रदर्शन के मंच तक पहुंच ही गए। पाकिस्तानी संसद से फर्लांग भर दूर परेड मैदान में कट्टरवादी तंजीम के हजारों कार्यकर्ताओं के सामने सईद ने कुछ वक्त बोलने तक की “हिमाकत” दिखा दी। पर जैसे ही रौल-चौल बढ़ी और पुलिस के आ धमकने की खबर लगी, तो सईद तेजी से निकल लिया, पुलिस के हत्थे नहीं आया। इस पर पाकिस्तान का सबसे बड़ा अंग्रेजी अखबार “डान” लिखता है- “बौना निकला राजधानी का सुरक्षा तंत्र सईद और लुधियानवी के सामने।” अखबार ने लिखा- “वो आए और गायब हो गए। रोके गए, छोड़े गए, अपनी कारों में अटकाए गए पर अपने बंदूकधारी पहरुए द्वारा बचाए गए, भीड़ खड़ी तमाशा देखती रही और गाड़ियों के जाम लग गए।”
सईद के खिसकने के बाद पसीना पोंछते शर्मसार पुलिस वालों ने काफी बातचीत के बाद लुधियानवी को कुछ वक्त के लिए धर लिया। उसे इस्लामाबाद के बाहरी इलाके के पुलिस थाने ले गए और एक मामला दर्ज करने की रस्म निभाई गई, क्योंकि कुछ ही मिनटों के अन्दर शहर के प्रशासन ने उसे जमानत दे दी। पर, बताते हैं, आंतरिक मामलों के मंत्री रहमान मलिक को जमानत की भनक लगी तो उन्होंने वह रुकवा दी।
सब कुछ चंद घंटों में फिल्मी स्टाइल में चटपट घट रहा था। दरअसल सईद के प्रदर्शन से गुपचुप निकल लेने के बाद पुलिस जब लुधियानवी को धरने पहुंची तो उसने गिरफ्तारी वारंट दिखाने को कहा। पुलिस नहीं दिखा पाई। तंजीम के साथी लुधियानवी को एक चमचमाती गाड़ी में बैठाकर निकल लिए। पुलिस ने नाकों/चौकियों को खबरदार कर दिया। सड़कों पर अड़चनें लगा दी गईं। गाड़ियां लम्बे जामों में फंस गईं। शाम 6 बजे लुधियानवी वाली गाड़ी एक जाम में फंसी दिखी। बड़े वाले अफसरों को तलब किया गया। एक आतंकवाद-निरोधी दस्ता भी मौके पर बुला लिया गया। दिलचस्प बात तो यह हुई कि जो पुलिस के जवान लुधियानवी की सुरक्षा में पंजाब सूबे की हुकूमत ने दिए हुए हैं, उन्होंने ही अपनी बंदूकें इस्लामाबाद पुलिस पर तान दीं। उधर काउंसिल के कार्यकर्ता अपने नेता की गाड़ी को अपने सुरक्षा घेरे में लेकर खड़े हो गए। कुल मिलाकर लुधियानवी की गाड़ी वहां से भी साफ निकल ली। पर आगे एक बड़ी सड़क पर फिर अटका दी गई। उधर कुछ बड़े वाले पुलिस अफसर पूर्व तानाशाह जिया उल हक के बेटे एजाजुल हक, काउंसिल के नेता फजलुर्रहमान और आई.एस.आई. के पूर्व प्रमुख हाफिज गुल के बेटे अब्दुल्ला गुल के तरले करते रहे। तब जाकर वे लुधियानवी को थाने ले जा पाए।थ्
अफगानी महिलाओं पर तालिबानी दरोगाई
“नैतिक अपराध” के नाम पर जेलों में ठूंसा
आज के युग की यह विडम्बना ही कही जाएगी कि तालिबानी चंगुल से मुक्त हुए अफगानिस्तान में महिलाओं को अब भी पुरुष प्रधान समाज की वाहियात दरोगाई का शिकार होना पड़ रहा है। घरेलू अनाचार, शौहर का दुव्र्यवहार, हिंसाचार सहने से बचने की कोशिश करने वाली महिलाओं को वहां जेल भेजा जा रहा है, जबकि उन्हें अपने जुल्मों का शिकार बनाने वाले खुले घूम रहे हैं। क्योंकि इन सब अत्याचारों को न सहने और घर छोड़कर निकल जाने को वहां “नैतिक अपराध” कहा जाता है। और तो और, बलात्कार की पीड़िताएं भी जेल की सजा भुगत रही हैं! यह लिखा है 28 मार्च को जारी हुई “ह्यूमन राइट्स वाच” की रपट में। न्यूयार्क स्थित इस संस्था ने अफगानिस्तानी महिलाओं की स्थिति का सर्वेक्षण करके रपट छापी है। इसके अनुसार, अफगानिस्तान में अभी बड़ी तादाद में महिलाएं और लड़कियां इन “नैतिक अपराधों” की सजा भुगत रही हैं। थ्
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