देश को कहां ले जाएंगेकाजमी के कारिन्दे?
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देश को कहां ले जाएंगे
काजमी के कारिन्दे?
अरुण कुमार सिंह
दिल्ली के बटला हाउस में पुलिस और आतंकवादियों के बीच हुई मुठभेड़ को फर्जी बताने वालों और आजमगढ़ के संजरपुर (यहां के अनेक युवक आतंकवादी गतिविधियों में शामिल पाए गए हैं) में जाकर कट्टरवादियों को “सजदा” करने वालों की वजह से देश में एक अजीब स्थिति पैदा हो गई है। जब भी किसी आतंकी घटना के संबंध में किसी की गिरफ्तारी होती है, तो मुसलमानों का एक बड़ा तबका उसकी रिहाई की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आता है। इन दिनों दिल्ली में यही हो रहा है। इस बार ये लोग पत्रकार सैयद अहमद काजमी की रिहाई के लिए कभी धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं, तो कभी “कैंडल मार्च” निकाल रहे हैं। 12 मार्च को इंडिया गेट पर “कैंडल मार्च” निकाला गया, जिसमें वे लोग शामिल हुए, जो यह मानते हैं कि देश में आतंकवाद के नाम पर “बेगुनाह” मुस्लिमों के साथ अन्याय किया जा रहा है।
गंभीर आरोप
मालूम हो कि दिल्ली पुलिस ने 7 मार्च को काजमी को गिरफ्तार किया था। आरोप है कि वह 13 फरवरी को दिल्ली में इस्रायली दूतावास की गाड़ी से स्टिक बम विस्फोट में शामिल था। काजमी पर हमले की साजिश रचने, हमलावरों की मदद करने और इस्रायली दूतावास की जानकारी लेने के गंभीर आरोप हैं। काजमी के बारे में सुराग थाईलैण्ड से मिला था। उल्लेखनीय है कि उन्हीं दिनों थाईलैण्ड की राजधानी बैंकाक और जॉर्जिया में भी इसी तरह के विस्फोट हुए थे। बैंकाक विस्फोट में कुछ ईरानी युवक पकड़े गए थे। उन्होंने ही काजमी के बारे में बैंकाक पुलिस को बताया था। उनसे एक मोबाइल फोन भी मिला था। उसी से उन लोगों ने काजमी को फोन किया था। उसके बाद थाईलैण्ड सरकार ने भारत सरकार को काजमी के बारे में बताया। इसी आधार पर काजमी को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था। इसके बाद पुलिस ने उससे लम्बी पूछताछ की। मीडिया रपटों के अनुसार पूछताछ में काजमी ने पुलिस को कई ऐसी जानकारियां दी हैं, जिनसे साबित होता है कि काजमी ही वह शख्स है, जिसने ईरान के कुछ आतंकवादियों की मदद की है। इस कारण भारत में पहली बार ईरानी आतंकवादी दाखिल हुए और पहली बार स्टिक बम विफोट भी हुआ। इस दृष्टि से काजमी पर लगे आरोप बहुत ही गंभीर हैं। फिलहाल काजमी से पूछताछ पूरी हो गई है। 24 मार्च को उसे तीस हजारी न्यायालय के मुख्य महानगर दण्डाधिकारी विनोद यादव ने न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल भेज दिया है।
कौन है काजमी
काजमी मूलत: मेरठ (उ.प्र.) के रसूलपुर गांव का रहने वाला है। कुछ वर्षों से वह दिल्ली की बी.के. दत्त कालोनी में सपरिवार रहता है। यह कालोनी प्रधानमंत्री निवास से सिर्फ 2 कि.मी. दूर है। इन दिनों वह रेडियो तेहरान का भारत में प्रतिनिधि था। बराबर ईरान जाता-आता रहता था। काजमी इस्रायल और अमरीका का घोर विरोधी रहा है। इस पर उसके लेख भी अखबारों में छपते रहे हैं।
यह है सच
सूत्रों के अनुसार काजमी ने ईरान से अपने गहरे रिश्तों को कबूला है। उसने पुलिस को बताया है कि वह 7 जनवरी 2011 को ईरान गया था। वहां उसकी भेंट सैयद अली और अली रजा से हुई थी। सैयद ने उससे ईरानी वैज्ञानिक की मौत का बदला लेने की बात कही थी। काजमी को तेहरान में 3000 डॉलर और मोबाइल फोन सैयद ने उपलब्ध कराया था। दिल्ली लौटने के बाद भी काजमी और सैयद के बीच बातें होती थीं। मई 2011 में सैयद ने काजमी को फोन करके इस्रायली राजनयिक को निशाना बनाने के संबंध में चर्चा की थी। साथ ही उसे ये भी निर्देश दिए गए थे कि विस्फोट को अंजाम देने के लिए जो लोग ईरान से दिल्ली जाएं उनकी मदद करो। सूत्रों के अनुसार योजना के तहत ईरानी हमलावरों के दिल्ली आने पर काजमी ने फैज रोड, करोलबाग के एक होटल में उन्हें ठहराया।
किसने दिए लाखों रुपए
जांच से पता चला है कि हाल ही में विदेश से काजमी के खाते में 3.50 लाख रु. और उसकी पत्नी जहांआरा के खाते में 18 लाख, 78 हजार, 500 रु. जमा हुए हैं। इस संबंध में प्रवर्तन निदेशालय ने जहांआरा से पूछताछ की है। किन्तु उसने जो जवाब दिया है, उससे प्रवर्तन निदेशालय सन्तुष्ट नहीं है। काजमी और उसकी पत्नी के खातों में आए विदेशी पैसे के स्रोतों की जानकारी के लिए आर.बी.आई और दुबई तथा इंग्लैण्ड के संबंधित अधिकारियों से भी सम्पर्क किया गया है।
काजमी दोषी है या नहीं, इसका फैसला तो अदालत करेगी। किन्तु वे लोग काजमी को “निर्दोष” मानकर उसकी रिहाई की मांग कर रहे हैं, जो कहते हैं अफजल को फांसी होने से देश में तनाव की स्थिति पैदा हो सकती है। काजमी की रिहाई की मांग करने वालों में वे लोग भी शामिल हैं, जो दिन-रात एक मजहब विशेष के लिए काम करते हैं, पर अपने आपको सेकुलर कहते थकते नहीं हैं। काजमी को छोड़ने की मांग वे मजहबी नेता भी कर रहे हैं, जिन्होंने आजतक किसी आतंकवादी घटना की निन्दा तक नहीं की है।
कट्टरवादियों की कुचालें
ऐसे ही लोग कथित सेकुलर राजनीतिक दलों की शह पर पिछले कुछ समय से पुलिस-प्रशासन, यहां तक कि न्यायपालिका को भी “मुस्लिम विरोधी” ठहराने में नहीं हिचक रहे हैं। यही लोग सड़कों पर उतर रहे हैं और भोले-भाले मुस्लिम युवकों को बरगला रहे हैं कि इस मुल्क में उनके साथ बड़ा “अन्याय” हो रहा है। कुछ ऐसा ही नजारा 26 मार्च को दिल्ली में संसद मार्ग थाने के सामने हुए प्रदर्शन में दिखा। यह स्थान संसद से बिल्कुल निकट है। यातायात बन्द करके बीच मार्ग पर एक मंच बनाया गया था। मंच पर टंगे बैनर पर लिखा था, “आतंकवाद के नाम पर बेगुनाह मुसलमानों की गिरफ्तारी के विरुद्ध धरना व प्रदर्शन”। “कॉर्डिनेशन कमेटी फॉर इंडियन मुस्लिम्स” (सीसीआईएम) द्वारा आयोजित इस प्रदर्शन को तमाम मुस्लिम संगठनों का समर्थन प्राप्त था। फिर भी अंगुली पर गिनाने लायक ही लोग वहां पहुंचे। श्रोता से अधिक वक्ता थे। सबने यही बताने की कि कोशिश की इस मुल्क में मुसलमानों को हर तरह से दबाया जा रहा है। मुस्लिमों को आतंकवाद के नाम पर प्रताड़ित किया जा रहा है। इसी के तहत काजमी को गिरफ्तार किया गया है। प्राय: सभी वक्ताओं ने यह भी कहा कि काजमी की गिरफ्तारी इस्रायल और अमरीका के इशारे पर हुई है। यह भी कहा कि इस्रायल और अमरीका के खिलाफ लगातार लिखने की वजह से काजमी को दण्ड दिया जा रहा है। राज्यसभा सदस्य मोहम्मद अदीब ने इस्रायल से कूटनीतिक संबंध खत्म करने की भी मांग की। भाषणों के बीच-बीच में “अल्लाह ओ अकबर” के नारे भी गूंजते रहे। काजमी के इन कारिन्दों की हरकतों से देश-विभाजन के पूर्व की स्थितियां याद आ गईं। उस समय भी कट्टरवादी किसी न किसी मुद्दे पर मजहबी लोगों को भड़काते थे जिसका परिणाम देश बंटवारे के रूप में सामने आया था। यदि उनकी नाजायज मांगें मान ली गईं तो देश के सामने एक बार फिर विभाजन का खतरा आ खड़ा होगा।द
आतंकवादियों के “वकील”
देश में कुछ लोग ऐसे हैं, जो आंख मूंदकर किसी आतंकवादी के पक्ष में खड़े हो जाते हैं। संसद पर हमले के लिए फांसी की सजा का इन्तजार कर रहे अफजल के लिए भी कुछ लोगों ने “अफजल बचाओ कमेटी” बनाई थी। इस कमेटी में शामिल लोग आज भी अफजल को “निर्दोष” मानते हैं। काजमी के लिए भी ऐसे लोग आगे आ रहे हैं। इनमें प्रमुख हैं लोजपा अध्यक्ष रामविलास पासवान, माकपा नेता ए.बी. वद्र्धन, अतुल अंजान, शबनम हाशमी, पत्रकार सईद नकवी, जावेद नकवी, सीमा मुस्तफा, लेखिका अरुंधती राय, शर्मिला टैगोर, फरहा नकवी, अभिनेत्री नंदिता दास, फिल्म निर्माता महेश भट्ट, जे.एन.यू. के प्रो. कमल मित्र चिनॉय, डा. जफरुल इस्लाम आदि। देशवासी जानना चाहते हैं कि आखिर ये लोग अदालती फैसले का इन्तजार क्यों नहीं करना चाहते हैं? ये लोग सरकार पर दबाव डाल कर क्यों काजमी को छुड़ाना चाहते हैं।
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