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स्पॉन्डिलोसिस” के बारे में जानें

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Mar 31, 2012, 12:00 am IST
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स्वास्थ्य

दिंनाक: 31 Mar 2012 16:35:38

स्वास्थ्य

 डा. हर्ष वर्धन

 एम.बी.बी.एस.,एम.एस. (ई.एन.टी.)

गर्दन को सुरक्षित रखें-“सरवाइकल

गत लेख में हमने “रियुमेटाइड आर्थराइटिस” के बारे में पाठकों से चर्चा की थी। इस बार भी हम हड्डी से ही जुड़ी बीमारी “सरवाइकल स्पॉन्डिलोसिस” पर चर्चा करेंगे। “सरवाइकल स्पॉन्डिलोसिस-सरवाइकल” ऑस्टियोआर्थराइटिस तथा “डिजेनेरेटिव ऑस्टियोआर्थराइटिस” के नाम से भी जाना जाता है। यह बीमारी गर्दन में वर्टिब्रा (रीढ़ की हड्डी का जोड़) तथा डिस्क में विकृति हो जाने के कारण होती है। खासकर “सरवाइकल स्पाइन” गर्दन में रीढ़ की हड्डी का एक भाग है। वर्टिब्रा के कोर हड्डियों में अक्सर छोटे और कठोर जगह विकसित करते हैं, जिसे “ऑस्टियोफाइट्स” कहा जाता है। वर्षों बाद डिस्क्स पतले होने लगते हैं और खतरे के लक्षण बढ़ने लगते हैं। पुरुष तथा महिलाओं में 40 वर्ष के उपरांत इसके लक्षण दिखाई देते हैं तथा उम्र के बढ़ने के साथ बढ़ने लगते हैं। महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में यह लक्षण जल्दी  दिखाई देने लगता है। इससे गर्दन में अकड़न तथा दर्द हो सकता है। गर्दन के जोड़ों की सूजन आसपास की नसों अथवा रीढ़ की हड्डी पर दबाव बना सकती है या आलपिन अथवा सुई जैसी चुभन दे सकती है तथा कभी-कभी हाथों में दर्द भी हो सकता है।  कुछ मामलों में संवेदनशून्यता अथवा आपसी तालमेल की कमीं हो सकती है। कुछ मरीजों को चलने में कठिनाई हो सकती है।

“सरवाइकल स्पॉन्डिलोसिस” के कारण

ऐसा देखने में आया है कि जो लोग अपने कार्यों को एक ही स्थान पर बैठकर, काफी देर तक गर्दन झुकाकर करते हैं (जैसे कि आई टी प्रोफेशनल्स, कम्प्यूटर आपरेटर्स, एकाउंटेन्ट्स, बैंककर्मी इत्यादि) उन लोगों को यह परेशानी होने की संभावना अधिक होती है। प्रमुख कारक तो बढ़ती उम्र है। 60 वर्ष की उम्र में अधिकांश पुरुष और महिलाओं में “सरवाइकल स्पॉन्डिलोसिस” के लक्षण दिखाई देते हैं। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित कारण हैं-

थ्     मोटापा

थ्     व्यायाम न करना

थ्     इस प्रकार का कार्य जिसमें अधिक वजन उठाने, झुकना तथा मुड़ना होता है।

थ्     पूर्व में गर्दन में चोट (बहुत साल पहले) लगी हो

थ्     पूर्व में रीढ़ का आपरेशन हुआ हो

थ्     टूट-फूट अथवा “स्लिप्ड डिस्क”

थ्     गंभीर “आर्थराइटिस”

थ्     “ऑस्टियोपोरोसिस” के कारण रीढ़ में कोई आंशिक “फ्रैक्चर”

थ्     सिर पर अधिक भार ढोना

थ्     परिवार में यह बीमारी पहले किसी को हुई हो

थ्     धूम्रपान

संभावित खतरे

थ्     सिर दर्द, चक्कर आना

थ्     कान व दांत आदि में दर्द

थ्     सीने में दर्द तथा हृदय में परेशानी

थ्     कमर के ऊपर के हिस्से तथा दोनों भुजाओं में असहनीय दर्द

थ्     मांसपेशियों के क्रियाकलाप में असमर्थता अथवा संवेदनशून्यता

थ्     स्थायी विकलांगता (कभी कभी)

थ्     शरीर में कमजोर संतुलन

लक्षण

थ्     इस बीमारी में अधिकांश रोगियों की गर्दन में दर्द तथा अकड़न की शिकायत आती है तथा कभी कभी सिर में दर्द की भी।

गर्दन का दर्द :  यह दर्द बढ़ सकता है तथा कंधे व कपाल के तल तक पहुंच सकता है। सिर हिलाने पर दर्द और असहनीय हो जाता है। धीरे-धीरे यह दर्द हाथों में पहुंच सकता है। कुछ मरीजों में लम्बी अवधि से दर्द रहता है।

गर्दन की अकड़न :  लम्बे समय तक आराम (सोने पर) करने पर गर्दन में अकड़न आ जाती है।

सिर का दर्द : आम तौर पर सिर के पीछे से दर्द शुरू होता है तथा धीरे-धीरे सिर के अग्र भाग के ऊपरी अद्र्ध हिस्से में बढ़ता जाता है।

मस्तिष्क पर प्रभाव-यदि खून की नसों पर दबाव पड़ने लगता है तो मस्तिष्क को होने वाली खून की आपूर्ति में बाधा होने लगती है। इसके कारण सिर के चकराने और अंधेरा छा जाने की परेशानी हो सकती है।

निगलने में परेशानी (डिस्फेजिया) : भोजन नलिका (इसोफैगस-दृड्ढद्मदृद्रद्रण्ठ्ठढ़द्वद्म) पर हड्डियों का जब दबाव पड़ता है तब भोजन को निगलने में कठिनाई होने लगती है। यह परेशानी आम नहीं है बल्कि बिरल ही देखने में आती है।

“सरवाइकल स्पॉन्डिलोसिस” में क्या करें-

थ्     गर्दन की ताकत, लचीलापन तथा गति को बनाये रखने के लिए नियमित व्यायाम करें।

थ्     ठोस (फर्म) गद्दे तथा पतले तकियो का प्रयोग करें।

थ्     दिन के समय “सरवाइकल कॉलर” का प्रयोग करें।

थ्     नियमित टहलें अथवा कम प्रभाव डालने वाली “एरोबिक” करें।

थ्     लम्बे समय तक सिर को एक ही स्थिति रखने से बचें। गाड़ी चलाते समय, टीवी देखते समय तथा कम्प्यूटर पर कार्य करते समय बीच-बीच में विराम लें।

थ्     दर्द में आराम करें, गर्दन को स्थिर रखें तथा चिकित्सक द्वारा निर्धारित दवा लें।

क्या न करें-

थ्     दबावपूर्ण स्थिति में लम्बे समय तक न बैठें

थ्     यदि गर्दन में दर्द हो तो दौड़ने और अति प्रभावशाली “एरोबिक्स” से बचें

थ्     दो या चार पहिये के वाहन से यात्रा कर रहे हों तो उबड़-खाबड़ व खराब सड़कों पर जाने से बचें।

थ्     सिर अथवा पीठ पर अत्यधिक भार वाली वस्तुओं को ढोने से बचें

थ्     लम्बे समय तक गाड़ी न चलायें। बीच-बीच में विश्राम लें।

थ्     फोन को कंधे से दबा कर लम्बे समय तक बात करने से परहेज करें।

थ्     सोते समय कंधे अथवा सिर के नीचे कई तकियों का प्रयोग न करें।

थ्     पेट के बल न सोयें।

थ्     घूमते समय शरीर अथवा गर्दन को न घुमायें बल्कि पहले पैर को घुमायें।

थ्     यदि दर्द हो रहा हो तो रीढ़ को प्रभावित करने वाले कार्य (स्पाइनल मेनीपुलेशन) से बचें।

शरीर में उपरोक्त लक्षणों के होने अथवा परेशानियों के महसूस होने पर इसे नजरंदाज न करें। लापरवाही के कारण बीमारी और बढ़ सकती है। अत: ऐसे में शीघ्र हड्डी रोग विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए तथा चिकित्सक द्वारा दिये गये परामर्श के अनुसार व्यायाम, खानपान एवं जीवनचर्या में सुधार कर लेना चाहिए। अनेक लोग इस बीमारी के बावजूद एक सामन्य जीवन जी रहे हैं।

लेखक से उनकी वेबसाइट ध्र्ध्र्ध्र्. ड्डद्धण्ठ्ठद्धद्मण्ध्ठ्ठद्धड्डण्ठ्ठद.ड़दृथ्र् तथा ईमेलड्डद्धण्ठ्ठद्धद्मण्ध्ठ्ठद्धड्डण्ठ्ठदऋढ़थ्र्ठ्ठत्थ्.ड़दृथ्र् के माध्यम से भी सम्पर्क किया जा सकता है।द

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