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Mar 24, 2012, 12:00 am IST
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मंदिर बना रहे हैं बिजली और खाद

दिंनाक: 24 Mar 2012 23:12:03

मंदिर बना रहे हैं बिजली और खाद

द.वा.आंबुलकर

अन्य स्थानों की तरह महाराष्ट्र के प्रमुख मंदिरों में भी भक्त एवं श्रद्धालुओं की भीड़ जुटी होती है। मेले जैसे विशेष आयोजनों पर तो भक्तों की भीड़ कई गुना बढ़ जाती है तथा ऐसे समय पर्यावरण को बनाए रखना तथा उसमें सुधार करना एक चुनौती सी बन जाती है। इस चुनौती को स्वीकार करते हुए महाराष्ट्र के कई प्रमुख मंदिर एवं पूजा स्थल पर्यावरण सुरक्षा की सार्थक पहल कर रहे हैं।

महाराष्ट्र में सांई नगरी शिरडी, शनि देव का अनूठा मंदिर शनि शिंगणापुर, संत तुकाराम का देहू और संत ज्ञानेश्वर का समाधि स्थल आलंदी, राज्य में आठ स्थानों पर बसे गणेश स्थान अष्ट विनायक, पुणे के पास बाबा जेधूरी, समुद्र के तटीय प्राचीन स्थल हरि हरेश्वर, मराठवाड़ा, विदर्भ के सीमावर्ती पहाड़ी पर बसा पंढरपुर तथा विदर्भ के शेगांव में सद्गुरु गजानन महाराज का मंदिर यह प्रमुख मंदिर एवं पूजा स्थल में गिने जाते हैं। विशेष पर्व एवं प्रसंगवश इन स्थानों पर लाखों की संख्या में आने वाले भक्त तथा श्रद्धालुओं के कारण इन स्थानों का पर्यावरण चिंता का विषय बन जाता है।

आलंदी

पुणे के निकट आलंदी नामक स्थान संत ज्ञानेश्वर का समाधि स्थल, इस रूप में प्रसिद्ध है। आलंदी इंद्रायणी के किनारे बसा है तथा प्रतिवर्ष आलंदी में संत ज्ञानेश्वर की झांकी- पालकी पंढरपुर जाती है, जिसमें यात्रा मार्ग से लेकर पंढरपुर तक लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं। पालकी के प्रारंभिक चरण में लाखों भक्त आलंदी में भगवा झंडा तथा तुलसी के साथ जुट जाते हैं। आयोजन के पहले तथा बाद में आवश्यकता के अनुसार निकटस्थ बांध से इंद्रायणी नदी में अतिरिक्त पानी प्रवाहित किया जाता है, जिसके कारण यात्रियों की सुविधा होने के साथ-साथ सफाई को भी मदद मिलती है तथा गांव साफ सुथरा रहता है।

शनि शिंगणापुर

राज्य में शनि शिंगणापुर का शनि मंदिर एकमेव एवं अनूठा माना जाता है। ऐसे जागृत स्थल पर शनि देव की अर्चना करने हर शनिवार के दिन 15 से 20 हजार तथा शनि अमावस्या के दिन दो लाख से भी अधिक यात्री-भक्त आते हैं। शनिदेव पर हर श्रद्धालु तेल चढ़ाने में विश्वास रखता है। एक अनुमान के अनुसार यहां प्रतिदिन एक हजार तथा पर्व विशेष पर चार हजार लीटर तेल शनि महाराज पर चढ़ाया जाता है। पहले इस तेल को खुले में छोड़ दिया जाता था, जिससे पास- पड़ोस में पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता था।

विगत दस वर्षों से शनि मंदिर न्यास शनिदेव पर भक्तों द्वारा चढ़ाये गये तेल को एकत्रित कर उसे साफ कर भक्तों के भोजन प्रसाद के लिए प्रयोग में लाता है। मंदिर में चढ़ाए गए नारियलों से प्रसाद बनाकर उसका वितरण भी श्रद्धालुओं में किया जाता है। इसके द्वारा जो अतिरिक्त राशि जमा होती है, उससे शनि मंदिर द्वारा शिंगणापुर में स्वास्थ्य केन्द्र तथा अस्पताल चलाए जाते हैं।

शिरडी के सांईं

महाराष्ट्र का शिरडी कस्बा “सांई बाबा की शिरडी” इस नाम से 1918 से जाना जाने लगा। प्रति वीरवार, एकादशी, गुरुपर्व, रामनवमी, वर्ष प्रतिपदा आदि विशेष अवसरों पर लाखों भक्त शिरडी में आते हैं। नासिक के कुंभ आयोजन के दौरान तो 12 लाख श्रद्धालु शिरडी में आने का कीर्तिमान बन गया है।

श्रद्धालुओं के लिए श्री सांई संस्थान, शिरडी द्वारा भक्त निवास के माध्यम से निवास एवं भोजन के व्यापक प्रबंध कर लिए गये हैं। भक्त निवास की प्रकाश योजना सौर ऊर्जा पर आधारित है। भारी संख्या में भक्तों के आवागमन के मद्देनजर शिरडी संस्थान ने सुलभ इंटरनेशनल के सहयोग से बायो गैस तथा बिजली निर्माण भी शुरू किया है। भक्त निवासों में प्रयोग के लिए इस अनूठे बिजली उत्पाद केन्द्र से प्रतिदिन 24 केवी  बिजली का उत्पादन कर शिरडी को पूरी तरह पर्यावरणपूरक बनाया गया है, जो विशेष सराहनीय है। इसके अलावा सफाई, वाहनों की पार्किंग, चिकित्सा, शिक्षा आदि की व्यवस्था भी सांई संस्थान द्वारा की जा रही है।

भीमाशंकर का ज्योतिर्लिंग

बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग पुणे जिले के पश्चिमी छोर पर भीमाशंकर में बसा है। सह्याद्रि पर्वत से घिरा तथा वार्षिक तीन हजार सेंटीमीटर वर्षा वाला यह क्षेत्र पर्यावरण के लिए विशेष संवेदनशील माना जाता है। भीमाशंकर के पास-पड़ोस वाले क्षेत्र में विद्यमान जंगल एवं जंगली जानवरों की रक्षा के लिए इस क्षेत्र में फिल्मों की शूटिंग तथा रिकार्डिंग के अलावा अन्य सभी व्यापारिक गतिविधियों पर पाबंदी लगाई गई है। क्षेत्र के पर्यावरण संरक्षण के लिए भीमाशंकर में प्लास्टिक के प्रयोग को निषेध कर दिया गया है तथा इन निर्देशों का मंदिर व्यवस्थापन के अलावा सभी व्यापारी, स्थानीय निवासी एवं भक्तों द्वारा कड़ाई से पालन किया जाता है। यह विशेष ज्योतिर्लिंग होने के कारण सोमवार, श्रावण मास तथा महाशिवरात्रि आदि पर्वों पर भीमाशंकर में भक्तों की भरमार होती है। ऐसे अवसर पर आने वाले श्रद्धालुओं में प्लास्टिक की चीजें त्यागकर इस विशेष क्षेत्र के पर्यावरण की सुरक्षा में अपना योगदान देने हेतु पुणे की विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा प्रचार-प्रसार किया जाता है तथा इन प्रयासों को अच्छी सफलता मिल रही है।

पंढरपुर के विट्ठल

पंढरपुर के श्री विट्ठल सभी हिन्दुओं के लिए श्रद्धा का विषय रहे हैं। प्रतिवर्ष आलंदी से संत ज्ञानेश्वर तथा देहू से संत तुकाराम की पालकी-झांकी लेकर आषाढ़ एकादशी के पर्व पर लाखों श्रद्धालु पंढरपुर पहुंचते हैं। इस वर्ष के आयोजन में दस लाख से अधिक भक्त पंढरपुर में आये थे।

पंढरपुर की पालकी को महाराष्ट्र में वारी कहते हैं तथा उस पालकी यात्रा में शामिल होने वालों को “वारकरी”। इस पालकी में हजारों महिलाएं अपने सिर पर तुलसी लिए पंढरपुर तक पैदल यात्रा करती हैं तथा इस पवित्र तुलसी को राज्य के ग्रामीण इलाकों की महिलाएं अपने-अपने आंगन में बड़ी भक्ति के साथ लगाकर उसकी पूजा करती हैं।

“वारी” करने वाले वारकरी सफाई का पूरा ख्याल रखने के साथ ही पर्यावरण रक्षा में भी अपना योगदान प्रतिवर्ष देते रहते हैं। देहू, आलंदी से लेकर पुणे होते हुए पंढरपुर की यात्रा के दौरान यह ग्रामीण श्रद्धालु सड़क के दोनों ओर जरूरत के अनुसार जामुन, आंवला, नीम आदि के बीज बोते जाते हैं तथा उसके अच्छे एवं हरे-भरे नतीजे अब सामने आ रहे हैं। कई स्वयंसेवी संगठन भी इन प्रयासों में अपना योगदान देने आये हैं।

अष्ट विनायक गणेश

महाराष्ट्र के रायगढ़, पुणे आदि जिलों में अष्ट विनायक गणेश सदा के लिए पूजा-श्रद्धा के केन्द्र माने गये हैं। गणेश पूजा में फूलों के अलावा हरी घास की दूब का विशेष महत्व होने के कारण इन आठ मंदिरों में गणेशजी को फूल एवं दूब की मालाएं चढ़ाने का चलन है। नतीजतन इन सारे मंदिरों में श्री गणेश पर चढ़ाए गये फूल एवं दूब जैसी पूजा सामग्री के कारण पर्यावरण पर होने वाले असर की समस्या हुआ करती थी। विगत कुछ वर्षों से सभी अष्ट विनायक मंदिरों में चढ़ाये जाने वाले फूल एवं दूब के प्रयोग से खाद बनाने की शुरुआत की गयी है, जिसके चलते पर्यावरण की सुरक्षा को बढ़ावा मिलने के साथ ही स्थानीय जरूरतमंद किसानों को प्राकृतिक खाद मिलने का लाभ भी मिल रहा है।

प्रति-पंढरपुर

विदर्भ का शेगांव महाराष्ट्र का प्रति-पंढरपुर माना जाता है। संत गजानन महाराज का निवास, जीवन क्रम तथा समाधि लेने के कारण शेगांव में प्रतिदिन हजारों में तथा विशेष पर्व पर लाखों की संख्या में भक्त एवं श्रद्धालु आते हैं। इतनी बड़ी संख्या में आने वाले भक्तगणों के निवास, भोजन, स्थानीय यात्रा की व्यवस्था गजानन महाराज मंदिर संस्थान द्वारा की जाती है। शेगांव के मंदिर की विशेषता यानी वहां की सफाई देखते ही बनती है। मंदिर तथा इलाके की सफाई के लिए भक्तगण, स्वयंसेवक की तरह पहल करते हैं, जिसने शेगांव को पर्यावरणीय परिप्रेक्ष में सबसे अव्वल बना दिया है।

गजानन महाराज मंदिर के तत्वावधान में शेगांव में शिक्षा संस्थाओं, व्यवस्थापन संघ तथा चिकित्सा सेवा प्रदान करने के अलावा शहर के निकट आनंद सागर के निर्माण का अनूठा काम किया गया है।थ्

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