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Mar 24, 2012, 12:00 am IST
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पर्यावरण है तो जीवन है

दिंनाक: 24 Mar 2012 21:59:43

पर्यावरण है तो जीवन है

डा. गणेश दत्त वत्स

“पर्यावरण है तो जीवन है”, यह कहावत सटीक नजर आती है। इसीलिए तो पूरे विश्व में पर्यावरण बचाने के लिए प्रयास चल रहे हैं। हरियाणा में इस क्षेत्र में उल्लेखनीय काम कर रहे हैं डा. रोहतास गुप्ता। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डा. गुप्ता का मानना है कि जब तक हम प्राकृतिक स्रोतों को बचाकर नहीं रखेंगे तब तक पर्यावरण का दूषित रहना स्वाभाविक है। हमें प्रकृति के नियमों का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। उन्होंने बताया कि हरियाणा की ज्यादातर आबादी गांवों में रहती है। पहले हर गांव में स्वाभाविक रूप से दो-तीन पानी के जोहड़ होते थे, जिनमें साफ-सुथरा पानी भरा रहता था। इस पानी का उपयोग गांववासी पशुओं के पीने के लिए करते थे। ये जोहड़ प्रकृति द्वारा ऐसे स्थान पर ही बनाए जाते थे जहां बरसात का पानी इकठ्ठा होकर लंबे समय तक रहता था। इन जोहड़ों से भूमिगत जल का “रिचार्ज सिस्टम” भी अपने आप ही जारी रहता था। साथ ही जोहड़ में छोटे-मोटे कीट पाए जाते थे और दूर -दराज से पक्षी आकर जोहड़ के ऊपर मंडराते हुए चहचहाते थे, कीटों से उनका जीवन भी चलाता था। लेकिन अब ये जोहड़ दूषित हो गए हैं। कई गांवों में इनमें गंदा पानी डाला जा रहा है। कई स्थानों पर इन्हें भर दिया गया है जिससे पर्यावरण पर कुप्रभाव पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि अब भी समय है, हमें इस ओर ध्यान देना चाहिए। जोहड़ों में गंदा पानी डालना बंद करके उनमें फिर से साफ पानी भरना चाहिए।

नीचे जाता भू जल

हरियाणा में घटता भू जल स्तर मानव जीवन के लिए खतरा बन सकता है। जिस तेजी से  यह स्तर घट रहा है और इस ओर किसी का ध्यान नहीं है तो स्वाभाविक ही आगे कठिनाई का सामना करना पड़ेगा। आंकड़ों के अनुसार, भूजल स्तर पिछले 5 वर्षों में 25 से 30 फुट नीचे चला गया है। वैसे भी प्रदेश के करीब 110 खण्डों में से 43 खण्ड पहले ही “डार्क जोन” घोषित हो चुके हैं जहां भविष्य में पीने के पानी की कमी होने का खतरा मंडरा रहा है। फसलचक्र की कमी, धान जैसी पानी की ज्यादा खपत वाली खेती का बढ़ता चलन इसके मुख्य कारणों में से एक है। हरियाणा सरकार ने वर्ष 2012 को जल संरक्षण वर्ष के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। परन्तु इसके लिए जन जागरण नहीं किया गया तो यह घोषणा कागजों तक ही सिमट कर ही रह जाएगी।

 हरियाणा की पहचान हरियाली व यहां के सुरम्य वातावरण से होती थी। लेकिन पिछले कई दशकों से पेड़-पौधों को लेकर जहां लोगों में जागरूकता की कमी हो रही है, वहीं सरकार की नीतियों से भी वन क्षेत्र सिकुड़ता जा रहा है। सरकार ने जहां खेती-बाड़ी की उपजाऊ भूमि को ही नष्ट कर अधिग्रहण की अनुचित नीति को अपनाया और वहीं उद्योग-धंधे स्थापित करने की सोच के चलते उन्होंने इस क्षेत्र में अंधाधुंध पेड़ों की कटाई को भी नजरअंदाज किया। हरियाणा में आंकड़ों के अनुसार कुल वन क्षेत्र 3 लाख हेक्टेयर के करीब है और सरकार इसे बढ़ावा देने के लिए कई सौ करोड़ रुपये खर्च कर रही है। इसके बावजूद पर्याप्त लाभ देखने में नहीं आया है। वर्ष 2006 से 2011 तक सरकार ने 540 करोड़ रुपये खर्च किए, लेकिन वन क्षेत्र में 0.16 प्रतिशत तक ही वृद्धि हुई, इससे प्रदेश सरकार की संकल्प शक्ति कमजोर पड़ती नजर आई है। सूत्रों के अनुसार, हरियाणा सरकार ने वर्ष 2010 तक 10 प्रतिशत वन क्षेत्र को बढ़ाने का फैसला किया था और बाद में 20 प्रतिशत का लक्ष्य प्राप्त करने की बात की, जोकि धरी ही रह गयी। ऐसे में माननीय सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी सरकार के लिए एक संदेश दे रही है। न्यायालय ने जहां यमुना नदी में गंदे पानी के बहाव को लेकर हरियाणा व दिल्ली सरकार की खिंचाई की, वहीं प्रदेश में अवैध खनन पर रोक लगाई। इससे बेशक प्रदेश सरकार के खजाने को नुकसान हो रहा हो और कई काम भी अधर में लटके हों, परंतु माननीय न्यायालय ने इस विषय को लेकर जो गंभीरता दिखाई और प्राकृतिक संपदा को बचाने के लिए आदेश दिए वे सराहनीय हैं। सरकार को इस बारे में विचार करना होगा और हर हरियाणावासी को भी संकल्प लेना होगा कि वे भविष्य में पर्यावरण बचाने के लिए पूरी ईमानदारी से काम करेंगे और प्रकृति के साथ खिलवाड़ नहीं करेंगे।

समाज सेवी संस्थाओं व प्रशासन के प्रयास

प्रदेश में पर्यावरण को बचाने के लिए कुछ कारगर कदम उठाए जा रहे हैं, जिसमें प्रथमत: पौधारोपण को बढ़ावा देना है। इसके लिए कई समाजसेवी संस्थाएं, एन. जी. ओ. व सरकार के आदेश के अनुसार प्रशासन ने भी पौधारोपण का अभियान चलाया है। पौधारोपण के लिए जन जागरूकता के साथ-साथ मुफ्त पौधे बांटे जा रहे हैं। लेकिन क्या इतना काफी है? क्योंकि पौधारोपण के साथ हमें पेड़ों की कटाई पर भी अंकुश लगाना होगा। कुरुक्षेत्र की विशेष पर्यावरण अदालत की पीठासीन अधिकारी गगनदीप कौर ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण समय की जरूरत है। हर किसी का यह संवैधानिक कर्तव्य है कि वह पर्यावरण संरक्षण करे। आज तेजी से बिगड़ते पर्यावरण को बचाने के लिए गंभीरता दिखानी होगी। जब तक लोग पर्यावरण संरक्षण को लेकर गंभीर नहीं होंगे, तब तक प्रदूषण का खतरा झेलते रहेंगे। गगनदीप कौर ने कहा कि हमें रुद्राक्ष, नीम, पीपल, बरगद जैसे बड़े पौधे व आंगन में तुलसी, ग्वारपाठा (एलोवेरा) जैसे सदाबहार पौधों को लगाना चाहिए जो हमारे दैनिक जीवन में भी लाभदायक हैं। प्रदेश में इससे संबन्धित दो ही अदालतें, कुरुक्षेत्र व फरीदाबाद में हैं, जहां पीठासीन अधिकारी बैठते हैं। “ग्रीन अर्थ” एन.जी.ओ. के अध्यक्ष सुरेश भारद्वाज ने बताया कि वे पौधारोपण के लिए पूरे प्रदेश में जन जागरण कर रहे हैं। उनके साथ कई दूसरे एन.जी.ओ. भी इस नेक काम में जुटे हैं। उन्होंने बताया कि सरकार भी “वृक्ष मित्र” के रूप में अभियान चला रही है।

बुढ़नपुर खालसा ने की पहल

यदि मन में ठान लिया जाए तो असंभव भी संभव हो सकता है। जीवन में समाज के लिए नेक काम करने व ऊंची उड़ान भरने की सोच भी इनसान को उसके मुकाम तक पहुंचा देती है, जो समाज में एक नई दिशा निर्धारित कर देती है। ऐसा ही प्रदेश के जिला करनाल के इन्द्री खंड के गांव बुढ़नपुर खालसा के लोगों ने कर दिखाया। इस गांव के लोगों ने पूर्ण स्वच्छता का निर्णय लिया ताकि जन जीवन सुखद व सुरक्षित बन सके। 1500 की आबादी वाले गांव की इस उपलब्धि पर उन्हें मुख्यमंत्री स्वच्छता प्रोत्साहन पुरस्कार से सम्मानित किया गया और पूरे प्रदेश में यह गांव स्वच्छता की दृष्टि से अव्वल बना। गांव में पक्की गलियां हैं, पीने के पानी के लिए नल होने के साथ-साथ जल संरक्षण पर पूरा ध्यान दिया गया है। गांव में हरियाली बढ़ाने के लिए पौधारोपण जैसी अनेक गतिविधियां भी चल रही हैं। गांव के सरपंच कुलधीर सिंह का कहना है कि वे पौधारोपण को बढ़ावा देना जारी रखेंगे। उनका कहना है कि पर्यावरण को बचाना व प्रकृति को संजोए रखना उनकी प्राथमिकता है। गांव के निवासी बलजीत सिंह ने कहा कि गांव के लोग इस बात को बखूबी समझने लगे हैं कि यहां जीवन सरल व सुखी तभी होगा जब गांव को हम साफ-सुथरा रखें और प्रशासन स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं को गांव में मुहैया कराए। इससे कम खर्च में अधिक सुविधाएं मिलेंगी। उनका मानना है कि सब्जियां और दूध तो गांव में ताजा व स्वच्छ मिल ही जाते हैं, दूसरी जीवन उपयोगी वस्तुएं हम आसानी से उपलब्ध कर सकते हैं। इस गांव में घटते भूमिगत जल स्तर के प्रति भी जागरूकता बनी हुई है और सभी जल संरक्षण के प्रति पूरी ईमानदारी से जुटे हुए हैं। थ्

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