पर्यावरण बाबा
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संजीव कुमार
ससमाज में दशरथ राय जैसे लोग विरले ही होते हैं। पर्यावरण के प्रति वे इतने सजग और समर्पित हैं कि उनके कार्यों को शब्दों में समेटना कठिन है। दशरथ राय अति साधारण परिवार से आते हैं। बचपन से उनकी इच्छा पेड़-पौधों के साथ रहने की थी। बड़े होने पर किसी भी उपेक्षित पेड़-पौधे को देखकर उनके मन में टीस उठती थी। बाद में उन्होंने ऐसे पौधों को सही जगह देखकर लगाना शुरू किया। राह चलने वाले या खेतों में काम करने वाले लोगों के लिए वृक्ष की छांव से श्रेयस्कर कुछ नहीं। उनका सपना था राहगीरों और अन्य लोगों को तपती धूप से बचाना, कुछ देर विश्राम के लिए पेड़ की छाया उपलब्ध कराना। धीरे-धीरे यह उनकी आदत बन गई। एक बार छपरा के डुमरी-जुआरा रेलवे स्टेशन के पास उन्होंने स्वयं के लगाए पौधों में पानी देने के लिए रेल के गेटमैन से बाल्टी मांगी तो गेटमैन ने उन्हें दुत्कार दिया। परन्तु अपनी धुन के पक्के श्री राय कहां मानने वाले थे। बात बढ़ने लगी। गेटमैन ने जब यह कहा कि बहुत सारे लोग बाल्टी के लिए इसी तरह की बातें करते हैं। इतना सुनते ही उन्होंने अपने शरीर के ऊ परी कपड़े उतार कर गेटमैन को दे दिए और कहा कि जब बाल्टी वापस करेंगे तब कपड़े दे देना। आखिरकार वृक्षों को पानी मिला और उन्हें मन का संतोष।
श्री राय कहीं भी जाते हैं अपने साथ एक खुरपी रखना नहीं भूलते। हमेशा उनकी नजरें सड़क किनारे बेकार पड़ेे उन पौधों पर होती हैं, जिनकी उचित देखभाल नहीं होती है। वे उसे अपनी छोटी सी नर्सरी में लाते हैं और उचित समय पर उचित स्थान देखकर लगा देते हैं। इनके इस जुनून के कारण लोग उन्हें “पर्यावरण बाबा” कहते हैं। छपरा सदर और गड़खा प्रखंड में उनके द्वारा लगाए सैकड़ों वृक्ष आज लहलहा रहे हैं।
सारण (बिहार) के गड़खा प्रखंड अंतर्गत ग्राम कोठिया के प्राण राय टोला के निवासी श्री दशरथ राय मेहनत मजदूरी कर अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। लेकिन परिवार के लिए पांच दिन और पेड़ के लिए दो दिन देना कभी नहीं भूलते। बीमार होने पर भी वे पेड़ों के लिए समय निकाल ही लेते हैं। इस कार्य में उनकी धर्मपत्नी और दो लड़के भी कंधा से कंधा मिलाकर उनका सहयोग करते हैं। जबकि पत्नी सर्वाइकल स्पौन्डिलाईटिस की मरीज हैं। बेटा भी बीमार रहता है।थ्
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