पर्यावरण संरक्षण का जुनून
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पर्यावरण संरक्षण का जुनून
तरुण सिसोदिया
पूरी दुनिया के सामने आज जो बड़ी समस्याएं हैं उनमें से पर्यावरण का संकट भी एक गंभीर समस्या बनकर खड़ा है। पेड़ लगातार काटे जा रहे हैं, वाहनों की तेजी से बढ़ती संख्या तथा औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले जहरीले धुएं के कारण वायु प्रदूषित हो रही है। ऐसे में हर कोई यही सोचकर चिंतित है कि क्या होगा जब पेड़ नहीं रहेंगे और वातावरण पूरी तरह प्रदूषित हो जाएगा। राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अनेक बार इस गंभीर मुद्दे पर चर्चा हो चुकी है, परन्तु इसका हल निकलता हुआ नहीं दिख रहा। लेकिन निराशा के इस माहौल में देश में ऐसे भी लोग तथा छोटी-छोटी अनेक संस्थाएं हैं जो अपने-अपने स्तर पर पर्यावरण को स्वस्थ रखने तथा संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
पर्यावरण के लिए जागरूकता
दिल्ली में एक ऐसी संस्था है, जो देशभर में वृक्षारोपण एवं वृक्षों के रखरखाव के जरिए पर्यारण संरक्षण के काम में लगी हुई है। दिल्ली के करोलबाग स्थित “प्लांट्स गार्जियन सोसायटी” नाम की यह संस्था सन् 1994 से ही इस काम के लिए लोगों को जागरूक कर रही है। पर्यावरण हरा-भरा बना रहे इसके लिए संस्था वृक्षों का रोपण तो कराती ही है, लेकिन इसका मुख्य ध्यान लगे हुए वृक्षों को सुरक्षा प्रदान करना अधिक है। इस कार्य के लिए संस्था ने हर शहर में अपने स्वयंसेवक तैयार किए हैं, जो पौधे लगवाने के साथ-साथ उनकी सुरक्षा का भी ध्यान रखते हैं। कुछ समय पूर्व दिल्ली के न्यू रोहतक रोड पर संस्था ने दिल्ली नगर निगम की सहायता से एक हर्बल गार्डन तैयार कराया। जिसमें 500 से अधिक औषधीय पौधे लगाए गए, साथ ही इन पौधों की रक्षा के लिए स्वयंसेवक भी नियुक्त किए।
वृक्षारोपण एवं उनके रखरखाव के लिए लोग जागरूक हों इसके लिए संस्था ने प्रारम्भ से ही सम्मेलन, गोष्ठी, चर्चा-संवाद आदि का आयोजन किया। संस्था अभी तक देशभर में सैकड़ों स्थानों पर ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन कर लोगों को जागरूक कर चुकी है। मुख्य रूप से ऐसे आयोजन स्कूल, कॉलेज, कालोनी आदि में किए जाते हैं। जहां भी जागरूकता के आयोजन होते हैं, वहां कार्यक्रम के बाद बड़ी संख्या में लोग संस्था के स्वयंसेवक बनने को तैयार हो जाते हैं तथा वृक्षारोपण कर उन वृक्षों की रक्षा का संकल्प लेते हैं। वर्ष 2009 में कपूरथला (पंजाब) के इंजीनियरिंग कालेज में गोष्ठी के बाद छात्रों ने कालेज परिसर में 1000 पौधे लगाए। इसी तरह हाल ही में अमृतसर में 400 पौधे छात्रों ने अपने शिक्षकों के सहयोग से रोपित किए। चण्डीगढ़ में तो स्कूल के छोटे-छोटे बच्चों ने 300 के करीब पौधे स्कूल के प्रांगण में लगाए।
संस्था की स्थापना तथा इसके कार्य पर प्रकाश डालते हुए “प्लांट्स गार्जियन सोसायटी” के अध्यक्ष श्री कीर्ति शर्मा ने कहा कि धरती से कम होती पेड़ों की संख्या तथा प्रदूषित होते वातावरण की चिंता के मद्देनजर हमने सोसायटी का गठन किया। हमारा प्रारम्भ से ही मानना था कि सोसायटी के सदस्यों की संख्या के बल पर हम कितने पेड़ लगा लेंगे? इसलिए हमने इसके लिए लोगों को जागरूक करने का फैसला लिया, ताकि लोग पर्यावरण के प्रति संवेदनशील हों। साथ ही यह विचार भी मन में था कि पेड़ तो लोग लगा देते हैं, परन्तु उनकी रक्षा नहीं हो पाती, जिसके चलते कुछ समय बाद लगाए हुए पेड़ समाप्त हो जाते हैं। इसलिए पेड़ लगाने के साथ-साथ पेड़ों की रक्षा करने वाले स्वयंसेवक भी हमने तैयार करने शुरू किए। आज संस्था के साथ बड़ी संख्या में स्वयंसेवक जुड़े हुए हैं और वृक्ष लगाने के साथ-साथ उनकी रक्षा भी कर रहे हैं।
यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने में योगदान
दिल्ली में करीब 50 किलोमीटर क्षेत्र में बहने वाली पवित्र यमुना नदी आज एक गंदे नाले में परिवर्तित होती जा रही है। रोजाना बद से बदतर होती इसकी स्थिति देखकर हर कोई चिंतित है। परन्तु इसे प्रदूषण मुक्त करने के लिए कोई गंभीर नजर नहीं आता। क्योंकि रोजना बड़ी मात्रा में घरों और उद्योगों से निकला कचरा इसमें बहा दिया जाता है। घरों और उद्योंगों का कचरा यमुना में न जाए इसलिए दिल्ली सरकार ने कुछ वर्ष पूर्व “संयुक्त जल शोधन संयंत्रों” की योजना के तहत दिल्ली में 10 संयंत्र शुरू कराए, लेकिन झिलमिल औद्योगिक क्षेत्र में लगे संयंत्र को छोड़कर अन्य संयंत्रों की कोई प्रभावी भूमिका यमुना के प्रदूषण को कम करने में नहीं बन पाई।
झिलमिल औद्योगिक क्षेत्र में सन् 2005 से लगातार कार्य कर रहा “संयुक्त जल शोधन संयंत्र” सरकार तथा झिलमिल-फ्रेंड्स कालोनी औद्योगिक क्षेत्र सोसायटी का साझा प्रकल्प है, जोकि सोसायटी के पदाधिकारियों की देखरेख में संचालित होता है। संयंत्र झिलमिल, फ्रेंड्स कालोनी, दिलशाद गार्डन, शाहदरा आदि क्षेत्र में स्थापित लगभग 2000 लघु उद्योग इकाइयों तथा घरों से निकलने वाले दूषित जल को शोधित करता है। एक अनुमान के मुताबिक यहां रोजाना 60-80 लाख लीटर दूषित जल शोधित किया जाता है, जबकि इसकी क्षमता 1 करोड़ 68 लाख लीटर है। गंदे पानी को संयंत्र में अनेक प्रक्रियाओं के माध्यम से शोधित किया जाता है। यहां शोधित हुए जल की जांच समय-समय पर सरकार के विशेषज्ञों द्वारा की जाती है। विशेषज्ञों की जांच में इस जल को पीने को छोड़कर अन्य अनेक कार्यों के लिए उपयुक्त माना गया है। इसका उपयोग बागवानी, भवन निर्माण, आग बुझाने आदि के कार्य के लिए किया जा सकता है, परन्तु दुर्भाग्य से पानी की कमी का रोना रोने वाली दिल्ली सरकार तथा अन्य सरकारी विभाग इस स्वच्छ जल का बिल्कुल भी उपयोग नहीं कर रहे। इससे इन औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला शोधित जल यमुना में पहुंचकर इसे प्रदूषित तो नहीं करता, लेकिन स्वच्छ जल को नाले में बहाने पर वह व्यर्थ ही चला जाता है। इससे सरकार की शोधित जल के प्रति लापरवाही साफ उजागर होती है। संयंत्र की देखरेख में लगे श्री अनिल गुप्ता ने कहा कि इस संयंत्र की देशभर में इतनी ख्याति है कि यहां पर्यावरण से संबंधित विषयों पर शोध करने वाले विद्यार्थियों का लगातार आना-जाना लगा रहता है। इसके अलावा यहां समय-समय पर आने वाले राजनेता, सरकारी अधिकारी तथा समाजसेवियों ने भी इसे उत्तम संयंत्र का दर्जा दिया है।
खुशियों से जोड़ा पर्यावरण
गाजियाबाद के इन्दिरापुरम स्थित “रेल विहार सोसायटी” के लोगों ने अपनी हर छोटी-बड़ी खुशी को पर्यावरण से जोड़ दिया है। घर में किसी बच्चे का जन्म हुआ हो, जन्मदिन हो या फिर शादी जैसा बड़ा आयोजन। हर अवसर पर यहां के लोग सोसायटी के ऐसे स्थानों पर वृक्ष लगाते हैं, जहां वृक्ष नहीं हैं या कम हो गए हैं। इसके अलावा भिन्न-भिन्न अवसरों पर सोसायटी में होने वाले सामूहिक कार्यक्रमों के दौरान भी सोसायटी के लोग वृक्ष लगाते हैं। कोई भी महीना ऐसा नहीं जाता, जब यहां पेड़ न लगते हों। इस तरह सालभर में यहां करीब 4-5 हजार नए पेड़ लग जाते हैं। सोसायटी में पेड़ों के कारण इतनी हरियाली है कि सोसायटी को गाजियाबाद की सबसे हरियाली युक्त सोसायटी का दर्जा प्राप्त है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में हरियाली के मामले में इसे दूसरा स्थान दिया गया है।
इन्दिरापुरम की सबसे पुरानी सोसायटियों में से रेल विहार सोसायटी रेल कर्मियों के लिए बनाई गई थी। सन् 1997 से लोग यहां रह रहे हैं। सोसायटी में प्रारम्भ से ही रहे श्री मुनेश सिन्हा, जोकि एक समय पर यहां की आवास कल्याण समिति के पदाधिकारी भी थे ने कहा कि जब हमने यहां रहना शुरू किया तो आसपास तो हरियाली थी, परन्तु सोसायटी के अंदर बहुत कम पेड़ थे। हमें अंदाजा था कि सोसायटी के बाहर की हरियाली भी कुछ ही दिनों में समाप्त हो जाएगी, क्योंकि नई-नई सोसायटियों के बनने का क्रम शुरू हो चुका था। तब यहां के निवासियों को लगा कि यदि हरियाली समाप्त हो गई, तो यहां रहना भी दुश्वार हो जाएगा। इसी सोच के बाद हमने तय किया कि यहां पेड़ लगाए जाएं। इसके बाद जो क्रम शुरू हुआ, वह आज तक चल रहा है। इस समय सोसायटी में 30 हजार से अधिक छोटे-बड़े पेड़ हैं, जिसके चलते यहां और पेड़ लगाने की जगह नहीं बची है, परन्तु सोसायटी के लोगों को हरियाली इतनी अच्छी लगने लगी है कि उन्होंने सोसायटी के बाहर पेड़ लगाने शुरू कर दिए हैं। हमारी सोसायटी से आसपास की सोसायटियों के लोग प्रेरणा ले रहे हैं। वे भी अपनी सोसायटियों में भिन्न-भिन्न आयोजनों पर पेड़ लगाने लगे हैं, जोकि एक अच्छा संकेत है।
पौधों की जान तैयार करने में लगे बुजुर्ग
नोएडा के कुछ बुजुर्ग पर्यावरण के लिए लाभकारी पौधों की आयु बढ़ाने में काम आने वाली खाद तैयार करने के काम में लगे हैं। थल सेना, वायु सेना आदि से सेवानिवृत्त ये बुजुर्ग सन् 2003 से इस कार्य में लगे हैं। इसके लिए इन लोगों ने “एनवायरमेंट इम्प्रूवमेंट सोसायटी” का गठन किया है।
करीब 50 लोगों की यह सोसायटी पेड़ से गिरी हुई पत्तियों से खाद तैयार करती है तथा 6 रुपए प्रति किलो के हिसाब से लोगों को बेचती है। नोएडा अथॉरिटी ने सोसायटी के काम को सराहते हुए इसे खाद बनाने के लिए जगह दी है। सोसायटी अथॉरिटी द्वारा उपलब्ध कराई गई जगह पर नोएडा की अलग-अलग सोसायटियों से पेड़ों से गिरी हुई पत्तियों को एकत्रित्र कराकर खाद बनाती है।
सोसायटी के उपाध्यक्ष एयरफोर्स से सेवानिवृत्त श्री वी.के. नागपाल ने कहा कि महीने भर में करीब एक टन पत्तियां एकत्रित हो जाती हैं, जिनसे करीब 400 किलो खाद बनती है। उन्होंने कहा कि पहले सोसायटी घरों से निकले हुए कचरे से खाद तैयारी करती थी, परन्तु अब हम पेड़ों से गिरी हुई पत्तियों से खाद बनाते हैं। उन्होंने कहा कि पेड़ से गिरी हुई पत्तियों का खाद के रूप में इस्तेमाल करना अच्छा है, नहीं तो सोसायटियों के चौकीदार इन पत्तियों को जला देते थे, जिससे वायु प्रदूषित होती थी। थ्
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